Wednesday, April 17, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवकविरत्न प्रकाश जी के भजनों में कहावतें

कविरत्न प्रकाश जी के भजनों में कहावतें

कविरत्न प्रकाश जी आर्य समाज के जाने माने संगीतज्ञ , कवि तथा भजनोपदेशक थे| आर्य समाज के सर्वश्रेष्ठ भजनोपदेशकों में आप का नाम बड़े ही आदर भाव से लिया जाता है| आप उच्चकोटि के कवि तथा संगीतज्ञ थे| आप की रग-रग में मह्रिषी से प्राप्त उमंग भरी हुई थी | जब आप अपने ही भजनों को गाते थे तो जन समुदाय मन्त्र मुग्ध हो जाता था| आप के शास्त्रीय संगीत के कारण भी आप को बड़े ही आदर की दृष्टि से देखा जाता था| आप ने ईश-वन्दना दयानंद गुणगान, वैदिक आर्य सिद्धांत के साथ ही साथ भारतीय इतिहास की वीरगाथाओं को अपनी कलम का भाग बनाया| आप के गीतों का इतना आकर्षण आज भी है कि देहांत के लगभग चालीस वर्ष पश्चात् भी आप के गीतों की मांग आर्य जगत् में निरंतर बनी हुई है|
प्रकाश जी के गीत
वेदों का डंका आलम में बजवा दिया ऋषि दयानंद ने
हर तरफ ओउम् का झंडा फिर फहरा दिया ऋषि दयानंद ने

की धूम लिखे जाने के लगभग 95 वर्ष बाद भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है| इतना ही नहीं प्रकाश जी ने प्रत्येक आर्य को यह भी सन्देश दिया कि वह अपने आप को अकेला न समझे क्योंकि अकेले व्यक्ति में भी यदि साहस हो तो वह बहुत कुछ कर सकता है| इस सन्देश को देते हुए भी उन्होंने एक गीत रचा| इस गीत का कुछ भाग अवलोकनार्थ दे रहा हूँ :
यह मत कहो कि जग में कर सकता क्या अकेला |
लाखों में काम करता इक शूर्मा अकेला||

इस भजन अथवा इस प्रेरक गीत ने जन मानस को भरपूर प्रेरित किया है| सब आर्यों को ही नहीं अपितु सब लोगों को प्रेरित करते हुए यह सन्देश दिया है कि अपने आप को कभी अकेला मत समझो| विशाल मुगल सेना का सामना शिवाजी ने जिस प्रकार अकेले ही किया था , जिस प्रकार जंगल में शेर अकेला ही होता है किन्तु जंगल के लाखों जीव होते हुए भी उसका सामना करने वाल कोई नहीं होता, जिस प्रकार रेल गाडी के अनेक डिब्बे होते हुए भी उन्हें खींच कर ले जाने वाला इंजन अकेला ही होता है| इसलिए हे मनुष्य! आई हुई विपत्ति से घबरा नहीं| इसका डट कर सामना कर| अपने आप को अकेला मान कर निराश होकर मत बैठ, साहस को मत छोड़, हिम्मत से काम ले| जब साहस, हिम्मत, वीरता, शौर्य तेरे पास होगा तो तु आई हुई बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना भी अकेले ही बड़ी सरलता से कर सकेगा| कविरत्न प्रकाश जी के इस गीत को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी खूब अपनाया और कभी यह गीत उनकी शाखाओं व शिविरों में बार बार-गाया जाता था और आज भी इसे गाते हैं|

