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तामझाम से नहीं, व्यक्तित्व के प्रभाव से मिलती है प्रतिष्ठा

राजनांदगांव। दिग्विजय कॉलेज के प्रोफ़ेसर डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि दुनिया में अपनी क्षमता और योग्यता से रूबरू होने से बड़ी कोई नेमत नहीं है। खुद को निखारना ख़ुदा की बंदगी के समान है। आत्म परिष्कार प्रार्थना से कम नहीं है। इंसान को जन्म एक बार मिलता है किन्तु जीवन हर दिन, हर पल नया हो सकता है, बशर्ते इसकी सही पहल की जाए। डॉ.जैन ने कहा यह सोचकर चलें कि सबसे अच्छा काम वह है जो अभी आपके हाथ में है। सबसे अच्छे लोग वे हैं जिनके साथ आप काम करते हैं और सबसे अच्छा समय वर्तमान है।

दुर्ग-भिलाई ट्विन सिटी में हुई व्यक्तित्व विकास कार्यशाला के मुख्य वक्ता डॉ.जैन ने समझाया कि अवचेतन मन को सजग व सकारात्मक सुझाव देकर किस तरह अपने व्यक्तित्व को संवारा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अहमियत इस बात की नहीं है कि आप क्या सोचते हैं और क्या कहते हैं। दरअसल सब से बड़ी बात यह है कि आप किस तरह सोचते और किसी काम को किस तरह अंजाम देते हैं। आपकी शैली ही आपके व्यक्तित्व का दर्पण है। डॉ.जैन ने कहा रोजमर्रे की ज़िंदगी और कामकाज के दौरान आप अपनी प्रकृति यानी स्वभाव की अभिव्यक्ति जिस तरह से करते हैं, वही आपका व्यक्तित्व है। वास्तव में यही अभिव्यक्ति संस्कृति का भी पर्याय है। कार्य की शैली ही बेहतर नतीजे देती है और ये नतीजे ही आपकी शख्सियत का मुक़म्मल बयान बन जाते हैं।

डॉ.जैन ने प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि आप अपने आप से ही लगातार आगे निकल जाने की कोशिश करते रहें। अच्छा सोचें और लोगों को अपने विषय में अच्छा सोचने का आमंत्रण देते रहें। फिर भी कोई बुरा कहे या बुरा सोचे तो उसे नज़रंदाज़ कर दें। तैयारी को जीवन की आदत में शुमार कर लें। व्यवस्था को जीवन का अंग बना लें। दूसरों की भावनाओं और उनकी राय का भी सम्मान करें। जीवन की आपाधापी के बीच अपनी बनती, बिगड़ती पहचान की खबर भी लेते रहें। तरक्की अलग बात है लेकिन स्थायी प्रतिष्ठा सिर्फ तामझाम से नहीं, व्यक्तित्व के गुणों, प्रतिभा और दिलों को छूने वाले वास्तविक प्रभाव से मिलती है।