Thursday, April 18, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोमां के संघर्ष की सीख से मिला मुकाम

मां के संघर्ष की सीख से मिला मुकाम

देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक की सर्वेसर्वा अरुंधति भट्टाचार्य अपने बैंकिंग के सफर के बारे में कहती हैं कि मैंने ऐसा सोचा नहीं था। बैंकिंग में आना महज इत्तेफाक था। मैंने मेडिकल की परीक्षा पास की थी, लेकिन नक्सल आंदोलन की वजह से उस समय कोलकाता में शैक्षणिक सत्र काफी लेट चल रहे थे। मैंने पीओ की परीक्षा दी, इसे पास करने के बाद एसबीआई से जुड़ गई। बस यहीं से एक नई शुरुआत हुई।

जब मैं एसबीआई में पीओ बनी तब इसे काफी अच्छी नौकरी माना जाता था। शुरुआती प्रशिक्षण के बाद मुझे कई जगह काम करने का मौका मिला। इस दौरान मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। मैं देश के तमाम शहरों में रही। बैंकिंग एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई तरह के काम होते हैं। इसमें एक अच्छी बात यह है कि नए-नए एसाइनमेंट मिलते हैं जिससे इंसान बोर नहीं होता है। आपके सामने हमेशा चुनौतियां होती हैं। आपको हरहाल में बेहतर करना होता है। मैंने जीवन की इस यात्रा को खूब इंज्वॉय किया। मुझे कुछ साल न्यूयॉर्क में रहने का अवसर मिला। इस दौरान कुछ अच्छे लोग भी मिले। जिनके सहयोग से काफी कुछ सीखने को मिला।

मां से मिली ताकत
मेरा जन्म बंगाल में हुआ। पापा इंजीनियर थे, वे कंस्ट्रक्शन का काम देखते थे। ऐसे में वे काफी देर रात में घर आ पाते थे। मुझे अभी भी याद है कि जब मैं भिलाई और रायपुर में थी तो मां ही घर के सारे काम करती थी। वह बाजार भी जाती थीं। मुझे सबसे ज्यादा प्रेरणा अपनी मां व चाची से मिली। उन्होंने ने अपने जीवन में बहुत मेहनत की। उस समय डॉक्टर आसानी से नहीं मिलते थे। मेरी मां ने होम्योपैथी कुछ किताबें पढ़कर घर और पास के लोगों को दवाएं देना शुरू किया। तीन संतानों की परवरिश के साथ उन्होंने बाद में होम्योपैथी की डिग्री भी हासिल की। मां के जुझारूपन से मैंने काफी कुछ सीखा। जब मां डॉक्टर बनीं तब मैं छठी कक्षा में थी।

जिंदगी की घटनाओं से सीखा
सीखने की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती। ऐसी कोई खास घटना मुझे एकदम से याद नहीं आ रही है, लेकिन तमाम छोटी-छोटी घटनाएं घटीं, जिनसे काफी कुछ सीखा। उनका असर भी जिंदगी पर पड़ा।

सिखाने वाली हो शिक्षा
शिक्षा के बिना प्रगति मुमकिन नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षा की नींव अच्छी हो। खासकर प्राथमिक शिक्षा और पढ़ाई ऐसी हो जो याद करने से ज्यादा सिखाने वाली हो। इस समय याद करो और जाकर लिख दो वाली शिक्षा है। इसमें बदलाव जरूरी है। इससे क्रिएटिविटी घट गई है।

आज भी पढ़ती हूं किताबें
पढ़ने में मेरी रुचि पहले भी थी और आज भी उतनी ही है। इसकी बड़ी वजह घर में पढ़ाई का माहौल होना था। हां, इधर अब मैं किताब को एक साथ खत्म नहीं कर पाती हूं, लेकिन जब भी वक्त मिलता है तो जरूर पढ़ती हूं। कई सारे ऐसे लेखक हैं जिनकी किताबें पढ़ती हूं। पहले फिक्शन पढ़ती थी। आजकल नॉन फिक्शन पढ़ रही हूं। सीखने के लिए पढ़ने में रुचि का होना जरूरी है। इसके पीछे व्यस्तता बड़ी वजह है।

लिबरल ऑर्ट्स को मिले तरजीह
मेरा मानना है कि लिबरल आर्ट को तवज्जो मिलनी चाहिए। प्रोफेशनल कोर्स की तरफ झुकाव ज्यादा है। होना भी चाहिए, लेकिन प्योर साइंस और प्योर आर्ट्स को तरजीह मिलनी चाहिए। तरजीह नहीं मिलने से छात्र उस ओर रुख कर पाते। इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ और प्रोफेशनल कोर्स की ओर रुख करते हैं। मुझे उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में मौजूद तनाव कम होते ही चीजें सामान्य होंगी।

मेहनत पर हो फोकस
मैं युवाओं से यही कहना चाहूंगी कि जो भी करें उसे पूरी ईमानदारी और मेहनत से करें। शॉर्टकट न अपनाएं। आजकल एक नया ट्रेंड है, जहां सबकुछ तेजी से पा लेने की होड़ है। यह शॉर्टकट से मुमकिन नहीं है। अगर महत्वाकांक्षाएं बड़ी हैं तो उसे पाने के लिए उतनी ज्यादा मेहनत चाहिए। इस समय लड़कियां काफी अच्छा कर रही हैं। वे और अच्छा कर सकती हैं। उनसे यही कहना चीती हूं कि वे जो भी करें, दिल से करें। उसमें शत प्रतिशत समर्पण होना चाहिए। कुछ भी असंभव नहीं हैं। सबकुछ हमेशा संभव है। बस उसके लिए ईमानदार कोशिश होनी चाहिए। सफलता निश्चित रूप से मिलती है। नौकरी भी है तो उसे रुटीन जॉब के तौर पर न लें। काम को चुनौती की तरह लें। बेहतर तरीके से पूरा करें।

36 साल लंबा सफर
एसबीआई के पूर्व प्रमुख प्रतीप चौधरी के उत्तराधिकारी की जब तलाश शुरू हुई तो प्रमुख रूप से चार नाम सामने आए थे। इसमें अरुंधति भट्टाचार्य एकमात्र महिला थीं, जबकि उनके मुकाबले में हेमंत कॉन्ट्रैक्टर, ए. कृष्ण कुमार और एस विश्वनाथन थे। अंत में अरुंधति को बैंक का नया प्रमुख घोषित किया गया। 1977 में प्रोबेशनरी ऑफिसर के तौर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की नौकरी ज्वाइन की। 36 साल के कॅरियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। इनमें मर्चेट बैंकिंग शाखा (एसबीआई कैपिटल मार्केट) की चीफ एक्जीक्यूटिव, चीफ जनरल मैनेजर न्यू प्रोजेक्ट जैसी जिम्मेदारियां रहीं।

बनाए कीर्तिमान
207 साल के इतिहास में पहली महिला प्रमुख।  
पहली महिला होंगी जो फॉर्चून-500 में शामिल किसी भारतीय कंपनी का नेतृत्व करेंगी।
पहली ऐसी प्रमुख जो तीन साल का निश्चित कार्यकाल पूरा करेंगी।
पहली बार सरकार ने कार्यकाल तय किया।

चुनौतियां
बड़े कजर्दारों से वसूली की चुनौती
नॉन परफॉर्मिग एसेट की मौजूदा 5.5 फीसदी की दर को घटाना

मजबूती
ट्रेड यूनियन की अच्छी समझ
सबको साथ लेकर चलने में माहिर
बैंकिंग का लंबा अनुभव

एसबीआई का सफर
भारत की सबसे बड़ी, सबसे पुरानी वित्तीय संस्था एसबीआई का मुख्यालय मुंबई में है। यह एक अनुसूचित बैंक है। 2 जून, 1906 में कोलकाता में इसकी स्थापना हुई। शुरुआत में इसका नाम अलग था। यह अपने तरह का अनोखा बैंक था। जो साझा स्टॉक पर ब्रिटिश इंडिया और बंगाल सरकार द्वारा चलाया जाता था। 1 जुलाई, 1956 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का नाम मिला। एसबीआई में अभी करीब तीन लाख के करीब कर्मचारी हैं। एसबीआई की देश भर में 15,000 से ज्यादा शाखाएं हैं। देश के कुल डिपॉजिट में स्टेट बैंक की भागीदारी 22% है।

साभार-दैनिक हिन्दुस्तान से

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