Friday, March 29, 2024
spot_img
Home Blog

राजस्थान निर्माण की गाथा- कुछ किस्से कुछ यादें

राजस्थान दिवस 30 मार्च 2024 पर विशेष

राजस्थान निर्माण से पूर्व राजपूताने ने विभिन्न भाग भिन्न-भिन्न नामों से जाने जाते थे। जैसलमेर क्षेत्र को प्राचीन समय में मांड प्रदेश के नाम से जाना जाता था। आज भी यहॉ का मांड गायन पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध हैं। जोधपुर का प्राचीन नाम मरू या मरू प्रदेश के रूप में ऋग्वेद, महाभारत, वृहद संहिता आदि प्राचीन ग्रन्थों, रूद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख तथा पाल अभिलेखों में मिलता है। उस समय मरू प्रदेश के अन्तर्गत जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर आदि का रेगिस्तानी क्षेत्र शामिल था। मरू प्रदेश की भाषा मरू भाषा के रूप में जानी गई जिसका सर्वप्रथम उल्लेख 8वीं 9वीं शताब्दी में उद्योतन सूरी रचित कुवलयमाला में मिलता है। जोधपुर को मारवाड़ प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। आज भी जोधपुर की भाषा मारवाड़ी भाषा कहलाती है।

मरू के बाद जांगल क्षेत्र का नाम आता है। महाभारत में प्रयुक्त कुरू जांगल एवं मद्र जांगल के उल्लेख से प्रतीत होता है कि जांगल के अन्तर्गत केवल राजस्थान का उत्तरार्द्ध भाग ही नहीं बल्कि पंजाब का दक्षिण-पूर्वी भाग भी सम्मलित था। राजस्थानी इतिहास व साहित्य ग्रन्थों में जांगल क्षेत्र का प्रचुर उल्लेख मिलता है। जांगल प्रदेश के अन्तर्गत वर्तमान के बीकानेर और जोधपुर शामिल थे। इसकी राजधानी अहि छत्रपुर थी जिसे वर्तमान में नागौर के नाम से जाना जाता है। इसी जांगल प्रदेश के अधिपति होने के कारण बीकानेर के राजा को जांगल का बादशाह के नाम से जाना जाता था। राजस्थान का पूर्वी भाग (वर्तमान जयपुर, दौसा, अलवर, तथा भरतपुर का कुछ भाग) मत्स्य प्रदेश कहलाता था। इसका उल्लेख सर्वप्रथम हमें ऋग्वेद में मिलता है, जिसमें मत्स्य निवासियों को सुदास का शत्रु कहा गया है। महाभारत में मत्स्य राज्य की राजधानी विराट नगर (आधुनिक बैराठ-जिला जयपुर) बताई गई है। जिसमें बताया गया है कि मत्स्य राज्य पांड़वों का प्रबल पक्षधर था। उनके अज्ञातवास के अनेक प्रसंग इस भू-भाग से जुडे़ हुए हैं। मत्स्य प्रदेश से जुड़ा हुआ साल्व प्रदेश था जिसका समीकरण प्रसिद्ध पुरात्ववेत्ता जनरल कनिंघम ने अलवर से किया है।

वर्तमान जयपुर तथा उसका समीपवर्ती प्रदेश ढूंढाड़ के नाम से प्रसिद्ध रहा है। इसीलिए आज भी इस प्रदेश की भाषा ढूढ़ाडी कहलाती है। शूरसेन जनपद के अन्तर्गत मथुरा सहित अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली का सीमावर्ती क्षेत्र सम्मिलित था। रणथम्भौर के प्रसिद्ध चौहान शासक राव हम्मीर का मंत्री रणमल शूरवंशीय क्षत्रिय था। इसी प्रकार राजस्थान का दक्षिणी भू-भाग शिवि मेदपाट, बागड़, प्राग्वाट आदि नामों से जाना जाता था। उदयपुर का सबसे प्राचीन नाम शिवि मिलता हैं। शिवि जनपद चितौड़ का समीपवर्ती क्षेत्र था। इसकी राजधानी मध्यमिका थी जिसे आजकल नगर के नाम से जाना जाता है। नगरी चितौड़ से लगभग 7 मील उत्तर पूर्व में स्थित एक प्राचीन गांव हैं। यहां उपलब्ध मुद्राओं पर अंकित मज्झिमनिकाय शिवि जनपदस्य से इसकी पुष्टि होती है।

