Friday, March 29, 2024
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रामायणः एक राजनेता का अध्यात्मिक चिंतन

टीवी पर प्रसारित हो रहे रमायण धारावाहिक को लाखों करोड़ों लोग देख रहे हैं। ये धारावाहिक लोगों को भावुक भी कर रहा है और साथ ही परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति हमें हमारे दायित्वों के प्रति भी सजग कर रहा है। हर कोई अपने-अपने ढंग से इसके हर दृश्य और हर संवाद की व्याख्या कर रहा है। लेकिन हमारे पाठक और मुंबई भाजपा के महामंत्री व कमलदीप फाउंडेशन के संस्थापक श्री अमरजीत मिश्र ने रामायण के हर प्रसंग को ज के घटनाक्रमों के साथ जोड़कर अद्भुत चिंतन प्रस्तुत किया है। उनकी इस अध्यात्मिक व यथार्थपरक सोच को हम क्रमवार प्रस्तुत कर रहे हैं, आशा है उनका ये चिंतन व प्रयोग पाठकों को रामायण के संदेश, उसके तत्त्वज्ञान और उसके मर्म को आज के दौर की स्थितियों के अनुसार समझने में सहायक सिध्द होगा।

हम उनका ये चिंतन उनके ही शब्दों में प्रस्तुत कर रहे हैं।

भगवान श्रीराम लंका विजय के लिए आज कूच कर दिए।

और कहा कि

मन में उत्साह व ह्रदय मे विश्वास से ही विजय प्राप्त होगा।

हम संकल्प लें

है दृढ़ यह निश्चय और विश्वास नव विहान का।

कोरोना विहीन हो धरा, संकल्प हिंदुस्तान का।

हमने देखा कि मदांध रावण समझाने पर अपने नाना को भी डाँट देता है। उधर हनुमानजी ने लंका जलाने के बाद माता सीता से अशोक वाटिका मे मिल कर उन्हे सभी कार्यों से अवगत कराया। खुश होकर सीता जी ने आशीष दिया कि हमेशा श्रीराम के लाड़ले रहो ।

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।

हे पुत्र! तुम अजर , अमर और गुणों के खजाने होंगे। श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें। ‘प्रभु कृपा करें’ ऐसा कानों से सुनते ही हनुमानजी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए।

फिर उन्होने सीताजी से उनकी निशानी माँगी ताकि भगवान को विश्वास हो कि वे सीताजी से मिले हैं।सीताजी ने अपनी निशानी चूड़ामणि उतार के दी।

उधर जब दक्षिण दिशा मे गए लोग आये तो भगवान श्रीराम के चेहरे पर जो खुशी दिखी उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

सबने बताया कि हनुमानजी सीता जी का दर्शन कर आये हैं।भगवान बहुत प्रसन्न हुए उन्होने सीताजी का बड़ी व्यग्रता से हाल चाल जानना चाहा।

सीता की सुधि लेकर लौटे हनुमान जी से जब रामजी ने पूछा कि सीता क्या जीवित हैैं ….तब हनुमान जी ने सुन्दर उतर दिया

नाम पाहरू दिवस-निशि, ध्यान तुम्हार कपाट!

(उनके प्राणो पर राम नाम का पहरा है और आपके ध्यान का दरवाजा लगा है)

लोचन निज पद जंत्रित, जाय प्राण केहि बात!

(उनकी आँखों में आपके चरणों का ताला लगा है, तो प्राण कैसे जा सकते है!हनुमानजी ने कहा कि वे राम नाम के उस घेरे में रह्ती हैं जैसे शिंप मे मोती रहता है।

राम जी ने पूछा के सीता जी कैसी है किस हाल में है….तब हनुमान जी ने कहा…

सीता के अति विपत्ति विशाला बिनहि कहे भली दिन दयाला!

सीता जी की विपत्ति बहुत बड़ी है लेकिन न कहने में ही भलाई है क्योंकि अगर में कहूँगा तो आपको और ज्यादा कष्ट होगा!

सीताजी के कष्ट का वर्णन करने के लिए गोश्वामी जी ने विपत्ति के आगे अति लगाया और उसकी तीव्रता को बताने के लिए विशाला का भी उल्लेख किया।

भगवान राम हनुमानजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं और हनुमानजी विनम्रता से भगवान के चरण में सिर रख देते हैं।भगवान उठाने की कोशिश करते पर महावीर नहीं उठते।भगवान शिव अपनी पत्नी उमा के साथ इस दृश्य को देख खुश होते हैं।

हमें एक चीज सीखनी चाहिये कि भगवान श्रीराम समर्थ थे पर उन्होने लंका से लौटे हनुमानजी से अपने सभी साथियों के समक्ष शत्रु पक्ष की किलेबंदी की जानकारी क्यों चाही ? इसलिए चाही ताकि शत्रु से लड़ते समय उसके खिलाफ ठीक से रणनीति की जा सके।अपने खेमे के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी जवाबदेही व भुमिका समझ में आये।

आज की कथा में भगवान किष्किन्धा से लंका की ओर कूच कर दिए।भगवान राम ने विजय की परिभाषा बताई कि

मन में उत्साह व ह्रदय मे विश्वास से ही विजय प्राप्त हो।

राम के लंका आने की सोच मात्र से लंका के लोग घबरा जाते हैं । अधीर मंदोदरी जब अनीति व अधर्म के भय से रावण को परिचित कराया। फिर भी अहंकारी रावण ध्यान नहीं दिया।

सीख –

यदि माता सीता ने अपने अति विपत्ति के काल में भी धैर्य धारण किया तो हमें भी उसी धैर्य का परिचय देना होगा। वे राम नाम के उस घेरे में रह्ती हैं जैसे शिंप मे मोती रहता है।

वैसे ही हमें भी अपने घर से बाहर नहीं निकलना है।कोरोना का जल्द नाश होगा और हम मुक्त आकाश में विचरण कर सकेंगे।

संकल्प लें-

है दृढ़ यह निश्चय और विश्वास नव विहान का।

कोरोना विहीन हो धरा, संकल्प हिंदुस्तान का।

रामायण का संदेश-

जो रावण ने सीता चुराई ना होती, तो हनुमत ने लंका जलाई न होती।

अहंकार व हठ का त्याग कर लोगों की बात को माने व घर रहें तो सुरक्षित रहेंगे।

रावण के प्रताप से मेघनाथ ने जब बन्दी हनुमानजी को दरबार मे प्रस्तुत किया। हनुमानजी को दरबार में अदृश्य रुप से ऋषियों देवताओं के दर्शन हुए, मुक्ति की आशा बंधी,उन्होने मन ही मन उन्हें प्रणाम किया।रावण ने पूछा कि अशोक वाटिका क्यूँ उजाड़ी? हनुमानजी बोले-भूखा था सो फल खा लिया। रात्रि मे वृक्ष विश्राम कर रहे थे,उन्हें पूछने की मंशा से झकझोरा तो वे उखड़ गए।रावण ने फिर पूछा कि राजकुमार अक्षकुमार को क्यूँ मारा? हनुमानजी ने कहा कि वे युद्ध करने आये थे।और युद्ध के लिए आये व्यक्ति को मारना ही चाहिये।रावण ने कहा कि तुम मेरी कीर्ति को नही जानते,हनुमानजी ने कहा कि जानता हूँ कि तुम बड़े पराक्रमी हो,चोरों की भांति सीता को हर लाये हो।रावण गुस्से से तमतमा उठा और उसकी जीभ काटने का आदेश दिया।रावण का भाई विभीषण ने नीति की दुहाई देकर कहा कि संदेश लेकर आये दूत को मारना,नीति विरुद्ध है।

