Saturday, April 20, 2024
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भारतीय रेल भी क्षेत्रीय सौतेलेपन की राह पर

भारतीय रेल, जो मात्र दो दशक पूर्व तक केवल राजधानी एक्सप्रेस की गति व रखरखाव तथा इसमें यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती थी वही भारतीय रेल अब उससे कहीं आगे बढ़ते हुए दुरंतो,संपर्क क्रांति,शताब्दी तथा स्वर्ण शताब्दी जैसी तीव्रगति एवं सुविधा संपन्न रेल गाडिय़ों का संचालन कर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी है। इतना ही नहीं बल्कि भारतीय रेल ने अब देश में बुलेट ट्रेन जैसी तीव्रगति से चलने वाली रेलगाडिय़ों के संचालन की दिशा में भी अपने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। निश्चित रूप से भारतीय रेल की यह सभी योजनाएं सकारात्मक तथा विकासोन्मुख हैं।
 
सवाल यह है कि भारत जैसे विशाल देश में केंद्र सरकार द्वारा संचालित किया जाने वाला रेल विभाग क्या पूरे देश को एक ही नज़र से देखते हुए देश के समस्त राज्यों व समस्त रेल ज़ोन में दौडऩे वाली यात्री गाडिय़ों को समान सुविधाएं व सुरक्षा प्रदान करता है? क्या देश के सभी क्षेत्रों में चलने वाली रेलगाडिय़ों में जहां एक ओर समान रूप से किराया वसूल किया जाता है वहीं इन यात्रियों को पूरे देश में समान सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती हैं? यदि हम दिल्ली से एक बार मुंबई मार्ग की यात्रा करें तथा उसी श्रेणी में हम दिल्ली से बिहार के किसी भी क्षेत्र की यात्रा करें तो हमें साफतौर पर यह देखने को मिलेगा कि निश्चित रूप से भारतीय रेल विभाग भी क्षेत्रीय आधार पर अपने यात्रियों के साथ सौतेलेपन जैसा व्यवहार करता है जबकि पूरे देश में यात्रियों से समान श्रेणी के समान किराए वसूल किए जाते हैं।
               
उदाहरण के तौर पर कुछ समय पूर्व मुझे मुंबई के बांद्रा टर्मिनल से दिल्ली होते हुए पंजाब की यात्रा करने का अवसर मिला। वातानुकूलित श्रेणी में की गई इस यात्रा के दौरान ए सी कोच के रख-रखाव, उसके भीतर व बाहर की बार-बार की जाने वाली सफाई, पूरे कोच में लगे साफ-सुथरे पर्दे, प्रत्येक शौचालय में पानी व पंखों का समुचित प्रबंध, गैर ज़रूरी व गैर वातानुकूलित टिकटधारियों का एसी कोच में प्रवेश निषेध, केवल सरकारी मान्यता प्राप्त वेंडर्स द्वारा कोच में अपना सामान बेचने हेतु प्रवेश करना, जगह-जगह वर्दीधारी सफाईकर्मी द्वारा कोच में झाड़ू लगाना यहां तक कि कुछ स्थानों पर सुगंध फैलाने हेतु कोच में सुगंधित स्प्रे का छिड़काव करना जैसी व्यवस्था ने मुझे भारतीय रेल विभाग की पीठ थपथपाने पर मजबूर कर दिया।
 
इस रूट पर चलने वाले स्वदेशी व विदेशी यात्री ऐसी व्यवस्था देखकर निश्चित रूप से संतुष्ट होते होंगे। ऐसी व्यवस्था देश के रेल विभाग की छवि को भी बेहतर बनाने में सहायक सिद्ध होती है। अपनी इस पूरी यात्रा के दौरान पूरे एसी कोच के यात्रियों ने स्वयं को अपने सामानों के साथ सुरक्षित महसूस करते हुए अपनी-अपनी यात्रा पूरी की तथा इसी सुव्यवस्था की वजह से कोच में किसी प्रकार की चोरी अथवा अन्य अराजकतापूर्ण घटना नहीं घटी।
               
