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175 साल से मधुर ध्वनि से विमुग्ध करने वाली क्लॉक टावर बिग बेन की मरम्मत – कथा

घड़ी की मरम्मत में खर्च हो गए 800 करोड़ रुपये

बात यही कोई सन पैंसठ की है, किशोर अवस्था में पदार्पण होने ही वाला था, , स्कूल के अध्यापक ने समाचार के बारे यह कहा था की अगर कोई घटना की विश्वसनीयता परखनी हो तो बी बी सी सुनो,. रेडियो के कान उमेठे तो मधुर घंटे की आवाज़ सुनाई दी , अध्यापक ने बताया कि यह ब्रिटिश संसद वेस्टमिनिस्टर में लगी घड़ियाल बिगबेन के घंटे की आवाज़ है जो हर पंद्रह मिनट के बाद बजता है . यक़ीन मानिए वो मधुर ध्वनि जेहन में बस गयी . जब मैं पहली बार २०१३ में लन्दन आया सबसे पहले यह घड़ी देखने पहुँच गया . ३०० फीट से भी ज़्यादा ऊँची इस घड़ी को कई घंटे तक निहारता रहा और हर पन्द्रह मिनट के बाद मधुर चाइम को सुनता रहा. मैं ही नहीं दुनिया मैं लाखों लोग इस घड़ी के दीवाने रहे हैं जो केवल इस को देखने के लिए लन्दन आना चाहते हैं .

यह घड़ी अपने १७५ साल के लम्बे जीवन काल में ६ राज प्रमुखों और ४१ प्रधान मंत्रियों कार्यकाल की गवाह रह चुकी है .

दरअसल बिग बेन तकनीकी तौर पर ब्रिटिश संसद परिसर में लगे क्लॉक टावर के १३ टन के विशाल घंटे का नाम है जिसकी मधुर आवाज़ अब विश्व की सबसे पुराने निरंतर चले आ रहे लोकतंत्र का गवाह बन चुकी है .

इस विशालकाय क्लॉक टावर का काम आरचिटेक्ट चार्ल्ज़ बेरी द्वारा मई १८५९ में शुरू हुआ था और वर्ष के अंत तक पूरा हो गया था . हर घंटे के अंतराल पर बिग बेन के घंटे की आवाज़ उस साल ११ जुलाई से और हर पंद्रह मिनट के अंतराल पर क्वॉर्टर बेल की ध्वनि ७ सितम्बर से प्रारम्भ हुई . इतने विशाल आकार के वावजूद इस घड़ी के द्वारा बिलकुल सही समय बताना लोगों को हैरान करता रहा है . इस घड़ी ने दो – दो विश्व युद्ध देखे , और भी कई महत्वपूर्ण घटनाओं की साक्षी रही पर फिर भी इसका सुचारु रूप से अपना काम करती रही . . इतने विशाल आकार के पुर्ज़ों से बनी जटिल घड़ी को सप्ताह में केवल एक बार और वो भी केवल एक मिनट के समायोजन से निरंतर चलते रहना, अट्ठारहवीं शताब्दी की तकनीक को सराहने का दिल करता है .

१६० वर्षों में यह घड़ी जाड़े, बरसात निरंतर झेलती रही है. जगह जगह से जल रिसाव के कारण मशीन के पुर्ज़ों की मरम्मत की ज़रूरत महसूस की जा रही थी . २०१७ में अचानक लन्दन वासियों ने देखा टावर के इर्दगिर्द पर्दे टंग गए हैं और घड़ी से निकलने वाली मधुर ध्वनि भी थम गयी है , घड़ी की मरम्मत आख़िरकार करनी ही पड़ी .

पाँच साल तक लगातार मरम्मत का काम चला. कैथ स्कोब और यंग द्वारा संचालित कंबरिया क्लॉक कम्पनी इसके ११ टन से भी अधिक वज़न के एक एक पुर्ज़े को खोल कर लन्दन से बहुत दूर एक गाँव में ले गयी जहां बड़े जतन और गोपनीय तरीक़े से इस पर काम किया. कहाँ तो यह अन्दाज़ा था कि यह कार्य तीन साल में पूरा हो जाएगा , लेकिन कोविड के चलते पाँच साल लग गए . समय के हिसाब से इसे स्मार्ट भी बना दिया गया है कुछ नए फ़ीचर भी जोड़े गए हैं . अब कहीं जा कर यह काम पूरा हुआ है , टावर के इर्दगिर्द लगे पर्दे हट चुके हैं और वापस यह घड़ी पूरे जोश से लन्दन शहर को अपनी मधुर आवाज़ से आनंदित करने के लिए तैयार है. हाँ इस पूरे मरम्मत प्रकल्प में ८०० करोड़ रुपए खर्च हुए हैं जो दुनिया भर में अब तक किसी भी घड़ी की जाने वाली मरम्मत से कहीं ज़्यादा हैं . लेकिन दुनिया के सबसे
लम्बे समय से चले आ रहे गणतंत्र की साक्षी होने वाली इस घड़ी का इतना हक तो बनता ही है !
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