Tuesday, April 16, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेसज्जाद हुसैन : जिनसे लता मंगेशकर डरती भी थीं और जो उनके...

सज्जाद हुसैन : जिनसे लता मंगेशकर डरती भी थीं और जो उनके सबसे पसंदीदा संगीतकार भी थे

महान गायिका लता मंगेशकर जिस भी संगीतकार के लिए गा देती थीं, उसका जन्म सफल हो जाता था. संगीतकार और फिल्म निर्माता इसी कोशिश में रहते थे कि एक बार वे फ़िल्म साइन कर दें, तो आधे से अधिक काम बन जाए. लता पारसमणि हुआ करती थीं.

पर एक संगीतकार थे जिसके साथ लता मंगेशकर भी काम करने में हिचकती थीं. ये थे सज्जाद हुसैन. निहायत सनकी, शक्की और गुस्सैल. किसी को भी झिड़क देना उनके लिए आम बात थी, फिर वो चाहे कोई भी क्यों न हो. परफेक्शनिस्ट ऐसे कि दिलीप कुमार और आमिर खान भी इनके सामने पानी भरें. एक गाने के लिए उन्होंने तलत महमूद से 17 बार रिहर्सल करवाई. गाने के ज़बरदस्त हिट होने बाद भी यही कहते रहे कि कुछ साजिंदों से ठीक से काम नहीं किया! किशोर कुमार को ‘शोर कुमार’ और तलत महमूद को ‘ग़लत महमूद’ कह देना उन्हीं के बूते की बात थी.

किस्सा है कि एक बार लता जी और सज्जाद हुसैन साहब एक गाने के लिए रिहर्सल कर रहे थे. लता सज्जाद साहब के मुताबिक़ नहीं गा रही थीं. सुर कहीं भटक रहा था. तभी सज्जाद गरजकर बोले, ‘लता जी, ठीक से गाइए, ये नौशाद मियां का गाना नहीं है.’

लेकिन इन सब बातों के साथ-साथ सज्जाद अपने फ़न के उस्ताद थे. जानकार मानते हैं कि फ़िल्म इंडस्ट्री में दो ही सबसे जटिल संगीतकार हुए हैं. एक सलिल चौधरी और दूसरे सज्जाद हुसैन. शायद वे अकेले ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने कभी कोई सहायक म्यूजिक डायरेक्टर नहीं रखा. अरेंजर से लेकर गवाने तक के सारे कम ख़ुद ही करते. कमाल की बात यह कि वीणा, वायलिन, बांसुरी जैसे कई सारे वाद्य बजाने में उनकी माहिरी थी. ऐसा कहा जाता है कि फ़िल्म इंडस्ट्री में उनसे बेहतर ‘मैंडोलिन’ कोई नहीं बजा सकता था.

1956 में कोलकाता में एक संगीत समारोह हुआ था जहां बड़े ग़ुलाम अली, विनायक राव पटवर्धन, अली अकबर खान, अहमद जान थिरकवा और निखिल बनर्जी जैसे एक से एक दिग्गज पधारे हुए थे. यहां सज्जाद हुसैन ने मैंडोलिन पर राग शिवरंजनी और हरीकौंस बजाकर सभी को हैरत में डाल दिया था. इसलिए कि पश्चिम के वाद्य पर पक्के हिंदुस्तानी राग बजाना वाकई विलक्षण बात थी. इसके बाद बड़े ग़ुलाम अली ने एक मुश्किल लड़ीदार तान छेड़ी. सज्जाद हुसैन ने उसे हूबहू मैंडोलिन में बजाकर सुना दिया. सुनने वाले हतप्रभ रह गए!

सज्जाद हुसैन के मिजाज और मुश्किल धुनों के चलते प्रोड्यूसर उनसे कतराते. 1944 में आई पहली फ़िल्म ‘गाली’ से उनका संगीत देने का सिलसिला 1977 में आई ‘आख़िरी सजदा’ तक चला. कुल जमा का आंकड़ा है 16. लेकिन सज्जाद हुसैन ने जब भी संगीत दिया, बड़े कमाल का जादू जगाया. उनकी धुनें इसलिए मुश्किल मानी जाती थीं कि उनमें सुर और ताल का जटिल संगम होता था.

सज्जाद का एक सिग्नेचर स्टाइल था, गाने के मुखड़े में पॉज (विराम) देना. बतौर स्वतंत्र संगीतकार उनकी पहली फ़िल्म थी ‘दोस्त’ (1944) जिसमें नूरजहां ने पहली बार उनके निर्देशन में गाया. इसके एक गीत ‘बदनाम मुहब्बत कौन करे और इश्क़ को रुसवा कौन करे’ में उन्होंने नूरजहां को ‘बदनाम’ लफ्ज़ के बाद एकदम से रुककर फिर वहीं से गीत को उठाने के लिए कहा. यह प्रयोग लोगों को बड़ा पसंद आया और नूरजहां उनकी पसंदीदा गायिका बन गयीं. दोनों ने कई फ़िल्में एक साथ कीं. लेकिन यह साथ अचानक टूट भी गया. बताते हैं कि एक बार नूरजहां के शौहर शौक़त हुसैन रिज़वी ने कहीं कह दिया कि ‘दोस्त’ के नगमों के हिट होने का सबसे बड़ा कारण नूरजहां की आवाज़ थी. बस, फिर क्या था. सज्जाद हुसैन इतने ख़फ़ा हुए कि उन्होंने फिर कभी नूरजहां के साथ काम न करने की कसम खा ली. इसके बाद 1946 में आई फ़िल्म 1857 में सुरैय्या के गाए गीतों ने उन्हें फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया.

