1

ओडिशा: किसानों की बदली किस्मत

रूपचंद भात्रा कई वर्षों से बीज, उर्वरक, ऋण या अपनी फसल को बेचने में मदद जैसी अपनी सभी जरूरतों के लिए स्थानीय कारोबारी पर निर्भर बने रहे। भात्रा के पास ओडिशा के नबरंगपुर जिले के उमरकोट उपखंड मेंं केवल एक छोटा भूखंड है, इसलिए सारे कृषि सामान का पैसा काटने के बाद उनके पास खर्च के लिए बहुत कम पैसा बचता था।

भात्रा ने कहा, ‘वह यहां जाना-पहचाना व्यक्ति है और मुझे उधारी पर खाद-बीज आदि मुहैया कराता रहा है। लेकिन जब कभी मैं उससे मुझसे खरीदी गई उपज की बाजार कीमत के बारे में पूछता तो वह मेरे सवाल की अनदेखी कर देता था। आम तौर पर मैं सीजन के अंत में हमेशा कर्जदार होता था।’

वह इससे परेशान थे और उन्होंने विकल्प तलाशना शुरू किया। उन्हें एक किसान उत्पादक कंपनी पेंद्रानी कृषक उत्पादक कंपनी लिमिटेड के एक प्रतिनिधि के बारे में पता चला। वह प्रतिनिधि स्थानीय ग्रामीण था, जिन्होंने भात्रा को सदस्य बनने के लिए राजी किया। कुछ विचार-विमर्श के बाद भात्रा एफपीओ के 50 शेयर खरीदकर सदस्य बन गए।

अगली बार जब उन्हें अपनी जमीन पर बुआई के लिए खाद-बीज आदि की जरूरत पड़ी तो उन्होंने इन चीजों की नकद खरीद की और पहली बार उन्हें अपनी खरीद के लिए उचित बिल मिला। स्थानीय कारोबारी ने कभी उन्हें बिल नहीं दिया।’ उन्होंने कहा, ‘मैं इस प्रक्रिया में पारदर्शिता देखकर खुश था।’

इसके बाद उन्होंने मक्का बेचने के लिए पेंद्रानी से संपर्क किया। आवश्यक गुणवत्ता जांच के बाद भात्रा ने 36 क्विंटल मक्का 55,000 रुपये में बेची। महज 24 घंटे में ही पैसा उनके बैंक खाते में जमा कर दिया गया। उन्होंने इस रकम से स्थानीय कारोबारी- बिचौलिये का बकाया चुका दिया।

नबरंगपुर में एफपीओ का फायदा केवल भात्रा को ही नहीं ले रहे हैं। इसी जिले के रायगढ़ उपखंड के खेदूराम गोंड ने मौली मा मंडी उत्पादक कंपनी से कंबाइन हार्वेस्टर किराये पर लिया। यह कंपनी भी पेंद्रानी की तरह मक्का खरीदती है।

गोंड ने कहा, ‘पहले मैं धान हाथ से काटता था। जब मुझे पता चला कि मौली मा के पास कंबाइन हार्वेस्टर है और हार्वेस्टर का किराया काफी कम है तो मैंने उनसे संपर्क किया। इस मशीन का इस्तेमाल कर मैंने तीन एकड़ धान की कटाई दो घंटे में कर ली, जिससे श्रम और समय दोनों की बचत हुई।’ भात्रा और गोंड इस बात के उदाहरण हैं कि कैसे संगठन किसानों को फायदा दे सकते हैं।

लेकिन पेंद्रानी और मौली मा का कारोबारी प्रदर्शन उल्लेखनीय है, जिन्होंने एफपीओ क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी है। ये दोनों एफपीओ अपनी शुरुआत के एक साल के भीतर वित्त वर्ष 2021 में संयुक्त रूप से करीब 4.07 करोड़ रुपये का कारोबार करने में सफल रहे हैं, जो इससे पिछले साल के राजस्व के मुकाबले 893 फीसदी अधिक है।

दोनों एफपीओ ने वित्त वर्ष 2021 में किसानों से खरीदी हुई 22,000 क्विंटल मक्का बेची है, जबकि उनकी बिक्री वित्त वर्ष 2020 में महज 9,500 क्विंटल थी। इन दोनों एफपीओ को मदद देन वाले एक संसाधन केंद्र एक्सेस डेवलपमेंट सर्विसेज के वरिष्ठ प्रबंधक शुभेंदु दास ने कहा, ‘हम किसानों से दो बोरी मक्का भी खरीद लेते हैं। अगर बिक्री की मात्रा 25 बोरी से अधिक है तो हम खेत से खरीद सुनिश्चित करते हैं।’

पेंद्रानी और मा मौली के क्रमश: 1,111 और 932 शेयरधारक हैं और प्रति सदस्य 500 रुपये की इक्विटी है। एफपीओ के हिसाब से वित्त वर्ष के अंत में इक्विटी क्रमश: 5.87 लाख रुपये और 5.32 लाख रुपये थी। उनकी कुल 13,475 किसानों तक पहुंच है, जिनमें से 5,244 महिलाएं हैं, जो उनके उत्पादों और सेवाओं का इस्तेमाल करती हैं। इन किसानों में से 70 से 80 फीसदी लघु, सीमांत, आदिवासी किसान हैं, जिनके पास सीमित संसाधन हैं।

दास ने कहा, ‘आम तौर पर कोई एफपीओ अपनी शुरुआत के बाद के चरम में कृषि इनपुट कारोबार में उतरता है, लेकिन नबरंगपुर के ये छोटे एफपीओ अपनी शुरुआत के पहले साल में ही ऐसा करने में कामयाब रहे हैं।’

दास ने कहा, ‘ज्यादातर मक्का छत्तीसगढ़ के स्टार्च और पशु आहार उत्पादकों को बेची गई, जबकि स्थानीय पोल्ट्री कंपनियों ने भी बड़ी मात्रा में खरीद की।’ इन एफपीओ ने वित्त वर्ष 2021 में जूनागढ़ से बांग्लादेश को करीब 500 टन मक्का का निर्यात किया।

किसी एफपीओ को चलाने में सबसे बड़ी दिक्कत वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करना है। लेकिन अपने अच्छे प्रदर्शन की वजह से दोनों एफपीओ अपने एक साल के परिचालन के दौरान ही समुन्नति और नबकिशन जैसी एनबीएफसी से 75 लाख रुपये का ऋण हासिल करने में सफल रहे।

इन एफपीओ की उपस्थिति देश के सुदूरवर्ती इलाके में होने के बावजूद इनकी सफलता की खबरें फैली हैं। बहुत से एफपीओ इनसे मिलकर यह समझना चाहते हैं कि वे ऐसा करने में कैसे सफल रहे।

साभार- https://hindi.business-standard.com/ से