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शरदकालीन पर्यटन उत्सवों की रंगीन आभा से खिल उठता है राजस्थान

भारत ही नहीं विश्व पर्यटन में राजस्थान का अपना विशिष्ठ स्थान है। राज्य में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक, भौगोलिक,रूप से पर्यटन स्थलों की कमी नहीं हैं। अधिक से अधिक पर्यटक राजस्थान आ सकें इस उद्देश्य को ध्यान में रख कर राज्य के पर्यटन विभाग ने अनेक प्रमुख पर्यटन स्थलों पर पर्यटन उत्सवों और मेलों की शुरुआत की। पर्यटन विभाग द्वारा राज्य में 22 पर्यटन उत्सवों का आयोजन करता है। राजस्थान की रंग बिरंगी सांस्कृतिक परम्पराओं, लोक गीत, नृत्य और विविध कलाओं में राज्य में पर्यटन विकास में अद्भुत योगदान किया है। जेसे ही शरद ऋतु शुरू होती है इस उत्सवों की एक बड़ी श्रृंखला भी शुरू हो जाती है।

शरद ऋतु की शुरुआत में कोटा के प्रसिद्ध दशहरा मेले और बीकानेर के मोमासर उत्सव ने पर्यटकों का स्वागत किया। दीपावली पर कोई गांव और शहर ऐसा नहीं जहां परंपराएं स्वागत नहीं करती हो। गुलाबी शहर जयपुर की रोशनी सज्जा देख कर तो विदेशी पर्यटक भी अचंभित हो जाते हैं। पूरे शरद काल में मनाए जाने वाले पर्यटन उत्सवों की लंबी श्रृंखला है।

पुष्कर मेला( 1 – 8 नवंबर )
पर्यटक जो जैसलमेर में रेगिस्तान के घोरों को देखने की ख्वाइश रखते हैं वे पुष्कर में भी रेगिस्तान का भरपूर आनंद लेते सकते हैं। कार्तिक पूर्णिमा माह में पर्यटन विभाग द्वारा यहां आयोजित पुष्कर मेले में इसकी रंगत और भी मनभावन हो जाती है। करीब सप्ताह भर सप्ताह भर तक चलने वाला ऊंट और पशुधन मेला प्रति वर्ष अक्टूबर और नवंबर में पुष्कर में आयोजित किया जाता है।

यह विश्व का सबसे बड़ा ऊंट उत्सव है जो प्रमुख पर्यटन आकर्षण है। दिलचस्प ऊंट सौंदर्य प्रतियोगिता , सजे-धजे ऊंट का नृत्य, मटकीफोड़, रस्सा कसी, लम्बी मूंछें और दुल्हन की प्रतियोगिताएं पर्यटकों का खूब मनोरंजन करती हैं। रात्रि में लोक कलाकारों के सुर-ताल की जुगलबंदी और रंगबिरंगे नृत्यों से पर्यटक आनन्दित होते हैं। अनेक प्रदर्शनियां भी सजाई जाती हैं। परेड और दौड़ को हजारों देशी और विदेशी पर्यटक रुचिपूर्वक देखते हैं। स्मृतियों को संजोने के लिए पर्यटक हर तरफ फ़ोटो खीचते नज़र आते हैं।

प्रतिवर्ष यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हजारों हिन्दु लोग इस मेले में आते हैं और अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं। भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आम तौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इनमें बडी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है। यहां के ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बडी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शामिल होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। वर्तमान में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है।