फिर कोई चार साल बाद एक फ़िल्म आई थी ‘खेल’(1950). यहां से लता जी और सज्जाद साथ-साथ हो लिए. इसका एक गीत ‘भूल जा ए दिल मुहब्बत का फ़साना’ लता मंगेशकर के उस दशक में गाए सर्वश्रेष्ठ गानों में से एक रहा है. इस गीत में भी ‘फ़साना’ बोलने के बाद लता सज्जाद स्टाइल वाला पॉज लेती हैं. बेहद खूबसूरत है ये!

जैसा ऊपर लिखा गया है कि एक बार सज्जाद हुसैन ने लता को भी झिड़क दिया था. इसके बावजूद वे लता की अहमियत और क़ाबिलियत के कायल थे. ऐसा इसलिए भी कि उनकी जटिल धुनों के साथ सिर्फ लता ही न्याय कर पाती थीं. 2012 में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में इस महान गायिका ने क़बूल किया है कि सज्जाद हुसैन उनके सबसे पसंदीदा संगीतकार थे. यह बड़े कमाल की बात है. खेमचंद प्रकाश, ग़ुलाम हैदर, नौशाद, मदन मोहन और सी रामचंद्र जैसे फनकारों के होते हुए भी, वे सज्जाद हुसैन के नाम पर उंगली रखती हैं तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वे किस ऊंचाई के संगीतकार रहे होंगे.

अक्सर फनकारों से जब यह सवाल किया जाता है कि उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है तो वे यह कहकर टाल जाते हैं कि कई हैं जो उन्हें पसंद हैं. राज कपूर और सज्जाद हुसैन जैसे कम ही लोग हुए हैं जो इस बात का ईमानदारी से जवाब देते हैं. यह वह गीत है जिसे सज्जाद हुसैन ने अपनी सबसे बेहतरीन रचना माना है.

हालांकि, संगीत के जानकार और चाहने वालों का कुछ और ही मानना था. कुछ लोग ‘सैयां’ (1951) में उनके काम को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, तो कुछ ‘रुस्तम सोहराब’(1963) के गानों को. ‘रुस्तम सोहराब’ के गानों को ज़बरदस्त सफलता मिली. इसमें सुरैय्या का गाया गीत ‘ये कैसी अजब दास्तां हो गयी है’ की खूबसूरती को बयान करने के लिए लफ्ज़ ही नहीं है. आप खुद ही यह गाना सुन लीजिये.

हालांकि, इसी फ़िल्म में लता मंगेशकर के गाए ‘ऐ दिलरुबा’ को भी लोग सुरैय्या के गीत के समक्ष रखते हैं. इसमें एक कव्वाली भी है जिसके बोल थे, ‘फिर तुम्हारी याद आई ऐ सनम’. इसको सुनने के बाद रोशन की ‘ना तो कारवां की तलाश है’ और मदन मोहन की ‘हंसते ज़ख्म’ की ‘ये माना मेरी जां’ याद आती है.

एक बार सज्जाद हुसैन ने मदन मोहन को भी डपट दिया था. कहते हैं कि सज्जाद ने दिलीप कुमार और मधुबाला के अभिनय से सजी फ़िल्म ‘संगदिल’ में बड़ा ज़बरदस्त संगीत दिया था. इस फ़िल्म के निर्माता आरसी तलवार ने लोगों के लाख मना करने के बावजूद सज्जाद को लिया था. उनकी बाकी फिल्मों की तुलना में इस फ़िल्म का संगीत कहीं ज्यादा हिट हुआ. इसी फिल्म में तलत महमूद का गाए मशहूर गीत ‘ये हवा ये रात ये चांदनी’ से प्रभावित होकर मदन मोहन ने इसी तर्ज़ पर ‘आख़िरी दांव’ में ‘तुझे क्या सुनाऊं मैं दिल रुबा तेरे सामने मेरा हाल है’ में गाना कंपोज़ किया. इससे सज्जाद हुसैन इतने ख़फ़ा हो गए कि उन्होंने लगभग डांटते हुए मदन मोहन से पूछा कि उनकी हिम्मत कैसे हुई नक़ल करने की. मदन मोहन ने भी बात संभालते हुए कहा कि बाक़ी के संगीतकारों की इतनी शानदार कोई भी धुन नहीं है जिसकी नक़ल की जाए!

ऐसे विलक्षण संगीतकार का फ़िल्म इंडस्ट्री ने पूरा सम्मान नहीं किया. इसके पीछे उनका मिजाज ही था. ‘रुस्तम सोहराब’ की सफलता के बावजूद उन्हें काम मिलना बंद हो गया. वे लगभग गुमनाम ही हो गए और 15 जुलाई 1995 को इस दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गए.

साभार https://satyagrah.scroll.in/ से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार