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मुक्तिबोध और राजनांदगांव का रिश्ता शब्द और अर्थ जैसा है – डॉ. चंद्रकुमार जैन

राजनांदगांव। दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक और शोध निर्देशक डॉ. चंद्रकुमार जैन ने मुक्तिबोध और उनकी कविता अँधेरे में के गहरे नाते की पड़ताल करते हुए राजनांदगांव की चर्चा की खुलकर की। लिहाज़ा, रविवार की सुबह त्रैमासिक वेबनार में लगातार मुक्तिबोध और राजनांदगांव की अनुगूंज सुनाई देती रही। याद रखना होगा कि मुक्तिबोध और राजनांदगांव का रिश्ता शब्द और अर्थ जैसा है। दोनों के जुदा होने का सवाल ही नहीं रह जाता है।

चर्चा के दौरान डॉ. जैन ने कहा कि मुक्तिबोध पर सितंबर उन्नीस सौ पैंसठ में कवि श्रीकांत वर्मा ने कहा था अप्रिय सत्य की रक्षा का काव्य रचने वाले कवि मुक्तिबोध को अपने जीवन में कोई लोकप्रियता नहीं मिली और आगे भी, कभी भी, शायद नहीं मिलेगी। परन्तु, कालांतर में श्रीकांत वर्मा की आशंका गलत साबित हुई और मुक्तिबोध निराला के बाद हिन्दी के सबसे बड़े कवि के तौर पर न केवल स्थापित हुए।

विमर्श में प्रभावी भागीदारी करते हुए डॉ.जैन ने कहा कि मुक्तिबोध की बहुचर्चित कविता अँधेरे में के ज़रिए अपने आस-पास पसरे अँधेरे के अनगिन सवालों की शिनाख्त करने वाले मुक्तिबोध की बेकली को समझना आज भी शेष है। लिहाज़ा, समय आ गया है कि इस बात की ईमानदार पड़ताल की जाए कि मुक्तिबोध की रचनाओं में संघर्ष दिखाई देता है वह उनका अपना संघर्ष है या फिर पूरे मध्य वर्ग का, समूची मानवता का, हमारे मौजूदा समय का भी संघर्ष है।

डॉ. जैन ने जोर देकर कहा कि मुक्तिबोध के रचना कर्म की परिधि और उसके केंद्र दोनों में हमारे आज के दौर के सवाल, उनके ज़वाब हासिल किए जा सकते हैं। वहीं, मुक्तिबोध की कविता जिस अंधेरे से रूबरू है, वह हाल के दौर में सच्चाई बनकर उभरा है। उसका विस्तार ही नहीं हुआ, वह सघन भी हुआ है। मुक्तिबोध ने मठ व गढ़ को तोड़ने की बात की है। इसलिए कि उन्होंने इन मठों व गढ़ों को बनते और इनके अन्दर पनपते खतरनाक भविष्य को देखा। कितना भीषण सच है कि हमने ईमानदारी, नैतिकता, आदर्श, भाईचारा सहित जो जीवन मूल्य निर्मित किये थे उन्हें ध्वस्त होते देखने में हमें कोई ऐतराज़ नहीं हैं।

मुक्तिबोध इस उजली दुनिया के पीछे फैले काले संसार व मनुष्य विरोधी चरित्र को बखूबी समझते थे। डॉ. जैन ने कहा कि छलना व लूटना, पीछे के दरवाज़े से कामयाबी के सारे इंतज़ाम करना मुक्तिबोध को स्वीकार नहीं था। लेकिन, आज का हमारा वक्त भी मूलतः लूट और झूठ की बुनियाद पर टिका है। यह अपनी लूट को छिपाने तथा उसे बदस्तूर जारी रखने के लिए झूठ की रचना करता है। लेकिन इसे तरक्की की मिसालें बनाकर पेश किया जाता है। डॉ. जैन ने स्थापना की कि ऐसे अनेक आज के सवाल हैं जिनका सही चेहरा दिखाने में मुक्तिबोध का रचना संसार पूरी तरह समर्थ है।