उदयपुर को ही बाद में मेवाड़ के नाम से जाना गया। मेदपाट मेवाड़ का ही पुराना नाम था। मेवाड़ के गुहिल राजवंश की स्थापना से पहले यहॉ संभवतया मेरों या मेदों का शासन था इसिलिए इसका प्राचीन नाम मेदपाट था। मेदपाट को ही प्राग्वाट भी कहा जाता था। जैसा कि जय सिंह कलचूरि के अभिलेखों में मेवाड़ के राजाओं को प्राग्वाट नरेश लिखा होना ज्ञात होता है। राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी भू-भाग जिसमें सिवाणा और जालौर क्षेत्र शामिल हैं को गुर्जर अथवा गुजरत्रा नाम से जाना जाता था। इसकी प्राचीन राजधानी भीनमाल थी जैसा कि प्रसि़द्ध चीनी यात्री हेनसांग के यात्रा विवरण से संकेत मिलता है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा क्षेत्र को पहले बांगड़ प्रदेश के नाम से जाना जाता था। आज भी प्रदेश की भाषा बागड़ी भाषा के नाम से प्रसिद्ध है।

चौहान नरेशों के राज्य शाकम्भरी (सांभर) एवं अजमेर को पूर्व में सपादलक्ष के नाम जाना जाता था। इसी प्रकार राजस्थान के विविध भू- भागों के लिए और अनेक नाम समय – समय पर प्रचलित रहे हैं। उदाहरण के लिए खींची चौहानों द्वारा अधिकृत होने के कारण गागरोन और उसका समीवर्ती क्षेत्र खींचींवाडा़, झालाओं द्वारा शासित झालावाड़ रावशेखा के वंशजों द्वारा अधिकृत प्रदेश शेखावटी, तंवर क्षत्रियों के अधीन नीमका थाना तथा कोटपूतली का निकटवर्ती प्रदेश तोरावाटी या तंवर वाटी कहलाया। इसके अलावा मेव बाहुल्य प्रदेश मेवात (वर्तमान के अलवर और भरतपुर जिले), मेरों की अधिकता के कारण अजमेर और उसका निकटवर्ती प्रदेश मेरवाड़ा प्रदेश कहलाया। आदिवासी भीलों की अधिकता के कारण भीलवाड़ा को यह नाम प्राप्त हुआ।

कई नाम ऐसे हैं जो प्राचीन काल में प्रचलित रहे हैं और आज भी लोक व्यवहार में प्रचलन में हैं जैसे कोटा- बूंदी, झालावाड़, बांरा का क्षेत्र आज भी हाड़ौती के नाम से प्रचलित है। इसी प्रकार चितौड़ को पूर्व में खिज्रराबाद, धौलपुर को कोठी तथा करौली को गोपालपाल आदि नाम से जाना जाता था। इस प्रकार राजस्थान के भौगोलिक क्षेत्र या अंचल को प्राचीन संदर्भ के अनुसार विविध नामों से पहचाना गया है।

सात चरणों में बना राजस्थान
राजस्थान का वर्तमान स्वरूप 1 नवम्बर 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के अन्तर्गत अस्तित्व में आया है। भारत में रियासतों के एकीकरण का महान कार्य तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के हाथों से सम्पन्न हुआ। जब भारत आजाद हुआ उस समय राजपूताना में 19 रियासतें और 3 ठिकाने (निमराना,लावा,और कुशलगढ़)शामिल थे तथा अजमेर -मेरवाड़ा केन्द्र शासित प्रदेश था। सात चरणो में इन सभी प्रशासनिक इकाईयों का राजस्थान में विलय हुआ। इसी प्रक्रिया को राजस्थान का राजनीतिक एकीकरण कहा जाता हैं। राजनैतिक एकीकरण के सात चरण इस प्रकार हैं।

मत्स्य संघ
प्रथम चरण में 27 फरवरी,1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली के तत्कालीन नरेशों के समक्ष दिल्ली में केन्द्रीय सरकार की ओर से चारों रियासतों के विलीनीकरण का प्रस्ताव रखा गया जिसे चारों ने स्वीकार कर लिया। इस नए राज्य संघ का नाम श्री कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंशी के सुझाव पर ‘‘मत्स्य’’ रखा गया। प्रथम चरण में निमराना ठिकाने का विलय भी मत्स्य संघ में कर दिया गया। इसका क्षेत्रफल 7,536 वर्गमील जनसंख्या 1.83,000 तथा वार्षिक आय 18 करोड़ 30 लाख 86 हजार रूपए थी। तत्कालीन केन्द्रीय खनिज एवं विद्युत मंत्री श्रीनरहरि विष्णु गाडगिल ने इसका उद्घाटन किया। अलवर मत्स्य प्रदेश की राजधानी तथा धौलपुर नरेश राजप्रमुख एवं अलवर नरेश प्रधानमंत्री बनाए गए। श्री युगल किशोर चतुर्वेदी और श्री गोपीलाल यादव (दोनों भरतपुर) उप प्रधानमंत्री तथा श्री मास्टर भोलाराम (अलवर), डॉ. मंगलसिंह (धौलपुर) और श्री चिरंजीलाल शर्मा (करौली) मंत्री नियुक्त किए गए।

राजस्थान संघ
राजस्थान के एकीकरण का दूसरा महत्वपूर्ण चरण 25 मार्च,1948 को पूरा हुआ जब कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा डूंगरपुर, प्रतापगढ़, किशनगढ़, टोंक और शाहपुरा रियासतों के शासकों ने मिलकर ‘‘राजस्थान संघ’’ का निर्माण किया लावा और कुशलगढ़ ठिकानों का विलय भी इसी समय हुुआ। इसका उद्घाटन भी श्री गाडगिल के हाथों ही सम्पन्न हुआ इसकी राजधानी कोटा को बनाया गया तथा कोटा के महाराव और डूंगरपुर के महारावल क्रमशः राजप्रमुख और उप राजप्रमुख बनाए गए। श्री गोकुललाल असावा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनकी मंत्री-परिषद के गठन की प्रक्रिया चल ही रही थी कि महाराणा उदयपुर ने भी तीन दिन बाद भारत सरकार के रियासती मंत्रालय को एक पत्र लिखकर इस नए राज्य में शामिल होने की इच्छा प्रकट की।

संयुक्त राजस्थान
तीसरे चरण में18 अप्रैल,1948 को उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलीनीकरण होने पर ‘‘संयुक्त राजस्थान’’ का निर्माण हुआ। जिसका उद्घाटन इसी दिन उदयपुर में भारत के प्रधानमंत्री पं0जवाहर लाल नेहरू ने किया। इसका क्षेत्रफल 29,977 वर्ग किलोमीटर , जनसंख्या 42 लाख 60 हजार 918 तथा वार्षिक आय तीन करोड़ 16 लाख 67 हजार 918 रूपए थी। उदयपुर को इस नए राज्य की राजधानी, वहां के महाराणा भूपालसिंह को राजप्रमुख, कोटा महाराव भीमसिंह को उप राजप्रमुख तथा श्री माणिक्यलाल वर्मा को प्रधानमंत्री बनाया गया। उनकी मंत्री परिषद में श्री गोकुल लाल असावा (शाहपुरा) उपप्रधानमंत्री तथा सर्वश्री अभिन्न हरि (कोटा),मोहन लाल सुखाड़िया,भूरेलाल बया, प्रेमनारायण माथुर (तीनों उदयपुर) और बृजसुंदर शर्मा (बूंदी) मंत्री के रूप में शामिल किए गए। वस्तुतः वर्तमान राजस्थान का स्वरूप इसी समय बना और यहीं से इसके निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

वृहद् राजस्थान
इस समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर और सिरोही की पांच रियासतें ही ऐसी बची थी जो एकीकरण में शामिल नहीं हुई थी। इनके अलावा 19 जुलाई 1948 को केन्द्रीय सरकार के आदेश पर लावा चीफशिप को जयपुर राज्य में शामिल कर लिया गया जबकि कुशलगढ़ की चीफशिप पहले से ही बांसवाड़ा रियासत का अंग बन चुकी थी। उपरोक्त रियासतों में जयपुर, जोधपुर ओर बीकानेर अपने को स्वतंत्र रखना चाहती थी लेकिन एकीकरण की प्रक्रिया के तीव्र गति से चलने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था।

देश के उप प्रधानमंत्री और तत्कालीन रियासती मंत्रालय के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल की कल्पना इन चारों रियासतों को भी संयुक्त राजस्थान में विलीन कर वृहद् राजस्थान बनाने की थी। अतः रियासती मंत्रालय के सचिव श्री. वी.पी. मेनन को तत्सम्बन्धी बातचीत के लिए महाराजा मानसिंह के पास जयपुर भेजा गया साथ ही बीकानेर और जोधपुर के महाराजाओं के पास भी वृहद् राजस्थान के निर्माण का मसविदा भेज कर उसी दिन उनसे स्वीकृति मंगवा ली गई। इसके परिणामस्वरूप 14 जनवरी, 1949 को उदयपुर की एक सार्वजनिक सभा में सरदार पटेल ने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, और जैसलमेर रियासतों के वृहद् राजस्थान में जोधपुर में सैद्धान्तिक रूप से सम्मिलित होने की घोषणा की।

इस ऐतिहासिक निर्णय को चैत्र शुक्ला प्रतिपदा,बुधवार,संवत् 206, तदनुसार 30 मार्च, 1949 को नव वर्ष की प्रभात बेला, रेवती नक्षत्र, इन्द्र योग में 10.40 बजे सरदार पटेल ने जयपुर के ऐेतिहासिक दरबार में आयोजित एक भव्य समारोह में मूर्त रूप दिया। इसमें जयपुर, जोधपुर, कोटा, झालावाड़, बांसवाड़ा, अलवर, जोधपुर, और शाहपुरा, के नरेश टोंक के नवाब कुशलगढ़ के राय हरेन्द्रसिंह, सौराष्ट के राजप्रमुख जाम साहब नवानगर, भारत के प्रथम भारतीय प्रधान सेनापति जनरल करिअप्पा,एयर चीफ मार्शल एम. मुखर्जी, केन्द्रीय खनिज एवं विद्युत मंत्री श्री एन.वी. गाडविल मणिबेन पटेल एम.के वैलोडी,रियासती मंत्रालय के सचिव श्री. वी.पी. मेनन और प्रतिनिधि श्री डी.आर. प्रधान सहित राजपूताना प्रातीय राज्यों राजस्थान कमेटी कमेटी के अध्यक्ष श्री गोकुल भाई भट्ट, अजमेर के सुप्रसिद्ध नेता श्री हरिभाऊ उपाध्याय, जोधपुर के श्री जयनारायण व्यास, मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम, अन्य प्रमुख कांग्रेस नेता, उद्योगपति और गणमान्य नागरिक शामिल हुए।

इस समारोह में सरदार पटेल ने जयपुर महाराजा श्री मानसिंह को राजप्रमुख, कोटा महाराव श्री भीमसिंह को उप राजप्रमुख तथा श्री हीरालाल शास्त्री को नए राज्य के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। श्री शास्त्री की मंत्रिपरिषद में सर्वश्री सिद्धराज ढड्ढा (जयपुर), प्रेमनारायण माथुर और भूरेलाल बया (दोनों उदयपुर), वेदपाल त्यागी (कोटा), फूलचंद बापना, नृसिंह कछवाहा और राव राजा हणूतसिंह (तीनों जोधपुर) और रघुवर दयाल गोयल (बीकानेर) को मंत्रियों के रूप में शामिल किया गया। इसका उद्घाटन सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 30 मार्च 1949 को किया और वृहत राजस्थान के निर्माण की तिथि 30 मार्च को राजस्थान का स्थापना दिवस कहा जाता है।

