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रिसॉर्ट का खेल

मध्य प्रदेश में जो रिसॉर्ट का खेल अभी चल रही है वह पुरे देश में चर्चा में है। कुछ लोग तो ऐसे है जिन्होंने रिसॉर्ट का नाम ही इससे पहले कभी सुना नहीं था। हॉ इससे पहले फार्म हाऊस प्रयोग राजनीति में होते रहे है। लेकिन अबकि बार मध्य प्रदेश में जो रिसॉर्ट प्रयोग हुआ उसके कारण इन रिसॉर्टस् की वैल्यू में बढ़ोतरी हुई है। सिंधिया समर्थकों को बैंगलोर, कांग्रेस समर्थकों को जयपुर, भाजपा समर्थकों को हरियाणा के रिसॉर्ट में ले जाया गया। तो मीडिया में सुबह से लेकर देर रात तक केवल रिसॉर्ट पर ही चर्चा का दौर चल रहा है।

पिछले कुछ सालों से रिसॉर्ट का नाम जिस तरह से हमारे देश की राजनीति में स्थापित हुआ है। उससे लगता है कि ये स्थान देश के बड़े शहरों में किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है। रिसॉर्ट अब राजनीति के केन्द्र बन गये है। जिसके पास भी थोड़ा रसूख है और बीस-पच्चीस एकड़ जमीन है वो सबसे पहले अपने फार्महाऊस को रिसॉर्ट बनना चाहता है। चाहे भी क्यों नहीं आखिर एक न एक दिन उनका रिसॉर्ट भी राजनीति का महातीर्थ बन सकता है और प्रदेश या देश की सरकार बदलने में अहम योगदान दे सकता है। और भविष्य में ऐतिहासिक स्थल का दर्जा पा कर लोक पर्यटन का अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक बन सकता है। कोरोना जैसा अन्तर्राष्ट्रीय वायरस भी रिसॉर्ट राजनीति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। टॉप पर रहने वाला कोरोना परोक्ष में चला गया।

रिसॉर्ट से जब भी राजनीति के प्यादों के कम-ज्यादा होने के नये आंकड़े आते है तो देश-विदेश का मिडिया बड़े चटखारे लेकर आंकड़ों का कम रिसॉर्ट के बाहर से उसकी भव्यता का बखान ज्यादा करता है, कईं बार समझ ही नहीं पाते है कि हम समाचार देख रहे है या रिसॉर्ट का विज्ञापन। न्यूज़ रिपोर्टर इस रिसॉर्ट महातीर्थ की बार-बार महिमा बता कर आपके और मेरे जैसा सामान्य आदमी पर पारिवारिक दबाव बनवाकर जीवन में एक बार यहॉ की यात्रा को मजबूर कर देता है। घर के लोग भी एक स्वर में इस महातीर्थ की यात्रा यह सोच कर करने को आतुर रहते है कि मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा धरती का स्वर्ग तो ये रिसॉर्ट ही है, आओ यही देख ले। और अपने मन को तृप्त कर ले।

वैसे सामान्य जन की तो औकात ही क्या जो यहॉ की सैर करे, यदा-कदा ब्याह-शादी में मेहमान बन कर गये होंगे या जीवन में 1-2 बार अपने निजी खर्च पर बच्चों और पत्नी की जिद के सामने कसमसाते हुए गये होंगे। लेकिन जो लोग विधायक और सांसद बनते है उनको तो अपने कार्यकाल के दौरान इस दिव्य जगह जाने का सुख स्वतः ही मिलने लगा है और हफ्तों मजा लेने का देव दुर्लभ मौका पार्टी के खर्च पर ही मिल जाता है। वो भी वीआईपी आवभगत के साथ। बिना घरवाली या घरवाले के घर से बेहतर माहौल वाले ये तीर्थ स्थान वैसे तो इन नेताओं के लिए बंदीघर है, लेकिन जब नरक में भी अप्सराएँ सोमरस का पान कराए तो उस स्थान को भी सामान्यजन स्वर्ग से कम नहीं मानेगे। रिसॉर्ट वैसे भी धरती पर स्वर्ग जैसा आनंद लेने के लिए बनाए गये है। और सब जानते है की स्वर्ग जाने के लिए मरना जरुरी है । मरे बगैर स्वर्ग नहीं मिलता। इन रिसॉर्ट में कैद हुए विधायक जानते है कि वे स्वर्ग में है या नरक में और रिसॉर्ट मुक्त होने के बाद वे पुण्य फल बांटेंगे या पाप का प्रसाद ये तो भविष्य ही बताएगा।

-संदीप सृजन
संपादक- शाश्वत सृजन
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