हनुमानजी ने भी समझाया कि रावण तू अपनी प्रवृत्ति बदल,नहीं तो तेरे हंसते खेलते लंका में कोई पानी देने वाला भी शेष नही बचेगा।

सबने बहुत समझाया पर रावण नही माना और कहा कि वानर की पूंछ ही उसका आभूषण होते हैं।उसे अंग भंग कर दो।

पूंछहीन बानर तह्ं जाइहि ।तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।

जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई।


अर्थात जब बिना पूँछ का यह बंदर वहाँ (अपने स्वामी के पास) जाएगा, तब यह मूर्ख अपने मालिक को साथ ले आएगा। जिनकी इसने बहुत बड़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता (सामर्थ्य) तो देखूँ

और फिर अहंकार मे चूर रावण हनुमानजी के पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया।राक्षसगण जब हनुमानजी की पूँछ पर कपडा लपेट कर घी लगाने लगे तो उन्होने पूँछ बढानी शुरु की।बहुत तेल- घी लग गया । और फिर राक्षसो ने आग लगा दी।हनुमान जी रुप छोटा कर कूदने फांदने लगे।और पूरी लंका में आग लगा दी।

तुलसी बाबा ने बहुत सुंदर बात लिखी है-

साधु अवज्ञा कर फलु ऐसा,जरइ नगर अनाथ कर जैसा।

जारा नगरु निमिष एक माहीं,एक विभीषन कर गृह नाही।

अर्थात साधु के अपमान का यह फल है कि नगर, अनाथ की की तरह जल रहा है। हनुमान्‌जी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया।क्यूँ? क्यूंकि जब रावण ने हनुमानजी को सजा देने की बात की तो विभीषण ने नीति की बात की।नीति नियम से रहनेवाले की रक्षा ईश्वर करते हैं।

तब हनुमानजी महाराज ने उछल-कूद कर पूरी लंका मे आग लगा दी।सोने की लंका धू धू कर जलने लगी।रावण अपने राज भवन से जलती हुई लंका का दारुण दृश्य देख रहा होता है।मंदोदरी तब भी समझाती है कि हे प्राणनाथ जिसका दूत इतना तहस नहस कर सकता है तो उसके स्वामी के आने के बाद क्या हाल होगा? अविवेकी रावण नहीं मानता ।

सीख

विभीषण समेत अनेक मंत्रियो ने रावण को नीतिपरक बातें की पर रावण नहीं माना ।स्वयं हनुमानजी ने भगवान राम की प्रभुताई का उल्लेख किया तो रावण ने मजाक उडाया।रावण की पत्नी मंदोदरी ने भी समझाया पर रावने ने विषय की गंभीरता को समझा ही नहीं।इसलिए विपत्ति में फँसता गया।हमें आज जिस संकट से अवगत कराया गया है ,हमें भी हठी नहीं होना चाहिये।बल्कि इस गंभीरता को समझ के घर में ही रहना चाहिये।जो नीति नियम का पालन करेगा ,वही बचेगा ।

जो रावण ने सीता चुराई ना होती,तो हनुमत ने लंका जलाई न होती।

सावधान रहें-सूचनाओं का कड़ाई से पालन करें

राम को वनवासः आज के रामायण का ज्ञान

जिस राम को माँ कैकेयी अपने प्राणो से प्रिय मानती थी,उसके लिए राज्याभिषेक की जगह वनवास माँगने की जिद कर बैठी।कारण उन्होने अपनी दासी मंथरा की बात मान ली।प्रतिफल सर्वनाश ।

सावधान अपने मन की मंथरा को अपने विवेक पर हावी न होने देँ।घर पर ही रहें।मन की मंथरा की बात सुनकर घर के बाहर निकले तो वनवास भोगना पडेगा।

घर पर रहें,सुरक्षित रहें

राम का वनगमनः आज रात्रि में रामायण का संदेश

राजाराम को सन्यासी राम बनने की जब आज्ञा मिली,तब दशरथनंदन ने कहा कि वनवास से मुझे चार लाभ होंगे।

1. पिता के वचन पूरे होंगे तो उनके यश में वृद्धि होगी।

2. माँ कैकेयी की आज्ञा का पालन होगा।

3. छोटे भाई भरत का राज्याभिषेक होगा। 4,वनवास के दौरान मुझे संत महात्माओं का दुर्लभ दर्शन होगा। राम ने वनवास का आदेश मिलने पर उससे होनेवाले लाभ की सोचा,यही सकारात्मकता है।

लॉकडाउन पर तो हम घर पर हैं इसके दौरान चार लाभ हैं।

1. आत्म चिंतन का समय मिलेगा।

2. अपने से कमजोर लोगों की मदद कर अपने यश में वृद्धि करेंगे।

3. अपने परिवार को समय देकर एकता को मजबूत करेंगे।4, साफ सफाई कर घर को मकान से भवन बनाने की प्रक्रिया शुरु होगी।

लॉकडाउन को सजा नहीं,बल्कि उत्सव का कारक बनायेगे।

घर रहें,स्वस्थ रहें।

वन में राम का जीवन

कष्ट का समय चुनौतियों का सामना करने का साहस देता है। चक्रवर्ती राजा दशरथ के पुत्र राम व मिथिला नरेश जनक की पुत्री सीता को घास फूस पत्तों की सेज पर सोना पड़ा।सन्यासी राम ने मित्र निषाधराज के प्रेम को स्वीकार तो किया पर उसके राज श्रृंगेरपुर नहीं गए। क्यूँ? क्योंकि जो व्रत लिया था वह भंग होता।सो श्रीराम, सीता मैया ने वृक्ष के नीचे ही विश्राम किया।

सीख यह मिली कि हमें अपने व्रत का पालन करते समय किसी भी तरह की किंतु-परंतु का भाव मन में नहीं लाना चाहिये।वस्तुतः हम भी तो लॉकडाउन के दौरान घर में रहने के व्रत का पालन ही तो कर रहे हैं।हमें इस दौरान याद रखना है कि अपने मित्र निषाधराज के प्रेम का आदर तो करना है।पर उसके श्रुण्गेरपुर अर्थात किसी के घर नहीं जाना है।

लॉकडाउन का पालन कर अपने घर पर ही रहने के व्रत का पालन करें।

हम कल अपनी देहरी पर दीप जलाएंगे

दुनिया देखेगी, हम कोरोना को हराएंगे

पंचवटी में राम

आज भगवान का हमारे महाराष्ट्र में प्रवेश हुआ है ।वनवास के 13 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब वनवास के एक वर्ष ही शेष हैं फिर भी हमने देखा कि वहाँ अयोध्या में भी राजमहल में व्याकुलता बढी हुई है। माँ कौशल्या भी व्याकुल हो चुकी हैं। यहाँ गोदावरी के तट पर घूमते हुए माता सीता को एक जगह बहुत भा जाती है। वहीं पंचवटी में लक्ष्मण ने एक कुटिया बना दी ,भगवान पंचवटी में रहने लगे हैं।अपने वनवास के बाकी दिन यहीं बिताने का निर्णय लेते हैं।

वहां राक्षसी शूपूर्णखा ने रुप बदल कर राम लक्ष्मण को लुभाने की कोशिश की।लक्ष्मण ने लज्जा का परित्याग करने वाली स्त्री शूपूर्णखा की नाक काट दी और फिर शुरु हुआ रामायण में वनवास के असली हिस्से की शुरुवात। दरअसल राक्षसों के वध के लिए भगवान को वनवास हुआ था।बल प्राप्त हो जाने के बाद बुद्धि व विवेक का जिनके हरण हो जाये ,वही व्यक्ति राक्षस होता है।ऐसे विवेकहीन खर दूषण नाम के राक्षसों का वध स्वयं भगवान श्रीराम ने किया। उन्होंने मोहिनी अस्त्र चलाया तो शत्रु की सेना आपस मे ही युद्ध करने लगी। खर दूषण अत्यंत बलशाली थे,उनकी मौत की सूचना उसके भाई महाबली रावण तक पहुंची। रावण क्रुद्ध हो उठा।रामायण में रावण की उपस्थिति पहली बार यही हुई।रावण ऋषि पुलिस्त का वंशज, अत्यंत ज्ञानी,भगवान शिव का परम भक्त था लेकिन पथभ्रष्ट होने की वजह से रामायण का मुख्य खलनायक साबित हुआ।रामायण हमें जीवन पथ पर चलने, बढ़ने, पुष्पित-पल्लवित होने के साथ साथ दुःख सुख मे साहस बनाकर आचरण भी ठीक रखने की नसीहत देता है।

सीख मिली कि रावण, कुंभकर्ण, खरदूषण की बहन माया के वशीभूत हो, यदि हम किसी शूर्पणखा के मोह में न पड़ें और कर्तव्य पथ पर चलते रहें तो हर बाधा पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। दूसरा सबक नासिक के पंचवटी ने दिया कि सत्ता के नशे मे जो जितेन्द्र बनकर देश की एकता मे बाधा बनने की कोशिश करेंगे व अपने दायित्वों का ठीक से निर्वहन नहीं करेंगे, तो काल का चक्र उन्हे सत्ताच्युत करने में तनिक भी देर नहीं लगायेगा।

हम कल अपनी देहरी पर दीप जलाएंगे

दुनिया देखेगी, हम कोरोना को हराएंगे

पीएम मोदी के अनुरोध पर कल 5 अप्रैल की रात 9 बजे हम अपने घर की सभी लाईट बंद कर अपनी देहरी व बाल्कनी खिडकी पर दीया,मोमबत्ती,टॉर्च जलाकर दुनिया को दिखाएंगे कि हम 130 करोड लोग अकेले रहकर भी किस तरह देश के लिए एकजुट हैं।

सीता अपहरण

खर दूषण वध से आहत सूपूर्णखा अपने भाई लंका पति रावण के पास पहुंची।रावण से सारा किस्सा कह सुनाया कि कैसे दो सन्यासीयो ने उसका अपमान कर ने की मंशा से उसके नाक काट दिए।रावण ने राम को सबक सिखाने के लिए पंचवटी जाने का निश्चय किया तब विभीषण व मंदोदरी ने बहुत समझाया और नीति की दुहाई दी। रावण काल के वशीभूत कुछ भी समझने को तैयार नहीं हुआ। वह विमान से अपने मामा मारिच के पास गया। मायावी मामा मारीच बल और छ्ल में पारंगत था उसने भी रावण को समझाया कि सीता के हरण की कल्पना न करे।पर त्रिलोक विजयी रावण द्म्भी था सो उसने मारीच को आदेश दिया कि उसे माया से सोने का हिरण बनना है।

वह सीता की कुटिया के समक्ष उसे रिझाये और जब सीता उस पर रिझ जाये तो श्रीराम को दूर तक ले जाये। पहले तो मारीच तैयार नही हुआ। पर अन्त में रावण की जिद के आगे उसे यह करना पडा। सोने का मृग देख कर सीताजी मोहित हो उठी उन्होंने श्रीराम को बताया और राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि हिरण को पकड ले।लक्ष्मण के ज्ञान चक्षु जानते थे कि यह माया से रचा गया है। श्रीराम ने कहा कि यदि ये मायावी राक्षस है तो इसका अन्त भी जरुरी है।भगवान राम स्वयं हिरण के पीछे निकल पड़े और लक्ष्मण को ताकीद दी कि किसी भी परिस्थिति मे सीता की रक्षा करे। उधर हिरण रुपी मायावी मारीच को राम का बाण लगा कि उसने भगवान राम की आवाज में लक्ष्मण और सीता की गुहार लगाई।सीता व्याकुल हो उठी, लक्ष्मण राम की आवाज की दिशा में जाने को तैयार हुए।लक्ष्मण जानते थे कि त्रैलोक्य के स्वामी श्रीराम कभी संकट में नही पड सकते,फिर भी भाभी सीता के आदेश पर वे निकल पड़े। पर जाते जाते उन्होने एक रेखा बना दी।जो एक अदृश्य दीवार थी और सीताजी से कह भी दिया कि किसी भी स्थिति में वे इस रेखा को पार न करें और यह अदृश्य दीवार उनकी रक्षा करेगी ।योजना के मुताबिक संन्यासी वेश मे रावण ने सीताजी की कुटिया पर दस्तक दी।

रावण की माया के आगे सीताजी भूल गई कि ऐसी कोई मजबूत रेखा लखन लाल ने बनाई है और वे उसे पार कर गई।उसका दुःखद परिणाम हमने देखा सीता का ही हरण हो गया।तपस्वी के वेश में आए रावण के झांसे में आकर सीता ने लक्ष्मण की खींची हुई रेखा से बाहर पैर रखा ही था कि रावण उसका अपहरण कर ले गया। उस रेखा से भीतर रावण, सीता का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था तभी से आज तक ‘लक्ष्मण रेखा’ नामक उक्ति इस आशय से प्रयुक्त होती है कि किसी भी मामले में निश्चित हद को पार नहीं करना चाहिए, वरना नुकसान उठाना पड़ता है।

सीख

प्रधानमंत्री जी ने भी इसी लक्ष्मण रेखा का जिक्र अपने भाषण में किया था। कोरोना वायरस रुपी रावण से बचने का एक ही उपाय है कि हर आदमी अपनी चौखट की लक्ष्मण रेखा पार न करे।पीएम मोदी जब भी बोलते हैं मन से बोलते हैं क्योंकि उनके मन में प्रभु श्रीराम विराजते हैं।

जीतेगा हिंदुस्तान का राम

हारेगा कोरोना रुपी रावण

बढ़ेगा जन जन का विश्वास

जब देहरी पर होगा दीये का प्रकाश

5 अप्रैल की रात 9 बजे 9 मिनिट तक अपने घर की सभी लाईट बंद कर देँ और देहरी व बाल्कनी में दीप जलाएं।

