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यूं ही नहीं कहते द्रोणगिरी को सम्मेद शिखर का लघु रूप

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम सेंघपा में स्थित श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरी भारत के प्रमुख जैन तीर्थों में माना जाता हैं। इस सिद्ध क्षेत्र का महत्व इसी से लगाया जा सकता है कि यहां 8.5 करोड़ मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया। माना जाता है कि यहां राजा नंगनंग कुमार ने अपने साढ़े पांच करोड़ अनुयायियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया था। यहां पहाड़ पर तीर्थंकर भगवानों के 40 मंदिर एंव 3 निर्वाण गुफाऐं हैं। पर्वत स्थित सभी मंदिरों में क्रम संख्या लगाई गई है। इसे लघु सम्मेद शिखर भी कहा जाता है। यह क्षेत्र नदी किनारे होने से हिल स्टेशन जैसा दृश्य उपस्थित करता है।

तलहटी से दो मार्ग जाते हैं। एक रास्ता कुड़ी धाम की ओर जाता हैं जहां हनुमान मंदिर है एवं दूसरा पर्वत पर 232 सीढ़ियों वाला मार्ग और सड़क मार्ग है। मन्दिर समूह के आसपास का दृश्य अत्यंत प्राकृतिक और मनभावन है। जंगल में औषधीय पोधे और कई प्रकार के वन्य जीव भी देखने को मिलते हैं। पांच – छह मन्दिर देख कर चाहे तो वापस आ सकते हैं अन्यथा आगे के मंदिरों के लिए जा सकते हैं।

पहाड़ी पर क्षेत्र का पहला मन्दिर सुपार्श्वनाथ जी का कांच की अद्भुत सजावट से बना खूबसूरत मन्दिर है। दूसरा मन्दिर चंद्रप्रभु जी का है। तीसरा मन्दिर महत्वपूर्ण सात फनी पार्श्वनाथ जी का है। मान्यता है कि इस मन्दिर की 108 परिक्रमा से सब बढ़ाएं दूर हो जाती हैं और मनोकामना पूर्ण होती हैं। चौथा मन्दिर आदिनाथ जी का है। पांचवां, छटा और सातवाँ मन्दिर तीन मंदिरों का एक समूह है जिसमें अजीत नाथ, आदिनाथ और पार्श्वनाथ जी की प्रतिमाएं हैं। यहां से श्रद्धालु चाहे तो वापस आ सकते हैं अथवा आगे के मंदिरों के दर्शन हेतु जा सकते हैं।

अन्य मंदिरों में शीतल नाथ जी, रसोइयन बाई की मरिया जो पार्श्वनाथ मन्दिर है, एक छोटा पर सुंदर पार्श्वनाथ जी का मन्दिर जिसके बाहर बैठ कर प्राकृतिक दृश्य निहार सकते हैं और नेमीनाथ जी एवं मंदिरों की श्रृंखला हैं। त्रिकाल चौबीसी का स्थापत्य एवं सुंदरता दर्शनीय है। इसमें बड़े हाल में तीन खड़गासन मुद्रा की प्रतिमाएं स्थापित हैं एवं दो अलग – अलग मंजिलों पर त्रिकाल चौबीसी तीर्थंकरों की खड़ी मुद्रा में प्रतिमाएं बनाई गई हैं। इसके ऊपरी मंजिल पर शिक्षा के प्रसार को समर्पित गुरुदत्त मुनि की विशाल प्रतिमा है। त्रिकाल चौबीसी के सामने आकर्षक एवं कलात्मक कीर्ति स्तम्भ और लाल पाषाण से निर्मित चार तोरण द्वारों युक्त मान स्तम्भ है जिसके चारों ओर 12 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बनाई गई हैं।

एक और शांतिनाथ जी का कांच की सजावट से बना सुंदर मन्दिर है। तीन गुफाओं में तीसरी गुरुदत्त निर्वाण गुफा अच्छी स्थिति में दर्शनीय है। आखिर में चंद्र प्रभु मन्दिर, प्राचीन मा न स्तम्भ मन्दिर और तीन मंदिरों का आदिनाथ मन्दिर समूह दर्शनीय हैं। मंदिरों के मध्य पहाड़ पर विमल सागर जी और ज्ञान सागर जी पांच समाधि स्थल और चरण चिन्ह एवं प्राचीन जैन प्रतिमाओं का एक संग्रहालय भी दर्शनीय हैं। तलहटी पर भी चार मन्दिर बने हैं। मुनि गुरुदत्त की मोक्ष गुफा, कांच मंदिर, चौबिसी मंदिर, मान स्तम्भ मन्दिर और संग्रहालय ऐसे स्थान हैं जिन्हें अवश्य देखना चाहिए।

प्रबन्ध व्यवस्था श्री दि.जैन सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि प्रबन्ध समिति (लधु सम्मेदशिखर) द्वारा की जाती है। माघ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक वार्षिक मेला, माघ शुक्ल पूर्णिमा पर रथ यात्रा और कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर भगवान महावीरजी निर्वाण महोत्सव यहां के विशेष धार्मिक आयोजन हैं, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु देश के विभिन्न क्षेत्रों से आ कर भाग लेते हैं। क्षेत्र पर ठहरने और भोजन की कोई समस्या नहीं है। द्रोणागिरी दिल्ली मुंबई रेलवे मार्ग पर मध्य प्रदेश के ग्वालियर से 61 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है। यहां से 107 किमी पर दमोह, 117 किमी पर हरपालपुर एवं सागर, 120 किमी पर ललितपुर एवं 202 किमी पर झाँसी है हवाई अड्डा 107 किमी पर खजुराहो में है। इन सब स्थानों से बस एवं टैक्सियां आसानी से उपलब्ध हैं। यहां से कुंडलपुर जैन तीर्थ 147 किमी दूरी पर स्थित है।

(लेखक राजस्थान के जनसंपर्क विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं व ऐतिहासिक व सामाजिक विषयों पर लिखते हैं, कोटा में रहते हैं)