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दूरियों का दर्द मिटाने नयी पीढ़ी को सहूलियत के साथ समय देकर जिम्मेदार बनाएँ – डॉ. जैन

राजनांदगांव। संस्कारधानी के ख्यातिप्राप्त प्रखर वक्ता, कलमकार और शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने धमतरी में आयोजित विचक्षण व्याख्यानमाला और स्मृति समारोह के अंतर्गत पीढ़ी अंतराल विषय पर अतिथि व्याख्यान देकर नयी और पुरानी पीढ़ी के सुधी श्रोताओं को सार्थक अभिप्रेरणा दी। बड़ी संख्या में मौजूद श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। गौरतलब है कि विगत दो दशक के भीतर डॉ. जैन ने जलगांव, अमरावती, नागपुर, चंद्रपुर, रायपुर आदि कई बड़े शहरों में इस व्यख्यानमाला में भागीदारी कर यादगार अतिथि व्याख्यान दिए हैं। इतना ही नहीं, डॉ. जैन साथ प्रख्यात आगम विद्वान प्रोफ़ेसर डॉ. सागरमल जैन के साथ भी महानगर चेन्नई में भी व्याख्यान देने का गौरव जुड़ा हुआ है। धमतरी में डॉ. जैन ने ख़ास तौर पर मध्यप्रदेश शासन भोपाल के शिक्षा अवर सचिव सुधीर कोचर (आईएएस ) के साथ व्यख्यान क्रम में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज़ की। इस अवसर पर युवा जिज्ञासु शिविरार्थी भी शामिल हुए। साध्वी संयम निधि जी और क्षमा निधि जी ने गुरूवर्या की जीवन साधना पर प्रकाश डाला। प्रसंगवश डॉ. जैन ने जैन कोकिला विचक्षण श्री जी म.सा. के दिव्य जीवन प्रसंगों पर भी स्वरचित कविता और भावपूर्ण गीत के माध्यम से मर्म भरा उदगार व्यक्त किया।

आरम्भ में अंगवस्त्र, श्रीफल, सम्मान पत्र और सम्मान प्रतीक चिन्ह भेंट कर डॉ. चंद्रकुमार जैन का भावभीना सम्मान किया गया। आयोजन समिति द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार मुख्य अतिथि वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने धाराप्रवाह सम्बोधन में इक्कीसवीं सदी के मद्देनज़र सबसे पहले पीढ़ी अंतराल के कारणों पर पर पारदर्शी अंदाज़ में प्रकाश डाला। उन्होंने दोटूक कहा कि हमारी नयी पीढ़ी बड़ों के वर्चस्ववादी रवैये को सहने और स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। वह अपने को ज्यादा अपडेट मानती है। खुद को कमतर कहना उसे गवारा नहीं है। यह पीढ़ी प्रतियोगिता के युग में जी रही है। इसे सोच, स्वभाव, प्रयास, पहल सबमें नयापन चाहिए। आज़ादी भी चाहिए। टीका-टिप्पणी और रोक-टोक इस पीढ़ी को रास नहीं आती है। ऐसे हालात में डॉ. जैन ने कहा कि नए को बदलने की कसरत से बेहतर है कि पुराने में नयापन लाने की मुहिम चलायी जाए। परम्परा और संस्कार का तालमेल नए ज़माने में नए ढंग से बिठाना होगा। डॉ. जैन ने कहा कि नयी कहानी कहने और नयी इबारत गढ़ने की कोशिशों को ज्यादा समझदार, धारदार और ईमानदार बनाना ही पड़ेगा।

डॉ. चंद्रकुमार जैन ने बड़ी गहराई से लेकिन रोचक शैली में कहा कि दूरियों का दर्द दूर करने के लिए बच्चों को सुविधा के साथ समय देने की ज़रुरत है। उन्हें जिम्मेदार बनाना अपने आप में बड़ी जिम्मेदारी का काम है। उन्होंने सवाल किया कि मेंटर और केयरटेकर के अंतहीन दौर में बच्चे अपने माँ-बाप के सच्चे प्यार से अगर दूर होते जाएंगे तो बुढ़ापे में बच्चे बड़ों का साथ कैसे निभाएंगे ? हम बच्चों को बचपन में ही जिम्मेदारी के छोटे-छोटे काम और उनकी छोटी-बड़ी उपलब्धि की लगातार सराहना करें। उनकी मौजूदगी को अहमियत दें। परिवार और समाज में उनके कार्यों का सम्मान करें तो बात कुछ हद तक बन सकती है। बच्चों को व्यवस्थित रखना, अनुशासित करना, शिष्टाचार सिखाना साधारण बात नहीं है। इसे गंभीरता से लेने की ज़रुरत है कि बच्चों और किशोरों की उपेक्षा कतई न हो। डॉ. जैन ने कहा कि बड़ों का व्यवहार बचपन में ही कोमल मानस में रिकार्ड होता जाता है। गलत इनपुट से आप सही आउटपुट की उम्मीद नहीं कर सकते। लिहाज़ा, डॉ. जैन ने कभी हर्ष ध्वनि तो कभी मुकम्मल खामोशी के माहौल में बड़ी सभा को सवा घंटे तक नए सिरे से सोचने-समझने के लिए आहूत करते हुए बच्चों सहित तमाम दीगर रिश्तों का कमोबेश जिक्र किया। दरअसल पीढ़ी अंतराल पर प्राध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन का एक मर्म भरा व्याख्यान मील का पत्थर सिद्ध हुआ।