सीता की खोज में निकले राम

जिस आस्था से माँ सीता ने हाथ में तिनका लिया तो दीवार बन गई।आस्था का दीप देहरी पर जलाओ तो विजय तुम्हारी होगी।

है अन्धेरी रात, पर दीया जलाना कब मना है।

दीप प्रज्वलन से घने अंधियारे से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा और तमाम आसुरी शक्तियों का शमन होगा।

हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।

श्रीरामचरित मानस में तुलसीदासजी लिखते हैं कि व्याकुल हो भगवान श्रीराम सीताजी को वन-वन ढूंढते फिर रहे हैं। वह पशु, पक्षियों से सीता के बारे में पूछते हैं। कहते हैं कि हे पक्षियो! हे पशुओ! हे भौंरों की पंक्तियों! तुमने कहीं मृगनयनी सीता को देखा है।विरह वेदना में व्यथित- द्रवित राम इतना दुःखी थे कि सब से सीताजी के बारे में पूछते हैं। इधर राम और लक्ष्मण वन-वन भटकते हैं। रावण से युद्ध में घायल हो जटायु अंतिम समय राम से मिलते हैं। सीताजी की जानकारी दे अपने प्राण त्याग देते हैं।भगवान राम गिद्धराज का अंतिम संस्कार करते हैं।

उधर रावण अशोक वाटिका में माँ सीता के पास जाता है।माँ जगतजननी जानकी अपनी रक्षा के लिए विश्वास का एक तृण उठा लेती हैं। और रावण लौट जाता है।जानते हैं क्यों? माँ सीता ने जो तृण उठाया था,वह विश्वास की मजबूत दीवार थी,भगवान राम के बल में जबर्दस्त आस्था का प्रकटीकरण था।

सीख –

विश्वास के कारण ही भगवान राम जिस पशु पक्षी से सीताजी का पता पूछा था,उन्हे गिद्धराज जटायु ने अन्त में बताया।सीताजी एक तिनका हाथ में उठा ली तो वह उनके रक्षा की दीवार बनी। प्रधानमंत्री जी ने आज रात 9 बजे घर की देहरी पर दीये की रोशनी का जो निवेदन किया है उसमें भी विजय का विश्वास ही है। परमपिता में विश्वास और उसकी अगवानी मे दीप प्रज्वलित कर कोरोना जैसी बीमारी के खिलाफ एकता का शंखनाद ही तो करेंगे। दीया जलाने व आराधना की शक्ति पर हिंदी के वरिष्ठ कवियों ने खूब लिखा है।

महाकवि निराला ने राम की शक्ति पूजा में लिखा है-

आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,

तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर

विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,

हे पुरुष -सिंह, तुम भी यह शक्तिकरो धारण

और फिर-

होगी जय ,होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन

मैथिली शरण गुप्त ने लिखा-

मानस भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती,

भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती

महादेवी जी ने लिखा-

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल,

प्रियतम का पथ आलोकित कर

बच्चन जी पंक्तियाँ- है अंधेरी रात, पर दीया जलाना कब मना है?

महाकवि निराला जी की कविता है-

“जग को ज्योतिर्मय कर दो”

दीप प्रज्वलन से घने अंधियारे से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा और तमाम आसुरी शक्तियों का शमन होगा।

आज करें एकता का प्रकटीकरण-अपने घर की देहरी पर जलाएं दीप

सुग्रीव से मित्रता

रामायण का एक ही संदेश- सबके एक ही राम

5 अप्रैल 2020 के रात्रि 9 बजे बना ऐतिहासिक क्षण

जब डगमगा रही थी दुनिया,तब जगमगा रहा था भारत

130 करोड़ लोगों ने हाँथ में दीप लेकर दिया संदेश-

मंगल भवन अमंगल हारी,द्रवहूँ सो दशरथ अजीर बिहारी

यह चौपाई, गोस्वामी तुलसी दास जैसे परम भक्त की राजा दसरथ से वह प्रेममयी ईर्ष्या है, जो सभी भक्तों के लिए श्रेयस्कर है । भगवान करें कि यह ईर्ष्या सभी को हो।

गोस्वामी तुलसी दास कहते हैं …. श्री राम, जो ‘अजिर बिहारी’ अर्थात निरंतर बिना थके, भक्तों के मन में रमते रहते हैं। उन श्री राम ने ‘द्रवहु सो दशरथ’ अर्थात राजा दशरथ के मन को, भक्ति से जिस तरह द्रवित अर्थात गला कर द्रव बना दिया, उसी तरह … श्री राम, कृपा कर, ‘मंगल भवन’ मेरा मन भी गला दें। और ‘अमंगल हारी’, अर्थात मन का जो भाग न गल सके या बार-बार याद में आ कर व्यथित करता रहे, उसका हरण कर लें।

भगवान माता सीता की खोज में निकले हैं।अशोक वन में सीताजी को राक्षसी महिलाएं परेशान करती हैं।पर भगवान की लीला से वहाँ भी त्रीजटा राक्षसी उनकि रक्षा करती है।

उधर भगवान पंपापुर पहुंचते हैं। सुग्रीव से मुलाकात होती है। इससे पहले सुग्रीव के दरबार में राम लक्ष्मण के आने के सम्भावित कारणों की चर्चा हुई।तय हुआ कि हनुमानजी महाराज को ब्राह्मण वेश मे भेजा जाये।हनुमानजी गए और प्रभु का नाम सुनते ही उनके चरणों में गिर पड़े।

हनुमान चालीसा की बीसवीं चौपाई में बताया है कि किस प्रकार दुर्गम काम में भी सफलता प्राप्त की जा सकती है।

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।

इसका अर्थ यह है कि- हे हनुमानजी! संसार में जितने कठिन कार्य हैं, वे सब आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं। संसार के जितने भी दुर्गम यानी मुश्किल काम हैं, वे सारे आपके अनुग्रह से पूरे हो जाते हैं। इस चौपाई में अनुग्रह शब्द लिखा है। अनु का मतलब बाद में और ग्रह का मतलब है पकड़ना। भक्त कहते हैं कि- भगवान, पहले हम आपके चरण पकड़ें और बाद में आप हमें पकड़ें। श्रीराम से अपनी पहली भेंट में हनुमानजी ने कहा था कि आप दोनों भाई मेरे कंधे पर बैठ जाइए। दोनों भाई बैठ गए थे। जैसे ही हनुमानजी खड़े हुए तो श्रीराम और लक्ष्मणजी गिरने लगे, तत्काल उन्होंने हनुमानजी का मस्तक पकड़ लिया। तब हनुमानजी ने श्रीराम से कहा- दुनिया आपको पकड़ने के लिए दौड़ती है और आज आपने मुझे पकड़ कर रखा है। जिसे आप पकड़ते हैं, उसके सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं, मुश्किल काम भी आसान हो जाते हैं। जब भी हमें कोई मुश्किल काम करना हो तो भगवान की भक्ति भी करते रहना चाहिए।

