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इंदिरा गाँधी के बाद सबसे ताकतवर थे आरके धवन

दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते है कि जो शासक न होते हुए भी देश पर राज करते हैं। रजिंदर कुमार धवन की गिनती भी ऐसे ही लोगों में की जा सकती है। उन्होंने दिवंगत इंदिरा गांधी के सचिव रहते हुए 22 साल तक देश चलाया और वे उनके आंख-नाक-कान बने। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए उनके द्वारा ही मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक की नियुक्ति व उन्हें हटाए जाने के आदेश देती थी।

वे पूरी सरकार चलाते। अफसरों को आदेश देते कि उन्हें क्या करना हैं। बैंको के चेयरमैन सरीखे पदों पर नियुक्ति करते। कहा तो यहां तक जाता था कि वे तमाम अहम फैसलो जैसे नियुक्ति आदि के बारे में इंदिरा गांधी के सामने नामों की सूची रख देते और वे उन पर दस्तखत कर देती थी। उन्होंने यह साबित किया कि प्रधानमंत्री का निजी सचिव कितना ताकतवर होता है।

यह सब समय की बात है। देश के बंटवारे के समय धवन अपने मामा यशपाल कपूर के साथ पाकिस्तान से शरणार्थी बनकर दिल्ली आए थे। वे कैंपो में रहे। उन दोनों ने गुब्बारे बेच कर जीवनयापन किया। बाद में यशपाल कपूर ने स्टेनोग्राफी सीखी व उनकी सरकारी नौकरी लग गई। तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने विदेश मंत्रालय का प्रभार भी अपने पास रखा हुआ था। उन्हें अक्सर अपने पत्रों का डिक्टेशन देना पड़ता था। उनके सचिव राजन मथाई ने यशपाल कपूर को उनके डिक्टेशन लेने की जिम्मेदारी सौंपी।

उनके अनेक पत्रों को अंग्रेंजी से हिंदी में अनुवाद करता पड़ता था। यशपाल कपूर को हिंदी नहीं आती थी। इसके लिए वे एक पत्रकार की मदद लेते थे। बाद में यशपाल कपूर स्टेनोग्राफी जानने वाले अपने भांजे आरके धवन को इंदिरा गांधी की सेवा में ले आए। वे उनके बेहद विश्वासपात्र व करीबी होते गए। इंदिरा गांधी अपने तमाम अहम दस्तावेजों को उन्हीं की सुपुर्दगी में रखती थी और वे उनके जागने से सोने तक उनके निवास पर ही रहते थे।

मंत्री, राज्यपाल सरीखे आला लोग उन्हें सर कहते व उन्हें बताते कि मैडम क्या चाहती है। एक बार उन्होंने मुझे बताया था कि जब ज्ञानी जैल सिंह देश के गृहमंत्री थे तब इंदिरा गांधी ने उन्हें कोई आदेश दिया था। उनके मनमाफिक काम नहीं हुआ। शाम को जैलसिंह उनसे मिलने उनके आवास पहुंचे। वे इंदिरा गांधी के आने का इंतजार कर रहे थे। तभी वहां कार आकर रूकी व प्रधानमंत्री उतरी। जैसे ही गृहमंत्री ने उनका अभिवादन किया गुस्से में भरी इंदिरा गांधी ने उन्हें बुरी तरह से लताड़ दिया और वे अपना मुंह लटकाए उनके दफ्तर में बैठ गए।

कुछ देर बाद इंदिरा गांधी ने धवन को अंदर बुलाया और कहा कि आज कुछ ज्यादा ही हो गया। मैंने उन्हें ज्यादा ही डांट दिया। कुछ समय बाद इंदिरा गांधी अपने दफ्तर में आई और मुस्कुराते हुए ज्ञानीजी से उनके परिवार के बारे में पूछने लगी। ज्ञानीजी ने उनसे कहा कि एक बार यही सब बाते आप बाहर भी मुझसे पूंछ लीजिएगा। इंदिरा गांधी ने हंसते हुए इसकी वजह जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि जब आपने मुझे डांटा तो सबने देखा मगर जब आप मुझे पुचकार रही है तो कोई नहीं देख रहा है। इस पर इंदिरा गांधी हंसने लगी। आरके धवन बताते थे कि आपातकाल के दौरान तमाम नेताओं व मुख्यमंत्रियों ने अपनी मनमानी की व अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता तो शायद इतनी बदनामी न होती।

उन्होंने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के हाथ से लिखा वह पत्र संभाल कर रखा हुआ था जिसमें उन्होंने इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। उनकी हत्या के समय वे उनके साथ चल रहे थे। जब इस मसले की जांच के लिए ठक्कर आयोग बना तो उसकी रिपोर्ट के बाद उन्हें तमाम दिक्कतो का सामना करना पड़ा। जांच के दौरान वैसे भी उनके पास कोई पद नहीं था। आयोग ने उनकी भूमिका पर शक की सुई उठाते हुए कहा कि उन्होंने पूर्व सूचना होने के बाद भी उन सिख सुरक्षाकर्मियों को वहां से नहीं हटाया।

हालांकि धवन ने तब यह बात कही थी कि इंदिरा गांधी ने खुद उन लोगों को न हटाने का आदेश दिया था। जब यह रिपोर्ट आई तब राजीव गांधी बोफोर्स कांड सरीखे विवादों में फंस गए थे। उन्हें अपने ही लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने आरके धवन को बाद में ओएसडी बना लिया।

धवन बताते थे कि उस दौरान राजीव गांधी के करीबी लोग जैसे अरूण नेहरू, अरूणा सिंह, माखनलाल फोतेदार सरीखे लोग पंजाबी लॉबी के खिलाफ हो गए थे व उससे छुटकारा पाना चाहते थे। बाद में वे दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे व कांग्रेंस कार्यसमिति में लाए गए। हालांकि उन्हें इस बात का दुख था कि उन्हें कभी अपने मन की बात कहने का मौका नहीं मिला। हालांकि वे कभी इंदिरा गांधी की आंख-नाक-कान रह चुके थे। वे ही यह तय करते थे कि कौन उनसे मिलेगा और कौन नहीं। वे 1-सफदरजंग याकि तब के प्रधानमंत्री निवास, साऊथ ब्लॉक के ऐसे चौकीदार थे जिनकी अनुमति के बिना तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिला नहीं जा सकता था। उन्हें तो वरिष्ठ अफसर राजमहल का रक्षक कहा करते थे। राजीव गांधी ने 1989 में उन्हें अपना ओएसडी नियुक्त किया व उन्होंने राष्ट्रपति जैलसिंह व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संबंधों को ठीक करने की कोशिश की।

नरसिंहराव ने अपनी सरकार में उन्हें शहरी विकास मंत्री बनाया। उन्होंने 2012 में अपने से 16 साल छोटी अचला से शादी की। तब तक वे कुंवारे थे व अपने गोल्फ लिंक के घर में रहते हुए बीमार भतीजे की देखभाल करते थे। उन्होंने वी जार्ज को राजीव गांधी के दफ्तर में टाईपिस्त नियुक्त किया व उसे हर महीने 600 रुपए देते थे। यह बात अलग है कि ताकत के मामले में बाद में वी जार्ज ने उन्हें बहुत पीछे छोड़ दिया।

उन्होंने अपने अनुभवों पर किताब लिखने का मन बना लिया था। उनका कहना था कि यह किताब नटवरसिंह व अर्जुनसिंह सरीखे लोगों की किताब जैसी नहीं होगी जिसमें कोई खुलासा ही नहीं किया गया था। उनकी किताब आने के बाद देश के बहुत बड़े रहस्यों का खुलासा हो जाएगा। मगर वे अपनी यह ख्वाहिश लिए हुए ही 81 साल की उम्र में दुनिया से चले गए।

साभार- https://www.nayaindia.com/ से