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कैफे चलाना कोई हँसी खेल नहीं है

“कैफे चलाना मुश्किल भरा बिज़नेस है। हर साल सीसीडी, कोस्टा कॉफी,स्टारबक्स, बरिस्ता आदि के बड़ी संख्या में घाटे वाले स्टोर बंद होते हैं। आप अगर सजग हैं तो पाएंगे कि आपके आस-पास दिखने वाले कॉफी स्टोर अब उस जगह नहीं हैं। चूंकि 60 फीसदी से ज्यादा कॉफी स्टोर सदैव घाटे में रहते हैं। कॉफी की वास्तविक लागत भले 15 से 20 रुपए हो लेकिन जैसे ही उसमें समस्त ऑपरेटिंग लागत जुड़ती है तो 130 से 200 रुपए सच में कम ही हैं। मैंने जीवन के करीब 3 से अधिक वर्ष सीसीडी और कोस्टा में बिताए हैं। मेरा स्टोर, जिसमें मैं काम करता था सदैव घाटे में रहा। चूंकि रेंट, बिजली का बिल और स्टाफ की सैलरी का बिल ही इतना होता था जितनी महीनेभर की सेल नहीं होती थी। राजीव चौक और कुछेक भयानक रश वाली जगहों को छोड़ दें तो सीसीडी में आपको इक्का-दुक्का ग्राहक ही मिलेंगे। ये स्टोर 100 फीसदी घाटे में चल रहे होते हैं। सीसीडी में विशेषकर लोग समय व्यतीत करने जाते हैं न कि खाना खाने। एक कॉफी लेकर बैठे रहते हैं। लेकिन पेस्ट्री कूलर, डीप फ्रीज़र, रेफ्रीजरेटर, बाकी़ की लाइटें बराबर चल रही होती हैं। लाखों रुपए मासिक का रेंट भी चल रहा होता है।

ध्यान रहे कि सीसीडी के स्टोर रेंट की जगह में चलते हैं। ये जो वीजी सिद्दार्थ नाम का बंदा था न, इससे मैं 2 बार मिला,काम के दौरान। बेहद विनम्र और भला आदमी था। एक बार इसने मुझे कूल ब्लू का ऑर्डर दिया था , दूसरी बार फ्रेपे का। तब फोल्डर चलता था तो 100 रुपए टिप भी दी थी। तब सीसीडी में ग्राहक काउंटर पर ऑर्डर नहीं देते थे। बाक़ी यह सब लिखने के पीछे उद्देश्य यह कि आजकल हर दूसरा बच्चा कैफे, रेस्त्रा खोलने की बात करता है,बिना जाने कि 80 फासदी रेस्ट्रां बंद होने के लिए ही खुलते हैं। कितने बंदों को देखा है जो सीसीडी, कोस्टा छोड़कर ख़ुद का रेस्टोरेंट खोलकर बंद हो चुके हैं। पिछले कुछ सालों की रिपोर्ट को ढंग से पढ़ोगे तो पता चलेगा कि भारत में कॉफी बिज़नेस करने वाली कंपनियों का क्या हाल हुआ है। वो कितनी बार बिकी हैं। एक साइबर कैफे से करीब 2 हजार स्टोर रन करने वाला वीजी सिद्दार्थ उन बेशर्म उद्यमियों से तो लाख गुना अच्छा था जो देश का पैसा लेके नहीं भागा। मरना बेहद हिम्मत वाला काम होता है भले दुनिया असहमत हो । अब कुछ कहेंगे कि इतना ही घाटे का सौदा है तो क्यों करते हो बिज़नेस तो बता दूँ बिज़नेस करना भी एक नशा होता है कुछ लोगों के लिए ।

सीसीडी की कमाई कॉफी से कहीं अधिक दूसरों के विज्ञापन से थी/है। जो कॉफी एडिक्ट हैं वो जानते होंगे कि सीसीडी दूसरे ब्रांड के प्रमोशन से लाभ हासिल करता था/ है। बाक़ी बहुत कुछ लिखने को है सीसीडी पर। आज भी देश में सबसे सस्ती कॉफी सीसीडी की ही है। क्रम से चलें तो स्टारबक्स , कोस्टा , बरिस्ता आखिर में सीसीडी बाक़ी कॉफी बीन्स आदि को गिनना बेकार है। सीसीडी देश की इकलौती ऐसी कंपनी है जिसके पास चिकमंगलूर में कॉफी एस्टेट है पूरा। इसका कॉफी बीन्स निर्यात का भी काम है। सीसीडी का बिज़नेस मॉडल तो बहुत दिनों से असफल था। क्योंकि ग्राहक सीसीडी में फूड कंज्यूम नहीं करते थे जिससे फूड वेस्टेज़ बहुत ज्यादा था। जबकि मैकडी, बर्गर किंग, सबवे आदि उतनी ही ऑपरेटिंग कॉस्ट पर बेदह बढ़िया मानी जा सकने वाली सेल कर रहे थे। अच्छा एम्बिएंस देने के चक्कर में सीसीडी नेटवर्क ने ख़ुद का बहुत नुकसान किया है। उम्मीद है नया प्रबंधन कुछ बोल्ड स्टेप लेकर सीसीडी की कायापलट करेगा नहीं तो ख़रीददारो की कमी है नहीं। कोकाकोला भी सीसीडी को ख़रीदने वालों की लाइन में है।”

(प्रेषकः आशीष कुमार ‘अंशु’, दिल्ली से )