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दिल्ली में वंचित बच्चों को शिक्षित करने वाले फ्री स्कूल का समर्थन करता है मिलाप

नई दिल्ली। एक छात्र उतना ही अच्छा होता है, जितना एक शिक्षक! इस शिक्षक दिवस, भविष्य के भारत को शिक्षित करने के मिशन पर लगे शिक्षकों का जश्न मनाने का समय है. दिल्ली में एक ग्रासरी चलाने वाले राजेश शर्मा का मानना है कि बच्चों को भविष्य के अवसरों को सिर्फ इसलिए नहीं खोने देना चाहिए क्योंकि शिक्षा तक उनकी पहुंच नहीं है. आज यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास पुल के नीचे खुली जगह पर वे प्रवासी श्रमिकों, मजदूरों, रिक्शा खींचने वालों के सैकड़ों गरीब बच्चों और यमुना के किनारे गांवों में रहने वाले किसानों के बच्चे को हर दिन शिक्षा दे रहे है। राजेश शर्मा द्वारा संचालित यह स्कूल बिल्कुल मुफ्त है, उनके प्रयास को देखते हुए क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म मिलाप ने भी उनसे हाथ मिलाया है।

अपनी इस अद्भुत पहल के बारे में बात करते हुए श्री राजेश शर्मा ने कहा, ‘‘फ्री स्कूल में बच्चों को होमवर्क पूरा करने और स्कूल में जो पढ़ाया जाता है, उसे समझने में सहायता की जाती है. बच्चे जो समय यहां बिताते हैं, अगर यहां नहीं आते तो, पहले यही समय घूमने या गपशप करने में बर्बाद हो जाते थे. कई माता-पिता हमारे स्कूल से नाखुश हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे या तो पार्ट-टाइम काम करें या अपने घरों में छोटे भाई-बहनों की देखभाल करें। माता-पिता के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजने की इजाजत दिलवाने के लिए बहुत समझाना पडता है. लेकिन एक बार जब वे समझ जाते हैं कि यह उनके बच्चों के भविष्य के लिए है, तो वे सहमत हो जाते हैं।’’

राजेश शर्मा एक दशक से भी ज्यादा समय से ये स्कूल चला रहे हैं और लगातार अपने कॉज के पीछे भाग रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही उन्हें साथी शिक्षकों से सहायता मिली है। राजेश ने अपने कॉज के लिए धन पाने के लिए मिलाप पर अभियान चलाया था। इस अभियान ने क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म मिलाप के माध्यम से पर्याप्त समर्थन और धन प्राप्त किया।

मिलाप से मिले धन से, अब स्कूल में 300 से अधिक लड़कियां और लड़के, अलग-अलग सरकारी स्कूलों में नामांकित, विभिन्न वर्गों में पढ़ रहे हैं। कई छात्र स्कूल के बाद पाठ्यक्रम को समझने के लिए पुल के नीचे मुफ्त स्कूल आते हैं। स्कूल में हर दिन दो सत्र चलता है, जहां सुबह में लड़कों के लिए दो घंटे और दोपहर में लड़कियों के लिए दो घंटे। यद्यपि छात्रों के पास कक्षा और गलियारे नहीं हैं, लेकिन निश्चित रूप से स्कूल के छात्रों ने इसे एक अलग स्वरूप दे दिया है।

राजेश, जिन्होंने कभी इंजीनियर बनने का सपना देखा था लेकिन वित्तीय बाधाओं के कारण अपने सपने को आगे नहीं बढ़ा सके, कहते हैं, ‘‘मैं नहीं चाहता कि यह पीढ़ी सिर्फ इसलिए खराब हो क्योंकि वे गरीब हैं. वित्तीय बाधाओं के कारण मैं इंजीनियर बन नहीं पाया। मुझे कॉलेज से निकलना पड़ा, इन बच्चों के माध्यम से, मैं अपना सपना जी रहा हूं। मैं उनके सपने को सच होता और ऊंचा उड़ते देखना चाहूंगा।’’

राजेश शर्मा इस आदर्श वाक्य के साथ जीते हैं कि कभी उसके लिए मत रो जो आपके पास नहीं है बल्कि आपके पास जो कुछ है उसी के साथ आगे लक्ष्य हासिल करने की दिशा में काम करे!