Tuesday, April 23, 2024
spot_img
Homeअध्यात्म गंगानवरात्रि के नौ दिन

नवरात्रि के नौ दिन

ब्रह्माण्ड की मूलभूत ऊर्जा के नौ रूपों के अवतरण को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। रात्रि में मनाए जाने का कारण मुझे यह लगता है कि अन्य तारों की तरह ही सूर्य और उसका प्रकाश प्राकृतिक है। यह सब कुछ एक दिन समाप्त होना है। तब, जो शेष बचता है वह अन्धेरा है। अर्थात फिलहाल सीमित मानवीय ज्ञान के मद्देनज़र हम यह मान सकते हैं कि सवेरा नश्वर है और रात्रि शाश्वत। इसी कारण शायद नवरात्रि में शाश्वत की पूजा को ही महत्व दिया गया। नौ दिनों में हम कई तरह के व्रत करते हैं यथा, निराहार, मौन, जप आदि। इन सभी व्रतों द्वारा शरीर व मन की शुद्धि होती है तथा शरीर/मन की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म ऊर्जा आत्मा की तरफ बढ़ा जा सकता है – अध्यात्मिक उन्नति होती है। कई लोग, जो अध्यात्म की बजाय भौतिक को ही सत्य मानते हैं, वे इन व्रतों को निरर्थक भी मान सकते हैं। खैर, यदि आज के सन्दर्भ में विचार करें तो सभी प्रकार के व्यक्ति, अन्य व्रतों के साथ में, निम्न व्रतों को भी अपना सकते हैं:

1. प्रथम स्वरुप शैलपुत्री का अर्थ है पर्वत की पुत्री या यों कहें कि सर्वोच्च चेतना पर विराजमान। इनकी प्रकृति के अनुरूप “मन-वचन व कर्म से संयमित रहने” का व्रत ले सकते हैं। यही सर्वोच्च चेतना की निशानी है।

2. द्वितीय स्वरुप ब्रह्मचारिणी है, ब्रहमांड के अनुसार आचरण करने का। इनके अनुरूप हम “प्रकृति को न छेड़ने” का व्रत ले सकते हैं।

3. तृतीय स्वरुप चन्द्रघंटा है, चन्द्रमा को मन का प्रतीक माना गया है। मन को मंदिर के घंटे की तरह बजाएं, यह व्रत ले सकते हैं कि “मन में नकारात्मक विचार नहीं लाएंगे”।

4. चतुर्थ स्वरुप कूष्माण्डा है – इसका अर्थ है अंडे (ब्रहमांड) की सूक्ष्मतम ऊष्मा (ऊर्जा)। जन्म देने वाली इस ऊर्जा के लिए हम “घमंड न कर, सूक्ष्म रह कर ही बड़े सृजन” का व्रत ले सकते हैं।

5. पंचम रूप स्कंदमाता है – स्कन्द ज्ञान और कर्म के मिश्रण का सूचक है। इस दिन हम यह व्रत ले सकते हैं कि, “जो भी ज्ञान लेंगे उसे व्यवहार में – कर्म में ज़रूर उतारेंगे। केवल विचारों तक ही सीमित नहीं रखेंगे।”

6. ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है, यह बात षष्टम कात्यायनी स्वरुप में निहित है। “अपने परिवार-समाज व आत्मसम्मान की रक्षा” का व्रत इस स्वरुप के द्वारा लिया जा सकता हो।

7. सप्तम स्वरुप कालरात्रि का अर्थ है कि समय समाप्त होते ही केवल रात्रि रह जाती है, अन्धकार ही रह जाता है। लेकिन चेतना का अर्थ केवल प्रकाश नहीं है। प्रकाश मानसिक चेतना का पर्याय है तो रात्रि ईश्वरीय चेतना का। सृष्टि के अनुसार शरीर व मन की मृत्यु का स्वरुप तो भयावह हो सकता है लेकिन उसके बाद आत्मिक चेतना अधिक सूक्ष्म व शारीरिक/मानसिक कष्टों से परे होती है। इस स्वरुप के अनुसार हम “अपनी मृत्यु से भय न रखने” का व्रत ले सकते हैं।

8. अष्ठम महागौरी स्वरुप अत्यंत सुन्दर है। इस करुणामयी स्वरुप को दृष्टिगत करते हुए हम “जब तक जीवन है सभी के प्रति दयालु रहेंगे” का व्रत रख सकते हैं।

9. नवम व्रत सिद्धिदात्री का है। सम्पूर्ण सिद्धि का अर्थ यह है कि जो सोचा वह हो जाए, तो यह व्रत लिया जा सकता है कि, “जो सोचेंगे- कहेंगे, वह करेंगे भी।” यह कर्म का व्रत ले सकते हैं।

उपरोक्त नौ व्रत करने का प्रयास कोई भी कर सकता है। मुझे इनमें कोई हानि प्रतीत नहीं होती। हाँ! निःसंदेह, इन व्रतों को आज के परिप्रेक्ष्य में और भी अधिक परिष्कृत किया जा सकता है।

(लेखक लघुकथा, कविता, ग़ज़ल, गीत, कहानियाँ, बालकथा, बोधकथा, लेख, पत्रलेखन में एक जाना पहचाना नाम है)

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES

1 COMMENT

Comments are closed.

- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार