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हमारी भारतीय संस्कृति ने हमेशा जोड़ने का कार्य किया है – डॉ जयश्री

कोटा। राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं आर्यन लेखिका मंच के संयुक्त तत्वावधान में कबीर पारख संस्थान विनोबा भावे नगर कोटा में ” राजस्थान का हिन्दी महिला लेखन : साम्प्रदायिक सदभाव निर्माण में योगदान विषय पर साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन आर्यन लेखिका मंच द्वारा आयोजित किया गया।

मुख्य अतिथि अनुकृति त्रैमासिक पत्रिका की संपादक डॉ जयश्री शर्मा जयपुर ने मुख्य उद्बोधन में कहा कि ” युद्ध जब होता है किसी भी सूरत में बर्बाद जब होता है तो आम आदमी होता है, हमारी भारतीय संस्कृति ने हमेशा जोड़ने का कार्य किया है, अगर किसी घर में अंधेरा है तो हमारा कर्तव्य उजाला करना है, हमें वरिष्ठ साहित्यकारों के साहित्य को पढ़कर समाज में उजाला करना है “।

अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखिका वीणा अग्रवाल ने कहा कि साम्प्रदायिक सदभाव के लिए हमें लोक गीतों में जाना पड़ेगा, समस्त लोकगीतों में महिला लेखिकाओं की भूमिका प्रमुखता से देखी जाती है। वरिष्ठ लेखिका श्यामा शर्मा ने डॉ मनिषा शर्मा का परिचय देते हुए कहा कि आपकी अब तक दो कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, आपने नो शोधकर्ताओं को शोधकार्य कराया है।

प्रोफ़ेसर व लेखिका डॉ. मनीषा शर्मा ने संपूर्ण राजस्थान की लेखिकाओं के सांप्रदायिक सद्भावना में योगदान पर लिखी गई रचनाओं पर शोधात्मक आलेख का पत्र वाचन करते हुए कहा कि ” वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय मनीषा की अवधारणा को प्रस्तुत करते हुए, अनेकानेक उदाहरण देते हुए राजस्थान महिला लेखन की प्राचीन परम्परा से वर्तमान समय तक के रचनाकारों का उल्लेख किया है। डॉ अर्पणा पाण्डेय ने डॉ उषा झा का व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचय प्रस्तुत किया, डॉ उषा झा ने कहा कि “कबीर सबसे बड़े उदाहरण थे, साम्प्रदायिक सद्भावना के, उन्होंने अपनी वाणी में हमेशा भेदभाव मिटाने का प्रयास किये, साम्प्रदायिक ता का तात्पर्य है सबको अपनी तरह सोचें बिना लिंग, जाति, भाषा वर्ग के पक्ष लिए, सबकी अच्छाई साहित्य का भी यही प्रयास रहता है।

विशिष्ट अतिथि हिन्दी व राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ समीक्षक जितेन्द्र निर्मोही ने इस अवसर पर कहा कि दिवंगत साहित्यकारों की पंक्तियों को कोड करना, वक्ता के पत्र की सफलता का प्रमाण है। हमारे देश में तो आजादी के पहले से ही साम्प्रदायिक सद्भाव के तराने गाये जाते रहे हैं। द्विवेदी काल का लेखन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

विशिष्ट अतिथि महेंद्र नेह ने कहा कि ” आज से दो दशक पहले महिला लेखन कम था, आज हमारे नगर में कई लेखिकाओं का लेखन निरंतर पढ़ने में मिल रहा है, वह साहित्य समाज के लिए सुखद संकेत है। डॉ मनिषा ने आदि काल से वीरगाथा काल से होते हुए वर्तमान काल तक के महिला रचना कर्म को बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है। झालावाड़ की कवियत्री प्रतिमा पुलक, कृष्णा कमिशन ,आशा रानी सुनेल एवं कवियत्री प्रतिभा ने भी कविता पाठ किया।

मंच की अध्यक्ष रेखा पंचोली के संयोजन में सम्पन्न हुआ । कार्य क्रम का शुभारंभ अतिथियों ने माँ शारदे के पूजन अर्चन से किया। माँ सरस्वती की वंदना “माँ शारदे सदा बनना मेरी प्रेरणा “कवियत्री पल्लवी न्याती ने प्रस्तुत की। समिति के पदाधिकारियों द्वारा अतिथियों का पुष्प माला से स्वागत अभिनन्दन किया गया। कबीर पारख संस्थान के संत श्री दया साहेब का सानिध्य प्राप्त हुआ। नहुष व्यास ने बताया कि कार्यक्रम में रामेश्वर शर्मा रामू भैया, विश्वामित्र दाधीच, रघुनंदन हटीला, भगवती प्रसाद गोतम, विष्णु शर्मा हरिहर, आनन्द हजारी, रविन्द्र बिकावत, योगीराज योगी, हेमंत पंकज, किशन वर्मा, पं लोक नारायण शर्मा, डॉ शीला तिवारी, प्रों राजेश शर्मा झालावाड़, सुरेश पण्डित, शायर चांद शेरी, श्यामा शर्मा, सपना मीणा, मंजु रश्मि, विजय जोशी, कृष्णा कुमारी, गिरिराज गौतम, शकुन्तला कुन्तल बारां, नेहा राठौर, प्रितिमा पुलक झालावाड़ से, आशारामजी आशु, साधना शर्मा, योगेन्द्र शर्मा, राममोहन कोशिक, रेणु सिंह, रेणु गुर्जर गौड़ , वंदना आचार्य लक्ष्मी राजपूत, राम प्रकाश पंचौली, गौरव सोनी, शशि सक्सेना, गीता जाजपुर, चंचल कालरा, शमा बेगम, इतिहासकार फिरोज अहमद, बी एल प्रजापति, गोरस प्रचण्ड, प्रेम शास्त्री, जोधराज परिहार , हलीम आईना, बद्री लाल दिव्य, प्रियंका राठी, स्नेहलता शर्मा, डॉ रिचा भार्गव, ममता महक, बबीता शर्मा, डॉ इन्दु बाला शर्मासहित संभागीय स्तर पर सभी लेखक व लेखिका मौजूद रहे।

संचालन डॉ अपर्णा पान्डेय औ व अनुराधा शर्मा द्वारा किया गया।

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