Tuesday, March 19, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेपुणे के दो छात्रों ने खोज निकाला गुमनाम पुराना किला

पुणे के दो छात्रों ने खोज निकाला गुमनाम पुराना किला

पुणे। दो इतिहास प्रेमियों ने पुणे जिले के पास अंबाले गांव के पास एक गुमनाम किला खोज निकाला है। इस किले को धवलगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसका उल्‍लेख सबसे पहले 1940 में इतिहासकार कृष्‍ण वामन पुरंदरे ने अपनी संदर्भ पुस्‍तक में किया था। महाराष्‍ट्र सरकार की ओर से इसे कभी गजेटियर में शामिल नहीं किया गया।

पेशे से चार्टड अकाउंटेंट ओंकार ओक और पुरातत्‍व शोधकर्ता सचिन जोशी ने हाल ही में इस पुराने किले का भ्रमण किया था। उन्‍होंने स्‍थल का सर्वे भी किया। इसके बाद दोनों ने किले पर अपने रिसर्च पेपर भारत इतिहास संशोधक मंडल को प्रस्‍तुत किये। यह संस्‍थान इतिहास पर शोध करने वालों को संसाधन और प्रशिक्षण की सुविधा देता है। दोनों अब इस किले को राज्‍य सरकार द्वारा पहचान दिलाये जाने के कार्य में जुट गए हैं।

ओक ने बताया कि इस साल फरवरी में ट्रेकिंग करते समय उन्‍होंने इस किले को खोजा। उन्‍होंने जोशी को इसके फोटो दिखाये। दोनों ने मौके पर जाना तय किया। यहां आकर इन्‍होंने एक सर्वे किया। किले के पास इन्‍हें पुरानी ईंटें, चूडि़यां, बर्तन और लोहे का सामान मिला। आश्‍चर्य की बात है कि गांव वालों तक को इसका पता नहीं था। मंदिर के अलावा दोनों को एक टूटा दरवाजा, जलाशय, तोप, टॉवर आदि मिले हैं। दोनों ने इसका नाप ले लिया है।

बताया जाता है कि 1674 में मराठा साम्राज्‍य में इस किले का निर्माण किया गया था। इसमें छत्रपति शिवाजी ने सहयोग किया था। यह 1818 में बनकर पूरा हुआ।

साभार- https://naidunia.jagran.com/ से मीडिया की दुनिया से
पुणे के दो छात्रों ने खोज निकाला गुमनाम पुराना किला
मीडिया डेस्क

पुणे। दो इतिहास प्रेमियों ने पुणे जिले के पास अंबाले गांव के पास एक गुमनाम किला खोज निकाला है। इस किले को धवलगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसका उल्‍लेख सबसे पहले 1940 में इतिहासकार कृष्‍ण वामन पुरंदरे ने अपनी संदर्भ पुस्‍तक में किया था। महाराष्‍ट्र सरकार की ओर से इसे कभी गजेटियर में शामिल नहीं किया गया।

पेशे से चार्टड अकाउंटेंट ओंकार ओक और पुरातत्‍व शोधकर्ता सचिन जोशी ने हाल ही में इस पुराने किले का भ्रमण किया था। उन्‍होंने स्‍थल का सर्वे भी किया। इसके बाद दोनों ने किले पर अपने रिसर्च पेपर भारत इतिहास संशोधक मंडल को प्रस्‍तुत किये। यह संस्‍थान इतिहास पर शोध करने वालों को संसाधन और प्रशिक्षण की सुविधा देता है। दोनों अब इस किले को राज्‍य सरकार द्वारा पहचान दिलाये जाने के कार्य में जुट गए हैं।

ओक ने बताया कि इस साल फरवरी में ट्रेकिंग करते समय उन्‍होंने इस किले को खोजा। उन्‍होंने जोशी को इसके फोटो दिखाये। दोनों ने मौके पर जाना तय किया। यहां आकर इन्‍होंने एक सर्वे किया। किले के पास इन्‍हें पुरानी ईंटें, चूडि़यां, बर्तन और लोहे का सामान मिला। आश्‍चर्य की बात है कि गांव वालों तक को इसका पता नहीं था। मंदिर के अलावा दोनों को एक टूटा दरवाजा, जलाशय, तोप, टॉवर आदि मिले हैं। दोनों ने इसका नाप ले लिया है।

बताया जाता है कि 1674 में मराठा साम्राज्‍य में इस किले का निर्माण किया गया था। इसमें छत्रपति शिवाजी ने सहयोग किया था। यह 1818 में बनकर पूरा हुआ।

साभार- https://naidunia.jagran.com/ से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार