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मिशन लाइफ

हमारी वसुंधरा रहे सदैव हरी-भरी,
 प्रकृति की चादर बिछाना है जरूरी,
जंगल,जानवर,फलों से लदे-फदे अश्ज़ार,
जीव-चमन के हैं ये बांकें पहरेदार।
कल-कल बहते झरने,
आतुर हो जैसे कुछ कहने,
सौंदर्य अनुपम छवि का ये पाठ पढ़ाते हैं,
जीवन में प्रकृति का महत्व बताते हैं।
         प्रकृति हमारी महान है-
            सुंदरता की खान है-
कुल्हाड़ी की धार जब वृक्ष पर चलती है,
वृक्ष भी ये सोच अश्रु बहाता है,
‘जिसको मैंने जन्म दिया,वही मुझे काट रहा है’,
उजड़ा-उजड़ा ये चमन अब लगता है,
कैसा मंजर,कैसी धरती है ये!
जहां बंजर होते जा रहे खेत-खलिहान है!
ग्लोबल वॉर्मिंग से सब बेहाल है।
वृक्ष हमारे जीवन के आधार हैं,
सांसे हमारी इनकी कर्जदार हैं,
मत इन्हें इस तरह से रौंदों तुम,
करुणा,ममता से इन्हें पालो तुम।
प्लास्टिक के ढेर जगह-जगह सजे हैं,
दुर्गंध से सब मैदान ढके हैं,
पवित्र-पावन नदियों में,
प्लास्टिक खाती ईठलाती-बलखाती मच्छियां,
गौमाता जब ये खाती है,
गले में इनके भी फांसी लग जाती है।
क्यों हमें दया इतनी भी नहीं आती है?
क्यों फिर जनता दूध की शुद्धता पर सवाल उठाती है?
नदियों की तहरीरों को जब से पढ़ा है,
पाप और पुण्य में अंतर समझा है,
नदियों में गंदे कपड़े धोना पाप है,
पाप धोने के लिए डुबकी लगाना महापाप है।
क्यों हम कल-कल करती नदियों को प्रदूषित करते हैं?
फिर क्यों शुद्ध जल के लिए मारामारी करते हैं?
नदियां जीवन की धार हैं,
प्यासी आत्मा को ठंडा करने वाली मझदार हैं।
पत्तल-दोने भारतीय संस्कृति का है अनुपम उपहार,
फिर क्यों ना करें प्लास्टिक का बहिष्कार!
            जहर यह बड़ा घातक है,
            परिणाम इसका‌ मारक है।
गाड़ियों का काला धुआं,
खतरनाक बीमारियों का कारण बनता,
पर्यावरण दिवस मनाने से कुछ ना होगा,
जब तक दिनचर्या में बदलाव ना होगा।
साइकिल का उपयोग थोड़ा बढ़ाना है,
थोड़ी दूर पैदल भी चल कर जाना है,
जिम्मेदारी नहीं यह केवल सरकार की,
जागरूक करोड़ों को करना है।
एक व्यक्ति-एक पौधा,
एक करोड़ व्यक्ति-एक करोड़ पौधे,
       का सिद्धांत अपनाना है
 ‌          “मिशन लाइफ”
   की अवधारणा को संपूर्ण बनाना है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर आओ सब संकल्प करें,,,
धरती मां का फिर से ‘हर-श्रृंगार’ करना है।।
——
शिखा अग्रवाल
1 – एफ – 6, ओल्ड हाउसिंग बोर्ड,
शास्त्री नगर, भीलवाड़ा ( राजस्थान )