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समुद्र मंथन से निकला सिंहस्थ

सिंहस्थ कुम्भ महापर्व एक विशाल आध्यात्मिक आयोजन है, जो मानवता के लिए जाना जाता है। इसके नाम की उत्पत्ति ‘अमरत्व का पात्र’ से हुई है। पौराणिक कथाओं में इसे ‘अमृत कुण्ड’ के रूप में जाना जाता है।

भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण आदि महान ग्रन्थों में भी अमृत कुंड और अमृत कलश का उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि देवता और असुरों द्वारा किये ‘समुद्र मंथन’ से अमृत कलश की प्राप्ति हुई थी। इस कलश को प्राप्त करने के लिए असुर और देवताओं में 12 दिनों तक संघर्ष हुआ था। असुरों से सुरक्षित रखने के लिए अमृत कलश को देवराज इन्द्र के सुपुत्र जयंत युद्ध के मैदान से लेकर भागे। असुरों ने पीछा किया और कलश प्राप्त करने में संघर्ष में अमृत की कुछ बूँदे पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिर गयीं। ये बूंदें गंगा, यमुना, गोदावरी और क्षिप्रा नदियों में मिल गयीं, जिससे इन नदियों के जल में आध्यात्मिक और अतुलनीय शक्तियाँ उत्पन्न हो गयीं।

सिंहस्थ कुम्भ महापर्व चार स्थानों अर्थात हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन में प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित किया जाता है। लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान के लिए आते हैं और श्रद्धालु ऐसा मानते हैं कि इससे उन्हें जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होगी।

चौदह रत्न
कालकूट, ऐरावत, कामधेनु, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, रम्भा नामक अप्सरा, लक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, पारिजात, शंख, धन्वन्तरि और अमृत