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मुक्तिबोध, बख्शी जी और डॉ. मिश्र के अक्षर-योगदान की प्रेरक चर्चा

राजनांदगाँव । शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा नए विद्यार्थियों के स्वागत के साथ प्रख्यात साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध, सरस्वती साधक डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और मानस के राजहंस डॉ. बलदेवप्रसाद मिश्र के योगदान की प्रेरक चर्चा की गयी ।

सृजन संवाद भवन में हुए आत्मीय आयोजन में प्रभारी प्राचार्य डॉ. अनिता महेश्वर का शाल-श्रीफल, पुष्प गुच्छ भेंटकर भावभीना स्वागत किया गया । डॉ. महेश्वर ने विद्यार्थियों से कहा कि नए सत्र में नयी उपलब्धियां अर्जित करें। गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करें । विनम्र व्यवहार करें । निरंतर कुछ नया सीखें और आगे बढ़ें।विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर मुनि राय ने स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं को बेहतर कार्य करने की प्रेरणा दी । डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने मुक्तिबोध जी, बख्शी जी और डॉ. मिश्र जी की देन पर प्रभावशाली उदबोधन से युवाओं को उन्हें ज्यादा जानने और समझने की सार्थक प्रेरणा दी । डॉ. बी.एन. जागृत ने विद्यार्थियों को सफलता से सूत्र बताए । डॉ. नीलम तिवारी ने विद्यार्थी जीवन को अनोखा अवसर निरूपित किया । सृजनात्मक कार्यों के आगे रहने का संदेश दिया । डॉ. स्वाति दुबे, डॉ. गायत्री साहू, डॉ. भवानी प्रधान और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे ।

प्रारंभ में वाग्देवी पूजन सम्पन्न हुआ । विद्यार्थियों ने प्रभारी प्राचार्य डॉ. अनिता महेश्वर और सभी प्राध्यापकों का स्वागत किया । डॉ. महेश्वर ने विद्यार्थियों को आशीष और उन्नति के कारगर सुझाव भी दिए ।अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों द्वारा स्नातकोत्तर पूर्व के विद्यार्थियों का पुष्प तथा स्नेह उपहार के माध्यम से सरस स्वागत किया गया । विद्यार्थियों ने इस अवसर पर अपने उदगार व्यक्त करते हुए श्रेष्ठ कार्य का संकल्प लिया ।

आयोजन को स्मरणीय बनाते हुए डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने मुक्तिबोध और डॉ. मिश्र की लेखनी के तेज और प्रताप को ओजस्वी वाणी में अभिव्यक्त करते हुए उनकी कविताओं का अंश भी सुनाया । गर्वबोध के साथ अपनी संस्था और संस्कारधानी में ऐसी साहित्य विभूतियों के सान्निध्य और अमर सृजन की गाथा सुनकर विद्यार्थी हुए । डॉ. जैन ने कहा इसकी सार्थकता तब होगी जब आप इनके विषय में अधिक जानेंगे। इन विभूतियों का हम पर बड़ा ऋण है । उसे अदा करने के लिए हम इनके जीवन और सृजन के मर्म को अधिक सुलझे हुए ढंग से समझें तथा उसका उपयोग व प्रसार भी करें। कार्यक्रम का संचालन कु.रामेश्वरी टंडन ने किया ।