सीख –

कोरोना वायरस जिससे दुनिया के अलम्बरदार देश परेशान हैं त्राहिमाम कर रहे हैं। उनकी उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुल गई है। हजारों लाखों लोगों को इस वायरस ने ग्रस लिया है। तब हिंदुस्तान का प्रधानसेवक लोगों की सेवा के लिए राजनीति छोड़ संवाद का सेतु बनाने में रत है।लोगों से अनुरोध किया कि 5अप्रैल को रात 9 बजे 9 मिनिट के लिए अपने घर की देहरी पर आधुनिक प्रकाश संयंत्रों को बंद कर दीप प्रज्वलित करें।देश का 130 करोड़ जन मानस एक साथ दीप लेकर खडा हो जाता है।प्रार्थना में उठे हाँथ यही तो कह रहे थे- दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।

संकट ते हनुमान छुड़ावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।

कोरोना का अन्धेरा छंटेगा, स्वस्थ भारत का सूरज उगेगा, उत्साह-उमंग का कमल खिलेगा।

पंपापुर पहुँच कर राम ने सुग्रीव को और सुग्रीव को राम ने अपनी कथा और व्यथा बताई। तब राम ने सुग्रीव के दुख हरण के लिए बाली का वध करने का वचन दिया। दरअसल, सुग्रीव के भाई बाली ने सुग्रीव की पत्नी और संपत्ति हड़पकर उसको राज्य से बाहर धकेल दिया था। यही कारण था कि प्रभु श्रीराम ने सुग्रीव से अपने बड़े भाई बाली से युद्ध करने को कहा ।

सुग्रीव ने राम को वे आभूषण दिखाए जो माँ सीता ने हरण के समय आकाश मार्ग से फेंके थे।राम ने लक्ष्मण को दिखा कर पूछा कि तुम बताओ कि क्या ये कुंडल,बाजूबंद व अन्य आभूषण सीता के हैं? लक्ष्मण जी ने बहुत सुंदर उत्तर दिया।

नाहं जानामि केयूरे,

नाहं जानामि कुण्डले

नूपुरे त्वभिजानामि नित्यं पादाभिवन्दनात्।

अर्थात हे प्रभु मैं देवी सीता के न तो बाजूबंद को जानता हूँ, न उनके कुंडल पहचानता हूँ। मैं तो देवी सीता के पैरों की वंदना करता हूँ इसलिए मेरी दृष्टि हमेशा उनके चरणों में रहती है इसलिए मैं केवल उनके चरणों में रहने वाले पायलों को पहचानता हूँ।

लक्ष्मण की तरह भक्त भाई की कल्पना नही की जा सकती। जो अपने भाई व भाभी को भगवान मानते हैं। सिर्फ चरण में ही ध्यान लगाते हैं।

इससे पहले हमने देखा कि शबरी की भक्ति देख भगवान उन्हें नवधा भक्ति की व्याख्या सुनाते हैं। शबरी भीलनी थी,भगवान स्वयं उनके द्वार पर जाकर उसके जुठे बेर खाते हैं।जाति पांति के मिथ को तोडते हैं।जटायु के प्रति प्रेम व्यक्त कर पशु पक्षी के प्रति भी सहज अनुराग व्यक्त करते हैं।

सुग्रीव को साथ लाकर उन्होने वंचित को न्याय देने का आव्हन किया।महाबली रावण से लड़ने के लिए शोषित,पीडित वंचितों का सहयोग लिया।सुग्रीव का साथ देकर शरणागत की रक्षा का भी संदेश दिया।जामवन्त, सुग्रीव, अंगद आदि वानर भालुओं की टीम बनाई।हनुमान जी को गले लगाकर विश्वास दिलाया कि वे उन्हें लक्ष्मण की तरह प्रिय हैं क्योंकि भक्त उन्हें भाई की तरह प्रिय है। सुग्रीव से राम ने कहा था कि हे सुग्रीव, अन्याय के विरुद्ध मै लडूंगा और न्याय दिलाउंगा।और सबके अंधेरे जीवन में न्याय का सूर्य जरुर उदित होगा।

सीख –

आज भाजपा का 40वां स्थापना दिवस है। आज ही के दिन अन्याय के विरुद्ध राम भक्त अटलबिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि अन्धेरा छंटेगा,सूरज उगेगा,कमल खिलेगा। राम को जिस तरह विजय मिली उसी तरह कमल भी खिला।अर्थात पूरे मनोयोग से किये गए कार्य को एक दिन अवश्य सफलता मिलती है। हम पिछ्ले कई दिनों से अपने अपने घरो में हैं।इसीलिए हिंदुस्तान मे सबसे कम कोरोना वायरस का प्रसार हुआ है।कुछ दिन और रहे तो हम यह लड़ाई भी जीतेगे।

संकट ते हनुमान छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।

बालि वध

रामायण की सीख-संकट के समय विवेक नहीं खोना चाहिये।

नाशै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा

भगवान राम के कहने पर सुग्रीव बालि से लड़ने को तैयार हुए।सुग्रीव व बालि मे जबर्दस्त समानता थी। युद्ध के समय राम भ्रम में पड़ गए और बालि पर बाण नहीं चलाया। बालि ने सुग्रीव की जमकर पिटाई कर दी।सुग्रीव राम से नाराज हुए।तब राम ने अपनी विवशता बताई और फिर सुग्रीव के गले मे पहचान के लिए माला डाल दी। सुग्रीव फिर बालि को युद्ध के लिए ललकारे।बालि की पत्नी तारा ने उसे समझाया कि संकट के समय विवेक नहीं खोना चाहिये। बालि नहीं माना। युद्ध शुरु हुआ।और इसी दौरान श्रीराम ने छुपकर बाली पर तीर चला दिया और वह मारा गया। बाली वध के बाद सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने, अपने भाई बाली के पुत्र अंगद को युवराज बनाया ।

जब बालि श्रीराम के बाण से घायल होकर गिर पड़ा, तब बालि ने श्रीराम से कहा- ‘आप धर्म की रक्षा करते हैं तो मुझे इस प्रकार बाण क्यों मारा?’

कहा-

मैं बैरी, सुग्रीव पियारा, अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।

तब भगवान ने कहा

अनुज वधु भगिनी सुत नारी,सु नु सठ कन्या सम ए चारी।

इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई,ताहि बधे कछु पाप न होई।

इस प्रश्न के जवाब में श्रीराम ने कहा- ‘छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और पुत्री, ये सब समान होती हैं और जो व्यक्ति इन्हें बुरी नजर से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता है। बालि, तूने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी पर बुरी नजर रखी और सुग्रीव को मारना चाहा। इस पाप के कारण तुझे बाण मारा है।‘ इस जवाब से बालि संतुष्ट हो गया और श्रीराम से अपने किए पापों की क्षमा याचना की। इसके बाद बालि ने अगंद को श्रीराम की सेवा में सौंप दिया और प्राण त्याग दिए। श्रीराम ने सुग्रीव को राज्य सौंप दिया। भगवान राम ने किष्किन्धा पति सुग्रीव को शिक्षा दी कि राज चलाने के लिए हर व्यक्ति के हित का ध्यान रखना जरुरी है।जब वे सुग्रीव को यह शिक्षा दे रहे थे तब वहाँ सबके साथ साथ रामभक्त हनुमान भी थे। नाशै रोग हरै सब पीरा के संवाहक श्री हनुमान जी महाराज सुग्रीव के दरबार के प्रमुख लोगों में से एक हैं।

