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लक्ष्मण के अवतार रामानुजाचार्य की मूर्ति का अयोध्या में अनावरण

अम्माजी रामास्वामी मंदिर गोलाघाट निर्माेचन चौराहा अयोध्या में स्थित है। यह राम जन्मभूमि से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित दक्षिण भारत की शैली पर बने राधा कृष्ण मंदिर अम्मा जी मंदिर के रूप में जाना जाता है । यहां के पूर्व संत श्री योगी की मृत्यु के बाद भगवान ने उनका रख-रखाव की जिम्मेदारी ली। मंदिर और लोगों को भवन निर्माण के लिए निस्वार्थ भक्ति के रूप में अमाजी मंदिर के रूप में जाना जाता है। श्री रंगनाथ जी स्वामी और श्री राम की मूर्तियाँ यहाँ स्थापित हैं। सीता माता के साथ लक्ष्मण, भरतन चतुरगण, अंजनेय और गरुड़ श्री राम के साथ की मूर्तियां स्थापित हैं।

दक्षिण भारतीय शैली के बने अम्मा जी मंदिर का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है। 28 सितंबर को 5 दिवसीय समारोह में इसका शिलान्यास किया गया था। उत्तर प्रदेश के ख्यातिवान मुख्यमंत्री ने 28 सितंबर को रामानुजाचार्य की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की थी।रामानुजाचार्य की 1000 वीं जयंती पर रामनगरी अयोध्या में पहली बार 12 सितंबर 2022 को उनकी प्रतिमा की स्थापना हुआ है। यह प्रतिमा लगभग चार फीट लंबी है। अयोध्या के संतों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अयोध्या के प्रमुख चौराहे को रामानुजाचार्य के नाम पर रखने की मांग की थी। इस पर मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया था कि आने वाले वर्षों में वरिष्ठ साधु-संतों के नाम से अयोध्या में चौराहे बनाए जाएंगे।

अनावरण के मौके पर मुख्यमंत्री के साथ जगद्गुरु रामानुजाचार्य राघवाचार्य और जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्रीधराचार्य उपस्थित रहे। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ज्ञान की भूमि है। समय -समय पर भारत में आध्यात्मिक संतों का मार्गदर्शन मिला है। स्वामी रामानुजाचार्य ने समाज को दृष्टि दी थी। संतों का सानिध्य भारतवर्ष को हर कालखण्ड में मिला। संतों की इस परम्परा पर हमें गौरव की अनुभूति होती है। द्वैत-अद्वैत लक्ष्य पर पहुंचने के अलग-अलग मार्ग हैं। भारतीय मनीषा ने कभी नहीं कहा कि जो हम कह रहे हैं, वही धर्म है। महापुरुषों के द्वारा जो बताया गया, वही धर्म है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि संत लोक कल्याण के मार्ग पर चलने की हमें प्रेरणा देते हैं। जात-पात पूछे नहि कोई, हरि को भजे सो हरि को होई…। इस मार्ग से जब हम हटे तब विदेशी आक्रान्ताओं ने हमें कमजोर किया। हम सनातन धर्म को मजबूत कर एक भारत श्रेष्ठ भारत बनाने के साथ ही दुनिया को शांति का संदेश देंगे। कार्यक्रम के दौरान दक्षिण भारतीय संगीत की धुनें बजती रहीं।

श्री सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य रामानुजाचार्य का परिचय

श्रीपेरुमबुदुर तमिलनाडु में 1017 ई. में जन्मे लक्ष्मण के अवतार बचपन में गृहस्थ आश्रम त्यागकर उन्होंने कांची जाकर अपने गुरू यादव प्रकाश से वेदों की शिक्षा ली थी। रामानुजाचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे।रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध हैं. उन्होंने देशभर में घूम- घूमकर समानता और सामाजिक न्याय पर जोर दिया। रामानुजाचार्य ने भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया और उनके उपदेशों ने अन्य भक्ति विचारधाराओं को प्रेरित किया। उन्हें अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए प्रेरणा माना जाता है।

गुरु की इच्छानुसार रामानुज से तीन विशेष काम करने का संकल्प कराया गया था – ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की टीका लिखना। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम् के यतिराज नामक संन्यासी से सन्यास की दीक्षा ली थी। मैसूर के श्रीरंगम् से चलकर रामानुज शालिग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उसके बाद तो उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिये पूरे भारतवर्ष का ही भ्रमण किया।

मैसूर के श्रीरंगम से चलकर रामानुज शालग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। फिर उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया। सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करने वाले जगद्गुरु रामानुजाचार्य का भगवान राम के प्रति प्रगाढ़ स्नेह रहा है। मुगलों के शासनकाल में रामानुजाचार्य ने ही सनातन धर्म की रक्षा की थी। 120 वर्ष की लम्बी उम्र जीकर 1137 ई. में वे ब्रह्मलीन हो गए थे।