प्रकाश जी ने इस प्रकार के गीतों के साथ ही साथ बहुत सी लोकोक्तियों को भी अपने भजनों का अंग बनाया| अपने भजनों के माध्यम से वैदिक सिद्धांत चर्चा तथा महर्षि दयानंद गुणगान में इन कहावतों का अत्यधिक प्रयोग किया गया है| इन कहावतों के प्रयोग से प्रकाश जी के गीतों के बल व कला में अत्यधिक वृद्धि हुई है| देखें थोथा चना बाजे घना नामक कहावत का प्रयोग करते हुए प्रकाश जी ने गीत में कितना आकर्षण पैदा कर दिया है:-
इस मौन में शक्ति अपूर्व, यही,धन धर्म लुटा रहे थे जन भोले |
मुख सीप ने बंद किया जब ही जल – बिंदु अमोलक मुक्त बना ||
सारे काज “प्रकाश” सरे उससे, जो व्यर्थ फाड़ता गला अपना |
कहता कब हीरा मैं लाख का हूँ “बस थोथा चना बाजे घना” |

कोई भी कवि जब कुछ पंक्तियों की रचना करता है तो उसके पीछे कुछ गहरा भाव छुपा होता है| इन पंक्तियों की विवेचना से भी कुछ ऐसा ही भाव दिखाई देता है| इन पंक्तियों में प्रकाश जी आरम्भ करते हुए मौन की शक्ति की चर्चा करते हुए उपदेश कर रहे हैं कि हे मानव| मौन में अत्यधिक शक्ति होती है| इसलिए मौन को कभी हाथ से मत जाने दो किन्तु इस शक्ति का दुरुपयोग भी होता है जब शौर्य दिखाने का समय आता है तो मौन शक्ति नहीं रहता किन्तु हमारे देश के नौजवान मौन रहते हुए विदेशियों के हाथों न केवल अपना धन ही लुटा रहे थे अपितु धर्म भ्रष्ट भी हो रहे थे| विदेशी आक्रान्ता हमारे देशवासियों का धन तो लूट ही रहे थे साथ ही इन्हें जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए भी बाध्य कर रहे थे| देश का बुरा हाल हो रहा था|

दूसरी तरफ देखिये मौन की शक्ति को, जल के मौन का कितना महत्त्व है| समुद्र में एक सींप पड़ी थी, जिसका मुंह खुला था| बड़े शांत भाव से चुपचाप, बिना किसी हलचल के जल की एक बूंद धीरे से उस के अन्दर जा बैठी| ज्यों ही बूंद अन्दर गई सींप का मुंह बंद हो गया| जल घबराया नहीं, चुप रहा और इसका परिणाम क्या निकला कि जल की वह बूंद एक मूल्यवान् मोती में बदल गई| यहाँ पर मौन के कारण जल की बूंद की कितनी कीमत बढ़ जाती है यह भी दर्शनीय सन्देश दिया गया है| इसलिए कहा है कि जहाँ मौन की आवश्यकता हो वहां मौन रहना चाहिए और जहां ललकारने की आवश्यकता हों, वहां कभी शांत नहीं बैठना चाहिए|

प्रकाश जी आगे कहते हैं कि उस व्यक्ति के काम कभी पूर्ण नहीं होते, जो व्यक्ति बिना ही कारण गला फाड़ फाड़ कर शोर करता रहता है| इस प्रकार गला फाड़ते रहने का कुछ भी लाभ नहीं होता क्योंकि हीरे ने कभी अपना मोल नहीं बताया| बस पारखी उसे देखते ही उसका मोल लगा लेता है जबकि ढोल यूँ ही गला फाड़ता रहता है| यह तथ्य सत्य है कि:-थोथा चना बाजे घना।

इसलिए व्यर्थ चिल्लाते रहने से अच्छा है कि अधिक शोर न कर केवल तथ्य पर दो शब्द ही बोलें तो उनका महत्व बढ़ जावेगा जबकि यूँ ही चिल्लाने वाले को कोई कभी पसंद नहीं करेगा |

डॉ. अशोक आर्य
पाकेट १/६१ रामप्रस्थ ग्रीन से ७
वैशाली,गाजियाबाद उ प्र भारत
चलभाष : ९३५४८४५४२६ व्ह्ट्स एप्प ९७१८५२८६८
E Mail [email protected]

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार