Friday, March 29, 2024
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…और पॉयलट बनते-बनते रह गए थे डॉ. कलाम

मिसाइल मैन के तौर पर पहचान बनाने वाले पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पायलट बनना चाहते थे, मगर वह अपने सपने के एकदम करीब पहुंचकर चूक गए थे। इंडियन एयरफोर्स में उस वक्त 8 जगहें खाली थीं और इंटरव्यू में कलाम का नंबर नौवां आया था। कलाम ने इस बात का जिक्र अपनी किताब 'माइ जर्नी: ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इंटु ऐक्शंस' में किया था।

मद्रास टेक्निकल इंस्टिट्यूट से ऐरोनॉटिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने वाले कलाम ने अपनी किताब में लिखा था कि उनके ऊपर पायलट बनने का जुनून सवार था। उन्होंने लिखा था, 'मेरा सपना था कि हवा में बेहद ऊंची उड़ान के दौरान मशीन को कंट्रोल करूं।'

कलाम को इंटरव्यू के लिए दो जगहों से बुलावा आया था- पहला देहरादून में इंडियन एयरफोर्स की तरफ से और दूसरा दिल्ली में डिफेंस मिनिस्ट्री के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (DTDP) की तरफ से। कलाम ने लिखा है कि DTDP का इंटरव्यू आसान था, मगर एयरफोर्स का इंटरव्यू बोर्ड कैंडिडेट्स में खास तरह की काबिलियत देखना चाहता था। वहां 25 उम्मीदवारों में से कलाम 9वें नंबर पर रहे, मगर 8 ही सीटें खाली होने की वजह से उनका सिलेक्शन नहीं हो पाया।

अपनी किताब में कलाम ने लिखा था, 'मैं एयरफोर्स का पायलट बनने का अपना सपना पूरा करने में नाकामयाब रहा। इसके बाद मैं चलता रहा और आखिर में एक खड़ी चट्टान के पास पहुंच गया। आखिरकार मैंने ऋषिकेश जाने और नया रास्ता तलाश करने का फैसला किया।'

कलाम ने लिखा है, 'जब हम नाकामयाब होते हैं, तब हमें पता चलता है कि हमारे अंदर बहुत सी क्षमताएं हैं और वे पहले से ही मौजूद होती हैं। बस हमें उनकी तलाश करनी होती है और जिंदगी में आगे बढ़ना होता है।'

कलाम ने अपनी इस किताब में अपनी जीवन के महत्वपूर्ण पलों, अहम किस्सों, शिक्षाओं और प्रेरित करने वाले लोगों का जिक्र किया है।

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