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निरंकारी समुदाय की रोशनी का विलीन होना

मानवता को समर्पित संत निरंकारी मिशन की पांचवीं सद्गुरु माता सविंदर हरदेवजी ने इस संसार से विदा ले ली है, 5 अगस्त 2018 रविवार को सांय पांच बजे बीमारी के चलते उनका स्वर्गवास हो गया। उनका निधन दुनिया के समूचे अध्यात्म जगत की एक अपूरणीय क्षति है। वे हाल ही में बाबा हरदेव सिंह के ब्रह्मलीन होने के बाद संत निरंकारी मिशन की आध्यात्मिक प्रमुख बनी। 17 जुलाई 2018 को उन्होंने बीमार रहने के कारण अपनी जिम्मेदारी अपनी सबसे छोटी बेटी सुदीक्षा को सौंपते हुए उन्हें छठे सद्गुरू व संत निरंकारी मिशन के आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में घोषित किया था।

सद्गुरु माता सविंदर हरदेवजी ने अपने स्वल्प गुरु-शासन में आध्यात्मिक, दार्शनिक एवं संत परम्परा को समृद्ध किया। उन्होंने बौद्धिक प्रतिभा तथा आध्यात्मिक उच्चता की परम्परा को नये आयाम दिये। वर्तमान युग चिंतन स्त्री-पुरुष के अलग-अलग अस्तित्व का न समर्थक है और न संपोषक। वह दोनों के सहअस्तित्व और सहभागिता का पक्षधर है। यही कारण है कि माता सविंदर हरदेवजी की सोच, कार्यक्षेत्र और जीवन पद्धति ने नारी सम्मान को एक नयी ऊंचाई प्रदान की है।। उन्होंने विभिन्न दिशाओं में सृजन की नई ऋचाएं लिखी हंै, नया इतिहास रचा है और अपनी योग्यता और क्षमता से स्वयं को साबित किया है। न केवल बौद्धिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी उन्होंने नये स्वस्तिक उकेरे हैं। अध्यात्म की उच्चतम परम्पराओं, संस्कारों और जीवन मूल्यों से प्रतिबद्ध वे एक महान विभूति, एक ऊर्जा का और एक महान धर्मनायिका के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान कायम की है। विकास के सफरनामे में निरंकारी मिशन में प्रथम महिला धर्मगुरु होने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वे निरंकारी समुदाय की तरुणिमा थी। वे प्रख्यात निरंकारी धर्मनायक सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह महाराज की महनीय कृति थी, जीवन संस्कृति थी और अपने अनुयायियों के लिए आश्वस्ति थी।

माता सविंदर हरदेवजी का जन्म 2 जनवरी 1957 को रोहतक-हरियाणा में पिता मनमोहन सिंहजी और माता अमृत कौरजी के घर में हुआ। आपकी पूरा परिवार जन्म के कुछ समय बाद ही यमुनानगर में बस गया फिर श्री गुरमुख सिंहजी और मदन माताजी ने आपको गोद लिया और आपको फर्रुखाबाद ले आये, यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि दोनों परिवार निरंकारी मिशन से जुड़े हुए थे। मगर उस वक्त शायद उनको भी पता नहीं रहा होगा की वे किस सितारे को अपने घर ले आ रहे हैं। आपका बचपन बहुत ही सरल और सच्चा था। बचपन में ही आपमें कुछ विलक्षणताएं एवं अलौकिकताएं दिखाई दी थीं।

आपकी प्रारंभिक शिक्षा फार्रुखाबाद में हुई, उसके बाद 1966 मंे आपने मसूरी में हाईस्कूल की शिक्षा हासिल की। आप बचपन से ही एक प्रतिभाशाली छात्रा रही हैं। यही कारण है कि आपके हर विषय में 90 प्रतिशत से अधिक अंक आते थे। आप अपनी उच्च शिक्षा के लिए बाद में दिल्ली आयी और दौलत राम काॅलेज से अपनी उच्च शिक्षा हासिल की।

14 नवंबर, 1975 को दिल्ली में 28वें वार्षिक निरंकारी संत समागम की पूर्व संध्या पर आपने एक साधारण समारोह में बाबा हरदेव सिंहजी से शादी की थी और उनके आध्यात्मिक सफर में हमसफर बन गयी। और इस तरह आप बाबा गुरबचन सिंहजी और निरंकारी राजमाता कुलवंत कौरजी के पवित्र परिवार का हिस्सा बन गयीं। इसी साल विश्व मोक्ष दौरे पर आपने बाबा हरदेव सिंहजी, बाबा गुरबचन सिंह और राजमाताजी के साथ इटली, स्विटजरलैंड, फ्रांस, बेल्जियम और आस्ट्रिया का दौरा किया और निरंकारी समागम की सेवा की।

सतगुरु माता सविंदर हरदेवजी संत निरंकारी मिशन की प्रमुख थी। 13 मई, 2016 को कनाडा में कार दुर्घटना में मिशन के पूर्व प्रमुख व सद्गुरु बाबा हरदेवसिंहजी महाराज के इस सर्वशक्तिमान निरंकार में ब्रह्मलीन हो जाने के बाद संत निरंकरी मिशन की कमान माता सविंदर हरदेवजी को सद्गुरु के रूप में सौंपी गयी। चूँकि इससे पहले मिशन में कोई महिला प्रमुख नहीं बनीं इसलिए वे निरंकारी मिशन की पांचवीं प्रमुख के साथ-साथ मिशन की पहली महिला प्रमुख भी बनीं। माता सविंदर सामाजिक कार्य और मानव कल्याण के हित के लिए लगातार भक्तांे के साथ प्रेम-भाव, आदर-सत्कार और विश्व भाईचारे के लिए निरंतर कार्यरत रही। उनका स्वल्प आध्यात्मिक सफर नये इतिहास का सृजन करता रहा है। उनकी सादगी, सहजता और विनम्रता जहां उनको सामान्य लोगों के करीब लाती थी, वहीं ज्ञान की अगाधता, आत्मा की पवित्रता, सृजनधर्मिता और अप्रमत्तता उन्हें औरों से विशिष्ट श्रेणी में स्थापित करती थी। उनकी सत्यनिष्ठा, चरित्रनिष्ठा, सिद्धांतनिष्ठा अद्भुत थी। अनुशासन और प्रबंधन-पटुता से उन्होंने निरंकारी मिशन में नये आयाम उद्घाटित किये। उनमें एक दृढ़ निश्चयी, गहन अध्यवसायी, पुरुषार्थी और संवेदनशील ऋषि-आत्मा निवास करती थी। वे एक चेतनाशील आध्यात्मिक नारी थी, उनकी चेतना में अथाह ऊर्जा का पुंज था। उसका प्रस्फोट अध्यात्म की अतल गहराई में ही संभव था। उन्होंने अध्यात्म के सूक्ष्म रहस्यों को तलाशा है और आंतरिक ऊर्जा को जाग्रत किया है।

सद्गुरु माता सविंदर हरदेवजी को निरंतर अध्यात्म जगत की ऐतिहासिक और विरल घटनाओं से रू-ब-रू होने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा। एक बार फिर सन् 1976 में आपश्री को फिर से दुनियाभर के संतो की सेवा करने का और निरंकारी समागम का आध्यात्मिक रस अपने जीवन में उतारने का मौका मिला, जिसका अपने खूब आनंद उठाया। एक बार फिर आपने बाबा हरदेवसिंहजी, बाबा गुरबचनसिंह और राजमाताजी के साथ कुवैत, इराक, थाईलैंड, हांगकांग, कनाडा, अमरीका, ऑस्ट्रिया और ब्रिटेन में दो महीने का विश्व मोक्ष दौरा किया जहाँ से आपने खूब शिक्षा ग्रहण की और निरंकारी समागम का आशीर्वाद प्राप्त किया। उनकी ये यात्राएं और सफरनामा साक्षी है कि मंजिल की ओर गतिशील उनके सधे हुए कदम न कहीं पर रूके, न पीछे मुड़े। ऊध्र्वारोहण की यात्रा में एक-एक पायदान को लांघते हुए उन्होंने प्रगति की महत्ती मंजिलें तय की हैं। उन्होंने न केवल सफलता के शिखरों का स्पर्श किया है अपितु उपलब्धियों के अगणित स्वर्णिम शिखर स्थापित किए हैं और यह सब बिना किसी चाह के, बिना किसी महत्वाकांक्षा के एक शिष्यवत्।

ऐसा नहीं है कि उनका जीवन सदैव खुशियों से ही भरा रहा है। उन्होंने अनेक कष्ट और विपरीत स्थितियों का भी सामना किया है। एक ऐसी ही दुखदाई घडी 1980 में आई और और हिंसक प्रवृति के लोगांे ने दुनिया में शांति और सद्भावना फैलाने वाले शांतिदूत और एक महापुरुष बाबा गुरुबचन अवतारजी की हत्या कर दी। जिससे पूरे निरंकारी समुदाय में शोक की लहर दौड़ उठी और एक घोर सन्नाटा छा गया। ऐसी विकट स्थितियों में ही जब बाबा हरदेवसिंहजी को छोटी-सी उम्र में गुरु गद्दी सौंपी और आपको निरंकारी समुदाय ने पूज्य माताजी का दर्जा दे दिया। बाबाजी को सद्गुरु मान कर और आपको पूज्य माताजी मानकर हर निरंकारी भक्त आपसे आशीर्वाद प्राप्त करने लगा। इस तरह बाबाजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर निरंकारी मिशन और इस निराकार के प्रचार-प्रसार में लगीं। जब भी कोई महात्मा या विशिष्ट व्यक्ति घर पर बाबाजी को मिलने के लिए आता तो माता सविंदरजी उनका खूब खयाल रखती और और एक आदर्श गृहिणी की तरह उनके साथ पेश आती। वे सरलता एवं सादगी की अद्भुत मिसाल थी।

कनाडा मंे एक सड़क हादसे में जब बाबा हरदेव सिंहजी अपने नश्वर शरीर को त्यागकर ब्रह्मलीन हुए तो उस पल निरंकारी समुदाय में एक बार फिर से गहरा सन्नाटा पसर गया और फिर से शोक की लहर दौड़ पड़ी, चारों और मातम ही मातम फैल गया। इन विकट स्थितियों में सद्गुरु सविंदर हरदेव मां ने गम में डूबे भक्तों को इस दर्द से उबारने, उनको आगे का मार्ग दिखाने और निरंकारी मिशन को एक नई मिसाल बनाने की दिशा में अग्रसर हो गई। न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक संगठन निरंकारी मिशन के नेतृत्व को जिस कुशलता के साथ वे संचालित कर रही थी, वह अपने आप में एक विरल घटना है।

सद्गुरु सविंदर हरदेवजी निरंकारी मिशन की एक ऐसी असाधारण उपलब्धि है जहां तक पहुंचना हर किसी के लिए संभव नहीं है। प्रश्न होता है कुछ एक व्यक्ति इतना सफल कैसे हो जाते हैं? स्वल्प समय में कैसे इतने आगे निकल जाते हैं? इसका समाधान सहज है। विशिष्ट व सफल व्यक्ति आम लोगों से अलग नहीं होते। लेकिन उनके जीने का तथा काम करने का तरीका अलग होता है। वे आकाश से नहीं उतरते, धरती पर ही पैदा होते हैं। वे केवल किसी ईश्वरीय आशीर्वाद से नहीं अपितु अपने श्रम, संकल्प और सकारात्मक ऊर्जा से निर्मित होते हैं। इसके लिए चाहिए तीव्र इच्छाशक्ति, लक्ष्य प्रतिबद्धता, लगन, वज्र संकल्प और कठोर श्रम। एक छोटे से कालखण्ड में उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल की हैं वह उनके संकल्पशक्ति एवं स्फुरणाशील प्रतिभा का परिचायक है। निरंकारी मिशन और उसके असंख्य भक्तों के लिए वे नित नये उन्मेष स्फुरित करने वाली गुरु मां थी। वे निरंकारी समुुदाय की एकता और अखण्डता की परंपरा को मूर्तरूप देकर प्रगति और परंपरा के मध्य मजबूत सेतु का निर्माण कर रही थी, अपने सृजन कौशल से सफलता के नये द्वार उद्घाटित कर रही थी। उनके देह त्याग से समूचा निरंकारी समुदाय गहरी रिक्तता महसूस कर रहा है। क्योंकि वे उनके लिये प्रेम, करुणा एवं सहनशीलता की दिव्य प्रतिमा थी, शक्ति का साक्षात् स्वरूप थी और सदा रहेंगी।
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(ललित गर्ग)
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