Thursday, April 25, 2024
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समावेशी विकास की प्रासंगिकता

विकास की वह अवधारणा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को धर्म ,जाति, लिंग ,समुदाय एवं रंग के आधार पर वरीयता न देकर उसको समाज का अभिन्न अंग मानकर विकास के अवयव को प्रदान किया जाए। 21वीं सदी में बैंकिंग ,शौचालय, एलपीजी सिलेंडर, नल से जल, बिजली कनेक्शन और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी बुनियादी व आवश्यक सुविधाएं सभी को प्राप्त हो या मूलभूत सुविधाएं सभी भारतीयों तक पहुंच रहे हैं ।सरकार का यह मौलिक कर्तव्य है कि व्यक्तियों का चयन जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र, आर्थिक स्थिति या राजनीतिक पसंद के आधार पर करने के बजाय प्रत्येक हकदार को योजनाओं का शत- प्रतिशत लाभ सबको मिल सके; योजनाओं के सैचुरेशन यानी शत – प्रतिशत लक्ष्य की तरफ बढ़ने पर फोकस/ केंद्रित कर रही है, इससे सभी भारतीयों की बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच सही तरीके सुनिश्चित हो रही है।

वर्तमान सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं का लाभ सभी व्यक्तियों तक पहुंचाने वाली लीकेज( रिसाव) को रोकने में सफलता प्राप्त किया है। सरकार के सरकारी प्रयासों व लोक कल्याणकारी उपायों और गरीबी उन्मूलन के प्रयासों पर दुनिया भर के वैश्विक संस्थानों ने भी संस्तुति किए है। 7 अप्रैल, 2022 के आईएमएफ (IMF)के शोध पत्र में वैश्विक स्तर से अत्यधिक गरीबी को उन्मूलन का श्रेय भारत को दिया जा रहा है। भारत सरकार ने विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के द्वारा देश में अनुसूचित जाति(SCs), अनुसूचित जनजाति(STs) और अन्य पिछड़े वर्ग(OBCs) जैसे उपेक्षित समूहों को सशक्त बनाया है। सामाजिक न्याय के प्रति दृष्टिकोण स्थाई सशक्तिकरण पर केंद्रित रहा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि हाशिए पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूलभूत समस्याओं का समाधान कर सकें।

सरकार के द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर तबका(EWS) को आरक्षण देकर उनको मुख्यधारा में सम्मिलित किया है; क्योंकि आर्थिक रूप से उपेक्षित व्यक्ति समाज में खुशहाली और खुशामद जीवन नहीं जी सकता है सरकार ने अपने संकल्पित और अथक प्रयासों से इन वर्गों को गुणात्मक जीवन प्रदान किया है ,इन तबकों के पाल्य अब अच्छे संस्थानों में शिक्षा, शोध, नवोन्मेष एवं सेवा में स्थान प्राप्त कर रहे हैं, जिससे इनके चेहरे पर संतुष्टि व खुशामद का भाव दिखाई दे रहा है।

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सुविधाओं को देने का मतलब यह कतई नहीं है कि दूसरे वंचित वर्गों की सुविधाओं सामाजिक संस्था, संस्तर व एवं खुशामद की स्थिति में कटौती किया जा रहा है ।सामाजिक सशक्तिकरण के प्रतीकों को मौलिक पहचान देकर सरकार ने व्यक्ति, समाज ,राज्य एवं राष्ट्र को ” स्व” का बोध कराया है. राष्ट्र निर्माण व व्यक्ति निर्माण में उनकी उपादेयता से इन समुदायों को आत्मीयता व गौरव महसूस किया हैं। देश व स्वतंत्रता आंदोलन में क्षेत्रीय स्तर पर योगदान देने के लिए बहादुर आदिवासी सेनानियों के लिए सरकार ने प्रत्येक वर्ष “15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस “के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस प्रकार के साहसिक, ऐतिहासिक एवं गौरवान्वित करने वाले निर्णय इन समुदायों को आत्मविश्वास ,आत्मीयता एवं स्व बोध का भाव उत्पन्न कर, इन प्रत्तयों का विकास काम करने के संकल्प को और मजबूत किया है।

(लेखक सहायक आचार्य व राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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