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राष्ट्रीय भू-धरोहर रामगढ़ क्रेटर को दुनिया में प्रचारित करने की आवश्यकता

बताया जाता है कि लाखों वर्ष पहले भौगोलिक घटना की वजह से धरती से टकराये किसी उल्का पिंड से यहां बने क्रेटर पर समय – समय पर अनुसंधान होता रहा। रामगढ़ में 3.2 किमी एरिया में बने क्रेटर की पहाड़ियों की ऊंचाई 260 मीटर है। सबसे पहले 1869 में इसकी खोज हुई थी। क्रेटर पर जियाेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से लेकर विदेशी वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। इसका निर्माण लाखों साल पहले उल्कापिंड गिरने से हुआ था। यहां आज भी निकल और आयरन के अंश मिलते हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और केंद्रीय कार्यालय इंटेक की टीम ने रामगढ़ पहुंचकर रामगढ़ क्रेटर का वैज्ञानिक तरीके से शोध किया था।

रामगढ़ की रिंग के आकार वाली पहाड़ी संरचना को दुनिया भर के क्रेटरों को मान्यता देने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था ” अर्थ इंपैक्ट डाटा बेस सोसायटी ऑफ कनाडा” ने करीब 200 वर्ष बाद विश्व के 201वें क्रेटर के रूप में संवैधानिक मान्यता प्रदान की है।

रामगढ़ क्रेटर को मान्यता मिलने से बारां जिले का यह छोटा सा गांव आज विश्व स्तर पर आ गया है। इससे यहां पर्यटन विकास की संभावनाएं बढ़ गई हैं और शोध का नया मार्ग भी खुला है। आवश्कता है इसे विश्व स्तर पर प्रचारित किया जाए और रामगढ़ को सम्पूर्ण रूप से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।
रामगढ़ दुर्ग

राजस्थान के दक्षिण – पूर्व में स्थित बारां जिला मुख्यालय से 42 कि.मी दूर उत्तर – पश्चिम में बारां – शाहाबाद सड़क मार्ग पर परवन नदी पार करने के करीब 16 किमी. आगे बाईं ओर मुड़कर 26 कि.मी. की दूरी पर स्थित रामगढ़ के इस क्रेटर की सुरम्य पहाड़ियों पर स्थित है रामगढ़ का प्राचीन दुर्ग। बरसात के बाद यहां की हरियाली और जल से भरे तालाब सुरम्य वातावरण का सृजन करते हैं।

इसमें प्राचीन समय के अनेक हिन्दू व जैन मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ की प्रतिमाओं के आधार पर ज्येष्ठ सुदि 15 वि.सं. 1211 में किले का निर्माण तथा विष्णु मूर्ति के लेख वि.सं.1223 (1169ई.) के आधार पर इसके सूत्रधार बच्चु के पुत्र मदम विष्णु भगवान की स्तुति का उल्लेख मिलता हैं।

दुर्ग के उत्तर की ओर कमलदेव, गणदेव के शिलालेख के अनुसार 1175 ई. में इसके निर्माण का उल्लेख हैं, जिसमें मदम सिंह तथा महाधर का नाम अंकित है एवं पंडित सोमदेव कर्णदेव भी अंकित हैं। किले का मुख्य द्वार दक्षिणाभिमुखी है। इसके द्वार व गुम्बद इस्लामी शैली के हैं। किले के मुख्य द्वार के बांई ओर एक पूर्वाभिमुखी प्राचीन मंदिर है, जिसके गर्भगृह में स्थानक विष्णु की त्रिभंग मुद्रा में मूर्ति है तथा गर्भगृह के द्वार पर द्वारपालों का अंकन है।

समीप ही एक अन्य प्राचीन भवन 16 स्तंभों पर आधारित है। ये स्तंभ नीचे से चौकोर तथा ऊपर से अष्टपहलु हैं। ऊपर गुम्बद है। इस दोहरे कोर्ट की पहली दीवार द्वार के समीप ही है तथा बांई ओर 18 गुणा 18 फीट का एक पानी का टांका है। इस किले में 18वीं शताब्दी ई.में जीर्णोद्वार कार्य हुआ था। यहाँ बने दुमंजिले महल राजपूत शैली के हैं। ये महल जनाना व मर्दाना दो भागों में विभक्त हैं, जिनकी छते टूटी हुई हैं, इनके चार दरवाजे तथा छोटे-छोटे कक्ष हैं। संभवत बाहर से यह महल तिमंजिला रहा होगा। पूर्व की ओर चौक तथा किले की बाहरी दीवार पर बुर्जे बनी हुई हैं, जिनमें से कुछ बुर्जे ढ़ह गई हैं। इनमें से एक बुर्जे अष्टकोण युक्त है।

