Tuesday, April 16, 2024
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मेरा सामना कई चाटुकारों, भ्रष्ट और कपटी लोगों से हुआ हैः अरनब गोस्वामी

इंडियन ऐडवर्टाइजिंग एसोसिएशन इंडिया चैप्‍टर की सिल्‍वर जुबली समिट कोच्चि में हुई। समिट में टाइम्‍स नाउ और ईटी नाउ के प्रमुख संपादक अरनब गोस्‍वामी ने आज की अलग तरह की पत्रकारिता के बारे में अपने विचार व्‍यक्‍त किए और बताया कि क्‍यों न्‍यूज पत्रकारिता में तटस्‍थता (नहीं होनी चाहिए।

गोस्‍वामी ने बताया कि प्राय: लोग उनसे अलग तरह की टीवी न्‍यूज के बारे में पूछते हैं। उन्‍होंने कहा, ‘इसके बारे में मैं आपको बता दूं कि अपने कॅरियर के शुरुआती दस वर्षों में मैं अपने काम में फेल था। वर्ष 2002 में मैंने पत्रकारिता को छोड़ने के बारे में गंभीरतापूर्वक सोच लिया था। मुझे इस सिस्‍टम से नफरत थी। मैं इस सिस्‍टम में छल, कपट, चाटुकारिता और भ्रष्‍टता का साक्षी रहा हूं, जिसके कारण मुझे यह सिस्‍टम पसंद नहीं था। इसने मुझे इतना दुखी कर दिया था कि मुझे खुद के पत्रकार होने पर अफसोसा होता था।’

गोस्‍वामी ने बताया कि जब उन्‍होंने टाइम्‍स नाउ को शुरू किया था तो शुरुआत में काफी नाकामयाबी का सामना करना पड़ा था। उन्‍होंने कहा, ‘आप कहीं पर एडिटर के रूप में बैठकर नई तरह की पत्रकारिता लॉन्‍च करने की सोच रहे हैं। उस समय लोगों द्वारा न सिर्फ आपका विरोध किया जाता है, मजाक उड़ाया जाता है, बल्कि वे आपने नफरत करते लगते हैं। यह पूरा सिस्‍टम आपसे नफरत करने लगता है और जब आप इस तरह की चीजें शुरू करते हैं तो वे आपको एक मक्‍खी की तरह कुचलना चाहते हैं। आज हम जिस अशांति की बात कर रहे हैं, उसका जन्‍म इन्‍हीं चीजों को बदलने की जरूरत के रूप में हुआ था।’

गोस्‍वामी ने बताया कि क्‍यों वह अलग तरह की पत्रकारिता पसंद करते हैं और इसमें विश्‍वास रखते हैं। उन्‍होंने कहा, ‘मैंने अपने जीवन में बहुत सारे ढोंगी, भ्रष्‍ट और चाटुकार लोग देखे हैं और इस प्रोफेशन के बारे में आम आदमी का मानना है कि जिस तरह का मीडिया उसे मिला था, वह गलत मीडिया था।’

गोस्‍वामी का मानना है कि मीडिया का यह अलग रूप नए इंडिया का मीडिया है। इस मीडिया का म‍तलब सिर्फ अलग तरह का मीडिया ही नहीं है बल्कि इसका आशय हमारी सोसायटी, देश और युवाओं को ऐसा रास्‍ता दिखाना है, जो उनकी जिंदगी को 20 सालों तक प्रभावित करेगा।

इस तरह की पत्रकारिता की क्‍या जरूरत थी?
अरनब गोस्‍वामी का मानना है कि पत्रकारिता सिर्फ टकराव नहीं था, यह काफी विनम्र थी। दूसरी चीज, पत्रकारिता ऐसा कंटेंट था जिसका पूरा आइडिया तटस्‍थता पर टिका हुआ था। यह तटस्‍थता दिखावा है। तीसरा, पत्रकारिता का मतलब सिर्फ देश का गजट (gazetteer) था, जिसका काम सिर्फ सूचना उपलब्‍ध कराना था और जिसका कोई प्रभाव नहीं है। चौथा, पत्रकारिता लोगों के उन मुद्दों से पूरी तरह कटी हुई थी, जिनका सामना उन्‍होंने रोजाना चुनौतियों के रूप में करना पड़ता था। उन्‍होंने कहा, ‘पत्रकारिता आदर्शवादी सक्रियता और विरोध जैसे महत्‍वपूर्ण तत्‍वों को भूल चुकी थी, जो आज इस प्रोफेशन की जान हैं और जो हम करते हैं।’

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अलग तरह की पत्रकारिता के लिए दिया यह मंत्र
अरनब गोस्‍वामी ने कहा, ‘हम मीडिया को कई तरह से अलग बनाते हैं। पहला तरीका काफी साधारण है। किसी भी खास व्‍यक्ति से बहुत कठिन सवाल पूछ लो। जब आप किसी भी खास व्‍यक्ति से आमने-सामने बैठकर बात करते हैं तो अपने आप से पूछें कि ऐसा कौन सा सवाल है कि जो मैं इस व्‍यक्ति से पूछूं तो यह मुझे दोबारा कभी इंटरव्‍यू नहीं देगा।‍ वह अमिताभ बच्‍चन भी हो सकते हैं जो सलमान खान से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब देना पसंद नहीं करेंगे। या राहुल गांधी भी हो सकते हैं जो कई बातों के सवाल देना पसंद नहीं करेंगे।’

गोस्‍वामी ने बताया कि दूसरा मुद्दा तटस्‍थता अर्थात निष्‍पक्षता का है। उन्‍होंने कहा, ‘न्‍यूट्रिलिटी आखिर क्‍या है। क्‍या मैं टेलिविजन पर विकिपीडिया चलाने जा रहा हूं। मैं इसमें विश्‍वास नहीं रखता हूं।’ यह 17वीं शताब्‍दी की पत्रकारिता नहीं है, जिसमें मुगलों के शासन में शहर में ढिंढोरा पीटने वाले होते थे। मैं ढिंढोरा पीटने वाला नहीं हूं और कभी बनना भी नहीं चाहूंगा।’

गोस्‍वामी ने कहा, ‘यह आप गंभीरतापूर्वक न्‍यूट्रल रहना चाहते हैं तो मैं आपका सम्‍मान करता हूं। लेकिन मेरा मानना है कि न्‍यूट्रिलिटी की अवधारणा के पीछे का कारण सेफ गेम खेलना होता है, जिसमें आप बचे रहें। ऐसा गेम खेलने की क्‍या जरूरत है। दरअसल न्‍यूट्रिलिटी एक कमजोरी है क्‍योंकि यह वर्तमान स्थिति को बनाए रखती है और इसे बदलती नहीं है। इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और प्रभाव के अभाव में इस प्रकार की पत्रकारिता पूरी तरह निरर्थक हो जाती है। लोगों के हितों के मामले में बिना किसी सार्थकता के काम करना अपने आप में ही अपराध है।’

गोस्‍वामी का मानना है कि अलग तरह की पत्रकारिता के लिए आपको किसी माध्‍यम की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने कहा, ‘मैं ऐसी दुनिया की बात करता हूं जहां पर हम मीडिया में खुद से सवाल पूछने में सबसे ज्‍यादा समय लगाते हैं। क्‍या टेलिविजन के कारण प्रिंट अलग तरह का हो पाएगा या डिजिटल के द्वारा टीवी अलग तरह का हो पाएगा। मीडियम के बारे में बात कर हम क्‍यों अपना समय नष्‍ट करते हैं? सिर्फ मेसेज के बारे में बात करो।’

न्‍यूज कैसे बनती है
कार्यक्रम में अरनब गोस्‍वामी ने पूछा, ‘यह कौन निर्धारित करेगा कि कौन सी चीज न्‍यूज बनाती है। पारंपरिक रूप से पॉलिटिक्‍स पहले पेज पर होती है। आर्थिक हलचल पहले पेज पर है। मेरा सवाल तो यह है कि न्‍यूज की प्राथमिकता (priority) कौन निर्धारति करता है। ऐसा कोई तय क्रम नहीं है और न ही ऐसा कोई सार्वभौमिक सिद्धांत है। प्राथमिकता को लेकर यह निश्चित नहीं है कि क्‍या सही है और क्‍या गलत। जो भी चीज मेरे दिल को छुएगी और जो ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को प्रभावित करेगी, वह priority journalism है।’

उन्‍होंने कहा कि अलग तरह की पत्रकारिता से सिर्फ यह आशय है कि अपनी आखें खोलकर देखें कि कौन सी चीज न्‍यूज बन सकती है और अपना दिमाग हर समय सतर्क रखें कि कौन सी चीज महत्‍वपूर्ण हो सकती है।

दूसरा पाइंट यह है कि आपके अंदर समाज के लोगों को लगातार अपनी न्‍यूज के बारे में बताते रहने की काबिलियत होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा, ‘आप कोई स्‍टोरी उठाएं और उसे बार-बार चलाते रहैं और अपने ऊपर से भरोसा न हटने दें।’

गोस्‍वामी ने कहा कि अलग तरह की पत्रकारिता का सबसे आखिरी पाइंट काफी साधारण है। उन्‍होंने कहा, ‘देश में ‘holy cows’ की जरूरत नहीं है, हमें ऐसे लीडर या आइकन नहीं चाहिए जिनसे हम सवाल ही न पूछ सकें।। स्वाद एक सामान्‍य सिद्धांत है, जो पत्रकारिता जैसे प्रोफेशन का आधार है।

क्‍योंकि बिना इसके आपको अहसास नहीं होगा कि क्‍या गलत है और क्‍या सही। जैसे कि सम्राट मार्टिन लूथर कहते थे, ‘Change does not roll in on the wheels of inevitability, but comes through continuous struggle’ अर्थात बदलाव लगातार संघर्ष का परिणाम होता है। इसलिए हमें अपनी पीठ मजबूत करनी चाहिए और अपनी आजादी के लिए काम करना चाहिए।’ कोई भी आदमी तब तक आपकी पीठ पर सवार नहीं हो सकता है, जब तक यह झुकी हुई न हो।

आखिर में अरनब गोस्‍वामी ने कहा, ‘राजनेताओं और लोगों की ताकत हमेशा हम पर सवार रही है और यह मीडिया पर भी सवार है, क्‍योंकि मीडिया की पीठ झुक गई है। लेकिन हम अपनी ताकत को एक बार फिर प्राप्‍त कर रहे हैं।

साभार- http://www.samachar4media.com/ से

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