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चंबल के किनारे रेगिस्तान की शिल्पकला देखने को मिलेगी जैसलमेर की खूबसूरत सालिम सिंह हवेली की प्रतिकृति

कोटा । कोटा में किए जा रहे विकास और सौंदर्यकरण कार्य के तहत रेगिस्तान की शिल्पकला में नायाब सलिमसिंह की हवेली की प्रतिकृति भी देखने को मिलेगी। नगर विकास न्यास की योजना में इसका निर्माण विकास न्यास द्वारा सी.वी. गार्डन एवं किशोर सागर तालाब के मध्य कराया जा रहा हैं। इसके निर्माण पर 7.33 करोड़ रुपए व्यय किए जाने का प्रावधान किया गया हैं।

जैसलमेर स्थित सालिम सिंह की हवेली छह मंजिली इमारत है, जो नीचे से संकरी और ऊपर से चौड़ी स्थात्य कला का प्रतीक है। जहाजनुमा इस विशाल भवन आकर्षक खिड़कियां, झरोखे तथा द्वार हैं। नक्काशी यहाँ के शिल्पियों की कलाप्रियता का प्रमाण है। इस हवेली का निर्माण दीवान सालिम सिंह द्वारा करवाया गया, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण था।दीवान मेहता सालिम सिंह की हवेली उनके पुस्तैनी निवास के ऊपर निर्मित कराई गई थी। हवेली की सर्वोच्च मंजिल जो भूमि से लगभग 80 फीट की उँचाई पर है, मोती महल कहलाता है। कहा जाता है कि मोतीमहल के ऊपर लकडी की दो मंजिल और भी थी, जिनमें कांच व चित्रकला का काम किया गया था। जिस कारण वे कांचमहल व रंगमहल कहलाते थे, उन्हें सालिम सिंह की मृत्यु के बाद राजकोप के कारण उतरवा दिया गया। इसके चारों ओर उनतालीस झरोखे व खिड़कियां हैं। इन झरोखों तथा खिड़कियों पर अलग-अलग कलाकृति उत्कीर्ण हैं। इनपर बनी हुई जालियाँ पारदर्शी हैं। इन जालियों में फूल-पत्तियाँ, बेलबूटे तथा नाचते हुए मोर की आकृति उत्कीर्ण है।

हवेली की भीतरी भाग में मोती-महल में जो 4-5 वीं मंजिल पर है, स्थित फव्वारा आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। सोने की कलम से किए गए छतों व दीवारों पर चित्रकला के अवशेष आज भी उत्कृष्ट कला को प्रदर्शित करते हैं। इन पर कई जैन धर्म से संबंधित कथाएँ चिहृन, तंत्र व तीर्थकर व मंदिर आदि उत्कीर्ण हैं। शिला पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार इसका निर्माण काल1518 विक्रम संवत् है।