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पत्रकारिता के मूल्यों के बिरले प्रतिमान थे पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी – डॉ. चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगांव। साहित्यिक पत्रकारिता के पुरोधा और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी की जन्म शताब्दी पर आयोजित राष्ट्रीय ई-सेमिनार में दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि खामोशी से मेहनत करके कामयाबी का इतिहास रचने वाले,दीये की तरह जलकर मानवता का प्रकाश रचने वाले और एहसास की जगह पर सच्चा विश्वास रचने वाले महामानव बिरले होते हैं। पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ऐसे ही व्यक्तित्व थे। डॉ. जैन ने कहा कि छत्तीसगढ़ पत्रकारिता की संस्कारभूमि है। इसके संस्कारकर्ताओं की एक मज़बूत कड़ी पंडित त्रिवेदी जी ने सत्य का अनुसरण कर, लेखनी के शिवत्व और सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया।

छत्तीसगढ़ फिल्म एन्ड विसुअल आर्ट सोसायटी , छत्तीसगढ़ मित्र और शिक्षा दूत प्रकाशन के इस साझा आयोजन में पंडित त्रिवेदी के योगदान पर केंद्रित और निर्मित डॉ. जैन के विशेष वीडियो का प्रसारण किया गया इसे बड़ी संख्या में साहित्यकारों, पत्रकारों, प्राध्यापकों और शोधार्थियों ने देखा। सभी ने प्रस्तुति का मुक्त ह्रदय से स्वागत किया। प्रखर वक्ता डॉ. जैन ने आगे कि पंडित त्रिवेदी जी को विपरीत में उतर जाने का हुनर आता था। वे स्वयं रचना जानते थे और रचने का मूल्य भी पहचानते थे। रचने वालों को सीख और प्रोत्साहन भी देते थे। आंच में तपकर कुंदन की तरह निखरना और चटखती धरती पे फव्वारों के घर पैदा करना उनका मिशन होता था । प्रेरणा देने वाली वेदना उन्हें लुभाती थी, कठिनाई उनका रास्ता खुद बनाती थी। सारी दुनिया से अनुभव संचित कर जिज्ञासुओं की प्यास बुझाना और अपने पीछे सीखने की ललक की विरासत छोड़ जाना उनके जीवन का ध्येय ही था ।

डॉ. जैन ने कहा कि लेखनी और अभिव्यक्ति की छाप और ताप से निखरे स्वराज्यप्रसाद त्रिवेदी साहित्य और साहित्यिक पत्रकारिता के प्रतिमान बन गए। कवि, कथालेखक और नाट्यशिल्पी के नाते देखें या कर्मठ पत्रकार और संपादक के रूप में उन्हें निहारें, हर कोण से उनका अवदान अद्भुत है। उनके संवेदनासिक्त व्यवहार में चुम्बकीय आकर्षण था। वह किसी अपरिचित को भी स्नेह सूत्र में बाँध देता था। पत्रकारिता उनके लिए तप का पर्याय थी।

सम्बोधन ने डॉ. चंद्रकुमार जैन ने स्पष्ट किया कि त्रिवेदी जी ने पत्रकारिता के मूल्य मानकों से समझौता कभी नहीं किया। आज़ादी की लड़ाई भी लड़ी। अभिव्यक्ति की आजादी के लिए भी कठोर संघर्ष किया और अदम्य इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पद, पैसा, प्रतिष्ठा की दौड़ से दूर रहकर निष्काम अक्षर योगी के रूप में अपनी धरोहर छोड़ गए। पत्रकारीय शुचिता के प्रति उनकी लगन अनोखी थी। उनकी लेखनी समय और समाज के मर्म का उद्घाटन करती रही। वह जन और जीवन से सीधे संवाद करती रही। गागर में सागर और सागर में मोतियों के समान उनका भाव व विचार वैभव शब्द, बोध और शोध की प्रेरणा देता है। पाठक के विवेक को उद्दीप्त करने और उनके चिंतन को उद्बुद्ध करने की अचूक क्षमता ने त्रिवेदी जी की पत्रकारिता की भूमि को समाधानमूलक बना दिया। भग्न आस्थाओं और खंडित विश्वासों के बीच, मानवीय भावधारा को जीवंत बनाये रखना कोई साधारण बात नहीं है। किन्तु, पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी की लेखनी के स्वराज ने यह संभव कर दिखाया।

इस गरिमामय और ऐतिहासिक अवसर पर प्रमुख अतिथि माधवराव सप्रे संग्रहालय भोपाल के निदेशक श्री विजयदत्त श्रीधर, प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय, राजस्थान के आलोचक चर्चित और सम्पादक डॉ. संदीप अवस्थी, पत्रकार गिरीश पंकज, साहित्यकर डॉ. विनयकुमर पाठक, भाषाविद डॉ. चित्तरंजन कर सहित डॉ. सुशील त्रिवेदी, आयोजन के संयोजक सुभाष मिश्र, डॉ. सुधीर शर्मा और सत्यप्रकाश सिंह आदि और अन्य अनेक वक्ताओं ने उदगार व्यक्त किया।