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हमारी वेद परंपरा में गणतंत्र का गौरव

अथर्ववेद की ये प्रार्थना हमारे देश में गणतंत्र की प्राचीन परंपरा का उद्घोष करती है।

स नो रास्व राष्ट्रमिन्द्रजूतं तस्य ते रातौ यशस: स्याम । (अथर्ववेद 6/39/2)

हे ईश्वर ! आप हमें परम ऐश्वर्य सम्पन्न राष्ट्र को प्रदान करें । हम आपके शुभ-दान में सदा यशस्वी होकर रहें ।

उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवि प्रसूता:।दीर्घं न आयु: प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहृत: स्याम ॥ अथर्ववेद (12/1/62)

हे मातृभूमि ! हम सर्व रोग-रहित और स्वस्थ होकर तेरी सेवा में सदा उपस्थित रहें । तेरे अन्दर उत्पन्न और तैयार किए हुए – स्वदेशी पदार्थ ही हमारे उपयोग में सदा आते रहें । हमारी आयु दीर्घ हो । हम ज्ञान-सम्पन्न होकर – आवश्यकता पड़ने पर तेरे लिए प्राणों तक की बलि को लाने वाले हों ।

वेदों मे आदर्श संसदीय व्यवस्था-

ये ग्रामा यदरण्यं या: सभा अधि भूम्याम् ।ये संग्रामा: समितयस्तेषु चारु वदेम ते ।। (अथर्ववेद 12/1/56)

हे मातृभूमि ! जो तेरे ग्राम हैं, जो जंगल हैं, जो सभा – समिति (कौन्सिल, पार्लियामेन्ट आदि) अथवा संग्राम-स्थल हैं, हम उन में से किसी भी स्थान पर क्यों न हो सदा तेरे विषय में उत्तम ही विचार तथा भाषण आदि करें – तेरे हित का विचार हमारे मन में सदा बना रहे ।
आइए राष्ट्र की उन्नति के लिए हम इन गुणों के धारण करे:-

सत्यं बृहद्दतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञ: पृथिवीं धारयन्ति । (अथर्ववेद 12/1/1)
सत्य, विस्तृत अथवा विशाल ज्ञान, क्षात्र-बल, ब्रह्मचर्य आदि व्रत, सुख-दुख, सर्दी-गर्मी, मान-अपमान आदि द्वन्द्वों को सहन करना, धन और अन्न, स्वार्थ-त्याग, सेवा और परोपकार की भावना ये गुण हैं जो पृथ्वी को धारण करने वाले हैं । इन सब भावनाओं को एक शब्द ‘धर्म’ के द्वारा धारित की जाती हैं ।

[सन्दर्भ ग्रन्थ : पण्डित धर्मदेव विद्यावाचस्पति कृत ‘आर्य कुमार निबन्ध-माला’ पुस्तक।]
मातृभूमि के लिए ऐसी अनुपम प्रेरणा वेद के अतिरिक्त किसी अन्य ग्रंथ में कहीं नहीं मिल सकती है, इसलिए आइए मित्रो लौट चलें वेदों की ओर।