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राष्ट्रनीति के बिना राजनीति अधूरी है।

आप लोगों ने अक्सर देश के अंदर राजनीति पार्टियों के नाम पर चुनाव होते हुए देखा होगा। कोई कांग्रेस पार्टी के नाम पर चुनाव लड़ता है, तो कोई भाजपा के नाम पर तो कोई सपा और बसपा के नाम पर। लेकिन वास्तव में जिस चिरविजयी राष्ट्र के नाम पर उसकी पहचान है। उसके नाम पर कोई चुनाव नही लड़ता। इसी आबोहवा के अंदर देश में कई संगठनों का निर्माण भी हुआ, लेकिन अंततोगत्वा उन संगठनों का विलय भी राजनीति पार्टियों में उसी प्रकार हो गया, जैसे छोटी-छोटी नदियों का विलय विशाल सागर में हो जाता है। बाद में उनके अंदर से भी राजनीति की वही हवा बहने लगी जो अन्य दलों के अंदर पहले से बहती आ रही थी। सभी दलों को सत्ता चाहिए, चाहे वो किसी भी प्रकार मिले। छल से मिले, कपट से मिले या फिर नीचता की कितनी भी हद पार हो जाए पर सत्ता चाहिए। राजनेता अपने लच्छेदार भाषणों से लोगों को इस प्रकार लुभाते है, जैसे भारत में परम वैभव उनके कंधों पर चलकर आएगा। क्या जनता को ऐसा मान लेना चाहिए, कि राजनीति से ही परमार्थ का मार्ग निकलता है?

देश राजनीति से भी चलता है, ऐसा हम मान सकतें है, लेकिन राजनीति से ही चलता है। ऐसा कभी नही मानना चाहिए। राजनीति से ज्यादा इस देश में राष्ट्रनीति जरूरी है, और वो शायद किसी दल के पास इस समय नजर नही आ रही है। भ्रष्टाचार भरी नीतियों में हम अन्य राजकारणी दलों का विशलेषण कर सकतें है।

देश को परम वैभव पर कोई राजनेता और कोई राजकारणी दल नही लेकर जा सकता है। अगर कोई लेकर जा सकता है तो वो है वहाँ का आम समाज, अन्य कोई नही। जिसके रोम-रोम में देश के लिए तड़फ हो, देश के लोगों की हालात देखकर जिसकी रातों की नींद भाग जाती हो। ऐसे लोगों की देश के प्रति तड़प देश में राम राज्य ला सकती है। क्योंकि शहीदे आजम सरदार भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव की तड़प देश के लिए इसी प्रकार की थी। तब जाकर भारत ने 1857 के प्रयास से 1947 में आजादी पाई थी। पर हम इस प्रकार की बातों से निराश होकर बैठ जाएं की देश गर्त में जा रहा है। तो ऐसा बिल्कुल भी नही है। आज भी देश के अंदर ऐसे लोग हैं, जिनकी प्रेरणा स्त्रोत भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल ही है। उनके अंदर भी देश के लोगों की हालात देखकर समाज के लिए कार्य करने की तड़प पैदा होती है, और पैदा होती उस तड़प से ही वो देश समाज के लिए कार्य करते है। जो अपने पवित्र समाज (देश) को खुश देखने के लिए विष पीने से भी पीछें नही हटते हैं। जिनका केवल एक ही लक्ष्य होता है। भारत माता को परम वैभव के सिंहासन पर किस प्रकार आरूढ़ किया जाए। जिसके लिए वो रात दिन उस मार्ग पर कार्य करने में वयस्त रहते हैं। जो अपने लिए नही अपनों के लिए कदम बढ़ाते है। अगर भारत आज भी भारत है, तो उन्हीं तपस्वी लोगों के बल पर है। जो सारे देश को अपना परिवार मानते है, देश पर विपदा आने पर किसी बात का इंतजार नही करते कि कोई उनसें सहायता मांगनें के लिए आएगा। जैसे ही उन्हें समाज पर आए संकट पता चलता है तो वो अपने आप आगे आकर उस संकट का समाधान निकालते हैं।

समाज को समृद्धशाली बनाने के लिए ऐसे ही लोगों की देश-समाज को आवश्यकता है । उन लोगो का निर्माण किसी विध्दालय में नही हुआ। विजयदशमी 1925 से दैनंदिनी चलने वाली एक घंटे की राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की शाखा में होता है। मन मस्त फकीरी धारी है, अब एक ही धुन जय-जय भारत, जय-जय भारत के तरानों के साथ कार्य में लगे रहतें है। जो देश को प्रथम दृष्टा में ऱखकर कार्य करतें है। ऐसे मतवालें लोगों का निर्माण विश्व के सबसे बड़े संगठन में होता है।

(ललित कौशिक पत्रकार हैं और विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर लिखते हैं)