रामगढ़ में दसवीं शताब्दी में मलयवर्मन तथा तेरहवीं शताब्दी में मेढ़त वंशीय राजाओं, गौड़ व खिंची वंशजों की ओर से भी किले बनाए गए। रामगढ़ के बुजुर्ग बताते हैं कि रामगढ़ खींचियों, गौड़ वंश व मालवों के आधिपत्य में रहा। यहां बूंदी में हाड़ाओं का वर्चस्व स्थापित हुआ। बाद में यह परगना कोटा के आधिपत्य में चला गया। यह प्राचीन किला पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक है। समस्त पुरातत्विक संरचनाएं जीर्ण-क्षीर्ण स्थिति में हैं। कुछ समय पूर्व पुरातत्व विभाग ने करीब ढाई लाख रुपए खर्च कर जीर्णीधार के कार्य कराए थे।

भंडदेवरा मंदिर
क्रेटर सीमा में स्थित संपदा यह प्राचीन शिव मंदिर पुरातत्व की दृष्टि से विशेष महत्व रखता हैं वहीं पर्यटन का भी महत्वपूर्ण आधार हैं। रामगढ़ में पहाड़ की तलहटी में स्थित है यह मंदिर शैवमत के तांत्रिक परंपरा का यह मंदिर नागर शैली में निर्मित मध्यकालीन वास्तु कला का उत्कृष्ट एवं अद्वितीय नमूना है।

पंचायतन शैली का पूर्वाभिमुख मंदिर मूर्तियों के अजायबघर से कम नहीं है। यहां से प्राप्त शिलालेख से ज्ञात होता है की मंदिर का निर्माण मालवा के नागवंशीय शासक मलयवर्मन ने 10वीं शताब्दी में करवाया था। उसने युद्ध में शत्रु पर विजय के उपलक्ष्य में अपने इष्टदेव शिव को समर्पित यह मंदिर बनवाया था। आगे चल कर 1162 ई. में मेडवंशीय क्षत्रिय शासक त्रिश वर्मा ने मंदिर का जीर्णोधार करवाया था।

माना जाता है की 10वीं शताब्दी में इस अंचल में शैवमत की वाममार्गी शाखा का प्रभाव था जो मोक्ष के लिए भोग से तृप्ति को आवश्क मानते थे। यही वजह रही कि मंदिर में आलिंगन एवं रतिक्रियाओं से युक्त मूर्तियों का भी अन्य मूर्तियों के साथ – साथ अंकन किया गया। प्रेमाशक्त मूर्तियों के कारण इस मंदिर को ‘ मिनी खजुराहो ‘ कहा जाता है।

मंदिर के बाह्य भाग की दीवारें, सभामंडप, स्तंभ, छत, अंतराल, गर्भगृह की द्वार शाखा सभी कुछ कलात्मक मूर्तियों से जड़ित हैं। मंदिर का सभामंडप वर्तुलाकार अर्थात (ढलवा छत) है जो कलात्मक आठ खंभों पर टिका है। इन पर किन्नर, कीचक, विद्याधर, अप्सराएं, देवी, देवता, कामकला के विभिन्न आसनों की युगल मिथुन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मूर्तियों की मदभरी आंखें, उन्नत उरोज, पतली कमर,पैरों में नूपुर, गले में हार,कानों में कुंडल और कलाई में कंगन धारण किए स्वरूपों को इतना आकर्षक बना दिया है की अपलक देखते रह जाएं। दक्षिण दिशा में पार्श्व लिंद और श्रृंगार चौकी स्थित है। पूर्व रथिका को छोड़ कर तीनों दिशाओं की रथिकाएं टूट गई हैं। काफी मूर्तियां समय – समय पर चोरी की जा चुकी हैं।

जीर्णशीर्ण मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए पिछले कुछ वर्ष पूर्व प्रयास किए गए पर कुछ ही कार्य किया जा सका और बीच में रोक दिया गया। मंदिर आज भी अपनी अद्भुत मूर्ति शिल्प और स्थापत्य की दृष्टि से दर्शनीय है। मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक है। अनेक पर्यटक इसे देखने के लिए जाते हैं।

माता जी मंदिर
यहीं पर फड़ियो की छोटी पर स्थित माता जी का मंदिर क्षेत्रीय निवासियों की आस्था का केंद्र है। क्षेत्र में ही माता की तलाई, पुष्कर सागर, बड़ा व नोलखा तालाब हैं। माता की तलाई में 12 महीने पानी रहता है। पांचवां तालाब रावणजी की तलाई रामगढ़ गांव से बाहर है।

कन्वीनर इंटैक, बारां जितेंद्र शर्मा का मानना है किरामगढ़ क्रेटर से बारां पर्यटन और शोध के क्षेत्र में राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर उभरेगा। यहां पर्यटन की अपार संभावना है। यहां विदेशी पर्यटक, शोधकर्ता, पीएचडी स्कॉलर, अंतरराष्ट्रीय साइंटिस्ट यहां आएंगे। इसका पर्यटन हब के रूप में डेवलपमेंट होगा। यह सब होने से जिले में रोजगार के साधन बढ़ेंगे। सभी को ध्यान में रखते हुए अभी से तैयारी करनी चाहिए। यहां पर्यटन विभाग का दफ्तर, टूरिस्ट बंगला, पर्यटन विभाग की होटल सहित सुविधाएं विकसित की जाए।

(लेखक राजस्थान जनसंपर्क के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और पर्यटन व ऐतिहासिक विषयों पर लिखते हैं)
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