मत्स्य संघ का विलय
वृहद् राजस्थान का निर्माण हो जाने के बावजूद मत्स्य संघ का अभी तक पृथक अस्तित्व था जिसने रियासतों के एकीकरण की दिशा में पहल की थी। इसका कारण यह था कि इसकी दो घटक रियासतें-अलवर और करौली तो एकमत से राजस्थान में शामिल होने के लिए तैयार थी लेकिन धौलपुर और भरतपुर इस असमंजस में थी कि वे उत्तर प्रदेश में शामिल हों अथवा राजस्थान में। श्री वी.पी. मेनन ने इसके नरेशों से बातचीत भी की लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। फलत: श्री शंकर राव देव की अध्यक्षता में श्री प्रभुदयाल हिम्मतसिंह और श्री. आर.के. सिधवा की समिति गठित की गई जिसने गांव-गांव में घूमकर तथा सार्वजनिक संस्थाओं से साक्षियां एकत्रित कर रियासती मंत्रालय को राजस्थान के पक्ष में सिफारिश प्रस्तुत की। इस आधार पर 15 मई, 1949 को मत्स्य संघ राजस्थान का अंग बन गया। इस परिवर्तन के फलस्वरूप मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम शास्त्री को मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में शामिल कर लिया गया।

राजस्थान ’ब’ श्रेणी का राज्य (सिरोही का विलय)
मत्स्य संघ की तरह सिरोही के विलय के प्रश्न पर भी राजस्थानी और गुजराती नेताओं के मध्य काफी मतभेद थे। अप्रैल 1948 में हीरा लाल शास्त्री ने मांग की कि सिरोही का राजस्थान में विलय जरूरी है। हमारे लिए सिरोही का अर्थ है गोकुल भाई और बिना गोकुल भाई के हम राजस्थान नहीं चला सकते। अत: जनवरी, 1950 में सिरोही का विभाजन करने और आबू व देलवाड़ा तहसीलों को बम्बई प्रांत और शेष भाग को राजस्थान में मिलाने का फैसला लिया गया। इसकी क्रियान्विति 7 फरवरी, 1950 को हुई। लेकिन आबू और देलवाड़ा को बम्बई प्रांत में मिलाने के कारण राजस्थान-के पुनर्गठन के समय इन्हें वापस राजस्थान को देना पड़ा।

सातवां चरण राजस्थान (वर्तमान स्वरूप) (1 नवम्बर, 1956) भारत सरकार द्वारा श्री फजल अली की अध्यक्षता में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर एक नवम्बर, 1956 को तत्कालीन अजमेर-मेरवाड़ा राज्य को भी राजस्थान में विलीन कर दिया गया जो अब तक केन्द्र शासित “सी” श्रेणी का राज्य था और जिसकी अपनी पृथक मंत्रिपरिषद और विधानसभा कार्यरत थी। इसी के साथ मध्य भारत के मंदसौर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेलटप्पा ग्राम राजस्थान में शामिल किया गया जबकि राजस्थान के कोटा जिले का सिरोंज नए मध्यप्रदेश को स्थानांतरित कर दिया गया।

इस प्रकार 18 मार्च 1948 को आरम्भ हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया 1 नवम्बर 1956 को 7 चरणों में जाकर सम्पन्न हुई और वर्तमान राजस्थान अस्तित्व में आया। गुरूमुख निहाल सिंह राजस्थान के प्रथम राज्यपाल और। मोहन लाल सुखाड़िया प्रथम मुख्यमंत्री बने। राजस्थान में समय-समय पर प्रशासनिक दृष्टि से नए जिलों का गठन होता रहा और वर्तमान में राजस्थान में 10 संभाग और 50 जिले अस्तित्व में हैं।

(लेखक मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार हैं और कोटा में रहते हैं)

image_print

भारतीय नस्ल की इस गाय की कीमत है 40 करोड़ रुपए

लग्‍जरी कार बुगाटी से भी महंगी गाय, चौंक गए न। आपने शायद कभी कल्‍पना भी न की हो लेकिन यह सच है। दुनिया की सबसे महंगी गाय की कीमत 40 करोड़ रुपये है और इतनी ही कीमत में बुगाटी डिवो हाइपरकार आ जाती है। ब्राजील में हुई नीलामी में नेलोर की गाय दुनिया की अब तक की सबसे महंगी बिकने वाली गाय बन गई है। वियाटिना-19 FIV मारा इमोविस नाम की नेलोर गाय ब्राजील में एक नीलामी में रिकॉर्ड तोड़ 4.8 मिलियन डालर यानी 40 करोड़ रुपये में बेची गई।