सीख

हनुमान जी महाराज कलियुग में सबसे तेज फल देनेवाले देवता माने जाते हैं।आज जिस संकट से दुनिया गुजर रही है,उससे उबारने की शक्ति भी उन्हीं में है।पर हमें बालि की पत्नी तारा की बात याद रखनी चाहिये कि संकट के समय विवेक नहीं खोना चाहिये।हमें घर मे रहने की जो हिदायत मिली है।उसका पालन करना चाहिये।

आज महावीर जयंती भी है।

सभी जीवों की रक्षा करना महावीर जी का मूल मंत्र है। यही कारण है कि पानी को भी छान कर पीने की बात कही जाती है। यह केवल जैन धर्मावलंबियों के लिए ही आदर्श मात्र नहीं है। बल्कि मानव जीव को मोक्ष की प्राप्ति तभी संभव है। जब वह धरती पर रहने वाले सभी जीवों की रक्षा करें।कोरोना महामारी के संकट के समय हमें स्वच्छता के साथ साथ घर में एकाकी जीवन जी कर सामाजिक एकता का नये सूत्र की प्रतिष्ठापना करनी है।

हमारे महावीर हनुमान देश से कुमति का नाश कर सुमति संपन्नता को सुनिश्चित करें यही प्रार्थना है ।

महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी

बालि और कोरोना को छिप कर ही हराया जा सकता है।

दो भाईयों की लड़ाई मे मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने छिप कर बालि को मारा तब बालि ने प्रश्न किया, मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कहा कि बालि तुम स्वयं जीवन भर अधर्म के रास्ते पर चलते रहे। तुमने सामान्य लौकिक बात का भी ध्यान नही रखा। अनिति पर चलने वाले व्यक्ति को मारने से कोई पाप नहीं होता।उन्होने राज धर्म की व्याख्या भी की।बालि की अन्तरआत्मा ने परमात्मा को पहचान कर प्राण त्याग दिया।इससे पहले बालि ने इन्द्र द्वारा प्राप्त माला सुग्रीव के गले मे डाल दी।

श्रीराम जी सुग्रीव को किष्किंधा भेजते हुए कहते हैं कि…

अंगद सहित करेहु तुम्ह राजू

जिसका आशय यह है कि राज्य संचालन में युवराज के अधिकार, उसके इच्छा का भी सम्मान करना।

अंगद को बालि ने बोध कराया-

रामायण में जब श्रीराम ने बालि को बाण मारा तो वह घायल होकर गिर पड़ा था। इस हालत में जब उसका पुत्र अंगद उसके पास आया तब बालि ने उसे ज्ञान की कुछ बातें बताई थीं। ये बातें आज भी हमें कई परेशानियों से बचा सकती हैं। …

मरते समय बालि ने अंगद से कहा-

देशकालोभजस्वाद्यक्षममाण: प्रियाप्रिये।

सुखदु:खसह: काले सुग्रीववशगो भव ।।

इस श्लोक में बालि ने अगंद को ज्ञान की तीन बातें बताई हैं…

1.देश काल और परिस्थितियों को समझो।

2. किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना चाहिए।

3. पसंद-नापसंद, सुख-दु:ख को सहन करना चाहिए और क्षमाभाव के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए। बालि ने अंगद से ये भी कहा कि इन बातों का ध्यान रखते हुए अब से काका सुग्रीव के साथ रहो। आज भी यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो बुरे समय से बचा जा सकता है। अच्छे-बुरे हालात में शांति और धैर्य के साथ काम करना चाहिए।

सीख

स्वयं भगवान राम को भी बालि का वध करते समय छिप कर प्रहार करना पड़ा । बालि और कोरोना भी एक जैसे ही हैं । छिप कर ही इन्हें मिटाया जा सकता है । सामने आने,संपर्क में आने से इनकी शक्ति दुगुनी हो जाती है। इस प्रवृत्ति को समूल नष्ट करने की आवश्यकता है। धीरज बनाए रखें।

बाण बली या भुज बली,महाबली कोई होय।

काल बली सबसे बली,या से बली न कोय।

सुग्रीव का राज्याभिषेक

काल (समय) से न टकरायें, आज का समय घर पर सुरक्षित रहने का है, बाहर निकल कर कोरोना से टकराने का नहीं है।

बालि वध के बाद भगवान से सुग्रीव ने राजा की जगह सन्यासी बनने की इच्छा जताई, तब राम जी ने कहा कि सन्यासी ही असली राजा हो सकता है।

वही आदर्श राजा है जो मन से संन्यासी ,तपस्वी हो,जिसका कोई अपना नहीं होगा,वही पूरी प्रजा को अपना मानेगा। आज संकट के समय हम भी ऐसे तपस्वी सेवक के स्नेह का अहसास कर रहे हैं।

राम की बात सुन सुग्रीव किष्किन्धा की कमान संभालने को तैयार हो गए। सुग्रीव के राज्याभिषेक मे लक्ष्मण जी जाते हैं।भगवान राम जी किष्किन्धा मे सुग्रीव के राज्याभिषेक मे नहीं जाते क्यूँ? क्यूंकि उन्होने व्रत ले रखा है 14 वर्ष के दौरान वे किसी भी नगर में नही जायेंगे। हमें भी अपने व्रत का पालन करना है।

उधर मिथिला की राजकुमारी व अयोध्या की सुकुमारी महारानी सीताजी लंका में अशोक वाटिका में कठोर कष्ट सह रही थी।नियति ने न जाने क्या लिखा था-

हर कोई है यहाँ बस निठुर नियति के हाथों का खिलौना।

कोई न जाने जीवन के किस मोड़ पर कब,क्या है होना।

चौमासा बीत गया । सुग्रीव राम से किये गए वायदे को भूल रास रंग में डूब गए।भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा कि राज वैभव में डूब कर अपने वायदे को भूल जाने वाले राजा कृतघ्न माने जाते हैं।लक्ष्मण सुग्रीव का पता लगाने निकल पड़े।

लेकिन जब श्रीराम आज्ञा से अत्यंत क्रुद्ध होकर लक्ष्मण जी किष्किंधा आए तो सुग्रीव के रक्षा में तारा आगे आ जाती है…

तारा” सहित जाइ हनुमाना। चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना।।

करि बिनती मंदिर लै आए

क्रोधित लक्ष्मण जब सुग्रीव के दरबार में पहुंच कर उन्हे उनके वचनों की याद दिलाई ,तब हनुमान जी ने स्थिति संभाली । सुग्रीव राम के पास आकर अपनी गलती मान आगे की तैयारी करते हैं।

सीख-जिस तरह अपने व्रत का पालन करने के लिए भगवान राम किष्किन्धा सुग्रीव के राज्याभिषेक में नहीं जाते। उसी तरह हमे भी घर में रहने के अपने व्रत का पालन करना चाहिये।

बाण बली या भुज बली,महाबली कोई होय।

काल बली सबसे बली,या से बली न कोय।

काल (समय) से न टकरायें, आज का समय घर पर सुरक्षित रहने का है,बाहर निकल कर कोरोना से टकराने का नहीं है।

