Thursday, April 25, 2024
spot_img
Home Blog

प्रेम, भक्ति और करुणा की देवी राधा

राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है। यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।

राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी सदियों बाद भी लोगों के दिलो दिमाग में ताजा है। यह एक ऐसा प्रेम है जिसमें किसी ने कृष्ण भक्ति की राह देखी, तो किसी ने इस कहानी को विरह का गीत समझकर गुनगुनाया है तो किसी ने इसे त्याग के चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया है। कृष्ण और राधा का प्रेम जितना चंचल और निर्मल रहा, उतना ही जटिल और निर्मम भी। सदियों से भले ही कृष्ण के साथ राधा का नाम लिया जाता रहा है, लेकिन प्रेम की ये कहानी कभी पूरी नहीं हो पाई है। एक तरह से आधी अधूरी सी फिर भी स्थाई ही रही है ये।

आज भी ये प्रश्न उठता है कि राधा और कृष्ण का प्रेम कभी शादी के बंधन में क्यों नहीं बंध पाया ? जिस अंतरंगता से कृष्ण और राधा ने एक दूसरे को चाहा, वो रिश्ता विवाह तक क्यों नहीं पहुंचा? क्यों संसार की सबसे बड़ी प्रेम कहानी विरह का गीत बनकर रह गई? क्या वजह है कि राधा से सच्चे प्रेम के बावजूद कृष्ण ने रुकमणी को अपना जीवनसाथी चुना था? जब कृष्ण और राधा शाश्वत प्रेम में थे, तो कृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह क्यों किया, राधा से नहीं ? क्योंकि राधा और रुक्मिणी एक ही हैं इसलिए कृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह किया था।

उनकी कुल 8 पत्नियों का जिक्र मिलता है, लेकिन उनमें राधा का नाम नहीं है। इतना ही नहीं कृष्ण के साथ तमाम पुराणों में राधा का नाम नहीं मिलता है। यद्यपि मन्दिरों में इसी युगल की लोग पूजा और आराधना करते चले आ रहे हैं।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात श्री राधा का विधि पूर्वक विवाह भांडीरवन मे संपन्न कराया था। इस विवाह का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता में भी मिलता है। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है। भारत के धार्मिक सम्प्रदाय-निम्बार्क संप्रदाय, गौड़ीय वैष्णववाद, पुष्टिमार्ग, राधावल्लभ संप्रदाय, स्वामीनारायण संप्रदाय, प्रणामी संप्रदाय, हरिदासी संप्रदाय और वैष्णव सहिज्य संप्रदाय में राधा को कृष्ण के साथ पूजा जाता है।

भगवत गीता से महाभारत तक कहीं नहीं है राधा जी का नाम:-

शुकदेव जी को साक्षात् श्रीकृष्ण से मिलाने वाली राधा है और शुकदेव जी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। इस कारण राधा एक का जिक्र नही किया है।

राधा का अंतिम समय कहां बीता और किन हालात में राधा ने जीवन के अंतिम क्षण बिताए। जिस राधा को कृष्ण की परछाई समझा जाता था, उसका क्या हुआ? ये सब एक रहस्य बन चुका है। राधा का नाम भगवत गीता से लेकर महाभारत तक कहीं नहीं मिलता है। राधा के बिना जिस कृष्ण को अधूरा माना गया है, उनकी कथाओं में राधा का नाम तक नहीं है। इस रहस्य को समझने के लिए उनके धरती पर उतरने की वजहों को जानना होगा।

ऐसा कहा जाता है कि राधा धरती पर कृष्ण की इच्छा से ही आई थीं। भादो के महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी के अनुराधा नक्षत्र में रावल गांव के एक मंदिर में राधा ने जन्म लिया था। यह दिन राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। कहते हैं कि जन्म के 11 महीनों तक राधा ने अपनी आंखें नहीं खोली थी। कुछ दिन बाद वो बरसाने चली गईं। जहां पर आज भी राधा-रानी का महल मौजूद है।

राधा और कृष्ण की पहली मुलाकात भांडिरवन में हुई थी। नंद बाबा यहां गाय चराते हुए कान्हा को गोद में लेकर पहुंचे थे। कृष्ण की लीलाओं ने राधा के मन में ऐसी छाप छोड़ी कि राधा का तन-मन श्याम रंग में रंग गया। कृष्ण-राधा की नजरों से ओझल क्या होते, वो बेचैन हो जाती। वो राधा के लिए उस प्राण वायु की तरह थे जिसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल था।

सुदामा ने दिया था राधा को श्रापः कहते हैं कि राधा को कृष्ण से विरह का श्राप किसी और से नहीं बल्कि श्री कृष्ण के परम मित्र सुदामा से मिला था। वही सुदामा जो कृष्ण के सबसे प्रिय मित्र थे। सुदामा के इस श्राप के चलते ही 11 साल की उम्र में कृष्ण को वृन्दावन छोड़कर मथुरा जाना पड़ा था। श्रीकृष्ण और राधा गोलोक एक साथ निवास करते थे।एक बार राधा की अनुपस्थिति में कृष्ण विरजा नामक की एक गोपिका से विहार कर रहे थे। तभी वहां राधा आ पहुंची और उन्होंने कृष्ण और विरजा को अपमानित किया।

इसके बाद राधा ने विरजा को धरती पर दरिद्र ब्राह्मण होकर दुख भोगने का श्राप दे दिया। वहां मौजूद सुदामा ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने उसी वक्त राधा को कृष्ण से बरसों तक विरह का श्राप दे दिया था। 100 साल बाद जब वे लौटे तब बाल रूप में राधा कृष्ण ने यशोदा के घर में प्रवेश किया, वहां रहे और बाद में सबको मोक्ष देकर खुद भी गोलोक लौट गए।

श्रीकृष्ण ने क्यों नहीं किया राधा से विवाह?
राधा रानी ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है। कृष्ण की होकर भी उनकी न हो पाने का मलाल राधा को हमेशा रहा।अंतिम समय में जब राधा ने खुद को अपनी अर्धांगनी न बनाने का कारण कृष्ण पूछा तो कृष्ण वहां से बिना कुछ कहे चल पड़े। राधा क्रोधित हो गईं और चिल्लाकर ये सवाल दोबारा किया। राधा के क्रोध को देख कृष्ण मुड़े तो राधा भी हैरान रह गईं। कृष्ण राधा के रूप में थे। राधा समझ गईं कि वो भी कृष्ण ही हैं और कृष्ण ही राधा है। दोनों में कोई फर्क नहीं है। कृष्ण अपने निज आनंद को प्रेम विग्रह राधा के रूप में प्रकट करते हैं। और उस आनंद के रस का आस्वादन करते रहते हैं। राधा कृष्ण की प्रिय शक्ति है, जो स्त्री रूप मे प्रभु के लीलाओं मे प्रकट होती हैं । “गोपाल सहस्रनाम” के 19वें श्लोक मे वर्णित है कि महादेव जी द्वारा जगत देवी पार्वती जी को बताया गया है कि एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव (श्री कृष्ण) तथा ये रहस्य स्वयं श्री कृष्ण द्वारा राधा रानी को बताया गया है।अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं।

राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात श्री राधा का विधि पूर्वक विवाह भांडीरवन मे संपन्न कराया था। इस विवाह का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता में भी मिलता है। बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है। राधा कृष्ण की न होकर आज भी उनके साथ पूजनीय हैं. राधा-कृष्ण के प्रेम की ये कहानी आधीअधूरी होकर भी अमर है।

आचार्य पंडित मोहन प्यारे द्विवेदी ‘मोहन’ ने अपने “मोहन शतक” में राधा कृष्ण के दिव्य स्वरूप को इन शब्दो में व्यक्त किया गया है–
कभी भोली राधिका उठा तू गोद लेते थे।
नंदजी को नंदित किए हो खेल बार-बार,
अम्ब जसुदा को तू कन्हैया मोद देते थे।
कुंजन में कुंजते खगों के बीच प्यार भरे,
हिय में दुलार ले उन्हें विनोद देते थे।
देते थे हुलास ब्रज वीथिन में घूम- घूम
मोहन अधर चूमि तू प्रमोद देते थे।
नाचते कभी थे ग्वाल- ग्वालिनों के संग,
कभी भोली राधिका उठा तू गोद लेते थे।।

(लेखक अध्यात्मक व धार्मिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में पुस्तकालय सूचनाधिकारी रहे हैं)

image_print

भारत में तीर्थाटन छू रहा है नित नई ऊचाइयाँ

हाल ही के समय में भारत के नागरिकों में “स्व” का भाव विकसित होने के चलते देश में धार्मिक पर्यटन बहुत तेज गति से बढ़ा है। अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रत्येक दिन औसतन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह तो केवल अयोध्या की कहानी है इसके साथ ही तिरुपति बालाजी, काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन में महाकाल लोक, जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर, उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमनोत्री जैसे कई मंदिरों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। भारत में धार्मिक पर्यटन में आई जबरदस्त तेजी के बदौलत रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं, जो देश के आर्थिक विकास को गति देने में सहायक हो रहे हैं।

जेफरीज नामक एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज कम्पनी ने बताया है कि अयोध्या में निर्मित प्रभु श्रीराम के मंदिर से भारत की आर्थिक सम्पन्नता बढ़ने जा रही है। दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में सम्पन्न हुए प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद स्थानीय कारोबारी अपना उज्जवल भविष्य देख रहे हैं। अयोध्या धार्मिक पर्यटन का हब बनाने जा रहा है तथा अब अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बनने जा रहा है। जेफरीज के अनुसार अयोध्या में प्रति वर्ष 5 करोड़ से अधिक पर्यटक आ सकते हैं।

अभी अयोध्या में केवल 17 बड़े होटल हैं इनमें कुल मिलाकर 590 कमरे उपलब्ध हैं। लेकिन, अब 73 नए होटलों का निर्माण किया जा रहा है।  इनमें से 40 होटलों का निर्माण कार्य प्रारम्भ भी हो चुका है। अभी तक नए एयरपोर्ट, रेल्वे स्टेशन, टाउनशिप और रोड कनेक्टिविटी में सुधार जैसे कामों पर 85,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। इस निवेश का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर दिखाई देने जा रहा है। शीघ्र ही अयोध्या वैश्विक स्तर पर धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में उभरेगा। इससे होटल, एयरलाईन, हॉस्पिटलिटी, ट्रैवल, सिमेंट जैसे क्षेत्रों को बहुत बड़ा फायदा होने जा रहा है। भारत के विभिन्न शहरों से 1000 के आसपास नई रेल अयोध्या के लिए चलाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पूरे देश से दिनांक 23 जनवरी 2024 के बाद से प्रतिदिन भारी संख्या में धार्मिक पर्यटक अयोध्या पहुंच रहे हैं। यह हर्ष का विषय है कि पहिले दिन ही 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रभु श्रीराम के दर्शन किये हैं।

विश्व के कई अन्य देश भी धार्मिक पर्यटन के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्थाएं सफलतापूर्वक मजबूत कर रहे हैं। सऊदी अरब धार्मिक पर्यटन से प्रति वर्ष 22,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर अर्जित करता है। सऊदी अरब इस आय को आगे आने वाले समय में 35,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाना चाहता है। मक्का में प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोग पहुंचते हैं, जबकि मक्का में गैर मुस्लिम के पहुंचने पर पाबंदी है। इसी प्रकार, वेटिकन सिटी में प्रतिवर्ष 90 लाख लोग पहुंचते हैं। इस धार्मिक पर्यटन से अकेले वेटेकन सिटी को प्रतिवर्ष लगभग 32 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय होती है, और अकेले मक्का शहर को 12,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आमदनी होती है।

अयोध्या में तो किसी भी धर्म, मत, पंथ मानने वाले नागरिकों पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं होगी। अतः अयोध्या पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 5 से 10 करोड़ तक प्रतिवर्ष जा सकती है। फिर अकेले अयोध्या नगर को होने वाली आय का अनुमान तो सहज रूप से लगाया जा सकता है। अभी अयोध्या आने वाले श्रद्धालु अयोध्या में रूकते नहीं थे प्रात: अयोध्या पहुंचकर प्रभु श्रीराम के दर्शन कर शाम तक वापिस चले जाते थे परंतु अब अयोध्या को इतना आकर्षक रूप से विकसित किया गया है कि श्रद्धालु 3 से 4 दिन रुकने का प्रयास करेंगे। एक अनुमान के अनुसार, प्रत्येक पर्यटक लगभग 6 लोगों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है। इस संख्या के हिसाब से तो लाखों नए रोजगार के अवसर अयोध्या में उत्पन्न होने जा रहे हैं। अयोध्या के आसपास विकास का एक नया दौर शुरू होने जा रहा है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब अयोध्या के रूप में वेटिकन एवं मक्का का जवाब भारत में खड़ा होने जा रहा है।

धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने भी धरातल पर बहुत कार्य सम्पन्न किया है। साथ ही, अब इसके अंतर्गत एक रामायण सर्किट रूट को भी विकसित किया जा रहा है। इस रूट पर विशेष रेलगाड़ियां भी चलाए जाने की योजना बनाई गई है। यह विशेष रेलगाड़ी 18 दिनों में 8000 किलो मीटर की यात्रा सम्पन्न करेगी, इस विशेष रेलगाड़ी के इस रेलमार्ग पर 18 स्टॉप होंगे। यह विशेष रेलमार्ग प्रभु श्रीराम से जुड़े ऐतिहासिक नगरों अयोध्या, चित्रकूट एवं छतीसगढ़ को जोड़ेगा। अयोध्या में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर वैश्विक पटल पर इस रूट को भी  रखेगा।

केंद्र सरकार द्वारा भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगातार किए जा रहे प्रयासों का परिणाम भी अब दिखाई देने लगा है। “मेक माई ट्रिप इंडिया ट्रैवल ट्रेंड्स रिपोर्ट” के अनुसार, भारत के नागरिक अब पहले के मुकाबले अधिक यात्रा कर रहे हैं। भारत के नागरिकों द्वारा विशेष रूप से अयोध्या, उज्जैन एवं बदरीनाथ जैसे आध्यात्मिक स्थलों के बारे में अधिक जानकारी हासिल की जा रही है। उक्त जानकारी  “मेक माई ट्रिप” के प्लेटफार्म के 10 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं से प्राप्त जानकारी के आधार पर सामने आई है।

