
धर्म और राजनीति आज की सबसे बड़ी समस्या है
जीवन को शान्ति और समाधान देने वाले बुनियादी साधन ही मनुष्य समाज की सबसे बड़ी चुनौती या समस्या बन जाये तो आज का मनुष्य क्या करें?यह आज के काल का यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर जो भी मनुष्य आज जीवित है उन्हें ही खोजना होगा। दुनिया भर में राजनीति और धर्म का जो स्वरूप बन चुका है वो आज मनुष्यों के लिए खुली चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। करीब सत्तर साल पहले समाजवादी नेता डाक्टर राममनोहर लोहिया ने धर्म और राजनीति पर विश्लेषण करते हुए कहा था “कि राजनीति अल्पकालीन धर्म है और धर्म दीर्धकालीन राजनीति है।” राजनीति और धर्म दोनों ही मनुष्य के सोच विचार और आचार व्यवहार को तेजस्वी, यशस्वी और पराक्रमी बनाने के बुनियादी साधन है। मनुष्य समाज की हर समस्या का समाधान निकालने का समाधानकारी मार्ग धर्म और राजनीति के पास सहजता से उपलब्ध है।
इस वस्तुस्थिति के बाद भी आज की दुनिया में राजनीति और धर्म का स्वरूप ऐसा कैसे हो गया कि इन दोनों धाराओं ने मनुष्य जीवन और मन को अशांति और अंतहीन तनाव में बदल दिया।आज की दुनिया की राजनीति में कभी कभी, विवाद इतने बढ़ जाते है कि कोई ,किसी की नहीं सुनता और अविवेकी, अंतहीन और नतीजा विहीन वाकयुद्ध छिड़ जाता है। धर्म में अशांति और संधर्ष का कोई स्थान नहीं है फिर भी दुनिया भर में छोटी बड़ी बसाहटों में भी धर्म के नाम पर नफरत, दंगा और हिंसा होती ही रहती हैं ।आध्यात्मिक अनुभूति का कहीं अता-पता नहीं है।
राजनीति याने लोगों को ताकतवर बनाने का अंतहीन सिलसिला। पर राजनीति का यह अर्थ पूरी तरह बदल कर ताकतवर लोगों की नागरिक विरोधी मनमानी में बदल गया है। राजनीति नागरिक चेतना का एक महत्वपूर्ण रास्ता है। जो इन दिनों नागरिकों को असहाय और याचक बनाने की दिशा में दिन दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है। यहां सवाल यह है कि दुनिया भर में राजनीति और धर्म की कमान नागरिकों के हाथ से फिसलकर केवल सत्तारुढ़ अर्थानुरागी राजनेताओं और तथाकथित या स्वयंभू अर्थ और चढ़ावा प्रेमी धर्मगुरुओं तक ही सिमटती जा रही है। वैचारिक राजनैतिक नेतृत्व और आध्यात्मिक दृष्टिवाले संत खरमौर पक्षी की तरह लुप्त प्रायः हो चुके हैं। राजनीति और धर्म का मूल नेतृत्व नागरिकों के पास सहजता से होना ही चाहिए लेकिन आज नागरिकों की भूमिका अंधे अनुयायियों या यंत्रवत कार्यकर्ताओं में बदल गयी हैं।
इस भूमिका परिवर्तन से राजनीति और धर्म का मूल स्वरूप ही बदल गया है। राजनीति और धर्म ,अर्थ के बावले साधन मात्र बन गये हैं। किसी भी देश समाज और समूह में होने वाली गड़बड़ी और अराजकता का मूल कारण प्रायः नागरिकों की उदासीनता, निष्क्रियता और राजनेताओं और धर्मगुरुओं केअंधानुकरण से निकली तात्कालिक उत्तेजना ही प्रायः होतीहै। आजकल दुनियाभर में जितने भी देश , समाज और समूह हैं वे सब कमोबेश राजनेताओं और धर्मगुरुओं के भरोसे है या उनकी कठपुतली की तरह हैं। इसी से दुनियाभर में नागरिकों और धर्मावलंबियों की दशा निष्क्रिय या उत्तेजित अविवेकी भीड़ की तरह हो गई है।
दुनिया के किसी भी देश के नागरिक स्वतंत्र चेतना के वाहक नहीं रहे। नागरिकों को राजनीति और धर्म के इस स्वरूप से बगावत करनी चाहिए पर दुनिया भर में प्रायः अधिकांश आबादी नागरिक के बजाय वैश्वीकरण के लाचार और बेबस दृष्टिहीन उपभोक्ताओं में बदलते जा रहे हैं। उदारीकरण और भूमंडलीकरण ने दुनिया के लोगों की नागरिक आजादी को समाप्त कर दिया है।अब दुनिया भर में राज्य सबसे दयनीय संस्थान बन गया हैऔर नागरिकत्व तो हवा में उड़ गया है। राष्ट्राध्यक्षों से ताकतवर तो भूमंडलीकरण के व्यापारिक प्रतिष्ठान होते जा रहे हैं। दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास जाकर अपने अपने देश को आर्थिक सहायता के नाम पर आर्थिक गुलाम बनाने का खुला निमंत्रण लेकर मारे मारे धूमते नज़र आते हैं।
दुनिया भर में राजनीति और धर्म अपने संकुचित स्वरूप से अपनी सार्वभौमिकता को अपने ही हाथों समाप्त करने में मदद करते नजर आ रहे हैं। विकास की अंधी और नागरिकत्व को नेस्तनाबूत करने वाली समझ ने विकास की मारक क्षमता को गहराई से आगे बढ़ाया है ।साथही नागरिकों की सर्वप्रभुता सम्पन्नता को लोकतांत्रिक गणराज्यों में भी इतिहास की बात बना दिया है।सारी दुनिया के नागरिक अपनी अपनी सोच समझदारी से आनन्ददायक जीवन सदियों से जीते आये थे उसे अंधी अर्थ प्रधान राजनीति और धर्मरक्षा के स्वयंभू कर्ताधर्ताओं ने स्थायी तनाव पूर्ण जीवन में पूरी तरह बदल दिया है । दुनिया भर के नागरिकों को अपनी स्वतंत्र चेतना और चिंतन के साथ जीते रहने की प्राकृतिक जीवन शैली , विकास की दौड़ में पिछड़ापन है , ऐसा अंधा विचार लोगों के अन्तर्मन में कूट-कूट कर भर दिया है।तभी तो दुनिया भर में राजनीति की पहली पसंद युद्ध और हिंसा के आधुनिकतम हथियार है और नागरिकों के स्वतंत्र विचार बुद्धि से खाने कमाने के स्वावलंबी औजार अजायबघर में जाते जा रहे हैं।
अनिल त्रिवेदी
स्वतंत्र लेखक और अभिभाषक
त्रिवेदी परिसर ३०४/२भोलाराम उस्ताद मार्ग
ग्राम पिपल्या राव
आगरा मुम्बई राजमार्ग इन्दौर (म.प्र.)
Email number [email protected]
mobile number 9329947486
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked (*)