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महानी नारी विद्युत लता का बलिदान

जब – जब देश पर संकट के बादल छाये तब – तब भारतीय वीरों में ही नहीं वीरांगणाओं में भी बलिदान की होड़ सी लग गई । देश के लिए अपना सर्वस्व लुटाने के लिए भी त्यार हो गये । एसे ही बलिदानियों में विद्युत लता भी एक है।

चितौड़ के दुर्गम दुर्ग को घेरे अलाउद्दीन एक बारगी तो राजपूतों से पराजित हो चुका था तथा अपने खेमें में लौट गया था किन्तु इन बेशर्म विदेशी आक्रान्ताओं को कभी किसी प्रकार की शर्म न आती थी । वह बार – बार पराजित होते थे तथा बार बार पुन: आक्रमण कर देते थे । कुछ एसा ही अलाउद्दीन ने किया तथा पुन: भारी सेना के साथ चितौडगढ को धराशायी करने की इच्छा से आ चढ़ा ।

खिलजी ने दर्पण की छाया में पद्मिनी को देखा था । इस छाया को देख कर ही उसे पद्मिनी को पाने की अभिलाषा हुई थी तथा उसे पाने के लिए ही वह बार – बार आक्रमण कर रहा था । वह नहीं जानता था कि भारतीय नारियां अपना सब कुछ , यहां तक कि जीवन तक भी बलिदान कर सकती हैं किन्तु अपनी अस्मत् को नहीं जाने देतीं । उसने जब से पद्मिनी की छाया देखी थी , तब से ही वह अधिक उग्र हो उसे प्ने के लिए लालायित था ।

राजपूत तो आन पर मरना जानते ही हैं । इस कारण वह अपना सब कुछ बलिवेदी पर भेंट करने को तो तैयार थे किन्तु किसी भी बलिदन से ऊपर अपने देश को , अपनी आन को मानते थे । इस कारण वह देश की रक्षा के लिए किसी भी स्तर पर जाने को तैयार खडे थे , यहां तक कि अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार थे । मातृभूमि से उपर कुछ नहीं हो सकता अत: इस की रक्षा से उपर वह कुछ अन्य अपना कर्तव्य न मानते थे । एसा केवल राज परिवार का ही सोचना न था बल्कि सब रजकीय सरदार , सैनिक , यहां तक कि प्रत्येक नागरिक का भी कुछ एसा ही चिन्तन था । इस के साथ ही साथ राजमहिषी सहित समग्र देश की नारियां भी किसी भी सीमा तक जा कर आक्रान्ता को भगाने के लिए द्रढ संकल्प थीं ।

इस चितौड़ में ही समरसिंह नामक एक युवक अपनी वीरता के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध था , वह एक वीर सरदार का सुपुत्र था । चितौड में ही एक वीर योद्धा सैनिक की सुपुत्री विद्युल्लता अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्धी प्राप्त थी । इस वीर व सौन्दर्य की साक्षात् मूर्ति का वैवाहिक सम्बन्ध निश्चित हो चुका था । इन दोनों के पवित्र वैवाहिक बन्धन में बांधने के लिए तैयारियां खूब जोरों से चल रहीं थीं । इस मध्य ही अलाउद्दीन ने चितौड पर आक्रमण कर दिया । इस अवस्था में विवाह का कार्यक्रम बाधित हो गया तथा समर सिंह अपनी आन पर अटल हो कर अपने देश की रक्षा के लिए अपना सब कुछ आहूत करने की लालसा से रणभूमि की और चल दिये।

विद्युल्लता को इस बात पर सन्तोष था कि उसका होने वाला पति अपने देश के प्रति कर्तव्य को पूर्ण करने में लगा है । यह सोच कर उसे अपार आनन्द का अनुभव होता था तथा इस पर ही चिन्तन करते हुए उसका दिन घर में ही स्थित बगीचे में तथा रात्रि को अपने शयन कक्ष में व्यतीत हो रहा था ।

एक रात्री चन्द्र की शीतल छाया में वह बैठी इस विषय पर ही चिन्तन कर रही थी कि उसने देखा कि समर सिंह उस के कक्ष की ओर बडी तेजी से चला आ रहा है । उसे देख कर विद्युल्लता ने भी झटपट द्वार खोला तथा अपनी पारिवारिक वाटिका में आ गई ।

जब समर सिंह ने निकट आ कर कहा कि मैंने तुम से एक आवश्यक बात करनी है , इसलिए इस समय चला आया हूं । विद्युतलता ने पूछा कि इस समय वह क्या बात करना चाहते हैं तो समर सिंह बोला , इस बार शत्रु भारी सेना के साथ आया है तथा चितौड का पतन निश्चित है । विद्युल्लता बडी मग्नता से उसकी बातें सुन रही थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि समर उससे क्या बात करना चाहता है । इस लिए उसने पूछा तो फ़िर ? इस पर समर सिंह ने कहा कि जब चितौड़ का पतन निश्चित है तो हमें चितौड़ छोड़ कर कहीं दूर भाग जाना चाहिये । इस पर विद्युल्लता ने प्रश्न किया कि हमें किसलिए भाग जाना चाहिये ? समर सिंह झल्ला कर बोला कि विद्युल्लते ! तुझे यह भी समझाना पडेगा कि हमें किस लिए भागना होगा , यह भी नहीं जानती कि किस लिए मैं युद्ध भूमि से भागकर यहां आया हूं ? मैं तुम्हारे प्यार के कारण ही युद्ध भूमि से यहां तक भाग आया हूं ।

यह सुनते ही विद्युतलता का चेहरा फ़ीका पड गया, वह सुन्न सी हो गई तथा सोचने लगी कि क्या एसे पति को पाने के उसने स्वप्न संजोए थे जो देश की रक्षाक्शा का अपना कर्तव्य भी पूरा नहीं कर पा रहा ? वह तत्काल बोल पडी ” तुम युद्ध क्षेत्र से भाग कर आये हो ? कायर कहीं के ! राजपूत कन्याएं एसे कायरों से विवाह नहीं किया करतीं । राजपूत, एसा करना वह पाप समझती हैं । समझे ? जाओ । यदि मुझे प्राप्त करना चाहते हो तो स्वदेश की रक्षा के लिए अपने शौर्य का प्रदर्शन करो । यदि युद्ध में तुम वीरगति को पाप्त हो गये तो स्वर्ग में हमारा तुम्हारा मिलन होगा ।” यह कहते कहते विद्युत लता वापस अपने अपने घर में चली गई । इस प्रत्युतर से समर पाषाण की प्रतिमा के समान अपने स्थान पर खड़ा हुआ स्थिर हो गया।

अब वह समझ चुका था कि युद्ध समाप्ति के बिना विद्युल्लता उसे नहीं मिल सकती । इसलिए उसे युद्धक्षेत्र की ओर जाना ही होगा जबकि वह इस तथ्य को भी समझ चुका था कि अलाउद्दीन की असीमित शक्ति है । इसलिए वह जानता था कि इस युद्ध में यदि वह गया तो उसके प्राणॊं का उत्सर्ग निश्चित है । इधर वह विद्युल्लता को पाने के लिए अपने प्राणों की रक्षा भी चाहता था । परिणाम – स्वरुप समर सिंह ने देश के साथ विश्वासघात कर अलाउद्दीन की सेनाओं से जा मिला ।

उसके विचारानुसार ही चितौड की पराजय हुई तथा समर सिंह अनेक मुस्लिम सैनिकों के साथ विद्युल्लता के पास जा पहुंचा । उसे देख विद्युल्लता आश्चर्य चकित हो गयी । उसने देखा कि उसका होने वाला पति विदेशी सेनाओं के साथ स्वतन्त्र रुप में उसकी और बढ़ा आ रहा था । यह सब देख वह सोचने लगी कि यदि वह युद्ध भूमि में जीवित ही बच गया है तो मुसलमान सेना ने उसे बन्दी न बना कर उस के साथ क्यों चल रहे हैं ? उसे यह समझते देर न लगी कि निश्चित ही समर सिंह ने देश के साथ विश्वासघात किया है । एसे कायर को अपना भावी पति पाकर उसका सिर लज्जा से झुक गया तथा वह अपने दुर्भाग्य को कोसने लगी । निकट आकर समरसिंह ने विद्युल्लता का हाथ अपने हाथ में लेने का प्रयत्न किया किन्तु विद्युल्लता झट पट पीछे हट गई तथा गुस्से में बोली “अधम ! मेरे शरीर को छूकर अपवित्र मत कर। जाओ कहीं चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाओ । राजपूत बालिकाओं के ह्रदय में एसे कायरों के लिए कोई स्थान नहीं होता ।”

इस प्रकार के शब्द बोलते बोलते विद्युल्लता ने अपनी कमर से कटार निकाल झटपट उसे अपनी छाती में भोंक लिया । इस अवसर पर समरसिंह ने उसे पकडना भी चाहा , परन्तु विद्युल्लता उस देश – द्रोही की पत्नी नहीं कहलाना चाहती थी । इसलिए उसने यह सब इतनी तेजी से किया की समरसिंह कुछ भी न कर सका ।

इस प्रकार देश की आन तथा अपनी बान की रक्षाक्शा के लिए इस देश की वीरांगणाओं ने अपने पतियों को हंसते – हंसते सदा देश की आन के लिए युद्ध भूमि में भेजा तथा यदि पति युद्ध से भाग कर आया अथवा देश द्रोही हो गया तो उससे दूर होने के लिए स्वयं का बलिदान तक दे दिया । धन्य हैं भारत की वीर और वीरांगनाएं ।