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सोशल मीडिया पर डाली आपत्तिजनक सामग्री तो अब 24 घंटे में पकड़े जाएंगे

-सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री डालने वाले अब 24 घंटे में पकडे जाएंगे
-केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोशल मीडिया संस्थानों से स्टाफ एवं कार्य अवधि बढ़ाने का आग्रह किया था
-जांच एजेंसियों की मांग पर अब सोशल मीडिया मंच उन्हें तुरंत डॉटा मुहैया कराएगा
-देश में बढ़ते जा रहे हैं सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने के मामले
-2015 में 587 तो 2018 में आपत्तिजनक सामग्री वाले 2400 यूआरएल हटाए गए हैं

लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालों पर शिकंजा कस दिया है। सोशल मीडिया में आपत्तिजनक सामग्री डालने वालों पर नजर रखने के लिए संबंधित कंपनियां अब 24 घंटे काम करेंगी। व्हाट्सएप, फेसबुक, यू-ट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया माध्यमों पर कोई गैर-कानूनी या शांति व्यवस्था भंग करने वाली पोस्ट मिलती है तो आरोपी चंद घंटे में कानूनी कार्रवाई के घेरे में होंगे। उनका यूआरएल तो खत्म होगा ही, साथ ही उन्हें हिरासत में भी लिया जा सकता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोशल मीडिया संस्थानों से स्टाफ एवं कार्य अवधि बढ़ाने का आग्रह किया था, जिसे मान लिया गया है। मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि पहले सोशल मीडिया मंच दो-तीन दिन में डॉटा मुहैया कराता था, अब तमाम सूचनाएं एक ही दिन में मिलने लगेंगी।

बता दें कि सोशल मीडिया पर अवांछित तत्व कई तरह की गलत सामग्री का प्रसार कर रहे हैं। पहले कुछ ऐसे संगठन, जो विदेशों में प्रतिबंधित हैं, वे भारतीय सोशल मीडिया में सेंध लगा रहे थे, लेकिन अब स्थानीय स्तर पर कई राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री डालने लगी हैं।

लोकसभा चुनाव के चलते अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की छवि खराब करने के लिए यू-ट्यूब और व्हाट्सएप का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। विदेशों में प्रतिबंधित संगठनों ने लोकल स्लीपर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर हजारों फर्जी यूआरएल (यूनीफॉर्म रीसॉर्स लोकेटर) बना लिए हैं। वे इन पर आपत्तिजनक सामग्री, खासतौर से देश के हितों को संकट में डालने वाली और समाज में तोड़फोड़ कराने वाली पोस्ट डालते रहते हैं।

सुरक्षा एजेंसियों ने कश्मीर में चल रहे कई ऐसे समूह पकड़े थे, जिन्हें सीधे तौर पर सीमा पार से दिशा-निर्देश मिलता था। पत्थर फेंकने वाले अधिकांश समूह इन्हीं संगठनों से जुड़े हुए थे। इनके स्लीपर सेल अब दूसरे राज्यों में भी फैलते जा रहे हैं।

आईटी विभाग के मुताबिक, सोमालिया, पाकिस्तान, ईरान, सूडान, बांग्लादेश, चीन, अफगनिस्तान, दुबई और पश्चिमी देशों में कई ऐसे प्रतिबंधित संगठन हैं, जो भारत में युवा वर्ग को अपना टारगेट बना रहे हैं। ये संगठन युवाओं को थोड़ा बहुत फायदा देकर अपनी मनमर्जी से गैर-कानूनी एवं आपत्तिजनक सामग्री सोशल मीडिया में चलवाते रहते हैं।

कुछ युवा तो महज फ्री अनलिमिटेड इंटरनेट प्लान के चक्कर में आकर गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। उत्तरपूर्व के अलावा, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं।

साइबर लॉ एक्सपर्ट के मुताबिक, अभी तक यह होता था कि जब भी कोई यूआरएल बंद होता है तो उस साइट को देखने वालों की संख्या बढ़ने लगती है। एक यूआरएल बंद होने की स्थिति में ऐसे लोग अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे सर्विस प्रोवाइडर की मदद या अन्य तरीकों से आपत्तिजनक सामग्री आगे बढ़ाने लगते हैं। अब ऐसा नहीं होगा, सरकारी एजेंसियां और सोशल मीडिया मंत्र दोनों ही ऐसे लोगों पर निगरानी रखेंगे।

यह देखा जाएगा कि वह सामग्री दूसरे किसी सर्विस प्रोवाइडर द्वारा तो नहीं दिखाई जा रही है। अगर एजेंसी एक बार किसी सोशल मीडिया मंच को कोई रिपोर्ट देकर यह मांग करती है कि अमुक सामग्री गैर-कानूनी है तो वह सामग्री किसी भी मंच से नहीं चलाई जा सकेगी। उस सामग्री से जुड़ा एक लिंक सभी सर्विस प्रोवाइडर के पास पहुंच जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और साइबर लॉ एक्स्पर्ट पवन दुग्गल का कहना है, अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया के जरिए कानून के खिलाफ कोई भी हरकत करता है तो वह फंस सकता है। इस तरह का केस अगर साबित हो जाता है तो आजीवन कारावास और एक लाख रुपये से लेकर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना करने का प्रावधान है।

सरकार को ऐसे मामलों में सख्त रवैया अख्तियार करना होगा। किसी भी व्यक्ति को सोशल मीडिया पर कुछ डालने से पहले ध्यान रखना चाहिए कि वह कोई आपत्तिजनक या कानूनी सामग्री तो पोस्ट नहीं कर रहा है। विशेषकर यूथ को ऐसे मामलों में सचेत रहने की जरूरत है।

राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर बोले, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 (क) के तहत किसी संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए यदि ऐसा करना आवश्यक और समकालीन है तो किसी कंप्यूटर आदि में तैयार, सुरक्षित, प्राप्त की हो, ऐसी सूचना को जनता की पहुंच से दूर करने के लिए केंद्र सरकार या उसकी पराधिकृत एजेंसी सोशल मीडिया मंच को निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है। केंद्र सरकार के प्रयासों से सोशल मीडिया मंचों की अनुपालना दर 2017 में 72 फीसदी थी और पिछले साल 83 प्रतिशत हो गई है।

सोशल मीडिया मंचों के साथ गृह मंत्रालय ने कई बैठकें आयोजित की हैं। उनसे कहा गया है कि प्रवर्तन एजेंसियां जो भी डाटा मांगें, उन्हें अविलंब उपलब्ध कराएं। इसके लिए उन्हें 24 घंटे काम करना पड़े तो वे करें। भारत में सोशल मीडिया मंचों के कार्यस्थलों पर संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति करें। यह सुनिश्चित किया जाए कि ये कार्यस्थल 24 घंटे चालू रहें, ताकि जरुरत पड़ने पर बिना किसी देरी के इच्छित डॉटा सरकारी एजेंसी को प्रदान किया जा सके।

साभार- https://www.amarujala.com से