सीता की खोज –

सीता अर्थात सत्य। उसी तरह इस कठिन समय में हमें भी घर में रह कर अपने भीतर की सीता अर्थात सत्य की खोज करनी चाहिये।

संकट कटै मिटे सब पीरा।

जो रहे अपने घर धरि धीरा।

सुग्रीव ने माँ सीता की खोज के लिए महाबली वानरों की अलग अलग टीम बनाई।चारों दिशाओं की जानकारी और आनेवाली बाधाओ की सूचना भी उन्होने दी।लक्ष्य था कि माता सीता व भगवान राम की जोडी का साक्षात दर्शन करेंगे । सभी वानर भगवान का दर्शन कर निकल पड़े।पर हनुमानजी महाराज विशेष आशीष लेने भगवान के पास गए।भगवान से सेवक के रुप में मान्यता चाही ।तब भगवान ने उन्हे कहा कि तुम सेवक नहीं, तुम मम प्रिय भरत सम भाई।

तुम मेरे सेवक नहीं, भरत की तरह भाई हो। उन्होने उन्हें अपनी मुद्रिका दी, ताकि माँ सीता भगवान की मुद्रिका हनुमानजी के हाथ मे देख कर उन्हें पहचान लें।इतने वानरों में सिर्फ हनुमानजी जी राम का अनुग्रह प्राप्त करने जाते हैं और सिर्फ हनुमानजी को ही श्रीराम ने विशेष आशीष दिया। इसलिए भगवान की कृपा चाहिये तो उनकी शरण में जाईये।भगवान का स्मरण करने वाला ही भगवान का विश्वासपात्र हो सकता है।

सीय की खोज मे निकल पड़े कपि सारे

रास्ते में गिद्धराज जटायु के भाई संपाती मिले।वानरो को अपनी गिद्ध दृष्टि से सम्पाती ने सीता जी का पता बता दिया।

उधर दक्षिण दिशा में गए अंगद,जामवंत ,नल,नील व महावीर हनुमान सब समुद्र के किनारे संपाती के समक्ष खड़े हो मन्त्रणा करते रहे। 400 कोस जाने में सबने अपनी असमर्थता व्यक्त की। ऐसे में जब सब चिंतित थे तब विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर हनुमान एक ओर खड़े थे। शंकर सुवन – केसरी नंदन की ओर जामवन्त ने रुख किया।तब जामवन्त ने हनुमान जी को उनकी शक्ति का बोध कराया और कहा कि हनुमान तुम ही उस ओर जाकर सीता माता की सही जानकारी ला सकते हो।

सीख

संसार मे असम्भव कुछ नहीं है ,व्यक्ति में साहस होना चाहिये।कार्य सिद्धि की उत्कंठा ही वानरों को सीताजी की खोज के लिए प्रेरणा दी।सीता अर्थात सत्य।पीछे मृत्यु का डर और आगे दुर्गम रास्ता था।पर वानर बढते गए आगे । उसी तरह इस कठिन समय में हमें भी अपने भीतर की सीता अर्थात सत्य की खोज करनी चाहिये।शर्त सिर्फ घर में रह कर हमें स्वच्छता का पालन ही करना है।

जग को संकट से मुक्ति दिलाने वाले श्री हनुमानजी की आज जयंती हैं।आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ। भगवान का सुमिरन करें ।ध्यान रहे-

संकट कटै मिटे सब पीरा।

जो रहे अपने घर धरि धीरा।

आज की रामायण का संदेश

हमें अपनी बुद्धि व विवेक से कोरोना रुपी सुरसा,लंकिनी व सिंहिका को अपने निकट नहीं आने देना है।

राम काज कीन्हे बिनु,मोहि कहाँ विश्राम।

इसे महज संयोग कहें या फिर ईश्वर की इच्छा कि आज हनुमान जन्मोत्सव मनाया जा रहा है और हम सुंदर कांड में प्रवेश कर रहे हैं।

हमने देखा कि जब सीताजी की खोज हेतु हनुमानजी सागर-तीर पर खड़े थे और सभी वानर वीर उस पार जाने का विचार कर रहे थे तब जामवन्त जी ने हनुमानजी को उत्साहित करने के लिए कहा : ‘‘हे हनुमान ! तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो । तुम बुद्धि, विवेक और विज्ञान की खान हो । जगत में ऐसा कौन-सा काम है जो तुमसे न हो सके ! श्रीरामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है ।’’

जामवन्त जी के वचन हनुमानजी के हृदय को बहुत अच्छे लगे । क्यों ? क्योंकि रामकाज को उत्साहित करने के लिए बोल रहे थे । जो कोई आपके उत्साह को तोड़ने की बात कहे, समझना कि ‘यह हमारा हितैषी नहीं है ।’ बात तो ऐसी करनी चाहिए कि जिससे सामनेवाले व्यक्ति के मन में साधन-भजन हेतु व अपने कर्तव्य को पूरा करने में और उत्साह बढ़े ।

का चुप साध रहे बलवाना बोध कराते ही हनुमान जी को अपने भीतर की शक्ति का अंदाजा लग गया।

को नही जानत है जग में प्रभु संकट मोचक नाम तिहारो

हिन्दू मान्यता अनुसार हनुमान जी की उपासना संकट, दुःख, तकलीफ से दूर करती हैं . कहते हैं बाल्यकाल में श्री हनुमान जी ने सूर्य देवता को फल समझ निगल लिया था फिर देवताओं ने उनसे प्रार्थना कर उनसे सूर्य को छोड़ने का आग्रह किया।

हनुमान जी को तीनो त्रिकाल स्वामियों से वरदान प्राप्त था। पवन देवता एवम अंजनी के पुत्र हनुमान ने ऐसी शरारतों से सभी लोगो को परेशान कर दिया था। उस वक्त इनकी शक्ति के दुरूपयोग पर अंकुश लगाने हेतु इन्हें श्राप दिया गया कि जब तक हनुमान जी को उनकी शक्ति याद नहीं दिलाई जायेगी तब तक उन्हें उसका भान नहीं होगा। इसलिए ही सीता मैया की खोज के समय जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्ति याद दिलाई थी जिसके बाद वे समुद्र पार जा कर सीता मैया की खबर लेने लंका की ओर गए।

समुद्र ने देखा कि रामजी के दूत हनुमानजी जा रहे हैं तो विचार करके मैनाक पर्वत को कहा : ‘‘तुम श्रमहारी बन जाओ, इनको थोड़ा विश्राम दो ।’’ ऐसे ही सेवक जब सेवा करता है तो मान-सम्मान, यश मिलता है, लोग आदर-सत्कार करते हैं पर सेवक को उसमें फँसना नहीं है, रुकना नहीं चाहिए । तब क्या करना चाहिए ? हनुमानजी उदाहरण प्रस्तुत करते हैं :समुद्र देवता ने मैनाक पर्वत को आदेश दिया कि हनुमान जी समुद्र पार करते समय कुछ देर के लिए पर्वत पर विश्राम करें, लेकिन-

हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।

हनुमानजी ने उसका बिल्कुल तिरस्कार नहीं किया, हाथ से छुआ अर्थात् अनादर नहीं किया।

राम काज कीन्हे बिनु,मोहि कहाँ विश्राम।

अर्थात् रामजी का कार्य पूर्ण किये बिना मेरे लिए विश्राम कहाँ !इसी तरह अपने साध्य को पाये बिना साधक को विश्राम वर्जित है।

रास्ते में अनेक लोगों ने हनुमान जी की राह में रोड़े अटकाए। राक्षसी सुरसा को परीक्षा लेने के लिए भेजा गया था चतुराई से हनुमानजी निकल आये।उसके बाद बुद्धि से सिंहीका राक्षसी से बचे, फिर लंकिनी लंका के द्वार पर मिली। सभी से बचते बचाते हनुमान जी लंका पहुंचे।जहाँ एक घर पर शंख चक्र देख कर घर में घुस गए तो वहां रावण का छोटा भाई विभीषण मिला।हनुमान-विभीषण के बीच जो संवाद हुआ,वह तो हर भक्त को अवश्य सुनना चाहिये।

आज हनुमानजी का जन्मोत्सव है और भगवान लक्ष्य सिद्धि की ओर बढ़े और तमाम बाधाओ को पार करते हुए लंका में अशोक वाटिका पहुंच गए,जहां सीता माता हैं।हनुमानजी ने देखा कि वहां रावण आता है तो माँ सीता अपनी रक्षा के लिए हाथ में तृण उठा लेती हैं।उनके पास भगवान राम के प्रति अदम्य अनुराग का जो विश्वास था ,वही उनकी शक्ति थी।

सीख

पूरी दुनिया देख रही है कि हम कोरोना को पराजित करते हुए आगे बढ रहे हैं।जब हम एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं तब ऐसे में हमारे धैर्य व बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए अनेक बाधाएं आयेंगी।पर हमें किसी भी हाल में अपने घर में रहने का व्रत पूरा करना है।हमें अपनी बुद्धि व विवेक से कोरोना रुपी सुरसा,लंकिनी व सिंहिका को अपने निकट नहीं आने देना है।जब तक पूरा हिंदुस्तान कोरोना विहीन नहीं होता तब तक हमे घर मे ही रह कर राम का काज करते रहना।तब तक कहिए-

राम काज कीन्हे बिनु,मोहि कहाँ विश्राम।

लंका दहन

जो रावण ने सीता चुराई ना होती,तो हनुमत ने लंका जलाई न होती।

अहंकार व हठ का त्याग कर लोगों की बात को माने व घर रहें तो सुरक्षित रहेंगे।

रावण के प्रताप से मेघनाथ ने जब बन्दी हनुमानजी को दरबार मे प्रस्तुत किया। हनुमानजी को दरबार में अदृश्य रुप से ऋषियों देवताओं के दर्शन हुए, मुक्ति की आशा बंधी,उन्होने मन ही मन उन्हें प्रणाम किया।रावण ने पूछा कि अशोक वाटिका क्यूँ उजाड़ी? हनुमानजी बोले-भूखा था सो फल खा लिया। रात्रि मे वृक्ष विश्राम कर रहे थे,उन्हें पूछने की मंशा से झकझोरा तो वे उखड़ गए।रावण ने फिर पूछा कि राजकुमार अक्षकुमार को क्यूँ मारा? हनुमानजी ने कहा कि वे युद्ध करने आये थे।और युद्ध के लिए आये व्यक्ति को मारना ही चाहिये।रावण ने कहा कि तुम मेरी कीर्ति को नही जानते,हनुमानजी ने कहा कि जानता हूँ कि तुम बड़े पराक्रमी हो,चोरों की भांति सीता को हर लाये हो।रावण गुस्से से तमतमा उठा और उसकी जीभ काटने का आदेश दिया।रावण का भाई विभीषण ने नीति की दुहाई देकर कहा कि संदेश लेकर आये दूत को मारना,नीति विरुद्ध है।

हनुमानजी ने भी समझाया कि रावण तू अपनी प्रवृत्ति बदल,नहीं तो तेरे हंसते खेलते लंका में कोई पानी देने वाला भी शेष नही बचेगा।

सबने बहुत समझाया पर रावण नही माना और कहा कि वानर की पूंछ ही उसका आभूषण होते हैं।उसे अंग भंग कर दो।

पूंछहीन बानर तह्ं जाइहि ।तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।

जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई।

अर्थात जब बिना पूँछ का यह बंदर वहाँ (अपने स्वामी के पास) जाएगा, तब यह मूर्ख अपने मालिक को साथ ले आएगा। जिनकी इसने बहुत बड़ाई की है, मैं जरा उनकी प्रभुता (सामर्थ्य) तो देखूँ

और फिर अहंकार मे चूर रावण हनुमानजी के पूंछ में आग लगाने का आदेश दे दिया।राक्षसगण जब हनुमानजी की पूँछ पर कपडा लपेट कर घी लगाने लगे तो उन्होने पूँछ बढानी शुरु की।बहुत तेल- घी लग गया। और फिर राक्षसो ने आग लगा दी।हनुमान जी रुप छोटा कर कूदने फांदने लगे।और पूरी लंका में आग लगा दी।

तुलसी बाबा ने बहुत सुंदर बात लिखी है-

साधु अवज्ञा कर फलु ऐसा,जरइ नगर अनाथ कर जैसा।

जारा नगरु निमिष एक माहीं,एक विभीषन कर गृह नाही।

अर्थात साधु के अपमान का यह फल है कि नगर, अनाथ की की तरह जल रहा है। हनुमान्‌जी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया।क्यूँ? क्यूंकि जब रावण ने हनुमानजी को सजा देने की बात की तो विभीषण ने नीति की बात की।नीति नियम से रहनेवाले की रक्षा ईश्वर करते हैं।

तब हनुमानजी महाराज ने उछल कूद कर पूरी लंका मे आग लगा दी।सोने की लंका धू धू कर जलने लगी।रावण अपने राज भवन से जलती हुई लंका का दारुण दृश्य देख रहा होता है।मंदोदरी तब भी समझाती है कि हे प्राणनाथ जिसका दूत इतना तहस नहस कर सकता है तो उसके स्वामी के आने के बाद क्या हाल होगा? अविवेकी रावण नहीं मानता ।

सीख

विभीषण समेत अनेक मंत्रियो ने रावण को नीतिपरक बातें की पर रावण नहीं माना ।स्वयं हनुमानजी ने भगवान राम की प्रभुताई का उल्लेख किया तो रावण ने मजाक उड़ाया। रावण की पत्नी मंदोदरी ने भी समझाया पर रावण ने विषय की गंभीरता को समझा ही नहीं। इसलिए विपत्ति में फँसता गया।हमें आज जिस संकट से अवगत कराया गया है ,हमें भी हठी नहीं होना चाहिये।बल्कि इस गंभीरता को समझ के घर में ही रहना चाहिये। जो नीति नियम का पालन करेगा, वही बचेगा ।


जो रावण ने सीता चुराई ना होती,तो हनुमत ने लंका जलाई न होती।

सावधान रहें-सूचनाओं का कड़ाई से पालन करें, घर में रहें सुरक्षित रहें

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एक निवेदन

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