और अब आईए आपको पंजाब से दिल्ली से होते हुए बिहार के दरभंगा-जयनगर क्षेत्र की ओर जाने वाली एक ऐसी ही सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन के एसी कोच के रख-रखाव तथा पूरे रास्ते में इस कोच के यात्रियों के समक्ष पेश आने वाली परेशानियों से आपका परिचय कराते हैं। यहां एक बार फिर यह याद  दिलाना ज़रूरी है कि चाहे आप दिल्ली से मुंबई की यात्रा करें या बिहार अथवा देश के किसी अन्य क्षेत्र की, आपको समान श्रेणी में समान दूरी का समान किराया ही भरना पड़ता है। परंतु व्यवस्था तथा सुविधाएं समान हैं या नहीं इस का निर्णय आप स्वयं कर सकते हैं।
 
बिहार की ओर जाने वाली 14650 सुपरफास्ट एक्सप्रेस में जाते समय मेरी बर्थ पर जो पर्दा लटका हुआ था उसमें एक ही पर्दे में सात अलग-अलग प्रकार के रिंग डाले गए थे। कुछ अलग-अलग डिज़ाईन के प्लास्टिक के रिंग कुछ स्टील के तो कई रिंग लोहे के बारीक तार को मोड़कर जुगाड़ के रूप में पर्दे में फंसाए गए थे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चलती ट्रेन में जब पर्दें पर लगे रिंग की ऐसी दुर्दशा देखकर इस रंग-बिरंगे रिंग समेत पर्दे की फोटो फेसबुक पर अपलोड कर दी गई उसके बाद वापसी के समय 14649 ट्रेन के एसी कोच में तो पर्दे ही नदारद थे। पूछने पर पता चला कि पर्दे धुलने के लिए उतार लिए गए हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि भारतीय रेल  ए सी कोच में पर्दों का एक ही सेट रखती है। पर्दा न लगे होने जैसी इस दुव्र्यवस्था से यात्रियों की प्राईवेसी प्रभावित होती है।
               
 
इसके अतिरिक्त लगभग 1400 किलोमीटर के इस लंबे मार्ग में पूरे रास्ते में एक भी सफाईकर्मी कोच में झाड़ू देने के लिए नहीं आया। परिणामस्वरूप भिखारी लोग फर्श झाडऩे की आड़ में डिब्बों में बेरोक-टोक प्रवेश करते ज़रूर देखे गए हैं। नतीजतन ऐस अवैध लोगों के कोच में प्रवेश करने से किसी यात्री का कपड़ों भरा बैग चोरी हो गया तो कोई चोर-उचक्का किसी यात्री का नया जूता व चप्पल ही सफाई के बहाने चुपके से उठाकर चलता बना। इतना ही नहीं इस मार्ग पर अनाधिकृत वैंडर धड़ल्ले से कोच में प्रवेश करते व अपना सामान अधिक मूल्यों पर बेचते बेधड़क पूरे रास्ते आते-जाते रहे। यहां तक कि भिखारियों व हिजड़ों का भी ए सी कोच में आना-जाना लगा रहा। अफसोस की बात तो यह है कि ए सी कोच के साथ लगता गैर वातानुकूलित स्लीपर कोच के बीच का शटर भी पूरे छत्तीस घंटे की यात्रा के दौरान खुला रहा। जब कोई यात्री सुरक्षा के दृष्टिगत उस शटर को बंद कर आता तो सवयं टिकट निरीक्षक उस शटर को जाकर खोल देते।
 
जब एक टिकट निरीक्षक से इस शटर को बार-बार खोलने के बारे में पूछा गया तो उसने एक कोच से दूसरे कोच तक चलती गाड़ी में पहुंचने के लिए अपनी विभागीय सुविधा का हवाला देते हुए एक लंबा भाषण दे डाला। और इसी शटर के मार्ग से अर्थात् वातानुकूलित व गैर वातानुकूलित कोच के जोड़ के रास्ते अवैध यात्री, अवैध वैंडर तथा भिखारी व झाड़ू-सफाई के नाम पर यात्रियों के सामान उठा ले जाने वाले चोर-उचक्के 24 घंटे ए सी कोच में प्रवेश करते रहे। इस पूरे प्रकरण में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस विषय पर इस रूट के टिकट निरीक्षकों का रवैया यात्रियों के साथ सहयोगपूर्ण होने के बजाए ए सी यात्रियों को कष्ट पहुंचाने वाला रहा।
 
               
जैसा कि मैंने जि़क्र किया कि मुंबई-दिल्ली रूट पर कई जगहों पर बाहर व भीतर से शीशों की सफाई की जाती रही। बिहार के इस रूट पर भी गोरखपुर स्टेशन पर ऐसी व्यवस्था है। परंतु इस बार की यात्रा में तो शीशे की सफाई होना तो दूर बल्कि कोच में ऐसे शीशे लगे हुए देखे गए जो दोनों तरफ से टूटे हुए थे तथा कागज़ का स्टीकर लगाकर उन्हें बाहरी हवा के प्रवेश से बचाने की कोशिश की गई थी। शौचालय में पंखा नदारद था। शौचालय का दरवाज़ा बंद करने वाली सिटकनी उपयुक्त तरीके से काम नहीं कर रही थी। किसी भी एसी कोच में बिहार रूट पर लिक्विड सोप कभी भी देखने को नहीं मिला।
 
एसी कोच के मुख्य प्रवेश  द्वार में टूटा हुआ दरवाज़ा लगा देखा गया जो बार-बार खुलने पर इतनी ज़ोर की आवाज़ करता था कि यात्रियों की आंखें खुल जाएं। कोच में अवैध यात्रियों के प्रवेश करने के परिणामस्वरूप रास्ता चलने वाली गैलरी में स्लीपर क्लास के यात्री बेरोक-टोक सफर करते देखे गए। और यह यात्री तथा साथ लगते स्लीपर क्लास के यात्री भी कोच का ज्वाईंट शटर खुला होने के कारण ए सी कोच का शौचालय प्रयोग करते पाए गए। परिणामस्वरूप ए सी के यात्रियों को रास्ता चलने में तथा शौचालय का प्रयोग करने में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ा। इसके अतिरिक्त सीनाज़ोरी दिखाने वाले सैकेड़ों यात्री बिहार से लेकर पूरे रूट तक ए सी कोच में बिना टिकट यात्रा करते तथा खाली बर्थ देखकर उसपर कब्ज़ा जमाते देखे गए। ऐसे यात्रियों से टिकट निरीक्षक भी टिकट पूछने की हि मत शायद नहीं जुटा पाते।
               
कुल मिलाकर मेरे व्यक्तिगत अनुभव ने मुझे इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मजबूर कर दिया कि भारतीय रेल विभाग भी क्षेत्र तथा राज्य व ज़ोन आदि के दृष्टिगत ही अपने यात्रियों को सुविधाएं देता अथवा नहीं देता है। जबकि सभी यात्रियों से समान किराया ज़रूर वसूल किया जाता है। क्या एक ही देश में अलग-अलग क्षेत्रों के यात्रियों को अलग-अलग नज़रों से देखना तथा उनके साथ क्षेत्रीय आधार पर सौतेलेपन जैसा व्यवहार करना उचित है? भारतीय रेल विभाग को गंभीरता से इस विषय पर सोचना चाहिए तथा पूरे देश में समान श्रेणी के यात्रियों को समान सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। जब पूरे देश के यात्री भारतीय रेल विभाग द्वारा निर्धारित किराया अदा करते हैं तो सभी यात्रियों को उस श्रेणी में उपलब्ध सभी सुविधाओं के उपयोग का भी अधिकार है। इस प्रकार का सौतेलापन जनता में आक्रोश पैदा करता है और ऐसी स्थिति ही क्षेत्रवाद तथा क्षेत्रीय सौतेलेपन जैसी सोच को बढ़ावा देती है। किसी भी सरकारी केंद्रीय संस्थान द्वारा इस प्रकार का सौतेली व्यवस्था देशहित में क़तई उचित नहीं है।                                                                 
 
 निर्मल रानी
1618, महावीर नगर
अंबाला शहर,हरियाणा।
फोन-0171-2535628
 

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