वर्ष 2019 के बाद से भारत में एक वर्ष में तीन से अधिक यात्राएं करने वाले लोगों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। उक्त रिपोर्ट के अनुसार, आध्यात्मिक पर्यटन सम्बंधी जानकारी हासिल करने की गतिविधियों में वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2023 में 97 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से अयोध्या के सम्बंध में जानकारी हासिल करने सम्बंधी गतिविधियों में वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 585 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज हुई है। इसी प्रकार, उज्जैन एवं बदरीनाथ जैसे धार्मिक स्थलों के सम्बंध में भी जानकारी हासिल करने वाले नागरिकों की संख्या में क्रमशः 359 प्रतिशत और 343 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। भारत में अब पारिवारिक यात्रा की बुकिंग भी बहुत तेज गति से बढ़ रही है। इसमें वर्ष 2022 के तुलना में वर्ष 2023 में 64 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी अवधि में एकल यात्रा की बुकिंग में केवल 23 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

उक्त जानकारी को भारत के नागरिक विमानन मंत्रालय द्वारा जारी एक जानकारी से भी बल मिलता है कि भारत में घरेलू हवाई यातायात अब एक नए मुकाम पर पहुंच गया है। दिनांक 21 अप्रेल 2024 (रविवार) को रिकार्ड 471,751 यात्रियों ने 6,128 उड़ानों के माध्यम से, भारत में हवाई सफर किया है। इसके पूर्व हवाई यातायात करने वाले नागरिकों की औसत संख्या, कोरोना महामारी के पूर्व के खंडकाल में, 398,579 यात्रियों की थी। इसमें 14 प्रतिशत  वृद्धि दर्ज की गई है।

देश में धार्मिक पर्यटन में हो रही भारी वृद्धि के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में भी तेजी दिखाई देने लगी है। वित्तीय वर्ष 2023-24 की तृतीय तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर ने भारत सहित विश्व के समस्त आर्थिक विश्लेशकों को चौंका दिया है। इस दौरान, भारत में सकल घरेलू उत्पाद में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हासिल हुई है जबकि प्रथम तिमाही के दौरान वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत एवं द्वितीय तिमाही के दौरान 7.6 प्रतिशत की रही थी। पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही थी। जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था।

इसी प्रकार, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा ने 6.5 प्रतिशत, एशिया विकास बैंक एवं बार्कलेस एवं प्राइस वॉटर कूपर्स ने 6.7 प्रतिशत, डेलाईट इंडिया ने 7 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। परंतु, समस्त विदेशी संस्थानों के अनुमानों के झुठलाते हुए भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 8 प्रतिशत की रही है। यह सब देश में लगातार बढ़ते धार्मिक पर्यटन एवं विभिन त्यौहारों तथा शादी जैसे समारोहों पर भारतीय नागरिकों द्वारा दिल खोलकर पैसा खर्च करने के चलते सम्भव हो पा रहा है। इससे त्यौहारों एवं शादी के मौसम में व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर होती है।

जैसे दीपावली त्यौहार के समय भारत में नागरिकों के बीच विभिन्न नए उत्पादों की खरीद के लिए जैसे आपस में होड़ सी लग जाती है। भारत में लाखों करोड़ रुपए का व्यापार दीपावली त्यौहार के समय में होता है। इसी प्रकार की स्थिति शादियों के मौसम में भी पाई जाती है। संभवत: विदेशी वित्तीय संस्थान भारत में हो रहे इस तरह के उक्त वर्णित परिवर्तनों को समझ नहीं पा रहे हैं एवं केवल पारंपरिक विधि से ही सकल घरेलू उत्पाद को आंकने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए भारत की विकास दर के संबंच में विभिन्न विदेशी संस्थानों के अनुमान गलत साबित हो रहे हैं।

image_print

संसदीय लोकतंत्र : संविधान और कार्यान्वयन

15 अगस्त, 1947 को पराधीन भारत ब्रिटिश दासता से मुक्ति प्राप्त किया और गंभीर चिंतन, गहन मनन और विचार- विमर्श के पश्चात हमने लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को ग्राह्य किया और संविधान (राष्ट्र-राज्य की सर्वोच्च विधि) की रचना के लिए संविधान सभा का गठन किया जिसके द्वारा सर्वोत्कृष्ट  संविधान तैयार किया गया और 26 जनवरी, 1950 को अपने संविधान को आत्माप्रीत किए। विपक्ष, बड़बोले नेताओं और सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से सवाल उठाए जा रहे हैं कि संविधान और लोकतंत्र खतरे में है?
संविधान की उद्देशिका में उल्लेखित विचार, आदर्श और मौलिक सिद्धांत भारत की मूलभूत प्रकृति को निर्धारित करती हैं। संविधान की उद्देशिका जो शासन के लिए प्रकाश स्तंभ होता है जिसको शासक लोकतांत्रिक संस्कृति में क्रियान्वित करता है। संविधान के उद्देशिका ‘हम भारत के लोग’ से शुभारंभ होती है जो यह संप्रेषित करता है कि भारत एक संप्रभु (जो वाह्य और आंतरिक रूप से स्वतंत्र हो), समाजवादी (संसाधन पर सार्वजनिक नियंत्रण), पंथनिरपेक्ष (राज्य का अपना कोई निजी धर्म नहीं है अर्थात राज्य धर्म के विषय में तटस्थ है) और लोकतांत्रिक गणराज्य (राज्य का संवैधानिक प्रधान /प्रमुख जनता के द्वारा निर्वाचित हो) एवं लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए यह संविधान स्वयं को आत्मा प्रीत किया है और राज्य को प्रत्येक नागरिक के साथ समानता, स्वतंत्रता, न्याय और आपसी बंधुता बनाए रखने का सिद्धांत प्रतिपादित करता है ।
संविधान की उद्देशिका यह संकेत करती है कि संविधान किसके द्वारा, किस लिए और कब बनाया गया है? उद्देशिका मूलतः
१. सत्ता का स्रोत;
2.  राज्य और सरकार का स्वरूप;
३. शासन व्यवस्था के लक्ष्य और
4. संविधान के अधिनियमन।
भारत के संविधान की प्रस्तावना ‘हम भारत के लोग’ शब्दों से प्रारंभ होती है जो इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि भारत के संविधान का स्रोत जनता है और राजनीतिक सत्ता अंतिम रूप से जनता में है, जिसका प्रयोग करते हुए जनता ने स्वेच्छा से संविधान का निर्माण अथवा अपनी पसंद की शासन व्यवस्था को स्थापित किया है। प्रस्तावना का अंतिम भाग भी इस तथ्य  की पुष्टि करता है कि भारत में अंतिम सत्ता का स्रोत जनता है और  समस्त शक्तियों का स्रोत जनता है।
भारत वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक बृहद एवं जीवंत लोकतांत्रिक राज्य (देश) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि लोकतंत्र के केंद्र में जनता है, जिसने 17 आम चुनाव में अपने विवेकी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से मताधिकार का प्रयोग कर सत्ता के सुचारू हस्तांतरण का मार्ग सुनिश्चित किया है और राजनीतिक इतिहास में 10 बार निर्वाचित सरकार बदली है। यह लोकतांत्रिक राजनीतिक यात्रा संविधान के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन, लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था और लोकतांत्रिक जीवन पद्धति का पाथेय है। भारत में उदार राजनीतिक व्यवस्था है। व्यक्ति स्वतंत्रता और अधिकार से बड़ा सामूहिक मौलिक कर्तव्य एवं सामूहिक बोध भावना है। भारत बहुसांस्कृतिक देश होने के साथ पंथनिरपेक्षता की अवधारणा राज्य के व्यक्तित्व में है। भारतीय परंपरा हमारे विचार, व्यवहार और आचरण में प्रतिबिंबित है। लोकतंत्र की सफलता के पीछे लोक की सामूहिक ऊर्जा, निष्ठा एवं मनोयोग होता है।
भारत में संसद  (विधायिका) को सर्वोच्च स्थिति प्राप्त है। वह राष्ट्र की सर्वोच्च पंचायत है एवं भारत के लोगों की निष्ठा का सर्वोच्च मंदिर है। संसद जनसदन और राज्यों की परिषद की अभिव्यक्ति है। संसद मौलिक रूप में जनता का प्रतिनिधित्व करती है। संसद को विधान बनाने, कार्यपालिका पर प्रासंगिक नियंत्रण स्थापित करने, राष्ट्र के खर्चों पर नियंत्रण रखने और संवैधानिक प्रतिनिधियों के व्यवहारों का नियंत्रण करती है। भारत में विधायिका भी संविधान वाद के अंतर्गत कार्य करती है।
लोकतंत्र और संसदीय परंपरा में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी अपने संवैधानिक दायरे में रहकर अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन करते हैं और संवैधानिक दायरे में रहकर प्रत्येक अंग एक दूसरे की सीमाओं का यथोचित सम्मान करते हैं। यही लोकतांत्रिक सार की आत्मा है। भारत में संसद का मौलिक उपादेयता विधान बनाना, प्रशासन की निगरानी करना, बजट पारित करना, लोक समस्याओं का निवारण करना और राष्ट्रीय नीतियों पर विचार-विमर्श करना है। भारत के संविधान के अंतर्गत संघीय मंत्री परिषद सामूहिक रूप से निम्न सदन/ लोकप्रिय सदन के प्रति उत्तरदाई होती है।  संसद अलग-अलग मंत्रालयों से संबंधित अनुदानों की मांगों पर चर्चा और मतदान करने के पश्चात राष्ट्र-राज्य के बजट को अनुमोदित करती हैं।
भारत की संसद ने कई उपलब्धियां के साथ अपनी उपादेयता को कायम रखे हैं। कई उल्लेखनीय विधानों के माध्यम से विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने, भूमि सुधार अधिनियम, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय आयोगों की स्थापना, पंचायत और स्थानीय निकायों के शक्तियों का हस्तांतरण एवं महिलाओं के लिए पंचायत और शहरी तथा स्थानीय निकायों में कुल स्थान के कम से कम एक तिहाई आरक्षण हेतु महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए है। यह सभी विधायन सामाजिक परिवर्तन के लिए अति आवश्यक हैं। संसद ने इन सभी क्षेत्रों में विधान  बनाकर संसदीय परिपक्वता और विवेक का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
भारत की विधायिका समय के साथ आने वाली विभिन्न आकस्मिकताओं से निवारण के लिए निरंतर नए नवोन्मेष कर रही है। संसद राष्ट्रीय परंपरा के मजबूती के लिए कई पद्धतियों और पारस्परिक परंपराओं को विकसित किया है। 30 मिनट की चर्चा, अल्पकालिक चर्चा, ध्यान आकर्षण प्रस्ताव, लोकसभा में नियम 377 और राज्यसभा में विशेष उल्लेख के साथ मामलों को उठाया जाना इत्यादि भारतीय नवोन्मेष  की देन है।
हमारा लोकतंत्र एक सक्रिय, जीवंत, ऊर्जावान और मजबूत लोकतंत्र विभिन्न राजनीतिक दल, नागरिक समाज, विपक्ष और निजी सदस्य अपने बातों को पूरी संचेतना, ऊर्जा और मजबूती के साथ रखते हैं, और दबाव डालकर अपने बातों को मनवाने का प्रयास करते हैं। संविधान सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने के साथ एक समावेशी शासन व्यवस्था एवं समावेशी समाज की स्थापना में सहयोग दिया है।
 
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
image_print

ज़ोडियाक ने पेश किया 2024 पोसिटानो प्योर लिनेन संग्रह

लिनेन कपड़ा बुनाई में उपयोग किए जाने वाले सबसे पुराने फाइबर्स में से एक है। सन के पौधे के तने से बुना गया इसे दुनिया के सबसे मजबूत प्राकृतिक फाइबर के रूप में पहचाना जाता है। लिनेन के कपड़े की बुनाई शरीर में हवा के स्वतंत्र आवागमन को सुनिश्चित करती है, जिससे यह गर्मियों के लिए एक आइडल गारमेंट बन जाता है।

ज़ोडियाक लिनेन का उपयोग करता है, जो फ्रांस के नॉर्मंडी क्षेत्र में उगाए गए सन से बुना जाता है, जो दुनिया में सबसे अच्छी क्वालिटीज में से एक है। इस क्षेत्र की अद्वितीय मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के साथ साथ स्थानीय सन उत्पादकों द्वारा पीढ़िसों से मिली विरासत के परिणामस्वरूप लम्बे, अधिक पतले सन के पौधे मिलते हैं, जिससे बहुत उच्च गुणवत्ता वाले लिनन कपड़े प्राप्त होते हैं।

लिनेन शर्ट हर बार धोने और पहनने के साथ अधिक आरामदायक हो जाती है, वास्तव में कृत्रिम, नेचूरली रिंकल्ड केवल आपके ग्रीष्मकालीन लुक की सुंदरता को बढ़ाते है।

2024 पोसिटानो प्योर लिनेन कलेक्शन के बारे में :-

इस कलेक्शन का कलर पैलेट इटैलियन रिवेरा पर अमाल्फी तट पर स्थित एक अनूठे शहर पोसिटानो के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य को दर्शाता है । बेज, गुलाबी, पीले और टेराकोटा के घर, जो पहाड़ियों के किनारे से क्रिस्टल नीले भूमध्यसागरीय पानी तक गिरते हैं।

वे शॉर्ट और लॉन्ग  दोनों आस्तीनों में सॉलिड लाइन और चेक की एक विस्तृत रेंज में उपलब्ध हैं और एक बहुत ही सुंदर पहनावे के लिए इसे ज़ोडियाक लिनेन जैकेट, ट्राउजर और बंदगला के साथ एक जोड़ कहा जा सकता है।

लॉन्च के बारे में जेडसीसीएल के वाइस चेयरमैन और एमडी श्री सलमान नूरानी ने कहा, ज़ोडियाक के 2024 पॉसिटानो कलेक्शन में शर्ट के रंग फ्रेंच फ्लैक्स से बुने हुए लिनेन फैब्रिक में इटैलियन रिवेरा के रंगों को दर्शाते हैं।

ज़ोडियाक के 2024 पोसिटानो संग्रह का पूर्वावलोकन कैसे करें

शॉप ऑनलाइन

इन-स्टोर: आपके नजदीकी ज़ोडियाक स्टोर के लिए 8454936004 पर “हैलो” व्हाट्सएप करें।

ज़ोडियाक क्लोथिंग कम्पनी लिमिटेड (जेडसीसीएल) एक एकीकृत, ट्रांस-नेशनल कम्पनी है जो डिज़ाइन, निर्माण, वितरण से लेकर रिटेल सेल तक संपूर्ण कपड़ों की रेंज को नियंत्रित करती है। भारत में निर्माण आधार और भारत, ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका में बिक्री कार्यालयों के साथ जेडसीसीएल में लगभग 2500 लोग कार्यरत हैं। कम्पनी अपने मुम्बई कॉर्पोरेट कार्यालय में 5000 वर्ग फुट का इटैलियन प्रेरित डिज़ाइन स्टूडियो संचालित करती है, जो लीड गोल्ड प्रमाणित इमारत है। यह ब्राण्ड पूरे भारत में 100 से अधिक कम्पनी प्रबंधित स्टोर्स और 1000 से अधिक मल्टी ब्राण्ड रिटेलर्स के माध्यम से प्रीमियम कीमतों पर बेचा जाता है।

image_print

क्या अमेरिका का भारत विरोधी गुट भारत में स्टालिन-माओ जैसा शासन लाना चाहता है?

प्रथम महायुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस ने रूस में स्टालिन और लेनिन का शासन स्थापित करने में सहयोग किया। साथ ही भारत सहित एशिया के बहुत बड़े क्षेत्र पर उसे जबरन कब्जा करने में सहयोग किया जिससे सोवियत संघ बना।

द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद अपने पुराने मित्र च्यांग काई शेक से दगाबाजी करके संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस ने मुख्य चीन पर माओ त्से तुंग की बर्बर लाल सेना का कब्ज़ा कराया और बाद में उसे और बड़े इलाके में जबरन कब्ज़ा करने में सहयोग किया।

इन दिनों शी जिनपिंग और सोरेस के परम प्रिय राहुल गांधी भारत में भयंकर कम्युनिस्टों की भाषा बोल रहे हैं और संपत्ति के पुन: वितरण की वही मांग कर रहे हैं जिसके द्वारा सोवियत संघ और चीन में लाल सेना के क्रूर और नृशंस लोगों ने किसानों और अन्य निर्दोष नागरिकों की करोड़ों की संख्या में हत्या की और उनकी संपत्ति छीनी और पार्टी के अधिकारियों ने अंतहीन विकृत मानसिकता से घृणित भोग विलास और ऐशो आराम किया ।
राहुल गांधी उसी की तैयारी कर रहे हैं। सफलता असंभव है । परंतु माओ की सफलता भी असंभव थी। संयुक्त राज्य अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस ने सहयोग किया ।

प्रश्न है कि क्या यह तीनों देश या इन तीनों देशों के कुछ गुप्त समूह भारत में भी उसी प्रकार का बर्बर नृशंस और खूनी कम्युनिज्म लाना चाहते हैं क्योंकि राहुल गांधी की संपूर्ण भाषा भयंकर कम्युनिस्ट भाषा है जिसमें संपत्ति के पुनर्वितरण के बहाने लोगों की संपत्ति छीनी जाती है और पार्टी के मुख्य लोग समाज के सभी लोगों पर अत्याचार करते हुए ऐश करते हैं।

पहले दो बार दो बड़े इलाके में अमेरिका इंग्लैंड और फ्रांस कम्युनिज्म ला चुके हैं। उसके द्वारा उन देशों की मूल संस्कृति को नष्ट प्राय करने में सफल हुए हैं।

क्या अब उनमें से किसी का निशाना भारत है?

(लेखक राष्ट्रीय एतिहासिक व अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)

image_print

प्राचीन मंदिरों के अजीब रहस्य 

प्रणय मोहन एक स्वतंत्र शोेधकर्ता हैं और उन्होंने देश व दुनिया के सैकड़ों मंदिरों पर शोध कर उनके वैज्ञानिक रहस्यों का पता लगाया है। वे आधुनिक डिजिटल तकनीक का सहारा लेकर मंदिरों के शिल्प में मौजद रहस्यों की परतें खोलते हैं। अपने यू ट्यूब चैनल पर वे अपने शोध व तथ्यों के बारे में विस्तार से बताते हैं। 
 
भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के प्राचीन मंदिरों में एक गुप्त भाग स्थापित होता है। इसे प्राणला अर्थात श्वास नली कहा जाता है। मंदिर में श्वासनली? ‘मकर प्रणाल’ की अजीब दुनिया के साथ ही इंडोनेशिया के एक मंदिर में एक प्राचीन श्वास नली का परीक्षण के बारे में भी जानिये।
हैलो दोस्तों, आज मैं आपको एक बहुत ही अजीब चीज दिखाने जा रहा हूं जिसे मकर प्राणला कहा जाता है। ठीक है दोस्तों, तो मुझे पुरातत्व में कुछ बहुत ही दुर्लभ चीज़ मिली, ठीक है? इसलिए मुझे नहीं पता कि आपमें से किसी को पता है कि यह क्या है। ज़रा बारीकी से देखें। यह एक अजीब जानवर जैसा दिखता है। ये दोनों टुकड़े एक जैसे ही हैं। वे वास्तव में काफी पुराने हैं, वे 1200 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। ये यहीं इंडोनेशिया में पड़े हैं। ये भारत भी नहीं है, बल्कि ये बेहद दुर्लभ वस्तुएं हैं, जो साबुत पाई जाती हैं। ठीक है? उनमें से अधिकतर टूटे हुए हैं। यदि वे काम कर रहे हैं तो वे बड़े मंदिरों का हिस्सा होंगे, इसलिए ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि आप पूरी चीज़ देख सकें। अब, इसे “मकर प्राणालय” कहा जाता है और यह बहुत दुर्लभ है, क्योंकि मकर प्राणालय हममें से किसी को भी इस तरह पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देते हैं, ठीक है? आप इन्हें कभी पहचान नहीं पाएंगे, लेकिन, अगर आप प्राचीन मंदिर देखेंगे…
मैं आपको दिखाऊंगा कि जब आप उन्हें मंदिरों में लगे हुए देखेंगे तो वे कैसे दिखते हैं, ठीक है। तो आप देख सकते हैं कि यह मकर प्राणालय है जो अभी भी मंदिर में बरकरार है। ये बहुत पुराना है। यह इंडोनेशिया का प्रम्बानन मंदिर है। मकर प्राणालय लगभग 1200 वर्ष पुराना है। इसलिए इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था। तो यह 21वीं सदी है, इसका मतलब है कि यह 1200 साल पुरानी है, लेकिन मकर प्राणालय अभी भी बरकरार है।
अब इस मंदिर के टॉवर में ही देखिये, इतने छोटे से क्षेत्र में आप एक ही पंक्ति में तीन मकर प्राणालय देख सकते हैं। यह प्रम्बानन मंदिर के एक मंदिर के ठीक एक तरफ है। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि पूरे मंदिर परिसर में कितने मकर प्राणालय कार्यरत होंगे। अगर आप यहां देखेंगे तो आपको एक अजीब सा अजगर या मगरमच्छ जैसा जानवर नजर आएगा। इसे संस्कृत में मकर कहा जाता है। इस प्राणी को संस्कृत में मकर कहा जाता है और इस पूरे टुकड़े को मकर प्राणालय कहा जाता है। तो मकर का मतलब यह जानवर है लेकिन प्राणालय का मतलब क्या है? प्राणालय का अर्थ है एक चैनल। प्राण का अर्थ है श्वास और आलय का अर्थ कभी-कभी घर होता है या आप जानते हैं, श्वास का स्थान। मोटे तौर पर मतलब मकर की श्वास नली। अब, जब आप उन्हें मंदिरों के हिस्से के रूप में देखते हैं, तो आपको लगता है कि वे केवल छोटे टुकड़े हैं। क्योंकि आप उन्हें केवल यहीं तक देख सकते हैं। लेकिन यहाँ, यह शानदार है क्योंकि आप वास्तव में देख सकते हैं कि वे कितने बड़े हैं।
image_print

भारत के पहले आम चुनाव की दिलचस्प बातें

भारत में 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच आम चुनाव हुए, जो 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद पहला था। मतदाताओं ने संसद के निचले सदन, पहली लोकसभा के 489 सदस्यों को चुना। भारत की अधिकांश राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए।

सुकुमार सेन सन 1921 में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी बने थे। बंगाल के कई ज़िलों में काम करने के बाद वो पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के पद पर पहुंचे थे जहाँ से उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर दिल्ली लाया गया था.

भारत के पहले आम चुनाव में करीब 17 करोड़ लोगों ने भाग लिया था जिसमें 85 फ़ीसदी लोग लिख पढ़ नहीं सकते थे. कुल मिलाकर करीब 4500 सीटों के लिए चुनाव हुआ था जिसमें 489 सीटें लोकसभा की थीं।

रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ़्टर गांधी’ में लिखते हैं, “पूरे भारत में कुल 2 लाख 24 हज़ार मतदान केंद्र बनाए गए थे. इसके अलावा लोहे की 20 लाख मतपेटियाँ बनाई गई थीं जिसके लिए 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया था. कुल 16500 लोगों को मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर रखा गया था।”

“उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी महिला मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में जोड़ना। बहुत सी महिलाओं को अपना नाम बताने में झिझक थी। वो अपने आप को किसी की बेटी या किसी की पत्नी कहलाना अधिक पसंद करती थीं. चुनाव आयोग का प्रयास था कि हर मतदाता का नाम मतदाता सूची में लिखा जाए।”

“इसका परिणाम ये हुआ कि करीब 80 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जा सका. चुनाव करवाने के लिए करीब 56000 लोगों को प्रेसाइडिंग आफ़िसर के तौर पर चुना गया था। उनकी मदद के लिए 2 लाख 28 हज़ार सहायकों और 2 लाख 24 हज़ार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था।”

जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा, दौड़ में अन्य लोगों में सोशलिस्ट पार्टी भी शामिल थी, जिसके नेताओं में जयप्रकाश नारायण भी शामिल थे; जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (KMPP); भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई); अखिल भारतीय जनसंघ (बीजेएस, भाजपा का पूर्ववर्ती); हिंदू महासभा (एचएमएस); करपात्री महाराज की अखिल भारतीय राम राज्य परिषद (आरआरपी); और त्रिदीब चौधरी की रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी)।

चुनाव 26 नवंबर 1949 को अपनाए गए संविधान के प्रावधानों के तहत आयोजित किए गए थे। संविधान को अपनाने के बाद, संविधान सभा अंतरिम संसद के रूप में कार्य करती रही, जबकि एक अंतरिम कैबिनेट का नेतृत्व जवाहरलाल नेहरू ने किया।

एक महीने बाद संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किया जिसमें बताया गया कि संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कैसे आयोजित किये जायेंगे। लोकसभा की 489 सीटें 25 राज्यों के 401 निर्वाचन क्षेत्रों में आवंटित की गईं। 314 निर्वाचन क्षेत्रों में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके एक सदस्य का चुनाव किया जाता था। 86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्य चुने गए, एक सामान्य श्रेणी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से। तीन निर्वाचित प्रतिनिधियों वाला एक निर्वाचन क्षेत्र था। बहु-सीट निर्वाचन क्षेत्रों को समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित सीटों के रूप में बनाया गया था, और 1960 के दशक में समाप्त कर दिया गया था। इस समय के संविधान में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित दो एंग्लो-इंडियन सदस्यों का भी प्रावधान था।

लोकसभा की 489 सीटों के लिए कुल 1,949 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। मतदान केंद्र पर प्रत्येक उम्मीदवार को अलग-अलग रंग की मतपेटी आवंटित की गई थी, जिस पर उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह लिखा हुआ था। मतदाता सूची को टाइप करने और मिलान करने के लिए छह महीने के अनुबंध पर 16,500 क्लर्कों को नियुक्त किया गया था और नामावली को मुद्रित करने के लिए 380,000 रीम कागज का उपयोग किया गया था। 1951 की जनगणना के अनुसार 361,088,090 की आबादी में से (जम्मू और कश्मीर को छोड़कर) कुल 173,212,343 मतदाता पंजीकृत थे, जिससे यह उस समय का सबसे बड़ा चुनाव बन गया। 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक मतदान करने के पात्र थे।

कठोर जलवायु और चुनौतीपूर्ण व्यवस्था के कारण चुनाव 68 चरणों में हुआ। कुल 196,084 मतदान केंद्र बनाए गए, जिनमें से 27,527 बूथ महिलाओं के लिए आरक्षित थे। अधिकांश मतदान 1952 की शुरुआत में हुआ, लेकिन हिमाचल प्रदेश में 1951 में मतदान हुआ क्योंकि फरवरी और मार्च में मौसम आमतौर पर खराब रहता था, जिससे भारी बर्फबारी होती थी। जम्मू और कश्मीर को छोड़कर शेष राज्यों में फरवरी-मार्च 1952 में मतदान हुआ, जहां 1967 तक लोकसभा सीटों के लिए कोई मतदान नहीं हुआ था। चुनाव के पहले वोट हिमाचल में चीनी की तहसील (जिला) में डाले गए थे।

परिणाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के लिए एक शानदार जीत थी, जिसे 45% वोट मिले और 489 में से 364 सीटें जीतीं। दूसरे स्थान पर रही सोशलिस्ट पार्टी को केवल 11% वोट मिले और उसने बारह सीटें जीतीं। जवाहरलाल नेहरू देश के पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधान मंत्री बने।

image_print

भारतीय छात्र की फिल्म “सनफ्लॉवर्स वर फर्स्ट वन्स टू नो” 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में चुनी गई

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्‍थान (एफटीआईआई) के छात्र चिदानंद नाइक की फिल्म “सनफ्लॉवर्स वर फर्स्ट वन्स टू नो” को फ्रांस के 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल के ‘ला सिनेफ’ प्रतिस्पर्धी खंड में चुना गया है। इस फेस्टिवल का आयोजन 15 से 24 मई 2024 तक होने जा रहा है। ‘ला सिनेफ’ इस फेस्टिवल का एक आधिकारिक खंड है, जिसका उद्देश्य नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना और दुनिया भर के फिल्म स्कूलों की फिल्मों की पहचान करना है।

यह फिल्म दुनिया भर के फिल्म स्कूलों द्वारा प्रस्तुत कुल 2,263 फिल्मों में से चुनी गई 18 शॉर्ट फिल्‍मों (14 लाइव-एक्शन और 4 एनिमेटेड फिल्मों) में से एक है। यह कान्स के ‘ला सिनेफ’ खंड में चुनी गई एकमात्र भारतीय फिल्म है। 23 मई को बुनुएल थिएटर में जूरी सम्मानित फिल्मों की स्क्रीनिंग से पहले एक समारोह में ला सिनेफ पुरस्कार प्रदान करेगी।

“सनफ्लॉवर्स वर फर्स्ट वन्स टू नो” एक बुजुर्ग महिला की कहानी है जो गांव का मुर्गा चुरा लेती है, जिससे समुदाय में अव्‍यवस्‍था फैल जाती है। मुर्गे को वापस लाने के लिए एक भविष्यवाणी लागू की जाती है, जिसमें बूढ़ी महिला के परिवार को निर्वासन में भेज दिया जाता है।

यह पहला अवसर है जब 1-वर्षीय टेलीविजन पाठ्यक्रम के किसी छात्र की फिल्म को प्रतिष्ठित कान्स फिल्म फेस्टिवल में चुना गया है।

एफटीआईआई की अनूठी अध्‍यापन कला तथा सिनेमा और टेलीविजन के क्षेत्र में शिक्षा के लिए अभ्यास आधारित सह-शिक्षण दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के परिणामस्वरूप संस्थान के छात्रों और इसके पूर्व छात्रों ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सराहना बटोरी है।

एफटीआईआई की यह फिल्म टीवी विंग एक वर्षीय कार्यक्रम का निर्माण है, जहां विभिन्न विषयों यानी निर्देशन, इलेक्ट्रॉनिक सिनेमैटोग्राफी, संपादन, साउंड के चार छात्रों ने वर्षांत समन्वित अभ्यास के रूप में एक परियोजना पर एक साथ काम किया। फिल्म का निर्देशन चिदानंद एस नाइक ने किया है, फिल्मांकन सूरज ठाकुर ने किया है, संपादन मनोज वी ने किया है और साउंड अभिषेक कदम ने दी है।

image_print

विश्व पुस्तक दिवस पर कोटा में बुकोथोन का आयोजन

कोटा। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा में विश्व पुस्तक एवं कोपीराईट दिवस को “बूकोथोन” का आयोजन किया गया जिसकी थीम – “डाईव इन्टू डाईवरसीटी – एक्सप्लोर, लर्न एण्ड एम्पावर” थी। इस अवसर पर डॉ दीपक की पुस्तक “ज्ञान संगठन, सूचना प्रसंस्करण एवं पुनप्राप्ति“ का विमोचन मुख्य अतिथि राजू गुप्ता पूर्व सीईओ फेडरलाइट ग्रुप इंडिया, अध्यक्ष सागर आजाद, फाउंडर प्रेसीडेंट चेंप रीडर एसोशिएशन एण्ड एनीकडोट पब्लिशींग हाउस दिल्ली, विशिष्ट अतिथि डॉ प्रीतिमा व्यास लाईब्रेरीयन अकलंक ग्रुप ऑफ कालेज कोटा, डॉ नीलम काबरा असीसटेंट प्रोफेसर पुस्तकालय एव सूचना विज्ञान, आशीष जैन वरिष्ठ प्रबंधक आईडीएफसी फर्स्ट बैंक कोटा एवं गेस्ट ऑफ ऑनर बिगुल कुमार जैन सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना राजस्थान एवं कीनोट स्पीकर डॉ शशि जैन पुस्तकालयाध्यक्ष द्वारा किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ सर्व धर्म ग्रंथ पूजन (बिब्लीयोमेट्री सेरेमनी) के साथ सम्पन्न हुआ| इस अवसर पर डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि पुस्तकों को पढ़ना तनाव को कम करने में मदद कर सकता है। वे हमें नई दिशा में ले जाती हैं, समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं, और हमें आत्म-समझ में सहायक होती हैं।

इस कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में सागर आजाद, चेंप रीडर एसोशिएशन एवं एनीकडोट पब्लिशिंग हाउस के फाउंडर प्रेसीडेंट ने अपनी उपस्थिति से इस उत्सव को समृद्ध किया। मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व फेडरलाईट ग्रुप इंडिया के सीईओ, राजू गुप्ता ने उत्सव को गौरवित किया। उन्होंने विद्यार्थियों और प्रोफेशनल्स को पुस्तकों के महत्व को समझने की अपील की।

इस उत्सव में डॉ नीलम काबरा, असिस्टेंट प्रोफेसर, पुस्तकालय और सूचना विज्ञान, तथा डॉ प्रीतिमा व्यास, लाइब्रेरियन, अकलंक ग्रुप ऑफ कॉलेज, कोटा, जैसे विशिष्ट अतिथियों ने भी अपने अनुभवों और ज्ञान का साझा किया।

इस अवसर पर, बिगुल कुमार जैन, सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता, तापीय परियोजना, राजस्थान, को “बेस्ट लाइब्रेरी रीडर ऑफ दी यीयर अवार्ड-2024” से सम्मानित किया गया। इस उत्सव में कार्यक्रम के मंच संचालन के लिए केबी दीक्षित का योगदान महत्वपूर्ण रहा। डॉ शशि जैन, डॉ नीलम काबरा, और डॉ प्रीतिमा व्यास ने अपने अनुभवों को साझा किया। इस उत्सव के समापन में, मुख्य अतिथि ने उद्बोधन दिया और अध्यक्षीय उद्बोधन ने धन्यवाद व्यक्त किया।यह उत्सव पुस्तकों के महत्व को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

image_print

कांग्रेस के घोषणापत्र की फजीहत

लोकसभा चुनावों के प्रथम चरण का मतदान संपन्न हो चुका है । दूसरे चरण का प्रचार चरम पर है। प्रथम चरण के चुनावों में भाजपा नेतृत्व राम लहर और मोदी के करिश्माई नेतृत्व के बल पर अबकी बार चार सौ पार के नारे के साथ आगे बढ़ रहा था और चुनावी रैलियों में, “सबका साथ, सबका विकास, सबके विश्वास के साथ एक बार फिर मोदी सरकार” की बात की जा रही थी। भाजपा नेतृत्व अभी तक विपक्ष को परिवारवाद व उनके शासनकाल में किए गये अथाह भ्रष्टाचार और घोटालों की बात करके घेर रहा था लेकिन उसके मुस्लिम तुष्टिकरण पर सीधा प्रहार नहीं कर रहा था किन्तु कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र, राहुल गांधी व विपक्ष के नेताओं के कुछ आपत्तिजनक बयानों के बाद नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में पूरी भारतीय जनता पार्टी अब कांग्रेस तथा विरोधी दलों के घोर मुस्लिम तुष्टिकरण या कहें कि हिन्दू घृणा के खिलाफ बहुत आक्रामक हो गयी है। मोर्चा स्वयं नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के समय में प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह के भाषण और कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों पर चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने स्वयं खोला।

भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में पहली बार विरोधी दल कांग्रेस के घोषणपत्र को ही आधार बनाकर उस पर इतना तीखा हमला बोला गया है। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस और उसके साथी तिलमिला गए हैं और वह मुख्य धारा तथा सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी पर अर्मायदित शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं । कांग्रेस का एक प्रतिनिधि मंडल प्रधानमंत्री मोदी की शिकायत लेकर चुनाव आयोग भी पहुंचा है उधर भाजपा का प्रतिनिधि मंडल भी राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच गया है।

प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के सभी बड़े नेता कांग्रेस के मुस्लिम प्रेम पर एक के बाद एक तीखा प्रहार कर रहे हैं जिससे कांग्रेस तिलमिला गई है। प्रधानमंत्री मोदी एक के बाद एक कांग्रेस की सरकारों में हुए हिन्दू विरोधी घटनाओं, निर्णयों, विवादों को उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने सबसे पहले राजस्थान की एक जनसभा में कहा कि, “कांग्रेस की नजर आम लोगों की मेहनत की कमाई पर है, प्रापर्टी पर है महिलाओं के मंगलसूत्र पर है। कांग्रेस ने इरादा जाहिर कर दिया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों के घरों, प्रापर्टी और गहनों का सर्वे कराएगी फिर लोगों की कमाई कांग्रेस के पंजे में होगी। कांग्रेस की नजर देश की महिलाओं के गहनों पर है, माताओं-बहनों के मंगलसूत्र पर है वो उसे छीन लेना चाहती है। कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में उसके इरादे साफ जाहिर हो रहे हैं। अगर कांग्रेस की सरकार आई तो लोगो के बैंक एकाउंट में झांकेगी, लॉकर खंगालेगी, जमीन-जायदाद का पता लगायेगी और फिर सब कुछ छीनकर उसे घुसपैठियों और ज्यादा बच्चे वालों में बांट देगी। प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि कांग्रेस यह संपत्ति उन लोगों को बांटेगी जिन्हें मनमोहन सरकार ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इस बयान ने चुनाव के मैदान में तूफ़ान आ गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को धार्मिक आधार पर मुस्लिम आरक्षण को लेकर भी घेरा है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में 2004 से 2010 के बीच मुसलमानों को दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों का हिस्सा काटकर उसमें से ही विशेष आरक्षण देने का भरसक प्रयास किया किंतु न्यायपालिका के हस्तक्षेप से कांग्रेस का यह विकृत पायलट प्रोजेक्ट लागू नहीं हो सका जबकि अब यही कांग्रेस भारत का संविधान बदलकर दलित, पिछड़ों, अतिपिछड़ों के अधिकारों में कटौती करके मुस्लिम आरक्षण देने की बात कर रही है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने ही बयानों से फंस जाते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फुल टॉस गेंद फेंक कर चुनाव के मैदान में चौके-छक्के लगाने का अवसर दे बैठते हैं। राहुल गांधी ने कांग्रेस का घोषणापत्र जारी हो जाने के बाद एक जनसभा में कहा कि, “सत्ता में आने पर वह देश का एक्सरे कर देंगे। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। पिछड़े, दलित, आदिवासी, गरीब, सामान्य वर्ग के लोगों को पता चल जाएगा कि इस देश में उनकी भागीदारी कितनी है। इसके बाद हम वित्त और संस्थागत सर्वे करेंगे और यह पता लगाएं कि हिंदुस्तान का धन किसके हाथों में है और इस ऐतिहासिक कदम के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे।“ इस बयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रन बनाने का सुनहरा अवसर दे दिया और वे हिंदुत्व को लेकर आक्रामक हो गए।

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो अभी तक केवल अयोध्या, मथुरा, काशी और विरोधी दलों के माफिया प्रेम व कानून व्यवस्था की बात कर रहे थे वो भी बोल पड़े, “कांग्रेस देश में शरिया कानून लागू करना चाहती है लेकिन यह देश संविधान से ही चलेगा शरिया से नहीं। योगी का कहना है कि बीजेपी को मिलने वाल एक-एक वोट कर्फ्यू से मुक्ति और बेटियों की सुरक्षा से गारंटी देता है। वही असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा का बयान आता है कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर पाकिस्तान की छाप है।

कांग्रेस के घोषणा पात्र और उसके स्टार प्रचारक के बयानों से तो यह तो स्पष्ट ही था कि अब कांग्रेस पूरी तरह से टुकड़े- टुकडे गैंग और शहरी नक्सलियों के हाथ में चली गयी है लेकिन कन्हैया कुमार को टिकट देकर उसने इस बात को साबित भी कर दिया। एक समय था कि राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी व दादी इंदिरा गांधी ने जातिगत जनगणना को देश के लिए घातक माना था आज राहुल गांधी उन्हीं के विरुद्ध जाकर जातिगत जनगणना की बात कह रहे हैं। राहुल गांधी की असली मंशा जगजाहिर हो चुकी है।

एक बात ध्यान देने योग्य यह भी है कि विपक्ष का गठबंधन तो बन गया है और उनकी तीन रैलियां भी हो चुकी हैं किंतु उसके पास प्रधानमंत्री कौन बनेगा इस बात को लेकर असमंजस है।विपक्षी दलों के घोषणा पत्रों में वैसे तो विरोधाभास है किंतु मुस्लिम तुष्टिकरण के मामले पर सब एक हैं। आज भाजपा को हिंदुत्व पर आक्रामक होने का अवसर किसी ने दिया है तो वह केवल और केवल कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेता ही हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में मुसलमानों से कई वायदे किये हैं जिसमें उसने कहा है कि सत्ता में आने पर फैसले बहुसंख्यकवाद पर नहीं अल्पसंख्यकवाद पर आधारित होंगे।

कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि हम अल्पसंख्क छात्रों और युवाओं को शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, सेवाओं, खेल, कला और अन्य क्षेत्रों मे बढ़ते अवसरों का पूरा परा लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित और सहायता करेंगे। कांग्रेस नेता चिदंबरम सत्ता में आने के बाद सीएए और एनआरसी को न लागू करने की बात कह रहे हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे का मानना धारा 370 से देश के दूसरे भागों का क्या लेना देना? कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराने के बाद 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को भी बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। भूलना नहीं चाहिए यही कांग्रेस की सरकार सांप्रदायिक हिंसा बिल लेकर आई थी जो अगर लागू हो जाता तो हिन्दुओं का जीवन दुरूह हो जाता, भाजपा के अथक प्रयासों से वह बिल लागू नहीं हो सका।

एक समय था जब कांग्रेस के इंदिरा गांधी सरीखे नेता वामपंथियों को महत्व नहीं देते और कांग्रेस की अपनी विचारधारा थी। उस समय की कांग्रेस वामपंथी नेताओं का अपने हितों के लिए उपयोग भर करती थी, उन्हें अपने पास फटकने तक नहीं देती थी जबकि आज हालात ऐसे हो गये कि शहरी नक्सलियों ने कांग्रेस के भीतर ही अपनी जड़ों को मजबूत कर लिया है। राहुल गांधी पूरी तरह से शहरी नक्सलियों के शिकंजे में आ चुके हैं। नक्सलियों व मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते ही कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर डाला।

कांग्रेस “संविधान बचाओ” के नाम पर भाजपा को घेरने का प्रयास कर रही थी किन्तु उसके घोषणापत्र ने उसकी कलई खोल दी और भाजपा को हिंदुत्व की राजनीति करने का अवसर दे दिया। वैसे भी आम नागरिक और भाजपा कार्यकर्ता दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आक्रामक छवि को अधिक पसंद करते है। परिणाम तो चार जून को आएगा किन्तु अभी कांग्रेस बैकफुट पर है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

image_print
image_print