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प्राणायाम सब वासनाओं का नाशक

प्राणायाम शरीर का शोधन करने का कार्य करता है, शरीर की सब दुर्बलताओं का नाश करने वाला है तथा शरीर में जितनी भी वासनात्मक प्रवृतियां होती हैं , उन सब का प्राणायाम से नाश होता है। इस विषय पर विषद प्रकाश डालते हुए यह मन्त्र इस प्रकार उपदेश कर रहा है:-

दस्रा युवाकव: सुतानासत्या व्रिक्तबर्हिष:।
आ यातं रुद्र्वर्तनी ॥ ऋग्वेद १.३.३ ॥

इस मन्त्र में भी विगत मन्त्र की ही भान्ति चार तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है:-

१. रोगों को नष्ट करने का कारण
यह मन्त्र विगत मन्त्र के अश्विना को दस्रा से सम्बोधन करते हुये उपदेश करता है कि द्सु अर्थात् यह मन के काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि जितने भी शत्रु हैं, उन सब का यह नाश करने वाला होता है। जब काम क्रोध आदि शत्रु नश्ट हो जाते हैं तो शरीर रोग रहित हो जाता ह्गै। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह शरीर के शत्रुओं से शरीर को बचा कर, इस के रोगों को नष्ट करने का कारण बनता है।

२ प्राणायाम से सब असत्य दूर
हमारे शरीर में बहुत से असत्य निवास करते हैं। यथा हमारे शरीर में रोग का होना असत्य है, हमारे शरीर में राग-द्वेष आदि दुर्गुणों का होना असत्य है, हमारी बुद्धि में मन्दता होना भी असात्य है किन्तु प्राण साधना अर्थात् प्राणायाम शरीर के इन सब असत्यों को दूर करता है, हमारे जीवन के सब प्रकार के असत्यों का नाश करता है इस प्रकार प्राणायाम हमारे सब प्रकार के असत्यों को, विकारों को हर लेता है, उनका नाश कर देता है।

३. सोम हमारे शरीर का रक्षक
जीवन के असत्यों का नाश करते हुए मन्त्र प्राणापानों को सम्बोधन करते हुए कह रहा है कि हे प्राणापानो! तुम ही मानव शरीर में सोमकणों का उत्पादन करते हो, तुम ही मानव जीवन में सोमकणों की उत्पति करते हो। इतना ही नहीं प्राणापाण ही इन सोमकणों को शरीर में रक्षित करते हैं, इन कणों की रक्षा का कार्य भी प्राण अपान ही करते हैं। इस प्रकार हमारे शरीर में रक्षित हुए यह सोमकण हमें अशुभ से सदा दूर करते हैं तथा हमारा सम्पर्क शुभ से जोडते हैं। भाव यह कि यह रक्षित हुए सोम हमारे शरीर की रक्षा का कार्य करता है तथा शरीर में जो भी रोग आदि अथवा अन्य प्रकार के अशुभ अंश विद्यमान होते हैं, उनका इस सोम से संहार होता है, नाश होता है तथा यह सोम शरीर में शुभ अर्थात् उत्तमता लाने का कार्य करता है, यथा शक्ति सम्पन्न करना, विद्या युक्त करना, तेजस्वी बनाना, पवित्र बनाना आदि, यह सब कार्य यह सुरक्षित सोम ही करता है। इस प्रकार यह सोम हमारे अन्दर की वासनात्मक प्रवृतियों को भी हमारे ह्रदय रुपि मन्दिर से उखाड कर बाहर निकाल देते हैं। इस प्रकार इन बुराईयों के निकलने से जो स्थान खाली होता है, रिक्त होता है, उस स्थान को निर्मल व पवित्र करने का कार्य भी यह सोम ही करता है।

४. सोम हमारे विनाशक तत्वों को रुलावें
मन्त्र के चतुर्थ खण्ड में प्राण तथा अपान को पुकारते हुए उपदेश किया है कि हे प्राणापानों! इस प्रकार तुम मानव जीवन को पवित्र बनाने के लिए, रोग रहित करने के लिए, शत्रुरहित करने के लिए, सब प्रकार की व्याधियों से रहित करने के लिए निरन्तर कार्य करते रहो। इन बुराईयों के विरुद्ध तुमने जो संग्राम छेड रखा है उन संग्रा्मों में सफ़ल होने वाले बनो, सब प्रकार की वासनात्मक व सब प्रकार की रोगात्मक प्रवृतियों से संघर्ष करने वाले बनो। हमारे जितने भी शत्रु हैं, उन्हें तुम सदा रुलाते हुए मार्गों का निर्माण करते हुए तुम हमारे पास आवो। तुम्हारा मार्ग भी रुद्रों जैसा ही होता है। जिस प्रकार रुद्र पापियों को रुलाते हैं, उस प्रकार ही तुम भी विनाशक तत्वों को रुलाओ, नष्ट करो। यह प्राणापान ही होते हैं, जो हमारे हृदय रुपि प्रदेश से हमारे काम-क्रोध, मद-लोभ, अहंकार आदि दुष्ट शत्रुओं का नाश करते हैं। इस प्रकार हमारी यह तुच्छ प्रवृतियां नष्ट हो जाती हैं

डॉ. अशोक आर्य
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