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हमारे पर्व और त्यौहार हमें प्रकृति से जोड़ते हैः पुण्डरीकजी गोस्वामी

हमारे पर्व और त्यौहार हमें प्रकृति से जोड़ते हैं, संवत्सर प्रकृति का पर्व है, प्रकृति हमारे मन को नियंत्रित करती है, प्रकृति का प्रभाव मन पर होता है। हमारे पूर्वजों और ऋषि-मुनियों ने हमारे पर्वों और त्यौहारों की रचना चन्द्रमा की गति से की है, इसका रहस्य यह है कि हमारा मन प्रकृति में होने वाले बदलावों से प्रभावित होता है, इसलिए हमारे वार-त्यौहार और उनसे जुड़ी परंपराएँ हमें प्रकृति से जोड़ती है, ताकि हमारा मन चंचल न हो और हम मन के अधीन होकर प्रकृति के विपरीत कोई कार्य न कर सकें।

ये उद्गार वृंदावन से आए पुण्डरीक जी गोस्वामी ने मुंबई के अंधेरी स्थित लोखंडवाला में वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर आयोजित एक दिवसीय सत्संग में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि इंग्लैंड में लोग सूर्य को देखकर बौरा जाते हैं, क्योंकि वहाँ कभी-कभार ही सूरज निकलता है, जबकि हमारे लिए सूर्य का निकलना और अस्त होना कोई मतलब नहीं रखता है, क्योंकि ये हमारे लिए एक सामान्य घटना है। उन्होंने कहा कि इंग्लैंड में सूर्य को लेकर भावनाएँ व्यक्त की जाती है, जैसे कोई किसी को दिल से चाहता है तो कहता है यू आर सनशाईऩ टू मी, इसके विपरीत हमारे देश में छाया को महत्व दिया जाता है। वहाँ सूर्य कभी कभार ही निकलता है इसलिए सूरज का निकलना या उसकी उपमा देना सम्मान की बात होती है। हम यहाँ अगर किसी को सूरज से जुड़ी उपमा दें तो वह बुरा मान जाएगा, हमारे यहाँ कोई व्यक्ति किसी के प्रति अपना आदर व्यक्त करता है तो ये कहता है कि मैं आपकी छाया में जी रहा हूँ, यानी हमारे लिए छाया का महत्व है क्योंकि सूरज तो प्रतिदिन उदय होता है।

भारतीय जीवन दर्शन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा में हम प्रकृति के अनुसार चलते हैं, अपने हिसाब से प्रकृति को नहीं चलाते हैं। ये प्रकृति के प्रति हमारे प्रेम और सामंजस्य की भावना का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि हम अंग्रेजी कैलेंडर से चलते हैं इसलिए हमारा जीवन प्रकृति के साथ संतुलित नहीं हो पाता है। प्रकृति के साथ चलने से मन, शरीर, संकल्प, कर्म, भाग्य और फिर पूरा जीवन संतुलित हो जाता है।

उन्होंने कहा हमारा शरीर, संगीत वाद्य, भवन से लेकर कुर्सी, टेबल सब संतुलन की वजह से उपयोगी हैं, अगर इनमें थोड़ा भी असंतुलन आ जाए तो इनकी कोई उपयोगिता नहीं रह जाएगी, इसी तरह अगर प्रकृति में थोड़ा भी असंतुलन आता है तो हमें इसका परिणाम भोगना पड़ेगा।

पुण्डरीक जी कहा कि हमारा मन कोल्हू के बैल जैसा हो गया है। हम सब-कुछ हासिल करके भी कहीं नहीं पहुँच पाते हैं। उन्होंने कहा कि मन में संकल्प से ही लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरा मन सदैव शुभ विचार ही किया करे ।’ हमारे शिव-संकल्प हों, अर्थात संकल्प विकल्पहीन होता है। हमारे यहाँ विवाह भी एक संकल्प है। उन्होंने कहा कि अगर हम प्रकृति के अऩुसार जीवन जीते हैं तो हमारे विचार परमात्मा के नेटवर्क से जुड़ कर हमें हमेशा सही मार्ग की ओर ले जाते हैं।