Thursday, April 25, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवधर्म, अध्यात्म, आस्था, श्रध्दा, सेवा और रोमांच से भरपूर है उज्जैन...

धर्म, अध्यात्म, आस्था, श्रध्दा, सेवा और रोमांच से भरपूर है उज्जैन का सिंहस्थ

मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में अप्रैल-मई में होने वाले सिंहस्थ कुंभ में शाही स्नान और पेशवाई की तारीखें तय कर दी गई हैं। प्रथम शाही स्नान 22 अप्रैल, द्वितीय शाही स्नान नौ मई और तृतीय स्नान 21 मई को होगा।

पहले शाही स्नान में जहां कुछ अखाड़े अपने देशी-विदेशी अनुयायियों को साथ लेकर शाही स्नान के लिए पहुंचेंगें, तो कुछ परपंपराओं का निर्वहन करते नजर आएंगे। नागा साधुओं की टोली और शस्त्र प्रदर्शन विशेष आकर्षण का केन्द्र रहेगा, तपस्वियों के विभिन्न तप और योग क्रियाएं भी काफी प्रभावी होंगी। कुछ में लाखों की संख्या होगी। तो कुछ चंद हजार का काफिला लेकर शाही स्नान के लिए पहुंंचेंगे।

उज्जैन कुंभ में पहली दफा शामिल हो रहे किन्नर अखाड़े की पेशवाई में पहुंची लक्ष्मी आकर्षण का केंद्र तो हैं ही, लेकिन इससे इतर भी लक्ष्मी ढेरों कार्यों के लिए पहचानी जाती हैं। लक्ष्मी पिछले लम्बे समय से किन्नरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। सिंहस्थ में किन्नर अखाड़े की पेशवाई में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। लक्ष्मी ऊँट पर सवार होकर उज्जैन की सड़कों पर उतरी, तो पेशवाई देखने के लिए उमड़े लोग में भी उत्साह भर गया।

हाल ही में लक्ष्मी लैक्मे फैशन वीक में बतौर शो स्टॉपर शामिल होकर चर्चाएं बटोर चुकी हैं। भारत में संभवतः ऐसा पहला मौका था जब किसी ट्रांसजेंडर को लैक्मे जैसे प्रतिष्ठित फैशन वीक में शो स्टॉपर बनने का मौका मिला। लैक्मे के इस कदम ने कई टैबू तोड़े। लक्ष्मी सेलेब का दर्जा रखती हैं।

लक्ष्मी जल्द ‘उपेक्षा’ नाम से बन रही फिल्म के जरिए अपना बॉलीवुड डेब्यू कर रही हैं। इस फिल्म में कंट्रोवर्सी क्वीन राखी सावंत भी नजर आएंगी। बीते दिनों लक्ष्मी ‘हिजड़ों’को लेकर अपने नए बयान से भी ख़बरों में आई थी। लक्ष्मी का कहना है कि ‘हिजड़ा’ शब्द को सोसाइटी गाली के तौर पर देखती है और वो अपनी अपकमिंग फिल्म में इस बात को खत्म करेगी।

एक यज्ञ में डेढ़ करोड़ रु. के घी की आहुति दी जाएगी

यह होने वाले एक यज्ञ में ही करीबन तीन हजार किलो घी यानी 1.50 करोड़ रुपए के घी की आहुति दी जाएगी। यह यज्ञ 34 दिनों तक किया जाएगा। इस यज्ञ को करने के लिए सिंहस्थ क्षेत्र में ही 1 लाख 22 हजार वर्ग फीट के क्षेत्र में 1008 कुंड की यज्ञशाला बनाई गई है।

