1

सारा नहीं ंकाली दासी कहिये

अब इनका नाम काली दासी है। इन्होंने अपने लिए ये नाम स्वयं चुना है। इनका जन्म बंगाल के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था और नाम था सारा। सारा बचपन से सवाल पूछती थी इसलिए परिवार में संदेह के घेरे में रहीं। वो बचपन से मांसाहारी नहीं थीं और उन्हें बड़ा अजीब लगता था जब उन्हें मुस्लिम होने के नाते मांस खाने के लिए मजबूर किया जाता था। अपने एक लेख में सारा स्वयं लिखती हैं कि उन्हें बचपन में इस तरह से व्यवहार किया जाता था मानों मुसलमानों में लड़की होना कोई अपराध है। सारी आजादी लड़कों को और सारा प्रतिबंध लड़कियों पर।

थोड़ी बड़ी हुई तो पढाई के लिए हांगकांग चली गयी। वहां जाकर उन्हें धर्म का पता चला। उन्होंने स्वतंत्र रूप से हिन्दू धर्म का अध्ययन शुरु किया और धीरे धीरे उनकी रुचि बढ़ती चली गयी। लेकिन तब भी उन्होंने इस्लाम नहीं छोड़ा। लौटकर वापस आयीं तो एक मुस्लिम नौजवान से ही लव मैरिज कर लिया। लेकिन थोड़े दिन बाद जब अपने बेडरूम में उन्होंने अपने शौहर को किसी गैर औरत के साथ देखा तो उनके पैरों के नीचे जमीन खिसक गयीं। सवाल किया तो जवाब मिला हमारे यहां मर्द जितनी चाहे औरतें रख सकता है। इस्लाम में औरतों को सवाल उठाने का अधिकार नहीं है।

इस घटना ने सारा को औरत से स्त्री बनने की तरफ अग्रसर किया। वो एक साध्वी बन गयीं और अपना नाम काली दासी रख लिया। अब वो इस्लाम में औरतों की स्थिति पर खुलकर बोलती हैं और बताती हैं कि यहां किशोरी से लेकर बूढी औरत तक सभी की जिन्दगी सिर्फ मर्द को खुश रखने तक सीमित हैं।

इसलिए वह गर्व से कहती हैं कि अब मैं अपने मूल सनातन धर्म में वापस लौट आयी हूं। उनका कहना है कि चार पीढी पहले न जाने किस लालच में मेरा परिवार इस्लाम के रास्ते पर चला गया था। चार पीढी पहले वो हिन्दू क्षत्रिय थे। अब जब काली दासी ने अपनी घर वापसी कर लिया है तब उन्हें लगता है कि यहां वो जो चाहें वो बन सकती हैं। उनके ऊपर अब कोई मजहबी रोक टोक नहीं है। साध्वी तो खैर बन ही गयी हैं।

काली दासी का यूट्यूब चैनल

https://youtube.com/c/SarahKaliDasi