पर्यटकों के लिए कार्तिक पूर्णिमा पर ऊँट उत्सव, अंतर्राष्ट्रीय हॉट एयर बैलून फेस्टिवल, सावित्री मन्दिर पर केबल राइड, वराह घाट पर पुष्कर आरती, रॉक क्लाइम्बिंग, रैपलिंग, क्वैड बाइकिंग, साइकिलिंग, सनसेट के साथ केमल सफारी, पूरी रात केमल सफारी, केमल सफारी के साथ लक्ज़री नाईट कैंपिंग, केमल कार्ट सफारी, जीप सफारी, हॉर्स राइडिंग, ज़िप्लिनिंग मनोरंजन के प्रमुख आकर्षण हैं। जयपुर से मात्र 150 किमी. एवं अजमेर से 11 किमी.दूरी पर पुष्कर सर्वश्रेस्ठ विकल्प है। पूरे वर्ष ही भारत एवं अन्य देशों के पर्यटक पुष्कर का डेजर्ट क्षेत्र देखने आते हैं और ग्रामीण केमल सफारी, नाईट कैंपिंग,लजीज व्यंजन औऱ लोक नृत्यों का लुत्फ उठाते हैं।पर्यटकों के लिए पुष्कर में 52 धार्मिक घाटों वाला सरोवर, विश्व का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर एवं कई मन्दिर भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय हॉट एयर बैलून भी प्रबल आकर्षण बन गया है।

चंद्रभागा मेला, झालरापाटन( 7 -9 नवंबर)
प्रत्येक वर्ष राजस्थान के झालावाड़ जिला मुख्यालय से मात्र 6 किमी.दूरी पर स्थित झालरापाटन में चंद्रभागा नदी के किनारे आयोजित चंद्रभागा पशु मेला मेला देश भर के हजारों आगंतुकों और प्रतिभागियों का स्वागत करता है। यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक के महीने (अक्टूबर और नवंबर) में आयोजित किया जाता है। इस अंचल के रीति –रिवाज -परंपराओं से यह मेला पर्यटकों , तीर्थयात्रियों और अन्वेषकों को आकर्षित करता है । मेले के दौरान चंद्रभागा नदी के तट पर सारे तीर्थयात्री इकट्ठा होते हैं और इस पर्व में हिस्सा लेते हैं। चंद्रभागा नदी के नाम पर होने वाला ये उत्सव राजस्थान में अति पावन माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर लोग नदी में डुबकी लगाने के लिए दूर- दूर से आते हैं, उनका ऐसा मानना है कि इससे उनकी शुद्धि होती है । यहां दूर – दूर से मवेशी गाय, भैंस, बैल ,ऊंट , घोड़े क्रय -विक्रय के लिए विभिन्न स्थानों से आते हैं। मेले में कई आध्यात्मिक और पारंपरिक गतिविधियां शामिल हैं। पर्यटन विभाग मेले के 3 दिनों में पारंपरिक दीपदान, शोभा यात्रा और विभिन्न प्रतियोगिताओं के साथ-साथ सांस्कृतिक संध्या जैसी अनूठी गतिविधियों का आयोजन करता है। मेले में मनोरंजन के अनेक साधन खास कर बच्चों का आकर्षण होते हैं।

बूंदी उत्सव की निराली शान (11- 13 नवंबर)
हाडौती के प्रमुख सांस्कृतिक एवं पर्यटन महोत्सव बूंदी उत्सव की छटा निराली और अविस्मरणीय होती है। पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से यह उत्सव प्रतिवर्ष प्राय: नवंबर माह में आयोजित किया जाता है। दो दिवसीय उत्सव में बूंदी के नागरिकों का उत्साह देखते ही बनता है। खास बात यह है की इस उत्सव में विदेशी पर्यटक भी न केवल अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराने लगे हैं वरन आयोजित कार्यक्रमों और विभिन्न प्रतियोगिताओं में पूरी रुचि से भाग लेते हैं। उत्सव की शुरुआत गणेश पूजा, झंडारोहण एवं अतिथि सत्कार के साथ गढ़ पैलेस में बूंदी से होती है। शोभायात्रा से पूर्व हमारे विदेशी पावनों का तिलक लगा कर माला और साफ पहना कर राजस्थानी परंपरा से स्वागत सम्मान किया जाता है।

गणपति पूजा और बूंदी उत्सव के ध्वजारोहण के साथ उत्सव का शुभारंभ किया जाता है। छोटी काशी की फिजा में उत्सवी रंग घुल जाता है और बूंदी लोक कलाओं के साथ झूम उठता है। जिला प्रशासन के अधिकारी और पर्यटन विकास समिति के सदस्य खासतौर पर मौजूद रहते हैं। उत्सव के शुभारंभ पर लोक कलाकारों गढ़ के द्वार पर लोक रंगों की बरसात करते हैं। कच्ची घोड़ी, चकरी और सहरिया जनजाति केकलाकारों द्वारा बहुरूपिया नृत्य की रंगत देखते ही बनती है। भपंग वादन, मशक बैंड और कई प्रकार के लोक कलाकार अपनी मोहक प्रस्तुति से लुभा लेते हैं। दो दिवसीय उत्सव में ऑन स्पॉट चित्रकला प्रतियोगिता, चित्रकला और फोटो प्रदर्शनी, क्राफ्ट मेला, डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शन,नवल सागर पर महा दीपदान, सुबह और शाम विभिन्न स्थानों पर राजस्थानी लोक कलाकारों की कला का प्रदर्शन,रस्सा-कस्सी, मूंछ प्रतियोगिता, साफा बंधन, पणिहारी दौड़ आदि के आयोजन किए जाते हैं। विदेशी पर्यटकों को कथ -बाफले के राजस्थानी व्यंजन परंपरागत अंदाज में परोस कर मान मनुहार से खिलना उत्सव का एक ओर खास आयोजन होता है। उत्सव का रंगारंग समापन लोक कलाकारों के कार्यक्रम और रंगबिरंगी आतिशबाजी प्रदर्शन के साथ होता है। उत्सव इतना मनोरंजन पूर्ण होता है कि पर्यटक इसकी यादें अपने दिल में लेकर जाते हैं।

मत्स्य महोत्सव – (25 – 26 नवंबर)
अलवर का मत्स्य उत्सव राजस्थान के सभी मेलों और त्योहारों में अग्रणी है। पारंपरिक मूल्यों ,रीति-रिवाजों की महिमा मनाता यह उत्सव रंगबिरंगी शोभायात्रा ,सांस्कृतिक प्रदर्शन, खेलकूद और कलात्मक प्रदर्शनियों के लिए प्रसिद्ध है। अलवर के शानदार महल ,किले , झीलें , शिकारगाह , पुरातात्विक स्थल और घने वन इस भव्य उत्सव का ताना बाना बुनते हैं। यह उत्सव अलग-अलग किलों और महलों में आयोजित किया जाता है जिससे इनका भी प्रचार – प्रसार हो सके। महोत्सव की शुरुआत श्री जगन्नाथ जी मंदिर में आरती के साथ होती है। आरती के बाद इको ट्रेकिंग, हॉट एयर बैलून राइड, सैंड आर्ट परफॉर्मेंस, पैडलबोट रेस, लोक संगीत के साथ-साथ नृत्य के कार्यक्रम प्रमुख आकर्षण होते हैं। इन खेलों के अलावा लोग मजेदार परंपरागत खेलों रस्साकशी, रुमाल झपट्टा और तीरंदाजी का भी खूब मजा लेते हैं। इनमें स्थानीय लोग के साथ-साथ पर्यटक भी बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। उत्सव के दूसरे दिन मेहंदी रंगोली प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता के साथ और भी अलग-अलग गतिविधियां देखने को मिलती हैं।एक हस्तशिल्प मेला भी लगाया जाता है जिसमें विभिन्न स्थानों के हस्तशिल्प उत्पाद का प्रदर्शन किया जाता हैं। प्राचीन समय में अलवर, भरतपुर और उप-शहरी जयपुर के कुछ क्षेत्र मत्स्य महाजनपद के अंतर्गत आते थे अतः इसके ऐतिहासिक महत्व के कारण इस उत्सव का नाम मत्स्य उत्सव रखा गया था। अलवर में ठहरने के लिए हर बजट के होटल उपलब्ध है।

निकटतम हवाई अड्डा 160 किमी.दूरी पर जयपुर में स्थित हैं। यहां से रेल , बस अथवा टैक्सी से अलवर पहुंच सकते हैं। अलवर रेलवे स्टेशन देश के कई शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहां दिल्ली से 170 किमी. दूरी पर स्थित ऐतिहासिक नगर है। यहां महल, किला, उद्यान, झील, सरिस्का बाघ अभयारण्य, पांडूपोल आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं।

कुम्भलगढ़ उत्सव ( 1 – 3 दिसंबर )
अरावली पर्वत श्रृंखला में, उदयपुर के उत्तर में स्थित कुम्भलगढ़ किले पर पर हर वर्ष पर्यटन विभाग द्वारा तीन दिवसीय कुम्भलगढ़ महोत्सव का रंगारंग आयोजन किया जाता है। यह उत्सव प्राय: नवंबर के आखिर या दिसंबर माह में आयोजित किया जाता है। इसके लिए राजस्थान के पर्यटन विभाग का वार्षिक उत्सव कलेंडर जरूर देख लेना चाहिए। इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य राजस्थान की संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देना है। दिन में विभिन्न लोक कलाकार अपनी परंपरागत लोककला का प्रस्तुतिकरण करते हैं, पगड़ी बांधने और मेहंदी लगाने जैसी प्रतियोगितायें संपन्न की जाती हैं। सूफी भँवर नृत्य जिसे ध्यान के रूप में माना जाता है। कई प्रसिद्ध नृत्य मंडली कार्यक्रम में प्रदर्शन करती हैं। राजस्थान के लोक नृत्यों में अंतर्राष्ट्रीय पहचान प्राप्त कालबेलिया नृत्य, भवाई नृत्य, महिला कलाकारों का चरी नृत्य और मयूर नृत्य आदि अपने कला कौशल से पर्यटकों को लुभा लेते हैं। राजस्थान के भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर द्वारा किया जाने वाला कठपुतली शो अत्यंत मनोरंजन पूर्ण होता है। रात को रोशनी, ध्वनि, रंग और नृत्य की प्रस्तुतियों से समां बंध जाता है।भरतनाट्यम. कुचिपुड़ी और मणिपुरी जेसे विख्यात भारतीय शास्त्रीय नृत्य समारोह की गरिमा को कई गुणा बढ़ा देते हैं। रात के शो के दौरान कुछ बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार भी प्रदर्शन करते हैं। समारोह में लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत का अनोखा संगम देखने को मिलता है। महोत्सव में हस्तशिल्प, जातीय पोशाक, हस्तनिर्मित आभूषण और कुछ स्मृति चिन्ह आदि की प्रदर्शनी भी देखते ही बनती है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होती है।

कला, संगीत और नृत्य के प्रति समर्पित अन्वेषकों को कुंभलगढ़ महोत्सव में जरुर शामिल होना चाहिए। इस महोत्सव का सबसे दिलचस्प हिस्सा, खूबसूरती से सजाया गया कुम्भलगढ़ किला होता है जो उत्सव जैसी अनुभूति कराता है।

कुंभलगढ़ महोत्सव महान राजा महाराणा कुंभा के सम्मान में मनाया जाता है, जो मेवाड़ के शासक थे स्वयं एक महान संगीतकार थे। वे संगीत के अलग-अलग पहलुओं को जानने के इच्छुक थे। वह एक प्रशिक्षित वीणा वादक थे और उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में संगीत मीमांसा, संगीत रत्नाकर और सुधा प्रभा शामिल हैं। उत्सव के बहाने यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल कुंभलगढ का किला अपनी अनेक विशेषताओं की वजह से महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है। पर्यटन कुंभलगढ अभयारण्य और जिप लाइनिंग की साहसिक गतिविधि का आनंद भी ले सकते हैं। कुंभलगढ में ठहरने के लिए हर बजट के होटल उपलब्ध हैं। नजदीकी हवाई अड्डा 115 किमी.की दूरी पर डबोक उदयपुर में स्थित है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई से नियमित उड़ानों के साथ उदयपुर जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन 84 किमी.दूरी पर फालना है जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डा एवं रेलवेबस्टेशन पहुंचने के बाद आप कुंभलगढ़ तक पहुँचने के लिए बस, ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं।

रणकपुर उत्सव ( 21 – 22 दिसंबर)
राजस्थान के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित उत्सवों में पाली जिले का रणकपुर उत्सव राजस्थान के लोकप्रिय उत्सवों में से एक है।यह उत्सव पर्यटकों को सांस्कृतिक लोक परम्परा के दर्शन के साथ – साथ एडवेंचर गितिविधियों का आकर्षण लिए हुए है।रणकपुर में आयोजित महोत्सव की रंगीन आभा देश-विदेश के कोनें-कोने से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। उत्सव के दौरान रोचक गतिविधिययां योगा और मेडिटेशन, जंगलों में नेचर वॉक और जीप सफारी, शाम के समय रणकपुर जैन मंदिर में दीपोत्सव और लोक कलाकारों का रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का पर्यटक पूरा आनंद लेते हैं। एक दिन में इतनी रोचक गरिविधियों के साथ अपना समय व्यतीत कर दूसरे दिन सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक- एडवेंचर स्पोर्ट्स (पैरा सेलिंग और हॉट एयर बेलुनिंग ) का लुफ्त उठाते हैं और पगड़ी बंधाई, रस्साकस्सी, हॉर्स शो, कैमल पोलो जेसे रोमांचक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। साथ ही राजस्थानी खानपान आने वाले पर्यटकों की मेजबानी करता है। रणकपुर महोत्सव ऐसा रोमांच है जो सदेव पर्यटकों की स्मृतियों में रहेगा, जिसे वे कभी भुला नहीं सकेंगे। यहां ठहरने और भोजन की उत्तम व्यवस्थाएं हैं। निकटतम एयरपोर्ट 68 किमी.दूरी पर उदयपुर के डबोक में है। निकटतम रेलवे स्टेशन 27 किमी.पर फालना में है। निकट तम बस स्टेशन सांडेराव रणकपुर से 46 किमी. दूर है। आप यहां से फालना का एक मात्र स्वर्ण जैन मंदिर देखने भी जा सकते हैं।

शरद उत्सव माउंट आबू उत्सव( 29 – 30 दिसंबर )
माउंट आबू में दिसंबर में आयोजित वार्षिक शीतकालीन समारोह राजस्थान की गौरवमयी संस्कृति और परंपराओं का परिचायक है। साथ ही यह एक जीवंत /जिन्दा संस्कृति , हस्तशिल्प वैभव और स्वादिष्ट व्यंजनों का अनुपम संगम देखने को मिलता है। तीन दिवसीय उत्सव में राज्य के हर कोने से शिल्पकार और कलाकार आ कर भाग लेते हैं। यह उत्सव अपनी रोचक और रोमांचक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है, जैसे कि पतंग उड़ाना, नौकायान प्रतियोगितायें, राक क्लाइंबिंग और कविता पाठ सत्र(सेशन ) आदि। एक भव्य शोभायात्रा उत्सव के आगाज का प्रतीक है। शाम को ‘दीपदान’ समारोह के साथ नक्की झील पर यह सम्पन्न होता है, जहां सैकड़ों प्रकाशमान दीपकों को सम्मान स्वरुप जल में छोड़ते हैं तो झील में झिलमिलाता उनका प्रतिबिंब रोमानी दृश्य की रचना करता है। आतिशबाजी के शानदार प्रदर्शन के साथ यह उत्सव सम्पन्न होता है। उत्सव के बहाने पर्यटकगुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब के फोक आर्टिस्ट धाप, घेर, घूमर और कालबेलियां जैसे नृत्यों का प्रदर्शन कर एक अमीट छाप बिखेरते प्रतीत होते हैं। 30 दिसम्बर की देर रात आतिशबाजी के शानदार प्रदर्शन के साथ यह उत्सव सम्पन्न होता है। उत्सव के साथ साथ पर्यटक अरावली की पहाड़ियों पर बसे इस ‘हिल स्टेशन’ पर देलवाड़ा का जैन मंदिर, अधर देवी का मंदिर, रघुनाथ मंदिर, अचलगढ़ फोर्ट, गुरु शिखर, नक्की झील एवं प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सहित कई स्थान देख सकते हैं।

नक्की झील से कुछ ही दूरी पर बहुत लोकप्रिय सनसेट पॉइंट है। सनसेट प्वांइट से डूबते हुए सूरज का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। दूर-दूर से पर्यटक इस नजारे को देखने के लिए आते हैं। इस समय यहां का प्राकृतिक वातावरण अत्यंत ही मनोरम होता है। माउंट आबू रेलवे स्टेशन है। नज़दीकी हवाईअड्डा उदयपुर में 175 किमी. की दूरी पर डबोक में स्थित है। राज्य के सभी प्रमुख शहरों से बस और रेल सेवा से जुड़ा हैं।

अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव, जयपुर ( 14-16 जनवरी)
मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर जयपुर के पोलो ग्राउंड में 14 से 16 जनवरी तक हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव पूरे उत्साह के साथ आयोजित किया जाता है। इस उत्सव में जयपुर वासी तो उमड़ते ही हैं विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। दिन भर उड़ने वाली रंग बिरंगी और कई प्रकार की आकर्षक पतंगों का समोहन रात को कई गुना बढ़ जाता है जब आसमान पतंगों के साथ आकर्षक आतिशबाजी से रोमानी दृश्य उत्पन्न करता है। पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित इस पतंग महोत्सव में राजस्थान के ख्यातनाम लोक कलाकार अपने गायन, वादन और नृत्य की सरगम से इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। दुनिया भर से सबसे अच्छे पतंग उड़ाने वाले अपने पतंग उड़ने वाले कौशल दिखाते हैं। पूरे आकाश में कई डिजाइनों और आकृतियों के पतंग के साथ रंगीन हो जाता है। पूरे विश्व से पर्यटक इसमें भाग लेने के लिए यहां आते हैं। पतंग दो वर्गों में उड़ाई जाती है, एक पतंग युद्ध और दूसरा फ्रेंडली पतंग फ्लाइंग सत्र है। उत्सव के अंतिम दिन उम्मेद भवन पैलेस के शाही परिसर में पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

ऊंट उत्सव, बीकानेर ( 14 – 15 जनवरी )
रेगिस्तान के जहाज को समर्पित ऊंट उत्सव बीकानेर (कैमल महोत्सव) एक वार्षिक उत्सव है । जनवरी माह में राजस्थान पर्यटन द्वारा आयोजित, उत्सव में ऊंट दौड़, ऊंट दुग्ध, फर काटने के आलेखन /डिजाइन, सर्वश्रेष्ठ नस्ल प्रतियोगिता, ऊंट कलाबाजी और ऊंट सौंदर्य प्रतियोगिताएं की जाती हैं। जूनागढ़ किले की लाल पृष्ठभूमि में सजे -धजे ऊंट रंगबिरंगा परिदृश्य बनाते हैं। जायकेदार खान–पान , स्मारिका-खरीदारी और छायाचित्रण (फोटोग्राफी ) के बहुत सारे अवसरों के साथ ये उत्सव अपना असर छोड़ता हैं। साथ ही घेरदार लहंगा पहने गोल घूमती लोक नर्तकियां , अग्नि नर्तक और शानदार आतिशबाजी शो (प्रदर्शन) जो मजबूत /दृढ़/अखंड रेगिस्तानी शहर के ऊपर रात के आसमां को रोशनी से भर देता है।

नागौर मेला ( 27 – 30 जनवरी )
नागौर में हर वर्ष आयोजित चार दिवसीय पशु मेला भारत में दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है जो राजस्थान की संगीत और नृत्य की समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित करता है। मेले में बड़े पैमाने पर यहां ऊंट, घोड़े, गाय, बैल बकरियां, भेड़ें बेची और खरीदी जाती हैं। नागौरी बैल प्रसिद्ध हैं। पशु व्यापार के अलावा, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। स्थानीय नर्तक अपने पारंपरिक परिधान में लोक नृत्य करते हैं। आगंतुकों को आकर्षित करने और उनकी भागीदारी जोड़ने के लिए कई रोचक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। रस्साकशी, ऊंट और बैल दौड़ और मुर्गों की लड़ाई जैसे मजेदार कार्यक्रम मेलें के आकर्षण होते हैं। बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों के आने से पर्यटन विभाग अलग से उनके आवास लिए अस्थाई गांव बसाता है। यहां लाल मिर्च का बाजार देखते ही बनता है।इस मेले को राजस्थान का प्रसिद्ध लोकदेवता के नाम पर रामदेव मेला भी कहा जाता है। वास्तव में यह मेला एक अद्भुत छटा लिए होता है और राज्य का ही नहीं भारत का प्रमुख पशु मेला है। नागौर बीकानेर और जोधपुर के मध्य मरुस्थलीय शहर है।

मरू उत्सव, जैसलमेर ( 3 – 5 फरवरी )
देश-दुनिया में विख्यात राजस्थान का चार दिवसीय मरु उत्सव प्रतिवर्ष फरवरी माह में विविध कार्यक्रमों के साथ पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित विश्व स्तरीय आयोजन है। पोकरण, सम के धोरों और जैसलमेर में आयोजित यह उत्सव आज विश्व भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। उत्सव को भव्य शोभायात्रा, लोक लहरियों की गूंज, विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं, मरु संस्कृति की विलक्षणताओं और परंपराओं, लोक कलाकारों और लोक गायन, वादन और नृत्यों का अनूठा मेल, श्रृंगारित ऊंटों का जुलूस,साफा बांघने, रस्साकसी, मल्लश्री,मटका दौड़, मेहंदी लगाना, मांडना, रंगोली आदि प्रतियोगिताएं, शिल्पमेला व्यापक और मनोरंजक स्वरूप प्रदान करते हैं। सजे-धजे ऊंटों पर सवार बीएसएफ के जांबाजों, बीएसएफ महिला टुकड़ी, बालिकाओं एवं महिलाओं की मंगल कलश यात्रा और विभिन्न झांकियों का आकर्षण,रास्ते भर नाच-गान करते हुए कलाकारों के विभिन्न समूहों ने कालबेलिया, अश्व, कच्छी घोड़ी, गैर आदि लोक नृत्यों से सजी शोभायात्रा उत्सव का प्रमुख आकर्षण होती है। अन्य आकर्षणों में कठपुतली, कलाबाज़ी, ऊँट दौड़, ऊँट पोलो, लोक नृत्य आदि भी शामिल हैं। इस दौरान पर्यटक सुनहरी रेत के धोरों से जुड़े एडवेंचर स्पोर्ट का भी खूब लुत्फ उठाते हैं। उत्सव के बहाने सोनार दुर्ग, कलात्मक हवेलियां, महल, मंदिरों, छतरियों आदि को देखने तथा गढ़सीसर झील और उसमें नौकायन का मजा लेते हैं। जैसलमेर रेल द्वारा देश के विभिन्न पर्यटक स्थलों से जुड़ा है।

बेणेश्वर मेला ( 1 – 5 फरवरी )
राज्य के डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा जिलों की सीमा पर डूंगरपुर से करीब 70 किमी दूर सोम, माही एवं जाखम तीन नदियों के संगम पर स्थित वेणेश्वर धाम विभिन्न संस्कृतियों का संगम स्थल राजस्थान का एक महत्वपूर्ण आस्था धाम है। वेणेश्वर धाम पर माघ की पूर्णिमा से लगने वाले जनजातियों के विशाल मेले में पहले दिन ही करीब 5 लाख श्रद्धालु अपने परिजानों के साथ सामूहिक स्नान कर देव दर्शन कर पूजा-अर्चना करते है। आबूदर्रा नामक स्थान पर लोग मृत परिजनों की मोक्ष की कामना कर पवित्र स्नान, मुण्डन, तर्पण, अस्थि विसर्जन आदि धार्मिक रस्में पूरी करते हैं। इस अवसर पर लगने वाले भव्य मेले में राजस्थान के साथ-साथ गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासी तथा विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। इस मेले को वांगड प्रयाग या वांगड वृन्दावन भी कहा जाता है और यह आदिवासियों का देश का सबसे बड़ा जमघट माना जाता है। यह मेला शैव शक्ति एवं वैष्णव देवताओं तथा त्रिदेवों का संगम होने से देवलोक सदृश्य लगता है। मेले के दौरान भगवान एवं महन्त की शोभा यात्रा मावजी की जन्मस्थली साबला के हरि मंदिर से मनोहारी दृश्यों के साथ निकाली जाती है। रात्रि में यहां बने मुक्ताकाशीय रंगमंच पर विभिन्न राज्यों के आदिवासी कलाकारों के नृत्य और संगीत की छंटा देखते ही बनती है। पूरे समय भजनों से वातावरण धार्मिक रहता है। परम्परागत खेलों की प्रतियोगिताएं आकर्षण का केन्द्र होती है। महन्त गोस्वामी अच्युतानंद एवं देश के अन्य संतों के सानिध्य में धार्मिक एवं सामाजिक चेतना जागृती के लिए धर्म सभाओं का आयोजन भी किया जाता है। इस स्थल को राजा बलि की यज्ञ स्थली तथा भविष्य वक्ता संत मावजी की लीला स्थली भी कहा जाता है। लोग मावजी को कृष्ण का अवतार मानकर श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं। मेले एवं रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन तथा सम्पूर्ण मेले की व्यवस्थाओं में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग, जिला प्रशासन, पर्यटन विभाग तथा पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कोलायत मेला – 2022
बीकानेर का कोलायत मेला स्थानीय लोगों के लिए अति महत्त्व रखता है जो वर्ष भर उत्सुकता से इसका इन्तजार करते हैं । पर्यटकों भी इसका आनंद उठाते हैं नवम्बर में लगने वाला ये मेला विशाल स्तर पर आयोजित किया जाता है। बीकानेर का कोलायत मेला स्थानीय लोगों के लिए अति महत्त्व रखता है जो वर्ष भर उत्सुकता से इसका इन्तजार करते हैं । पर्यटकों भी इसका आनंद उठाते हैं नवम्बर में लगने वाला ये मेला विशाल स्तर पर आयोजित किया जाता है । यह कपिल मुनि मेला नाम से भी लोकप्रिय है । धार्मिक महत्त्व के साथ धूमधाम भी इस मेले का आकर्षण है। बड़ी संख्या में भक्त पवित्र कोलायत झील में डुबकी लगाने के लिए मेले में आते हैं। मान्यता है कि इस पावन झील में डुबकी लगाने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

(लेखक राजस्थान जनसंपर्क के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और पुकातात्विक, पर्यटन व संस्कृति से जुड़े विषयों पर लिखते हैं)