पायलट बाबा के शिष्य महंत स्वामी अरुणगिरी ने इस यज्ञ का संकल्प लिया है। महातांत्रिक अवधूत बाबा का कहना है कि यह यज्ञ विश्व में पर्यावरण सुधार और अच्छी बारिश के लिए किया जा रहा है। इस यज्ञ में करीबन 2 हजार यजमान और 1 हजार से ज्यादा पंडित शामिल होंगे।यह भी पढ़े:महाकुंभ की शान यह 13अखाड़े, कहीं बैन हैं महिला साध्वी तो कोई बच्चों तो बनाचे गैं नागाघी के अलावा इस यज्ञ में 400 टन लकड़ी, 40 टन हवन, 100 क्विंटल शकर, 100 क्विंटल जौ, 100 क्विंटल चावल, 10 क्विंटल कमल गट्टा और 1 क्विंटल जड़ी बूटी की आहुति दी जाएगी।

सिंहस्थ में कई भाषाओं में काम करेगा काल सेंटर

स्थानीय भाषा के लैंग्वेज विशेषज्ञ सिंहस्थ कॉल सेंटर में तीर्थयात्रियों के सवालों का जवाब देने के लिए सेवा में रहेंगे। इसके साथ-साथ रूसी, फ्रेंच, जर्मन और अंग्रेजी भाषा के विशेषज्ञ भी कॉल सेंटर में मौजूद होंगे।
महाकुंभ की कोई भी जानकारी पाने के लिए तीर्थयात्रियों को 1100 डायल करना होगा। मराठी, बंगाली, ओरिया, तमिल, तेलुगु, मलयालम, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती और अन्य भाषाओं के लैंग्वेज विशेषज्ञ कॉल सेंटर पर सिंहस्थ महाकुंभ से जुड़े सवालों के लिए तीर्थयात्रियों की मदद करने के लिए तैयार हैं।

इसके साथ-साथ एसएफए ने 10,000 से ज्यादा अधिकतर पूछे जाने वाले सवालों की प्रश्नावली तैयार की है। यह प्रश्नावली सिंहस्थ के इतिहास, शहर के प्राचीन साहित्य और सेवाओं और व्यवस्थाओं के आधार पर तैयार की गई है।

इसके अलावा एसएफए ने सिंहस्थ की वेबसाइट पर उपर्युक्त सेवाओं की जानकारी रूसी भाषा में ट्रांस्लेट की है। रूसी भाषा में एक किताब भी रिलीज़ की गई है जो कि रूसी तीर्थयात्रियों के बीच वितरित की जाएगी। विभिन्न राज्यों से नेहरू युवा केंद्र के सदस्य इस कॉल सेंटर में काम करेंगे।

अघोगियों की निगाहें लावारिस शवों पर

सिंहस्थ-2016 में एक अजब चुनौती ने प्रशासन की पेशानी पर बल पैदा कर दिए हैं। चुनौती है सिंहस्थ के दौरान लावारिस शवों को अघोरी तांत्रिकों से बचाकर सुरक्षित दाह संस्कार करने की। दरअसल सिंहस्थ के दौरान सिद्धि प्राप्ति के कई प्रबल योग आ रहे हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में यहां आने वाले अघोरी तांत्रिकों की नजर लावारिस शवों पर होगी।

अघोरी तंत्र क्रिया में शवों का प्रयोग करते हैं, कुछ तो उनका मांस भी खाते हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए कलेक्टर कवींद्र कियावत ने सीएमएचओ डॉ.एनके त्रिवेदी के नेतृत्व में एक सेल का गठन किया है, ताकि कोई भी तांत्रिक लावारिस शवों का दुरुपयोग ना कर सके।

इसके लिए आधा दर्जन से अधिक शव वाहन एवं दर्जनभर कर्मचारी, पुलिस व स्काउट गाइड की मदद से नजर रखी जाएगी। प्रशासन का मत है कि तांत्रिकों के इस कृत्य से सिंहस्थ के माहौल में सनसनी फैल सकती है। डॉ.त्रिवेदी ने बताया कि लावारिस शवों का पुलिस अभिरक्षा में दाह संस्कार करवाया जाएगा।

अब तक 12 हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके अनिल डागर ने बताया कि पिछले सिंहस्थ में लगभग 40 लावारिस शव मिले थे। फिलहाल उज्जैन में प्रतिदिन 4-5 शव लावारिस मिलते हैं। सिंहस्थ में 150-200 लावारिस शव मिलने की आशंका है।

सिद्धि प्राप्ति के कई योग
सिंहस्थ के दौरान सिद्धि प्राप्ति के कई प्रबल योग बन रहे हैं। इस दौरान तांत्रिक ओखलेश्वर और चक्रतीर्थ श्मशानों में प्रमुख रूप से शव साधना करते हैं। ये दोनों श्मशान घाट दक्षिण दिशा में हैं, साथ ही राजाधिराज महाकाल की सीधी दृष्टि यहां पड़ती है। मान्यता है कि यहां दाह संस्कार करने पर मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भीष्म पितामह का दाह संस्कार कृष्ण ने चक्रतीर्थ पर ही किया था। तांत्रिक प्रो.अरविंदचंद्र तिवारी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दौरान मृतात्माएं वहां मंडराती हैं। उन्हें वश में करने के लिए ही उक्त साधना की जाती है।

महिला नागा साधु की अलग दुनिया
महिला नागा साधु की अलग दुनिया है। इन महिला नागा सन्यासियों के शिविर में कोई भी आम व्यक्ति बिना इनकी इजाजत के प्रवेश नहीं कर सकता है। ये सन्‍यासी भगवान दत्तात्रेय की मां अनुसुइया को ईष्ट मानकर आराधना करती हैं।

वर्तमान में कई अखाड़ों में महिलाओं को भी नागा साधु की दीक्षा दी जाती है। इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा होती जा रही है। वैसे तो महिला और पुरुष नागा साधुओं के नियम कायदे समान ही हैं। लेकिन फर्क बस इतना है कि महिला नागा साधु कुंभ स्नान के दौरान नग्न अवस्था में न रहकर गेरुआ या पीला वस्त्र लपेटे रहती हैं।

पढ़ें:श्री हरि के रक्त से उत्पन्न हुई है शिप्रा

महिलाओं से ज्यादा नागा साधुओं का श्रृंगार: नागाओं के सत्रह श्रृंगार के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रूद्राक्ष की माला, 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।

unnamed (61)
आईआईटी कानपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद संपन्न् परिवार का एक युवक साधु बन गया। सुनकर भले हैरानी हो मगर ये सच है। नाम है शिवरामदास, जिन्होंने पिता की इच्छा से 1982 में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। डिग्री लेकर कुछ साल सेना में नौकरी की। दुनियादारी में मन नहीं लगा तो आत्म शांति के लिए श्रीमहंत बलदेवदास महाराज से गुरू दक्षिण लेकर 18 साल तेज धूप में धुनी रमाई और साधु बन गए।

शिवरामदास महात्यागी कैम्प के सबसे ज्यादा शिक्षित साधु बताए जाते हैं। वे महाकुंभ सिंहस्थ में विश्व कल्याण की कामना से नर्मदा-शिप्रा में स्नान करने आए हैं और सिद्धवट क्षेत्र में शिप्रा किनारे महात्यागी आश्रम में अपना पड़ाव डाले हैं। उनका मानना है कि जीवन को मर्यादित रहकर जिया जाए तो चरित्र बनेगा और अच्छा चरित्र जीवन में आनंद के रस घोलेगा।

एडमिशन के लिए अब बढ़ी प्रतिस्पर्धा
काशी में जन्मे महात्यागी शिवरामदास अब भी तकनीक और देश-दुनिया की खबरों का अच्छी जानकारी रखते हैं। वे कहते हैं कि अब आईआईटी में एडमिशन के लिए प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है। पहले अपेक्षाकृत आसानी से इंजीनियरिंग हो जाया करती थी।

unnamed (62)
किशोरावस्था में ही वैराग्य जागा और संन्यास का मन बना लिया। मगर घर के लोगों ने ताना दिया। कहा, लोग भगोड़ा कहेंगे। इसलिए पहले संसार में खुद को साबित करने की ठानी और कड़ी मेहनत कर आईएएस परीक्षा पास की। जैसे ही यह उद्देश्य पूरा हुआ अफसरी करने की बजाए संसार छोड़ संन्यास के पथ पर चल पड़े।

