Friday, March 29, 2024
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रुस-यूक्रेन संघर्ष: पश्चिमी देशों के हथियार उत्पादन पर यूक्रेन युद्ध का असर!

NATO को हथियारों की कमी के साथ ही तेज़ी से घटते आयुध भंडार का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में लंबे वक़्त से चल रहे यूक्रेन युद्ध ने पश्चिम की हथियार उत्पादन क्षमता की सीमाओं को सामने ला दिया है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के 100 सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से, वर्ष 2021 में सालान आधार पर अमेरिकी कंपनियों का उत्पादन 0.9 प्रतिशत की मामूली गिरावट के साथ स्थिर रहा है, जबकि यूरोप (रूस को छोड़कर) ने इसी अवधि में हथियार उत्पादन में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है, हालांकि इस दौरान इस क्षेत्र में तमाम उथल-पुथल देखी गईं. इसी प्रकार से यूनाइटेड किंगडम (यूके) की हथियारों की बिक्री में 2.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि फ्रांस की हथियारों की बिक्री वर्ष 2021 में सालाना 15 प्रतिशत बढ़कर 28.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई.

दुनिया भर में शिपिंग यानी नौपरिवहन में दिक़्क़तों और सेमीकंडक्टर की कमी समेत आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े मुद्दों ने कई फर्मों की हथियारों की बिक्री पर असर डाला है. एकीकृत और जटिल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता के कारण पश्चिमी देशों पर इसका असर कई गुना बढ़ गया.

अगर इस रिपोर्ट के आंकड़ों को समग्र नज़रिए से देखा जाए तो दुनिया के सबसे बड़े 100 आपूर्तिकर्ताओं की कुल हथियारों की बिक्री वर्ष 2021 में कोरोना महामारी से प्रभावित वर्ष 2020 की तुलना में केवल 1.9 प्रतिशत बढ़ी है. इस रिपोर्ट के तथ्यों के आधार पर पश्चिमी देशों के रक्षा उत्पादन पर यूक्रेन में चल रहे युद्ध के असर का आकलन करना बेहद अहम हो गया है, जो कि सिर्फ़ वर्ष 2022 के हथियारों की बिक्री के आंकड़ों में पहली बार दिखाई देगा.

वर्ष 2021 में कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर लागू किए गए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिबंधों के असर ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में लिया और हथियार उद्योग भी इससे अछूता नहीं रहा. दुनिया भर में शिपिंग यानी नौपरिवहन में दिक़्क़तों और सेमीकंडक्टर की कमी समेत आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े मुद्दों ने कई फर्मों की हथियारों की बिक्री पर असर डाला है. एकीकृत और जटिल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता के कारण पश्चिमी देशों पर इसका असर कई गुना बढ़ गया. इसके साथ ही दूसरी जगहों पर भी मुख्य रूप से हथियारों की बिक्री में कमी और हथियार बिक्री से जुड़े सौदों के स्थगित होने की वजह से भी इनकी बिक्री प्रभावित हुई. हालांकि, वर्ष 2021 में ऐसा होने की उम्मीद भी की जा रही थी.

यात्रा प्रतिबंधों के कारण कामगारों की कमी होने की वजह से कई पश्चिमी डिफेंस और एयरो स्पेस ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स (OEM) के उत्पादन पर असर पड़ा. कामगारों की कमी को हथियार उत्पादन प्रभावित करने वाले एक और बड़े अवरोध के रूप में चिन्हित किया गया था. इसके अलावा, कुछ अमेरिकी फर्मों द्वारा बिक्री में ज़बरदस्त गिरावट के लिए हथियारों की कम मांग का भी हवाला दिया गया.

रूस द्वारा यूक्रेन में ज़बरदस्त तरीक़े से हवाई हमले किए गए, जिनमें यूक्रेन के आधे से अधिक पावर ग्रिड नष्ट हो गए और इस वजह से यूक्रेन के आम नागरिकों को कड़ाके की ठंड में शून्य से नीचे यानी माइनस डिग्री तापमान में रहने को मज़बूर होना पड़ रहा है. यूक्रेन में सभी रूसी सेनाओं के नए कमांडर-इन-चीफ के रूप में जनरल सर्गेई सुरोविकिन की नियुक्ति के बाद सस्ते आत्मघाती ड्रोनों की तैनाती ने लोकप्रियता हासिल की है. इसके साथ ही इन ड्रोनों के उपयोग ने रूस को क्रूज मिसाइलों के अपने शेष भंडार और अधिक उन्नत व महंगे हथियारों को ज़्यादा इस्तेमाल किए बिना आगे की अवधि के लिए बमबारी के सिलसिले को बनाए रखने की उसकी क्षमता को काफ़ी बढ़ा दिया.

यूक्रेन को नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) के साथ के बवज़ूद वास्तविकता में हथियारों की कमी और तेजी से घटते आयुध भंडार का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, इस दीर्घकालिक युद्ध ने पश्चिम की हथियार उत्पादन क्षमता की सीमाओं को सामने ला दिया है.

इसके जवाब में देखा जाए तो पश्चिमी देशों द्वारा मॉस्को पर लगाए गए प्रतिबंध फिलहाल उस स्तर तक पहुंच गए हैं कि शायद अब उन्हें और बढ़ाया नहीं जा सकता है, वो भी रूस की युद्धकालीन अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ के बावज़ूद. जब से यह युद्ध शुरू हुआ है, तभी से पश्चिम ने यूक्रेन को सैन्य साज़ो-सामान और वित्तीय सहायता प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. यूक्रेन को नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) के साथ के बवज़ूद वास्तविकता में हथियारों की कमी और तेजी से घटते आयुध भंडार का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, इस दीर्घकालिक युद्ध ने पश्चिम की हथियार उत्पादन क्षमता की सीमाओं को सामने ला दिया है. इन परिस्थितियों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पश्चिम अपनी निष्क्रिय मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को तत्काल और निर्बाध रूप से फिर से सक्रिय करने में असमर्थ है, ऐसे में नई यूनिट्स को स्थापित करना तो बहुत दूर की बात है.

वर्तमान हालातों को देखते हुए शांति वार्ता नहीं हो पाने और यूक्रेन युद्ध का फिलहाल कोई अंत नहीं दिखाई देने की वजह से कीव को हथियारों के उत्पादन में वृद्धि और अपने घटते भंडार को फिर से भरने के प्रयासों का समन्वय यूक्रेन डिफेंस कॉन्टैक्ट ग्रुप द्वारा किया जा रहा है. यह अमेरिका के नेतृत्व वाला 50 से अधिक देशों और संगठनों का एक समूह है. यूक्रेन डिफेंस कॉन्टैक्ट ग्रुप के सदस्य भी इन क्षमताओं का उपयोग करते हुए यूक्रेनी सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षित करने में सहायता कर रहे हैं. इतना ही नहीं और भी कई देश अब भविष्य में खुद को बचाने के लिए यूक्रेन की सहायता करने के रास्ते तलाश रहे हैं.

डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को गति देने के लिए हालांकि समय, लगातार निवेश और ठोस प्रयासों की ज़रूरत होती है. इसलिए, हथियार निर्माताओं को यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई हथियारों की बढ़ती मांग के मद्देनज़र उत्पादन क्षमता बढ़ाने में कई साल लग सकते हैं.

डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को गति देने के लिए हालांकि समय, लगातार निवेश और ठोस प्रयासों की ज़रूरत होती है. इसलिए, हथियार निर्माताओं को यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई हथियारों की बढ़ती मांग के मद्देनज़र उत्पादन क्षमता बढ़ाने में कई साल लग सकते हैं. जैसा कि फरवरी के अंत में युद्ध की शुरुआत के बाद से ही यूक्रेनी सेना द्वारा पांच साल के उत्पादन के बराबर जेवलिन एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल की खपत के पश्चात, अमेरिका को इन जेवलिन एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों के लिए मिले ऑर्डरों से आसानी से समझा जा सकता है.

यूरोप में हथियार निर्माता भी मिलिट्री हार्डवेयर की मांग में भारी मात्रा में बढ़ोतरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं. ज़ाहिर है कि कीव को आपूर्ति किए गए गोला-बारूद और प्लेटफार्मों के भंडार को दोबारा भरने की ज़रूरत के आधार इसका अनुमान लगाया गया है. वास्तव में देखा जाए तो पूर्वी यूरोप की डिफेंस इंडस्ट्री गोला-बारूद, बंदूकों और दूसरे सैन्य साज़ो-सामानों का उत्पादन इतना अधिक मात्रा में कर रही है, जो शीत युद्ध के बाद से कभी नहीं किया गया. हालांकि, यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति जारी रखने की प्रतिबद्धता “इसमें चाहे जो भी समय लगे” के आख़िरकार अस्थिर साबित होने की संभावना है, या कह सकते हैं कि इसके पूरे होने की संभावना बेहद मुश्किल है.।

साभार- https://www.orfonline.org/ से

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