Thursday, March 28, 2024
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राहुल गांधी जो न करे वही कम

कांग्रेसी साथियों से अपना एक सवाल है। सवाल राहुल गांधी को लेकर है। बुरा मत लगाइयेगा। सवाल यह कि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट पर जाकर राहुल गांधी मोदी से गले मिले थे या उनके गले पड़े थे ? ये राहुल गांधी ही हैं, जिन्होंने विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले लगकर मिलने को गले पड़ना बताया था। लेकिन पूरे देश ने ही नहीं बल्कि दुनिया भर ने देखा कि लोकसभा में राहुल गांधी अपनी सीट से उठे और प्रधानमंत्री की सीट के पास जाकर उनके गले लगे। मगर मोदी अपनी जगह से हिले तक नहीं। इसे क्या कहा जाए। अपना निष्कर्ष सिर्फ यही है कि राहुल गांधी ने गलबहियां करने ने की इस साल की सबसे ऐतिहासिक राजनीतिक तस्वीर हमें दे दी है, जो रह रहकर कभी यहां, तो कभी वहां, हर जगह देखने को मिलती रहेगी।

पता नहीं कांग्रेस में किसी ने इसकी पटकथा लिखी थी, या जो हुआ वह सीधे, सच्चे और सरल मन से हुआ। पर जो हुआ, राजनीति में आमतौर पर ऐसा नहीं होता। इसीलिए राहुल गांधी न केवल प्रधानमंत्री के गले लगकर खुद मजाक बन गए, बल्कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं को राहुल गांधी ‘बार’ जाना कहकर भी सभी की हंसी के पात्र के रूप में भी अवतरित हो गए। और असल में यह तो देश भूल ही गया था, सो उन्होंने खुद ही लगे हाथ यह भी याद दिला डाला कि वे पप्पू के नाम से जाने जाते हैं। और यह भी कि वे आंख में आंख डालकर बोलने की बात कहते कहते भी चूक गए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में घोषित रूप से पहली बार हुआ है कि कोई किसी के गले लगने का सम्मान जताने के बाद सार्वजनिक रूप से अपने साथी की तरफ आंख मारकर अपने किए को ही मजाक का रूप बख्श दे। इससे पहले राहुल ने इंग्लिश में बोलना शुरू किया तो उधर से आवाजें आई, हिंदी में बोलो। यह सब कुछ अनपेक्षित था, सोनिया गांधी को भी पता नहीं था कि उनका लाडला बेटा संसद में क्या गुल खिलानेवाला है। पता नहीं राहुल गांधी को यह सब करने की सलाह कौन देता है।

सच में देखे, तो मौका तो था सरकार पर प्रहार करने का। सरकार की कमियां उजागर करने का। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष यह मौका चूक गए। उल्टे अपनी बहुत सारी कमजोरियां देश के सामने रख गए। देश को लोगों ने ही नहीं बीजेपीवालों ने भी बीते छह महीनों से राहुल गांधी को पप्पू कहना लगभग छोड़ सा दिया है, लेकिन सदन में वे खुद ही कह गए कि आप मुझे कितना भी पप्पू कह लो, मैं आपसे नफरत नहीं प्रेम करूंगा। इसी तरह मोदी की विदेश यात्राओं पर तंज कसते हुए भी राहुल की उनकी जुबान फिसली और वे प्रधानमंत्री के विदेश जाने को ‘बार’ जाना कह गए। यहां ‘बार’ से उनका आशय बाहर से था, लेकिन ‘बार’ बोलने पर वे जितनी सफाई देते गए, सदन को हंसाते रहे। दरअसल, राहुल गांधी के अचानक मोदी से इस तरह से गले मिलने या गले पड़ने के अंदाज ने बीजेपी को कांग्रेस और उसके नए नवेले अध्यक्ष के खिलाफ पलटवार का जबरदस्त हथियार दे दिया है। सोलह सेकंड की इस गलबहियां तस्वीर ने राजनीतिक जगत में भूचाल सा ला दिया है।

किसी के लिखे को पढ़कर पहले भले ही मोदी पर तंज कसते हुए राहुल गांधी ने कभी कह दिया होगा कि पीएम मोदी विदेशी नेताओं से गले मिलते नहीं, बल्कि उनके गले पड़ते हैं? लेकिन अपना पक्का मानना है कि गले लगने और गले पड़ने इन दोनों के वास्तविक अर्थ की कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को निश्चित रूप से बिल्कुल समझ नहीं है। और जो लोग अपने इस तर्क से सहमत नहीं है, उनको लोकसभा में राहुल गांधी के भाषण का वो अंश भी याद करना चाहिए, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से कहा कि आप अपनी आंखें मेरी आंख में नहीं डाल सकते। राहुल गांधी को इस मुहावरे का मतलब ही पता नहीं है। वैसे, मुहावरा होता क्या है, राहुल गांधी को यह समझने के लिए संभवतया एक जनम और लेना पड़ेगा।

लेकिन सवाल यह है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर सबसे ज्यादा सालों तक राज करनेवाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्य़क्ष को आखिर यह हक कैसे हासिल हो सकता है कि वह उसकी पूरी की पूरी पार्टी को ही दुनिया भर में मजाक बनाकर रख दे। किसी भी कांग्रेसी में तो यह दम नहीं है कि वह राहुल गांधी से यह सवाल पूछे। लेकिन पूछना तो होगा। वरना, आनेवाले दिनों में यह भाई अपनी भावभंगिमाओं से कांग्रेस को किस मुकाम पर ले जाएगा, यह कोई नहीं जानता। क्या आप जानते हैं।


(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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