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मिलिंद खांडेकर ने बीबीसी से स्तीफा दिया

‘बीबीसी (इंडिया)’ के डिजिटल एडिटर मिलिंद खांडेकर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। खांडेकर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर इसके बारे में जानकारी दी है। हिंदी और अंग्रेजी दोनो ही भाषाओं में बराबर की पकड़ होने के बावजूद भी मिलिंद खांडेकर ने शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता की ओर अपना रुख किया।

इस ट्वीट में खांडेकर का कहना है, ‘बीबीसी इंडिया के साथ मेरा सफर काफी बेहतर रहा। इस दौरान कई नई चीजें सीखने का मौका भी मिला। भारत में बीबीसी ने काफी विस्तार किया है और मैं काफी सौभाग्यशालू हूं जो इसका हिस्सा रहा। मैं अपने सभी साथियों को धन्यवाद देता हूं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। अपने अगले कदम के बारे में मैं जरूर जानकारी दूंगा।’

गौरतलब है कि मिलिंद खांडेकर ने अगस्त, 2018 की शुरुआत में एबीपी न्यूज में अपनी 14 साल की लंबी पारी को विराम दिया था। वे यहां मैनेजिंग एडिटर पद पर कार्यरत थे। 2016 में उनका कद बढ़ाकर उन्हें नई जिम्मेदारियां सौंपी गई थी। एबीपी न्यूज नेटवर्क में उनका योगदान हिंदी चैनल के साथ शुरू हुआ और धीरे-धीरे एबीपी न्यूज नेटवर्क के डिजिटल और क्षेत्रीय (बंगाली, मराठी और गुजराती) चैनलों की ओर भी बढ़ा।

गौरतलब है कि 2016 में ही मिलिंद खांडेकर को टीवी न्यूज इंडस्ट्री के प्रतिष्ठित अवॉर्ड एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड (enba) के तहत बेस्ट एडिटर कैटेगरी के लिए भी चुना गया था।

हिंदी और अंग्रेजी दोनो ही भाषाओं में बराबर की पकड़ होने के बावजूद भी मिलिंद खांडेकर ने शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता की ओर अपना रुख किया। मिलिंद ने पत्रकारिता में अपनी शुरुआत 1992 से ‘नवभारत टाइम्स’ के साथ की। नवभारत में उन्होंने सब-एडिटर और रिपोर्टर के रूप में काम किया। 1995 तक वे यहां रहे। तीन साल काम करने के बाद वे ‘आजतक’ के साथ जुड़ गए। आजतक में उन्होंने कुछ समय तक रिपोर्टर की भूमिका निभाई, जिसके बाद कई विभिन्न पदों पर काम करते हुए वे यहां एग्जिक्यूटिव प्रड्यूसर बन गए और बाद में उन्होंने वेस्टर्न ब्यूरो ऑपरेशन की भी कमान संभाली। 2004 में मिलिंद ने ‘आजतक’ को अलविदा कह दिया और तब स्टार न्यूज यानी आज के ‘एबीपी न्यूज’ के साथ जुड़ गए थे। तब से वे एमसीसीएस (एबीपी चैनल का संचालन करने वाली कंपनी) में बतौर मैनेजिंग एडिटर की भूमिका निभा रहे थे।

मिलिंद ने किताब ‘दलित करोड़पति-15 प्रेरणादायक कहानियां’ भी लिखी । इसमें 15 कहानियां है, जिनमें 15 दलित उद्योगपतियों के संघर्ष को शॉर्ट स्टोरीज की शक्ल में प्रस्तुत किया गया है। ये कहानियां दलित करोड़पतियों की है,जिन्होंने शून्य से शुरू कर कामयाबी के नए आयाम रचे, जिनके पास पेन की निब बदलने के लिए पैसे नहीं थे आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में है, लेकिन उन्होंने ये कामयाबी कैसे हासिल की, क्या मुश्किलें आई और उन्होंने इन मुश्किलों पर कैसे फतह हासिल की।

पत्रकारिता जगत में उन्हें दो दशक से भी ज्यादा का अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई प्रतिष्ठित टाइम्स सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज से की है। 1991 में हिंदी में बेस्ट ट्रेनी के लिए उन्हें ‘राजेन्द्र माथुर अवॉर्ड’ से भी नवाजा गया था।