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प्रार्थना करें, याचना नहीं !

मनुष्य या तो अपने बीते हुए पलों में खोया रहता है या फिर अपने भविष्य की चिंताओं में डूबा रहता है। दोनों सूरतों में वह दुखी रहता है। वास्तविक जीवन वर्तमान में है। उसका संबंध किसी बीते हुए या आने वाले कल से नहीं है। जो वर्तमान में जीता है वही हमेशा खुश रहता है।

देखा जाए तो मनुष्य के तमाम दुखों और तकलीफों का आधार यह सोच है कि मेरे दुख का कारण सामने वाला है। हमारी नजर हमेशा इस बात पर होती है कि हमें हमारे अनुसार क्या नहीं मिला। हमारी नजर सदा उस पर होनी चाहिए जो हमको मिला है।

हम परिस्थितियों या किस्मत के साथ भी यही रवैया रखते हैं कि वह बदलें हम नहीं। आदमी, इंसान की बनाई चीजों को तो मानता व पूजता है लेकिन स्वयं को, ईश्वर की बनाई सृष्टि और उसमें मौजूद प्रकृति की तरफ कभी भी आंख उठाकर नहीं देखता। सच यह है कि परमात्मा को मानने का मतलब ही प्रकृति को पूर्ण स्वीकार भाव से ग्रहण करना। इसलिए –

भगवान से प्रार्थना कीजिए, याचना नहीं।
आपकी स्थिति ऐसी नहीं कि
कमजोरियों के कारण
किसी का मुँह ताकना पड़े
और याचना के लिए हाथ फैलाना पड़े
प्रार्थना कीजिए कि
मेरा प्रसुप्त आत्मबल जागृत हो
प्रकाश का दीपक जो विद्यमान है
वह टिमटिमाए नहीं
वरन रास्ता दिखाने की स्थिति में बना रहे
मेरा आत्मबल मुझे धोखा न दे
समग्रता में न्यूनता का भ्रम न होने दे
जब परीक्षा लेने और शक्ति निखारने हेतु
संकटों का झुंड आए
तब मेरी हिम्मत बनी रहे
और जूझने का उत्साह भी
लगता रहे कि ये बुरे दिन
अच्छे दिनों की सूचना देने आए हैं
प्रार्थना कीजिए कि हम हताश न हों
लड़ने की सामर्थ्य को
पत्थर पर घिसकर धार रखते रहें
योद्धा बनने की प्रार्थना करनी है
भिक्षुक बनने की नहीं
जब अपना भिक्षुक मन गिड़गिडाए
तो उसे दुत्कार देने की प्रार्थना भी
भगवान से करते रहें।
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