ये हैं महामंडलेश्वर स्वामी ज्योति गिरी महाराज (महेंद्र प्रताप सिंह)। स्वामीजी बताते हैं, जब 10वीं क्लास के विद्यार्थी थे तब उनके मन में संन्यास लेने का विचार आया था। घर में जब इसका जिक्र किया तो सभी लोगों ने विरोध जताते हुए उन्हें पलायनवादी करार दिया।

ज्योति गिरी ने परिजनों की बात को नकारते हुए परीक्षा पास करने का विश्वास दिलाया। गणित के छात्र रहे स्वामी ने देश की सर्वोच्च परीक्षा को पास करने के बाद संन्यास ग्रहण कर लिया। हरियाणा कैडर से आईएएस चुने गए महेंद्र प्रताप सिंह ने 1998 में हरिद्वार में स्वामी परमेश्वर गिरी से संन्यास दीक्षा ग्रहण कर ली।

स्वामी ज्योति गिरी आश्रम में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को मैथ्स की निशुल्क कोचिंग देते हैं। यही नहीं स्वामीजी उनकी पढ़ाई का शेष खर्च भी उठाते हैं। स्वामी ने बताया कि उनके आश्रम से प्राइवेट कंपनियों में 130 और छह बच्चे आईएएस सिलेक्ट हो चुके हैं। पिछले साल चार बच्चे यूपीएससी की मेंस परीक्षा में सफल हुए। रेवाड़ी की एक लड़की ने आश्रम में रहकर पढ़ाई की, वह आज जबलपुर (मध्यप्रदेश) में एसडीएम है।

स्वामी ने बताया कि गायों की सेवा के जुनून को देख परिचितों ने मुझे पागल तक कहा है। हाईवे पर घायल गायों को उठाकर उनका इलाज और सर्जरी की जाती है। पिछले दस सालों में दो हजार से अधिक गायों का इलाज कराया गया है। आश्रम में 700 सौ से अधिक गायों का इलाज चल रहा है। उन्होंने बताया कि हाईवे पर घायल मिली गायों के पैर कटे थे, जिनका विशेषज्ञ डाक्टर और संत देखभाल के साथ इलाज कर रहे हैं। अपाहिज गाय की सेवा करना मेरा जुनून है। उन्होंने बताया कि आश्रम में बीमार साधुओं का इलाज भी किया जाता है।

स्वामी ज्योति ने बताया कि धार्मिक विचारधारा के लोग जब नौकरी में आएंगे तो समाज का विकास होगा। हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए आश्रम में धूम्रपान वर्जित है। जूना अखाड़े से ताल्लुकात रखने वाले ज्योति आश्रम में आने वाले साधुओं को नशे का सेवन न करने का संकल्प दिलाते हैं। उन्होंने बताया कि अखाड़े के रमता पंच ने इसका विरोध भी किया।-

कुंभ में हिंसा का इतिहास

मल्ल युद्ध का मूलसंतों के खूनी संघर्ष की सबसे बड़ी घटना वर्ष 1760 में हरिद्वार कुंभ में संतों के बीच संघर्ष में नागा संन्यासियों ने 1800 वैष्णव संन्यासियों को मार दिया था। अखाड़ों के विवाद खत्म करने के लिए अखाड़ा परिषद् गठित हुआ, जिसकी व्यवस्थाओं को अब सभी अखाड़े मान्यता देते हैं। वृन्दावन धाम के स्वामी शिव राम दास कहते हैं कि निर्वाणी अखाड़े और शंभू दल की कभी नहीं बनी। शाही स्नान में अखाड़ों के संघर्ष की आशंका बनी ही रहती है। हरिद्वार में वर्ष 1310 के कुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गईं। वर्ष 1760 में शैव संन्यासी व वैष्णव बैरागी, तो 1796 के कुंभ में शैव संयासी और निर्मल संप्रदाय भिड़े। 1998 में हर की पौड़ी में अखाड़ों का संघर्ष हुआ।

साभार-पत्रिका एवँ नई दुनिया से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार