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रुद्राभिषेक का चमत्कार

पूरे बलिया शहर की चिल्ल पों के ठीक बीचों-बीच बाबा बालेश्वर नाथ का मन्दिर है…जहाँ का प्रभाव क्या है, यह वही बता सकता है जो कभी वहाँ गया हो। शहर के बीचों बीच विराजमान भगवान शिव के दरबार का क्या अद्भुत सौंदर्य है… मन्दिर में दर्जनों पुजारी हैं, लेकिन किसी ने भी एक तिलक करने का भी एक तृण किसी से न माँगा होगा… यहाँ कितने ही लोगों की रोजी रोटी का प्रतिदिन प्रबन्ध बालेश्वर नाथ ही करते हैं…
इसी मन्दिर में एक चौकी लगती है पंडित सीताराम तिवारी की। जिले के विद्वत समाज में सबसे प्रतिष्ठित नाम है पंडित सीताराम तिवारी का..
पंडितजी वैसे तो हमेशा व्यस्त रहते हैं किन्तु सावन के महीने में आलम कुछ बदला बदला सा रहता है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़… तिसपर रुद्राभिषेक के विशेषज्ञ पंडित सीताराम के अद्भुत स्वर और कौशल का आकर्षण उन्हें दिन में चार अभिषेकों के उपरांत भी दम लेने का अवसर न देता था।
आज शिवरात्रि भी है और सावन में शिवरात्रि के दिन महादेव का अभिषेक मृत्यु को भी परास्त करने में सक्षम है। यही अभिलाषा लेकर एक प्रौढ़ व्यक्ति पंडितजी के घर प्रातः उपस्थित हुआ है, पंडितजी खीझ उठते हैं कि कैसा विचित्र व्यक्ति है, अभी आता है और तुरंत चलने को कहता है। सम्भवतः इसे उनके विषय में ठीक से मालूम नहीँ। विनम्रता से कहते हैं –
“अभी आप जाइये, भाद्रपद शुक्लपक्ष में किसी दिन शिववास देखकर आप के यहां भी अनुष्ठान करा दूंगा।”
वह व्यक्ति पंडितजी के पैरों पर अपने पुत्र की कुंडली रखकर रो पड़ा। बोला –  “महाराज यह मेरा लड़का है, दो साल पहले इसका विवाह किया है… बहू पेट से है… दो दिन पहले घर लौटते समय एक ट्रक के नीचे आ गया..डॉक्टर कहते हैं सारा खून बह गया है… कोमा में है… सब कहते हैं कि अब भगवान ही कुछ कर सकता है और भगवान को बिना आपके सहयोग के कैसे पुकारूँ?”
पंडितजी बिना मन के कुंडली उठा लेते हैं… खोलते ही नाम सामने आता है श्री अमित कुमार मिश्र… चौंककर सीताराम तिवारी पूछते हैं कि –
“आपके लड़के स्टेट बैंक में काम करते हैं?”
उत्तर आता है ‘जी’.
धप्प से बैठ जाते हैं दीवार का सहारा लेकर पंडितजी, और कहते हैं कि जाकर तैयारी करिये, हम आते हैं।
वह व्यक्ति चला गया है और सीताराम की आँखें शून्य में देख रही हैं। फिर से उमड़ते उन दृश्यों को जब वो काशी हिन्दू विश्विद्यालय में संस्कृत परास्नातक के छात्र थे… होठों पर उपनिषदों के श्लोक फूटते थे किन्तु हृदय महिला महाविद्यालय के द्वार पर प्रहरी बना रहता था जहाँ पढ़ती थीं सुलेखा… विश्वविद्यालय की गलियों में पैदा हुआ प्रेम बनारस के घाटों पर जवान हुआ, किन्तु इसके पहले कि इस प्रेम को पृष्ठभूमि की पहचान मिले, पंडितजी को सुलेखा के विवाह की सूचना मिली। मन व्यथित था पंडितजी का किन्तु स्वार्थ से रहित था; उनका प्रेम ईश्वर था और उन्हें इसका भलीप्रकार भान था कि उनकी वर्तमान परिस्थिति उनके ईश्वर को कोई प्रसाद नहीं दे सकती।
उन्हें सुलेखा के शब्दों पर गर्व हुआ, जब उसने कहा –
“कोई भी लड़की अपनी उम्र के लड़के की तुलना में जल्दी बड़ी हो जाती है..और यह जल्दी में हुई वृद्धि एक पिता पर बहुत भारी होती है… मैं आपकी प्रतीक्षा नहीं कर सकती… मुझे आशीर्वाद दीजिये।”
इतना कहकर सुलेखा ने पंडितजी के पैर छुए और दृष्टि से ओझल हो गई थी।
सीताराम को जब लड़के के नाम और पद का पता चला तो उन्हें अपने आराध्य की पूर्ण सुरक्षा का विश्वास हो आया।
अब आज अचानक फिर समय का यह कौन सा मोड़? सजल आँखे हृदय को बोध करा रही थीं कि उन्हें अभी भी बस सुलेखा से ही प्रेम है और उनके प्रेम की सुरक्षा अब उन्ही की ओर से आशान्वित है।
पंडितजी अभिषेक शुरू करते हैं…
ॐ केशवाय नमः।
आचमन के लिए उठे सुलेखा के हाथों का जल सीताराम की आँखों में भी था।
ॐ हृषिकेशाय नमः।
सुलेखा दाँये हाथ के अँगुष्ठ मूल से होठ पोंछती है और सीताराम के हाथ उनके नेत्रों का साथ देते हैं।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
पवित्रता का यह आवाहन पवित्र करता है वातावरण के साथ पंडितजी के मन को भी।
होंठ स्वस्तिवाचन करते हैं –
हरिः ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः।
और मन ईश्वर की कृपा की खोज में भटकता रहता है।
मृत्यु को भी परास्त करने का अभिषेक प्रारम्भ होता है।सीताराम अपना समस्त ज्ञान अर्पित कर देना चाहते हैं… शरीर पसीने से भीग जाता है और मन आँसुओं से, परन्तु पंडितजी रुकते नहीं…
पंडितजी अब शिववन्दना का वाचन करते हैं..
ध्याये नित्यम् महेशम् रजतगिरिनिभम् चारुचन्द्रावतम्सम्…
तभी कोई आकर कहता है कि अमित की चेतना लौट रही है। पंडितजी और तीव्र होते हैं…
रत्नाकल्पोज्वलांगम् परषुमृगावराभीतिहस्तम् प्रसन्नम्…
सुलेखा की आँखों से धार बह निकलती है…
प्रेम और कृतज्ञता के प्रवाह में सबकुछ बह जाता है, किन्तु पंडित सीताराम की विद्वता पुष्टि के पूर्व विश्राम का प्रतिरोध करती है…
मन्त्र और तेज स्वर में गूंजता है…
पद्मासीनम् समन्तात् स्तुतममरगनै व्याघ्रकृतिम् वसानम् ।
विश्वाद्यम् विश्ववीजम् निखिलभयहरम् पंचवक्रम् त्रिनेत्रम्…
अब समाचार आता है कि अमित पूर्ण रूप से जागृत हैं और सबको देखना चाहते हैं…
सुलेखा सीताराम के पैरों पर गिर पड़ती है…
पंडितजी आँखे बन्द कर अश्रुओं का पंचामृत पी जाते हैं और होठो से अनुष्ठान का अंतिम श्लोक फूटता है..
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर
यत्पूजितं मयादेव परिपूर्णं तदस्तु मे |
अपराध सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया
दासोऽयं इति मां मत्वा क्षमस्व पुरुषोत्तम..
साभार-  https://www.jantakiawaz.org/ से