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आशा की किरण

वह कौन है जो कर रहा है कोशिश
जाने की वहाँ जहाँ घनघोर अंधेरा है
दे रहा है दस्तक वह फिर भी
निरंतर बंद द्वार को
कोई तो खोले और लेले उसे
अपनी आग़ोश में
एहसास कराए सुरक्षा का

वह सोचती है
घनघोर अंधेरा सुरक्षित रखेगा उसे
आसमाँ में घिरे गिद्धों से
उनके ख़तरनाक पंजों से
जो नोचता है खसोटता है
मांस क्या
खून का एक कतरा तक नहीं छोड़ता ।
कोशिशों के बाद आख़िर
खुलता है वह द्वार
नज़र आती है रोशनी की चंद किरणें

जिसकी प्रतीक्षा थी उसे
कोशिश करती है पहचानने की
उन आशा की किरणों को
जो बचाएगा उसे अंधेरों से
पर दुविधा में है
अंधेरों से तो बच जाएगी वह किसी तरह
पर क्या उन किरणों से बच पाएगी ?
जिन पर है यक़ीं उसे ?

(लेखिका हिंदी, अंग्रेज़ी , मैथिली एवं तेलुगु भाषा में लिखती हैं। पुष्पक सहित्यिकी त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका की २०१८ से सम्पादक हैं।)