वियाटिना की बिक्री न केवल उसके व्यक्तिगत मूल्य को दर्शाती है, बल्कि नस्ल की गुणवत्ता में सुधार करने, वैश्विक मवेशी बाजार में एक नया मानक स्थापित करने के लिए उसकी आनुवंशिक कौशल की क्षमता को भी प्रदर्शित करती है। नीलामी साओ पाउलो के अरंडू में हुई। यहां पर 4.5 साल की गाय के मालिकाना हक का एक तिहाई हिस्सा 6।99 मिलियन रियल में बेचा गया, जो 1.44 मिलियन डालर के बराबर है। इस घटना के बाद गाय की कीमत कुल 4.3 मिलियन डालर तक बढ़ गई है। यह नई कीमत, पिछले साल लगाई गई उसकी कीमत को भी पार कर गया है जब उसका आधा स्वामित्व पिछले साल करीब 800000 डालर में बेचा गया था।

नेलोर नस्ल मूल रूप से भारत की है और इसका नाम आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के नाम पर रखा गया है। अब यह ब्राजील की सबसे महत्वपूर्ण मवेशी नस्लों में से एक बन गई है। ओंगोल मवेशियों की पहली जोड़ी 1868 में जहाज से ब्राजील पहुंची थी। साल 1960 के दशक में इसकी संख्या में खास इजाफा हुआ है। उस समय सौ जानवरों का आयात किया गया था। इस आयात के बाद ब्राजील में इस नस्ल का विकास होना शुरू हुआ। इसके बाद जो कुछ हुआ वह अपने आप में एक इतिहास है।

नेलोर गाय का वैज्ञानिक नाम बोस इंडिकस है। यह गाय गर्म जलवायु, रोग प्रतिरोधक क्षमता और मांस की गुणवत्ता जैसे बेहतर गुणों से भरपूर है। यह गाय अपनी ताकत, लचीलेपन और कठिन परिस्थितियों में पनपने की क्षमता के लिए जानी जाती है। इस वजह से इसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इन्हें अत्यधिक महत्व दिया जाता है। नेलोर ब्रीड की गाय कहीं भी खुद को एडजस्ट कर लेती हैं और दूध भी खूब देती हैं। इन गायों की खासियत ये भी है कि ये भयंकर गर्मी के मौसम में भी आराम से रह लेती हैं। इन गायों के शरीर पर सफेद फर होता है और ये धूप को रिफ्लेक्ट कर देता है। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतरीन होती है और त्वचा काफी कठोर होती है इसलिए इन पर खून चूसने वाले कीड़े भी नहीं लगते हैं।

 

साभार-https://www।kisantak।in/ से

image_print

इस अक्षय तृतीया को देश में नहीं होने देंगे एक भी बाल विवाह

अक्षय तृतीया और शादी ब्याह के मौसम को देखते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान से जुड़े विभिन्न गैरसरकारी संगठनों के सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ता राजधानी नई दिल्ली में जुटे और इस दौरान होने वाले बाल विवाहों को रोकने की रणनीति पर चर्चा की। सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए इस क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन ‘वी फॉर हर फाउंडेशन’ और ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ के सहयोग से इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड ने किया।

शादी ब्याह के मौसम को देखते हुए बाल विवाह को रोकने के लिए जमीनी स्तर पर गांव-देहात में काम कर रहे सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए यह काफी महत्वपूर्ण समय है क्योंकि इस दौरान देश में हजारों की संख्या में बच्चों को बाल विवाह के नर्क में झोंक दिया जाता है। खास तौर से राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में अक्षय तृतीया का त्योहार बाल विवाह की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। बाल विवाह मुक्त भारत अभियान देश भर के 161 गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है जो 2030 तक देश में बाल विवाह के खात्मे के लिए जरूरी ‘टिपिंग प्वाइंट’ यानी वह मुकाम जहां से बाल विवाह अपने आप खत्म होने लगेगा, को हासिल करने के लिए जमीनी अभियान चला रहे हैं।

इस तरह की कार्यशालाओं की अहमियत को रेखांकित करते हुए प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं लेखक भुवन ऋभु ने कहा, “भारत 2030 तक बाल विवाह की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की ओर अग्रसर है। देश में बाल विवाह की ऊंची दर वाले इलाकों में पिछले एक वर्ष में गैरसरकारी संगठनों और सरकारों के प्रयासों ने जो गति पकड़ी है, उसे मजबूती और विस्तार देने की आवश्यकता है। बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में अगले एक महीने काफी महत्वपूर्ण हैं और समुदायों, पंचायतों, गैरसरकारी संगठनों और राज्य, जिला एवं प्रखंड स्तर पर सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है कि इस अक्षय तृतीया किसी बच्चे का बाल विवाह नहीं होने पाए।” उन्होंने आगे कहा, “बाल विवाह एक वैश्विक समस्या है लेकिन दुनिया के किसी भी देश ने एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नीतियों और क्रियान्वयन के स्तर पर उतनी तरक्की नहीं की है, जितनी भारत ने की है। सच कहें तो बेटी बताओ, बेटी पढ़ाओ की असली सफलता बाल विवाह के खात्मे में है।”

भुवन ऋभु ने हाल ही में आई अपनी बेस्टसेलर किताब ‘व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में 2030 तक बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक मुकाम तक पहुंचने के‌ लिए एक ठोस रणनीतिक खाका पेश किया है। इस किताब में सुझाव गई रणनीतियों को देशभर के नागरिक समाज संगठनों ने भी अंगीकार किया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-21) के आंकड़ों के अनुसार देश में 20 से 24 आयुवर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था।

कार्यशाला को संबोधित करते हुए इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के ट्रस्टी राजीव भारद्वाज ने कहा, “बाल विवाह बच्चों की सुरक्षा के लिए शुरू की गई सभी पहलों और प्रयासों के लिए एक अभिशाप है और एक सभ्य दुनिया में इसकी कोई जगह नहीं है।

कार्यशाला में विभिन्न राज्यों से आए सामुदायिक सामाजिक कार्यकर्ताओं (कम्यूनिटी सोशल वर्कर्स) ने बाल विवाह की रोकथाम में आ रही चुनौतियों के बारे में एक दूसरे से अपने अनुभव साझा किए। इस दौरान इन कार्यकर्ताओं को इससे निपटने के तरीकों और बाल विवाह को हतोत्साहित करने‌ वाले कदमों की जानकारी दी गई। खास तौर से उन कानूनों जो कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं, के बारे में विस्तार से जानकारी‌ दी। कार्यशाला में मौजूद विशेषज्ञों और रणनीतिकारों ने अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाहों को रोकने पर विस्तार से मंथन किया और इसे रोकने के लिए रणनीतिक उपाय सुझाए।

कार्यशाला में आने वाले शादी ब्याह के मौसम में बाल विवाह की रोकथाम के लिए इन कार्यकर्ताओं को अदालत से निषेधाज्ञा आदेश लाने, प्रत्येक गांव का जनसांख्यिकीय अध्ययन और बाल विवाह की दृष्टि से संवेदनशील परिवारों की पहचान, धार्मिक स्थलों के सामने बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता का संदेश देने वाले तथा इस मंदिर या मस्जिद में बाल विवाह नहीं कराए जाते हैं जैसे पोस्टर‌ लगाने, पंचायत भवनों में बाल‌ विवाह कराने या इसमें शामिल होने पर होने वाली सजा के बारे में जानकारी देने‌ वाले पोस्टर लगाने सहित तमाम उपायों पर चर्चा की गई।

image_print

उजमा इस्लाम छोड़कर हिंदू बनी, मीरा बनकर दलित युवक संग रचाया विवाह

दिल्ली में मार्च को एक मुस्लिम लड़की ने सनातन वैदिक धर्म में वापसी की । उजमा, जो अब मीरा नाम से जानी जाएगी। मंगलवार (26 मार्च 2024) को विधि-विधान से आर्य समाज में अनिल नाम के युवक से विवाह भी किया। अनिल दलित समुदाय से आते हैं। इस कार्य में हिन्दू मोर्चा ने सहयोग किया और नव विवाहित दम्पति को सम्मान और सुरक्षा देने का भी संकल्प लिया।

उजमा के अब्बा का नाम अहमद खान है। वहीं, उनके पति अनिल दिल्ली के टैगोर गार्डन इलाके के निवासी हैं। उजमा ने स्वयं को व्यस्क बताया और कहा कि सनातन वैदिक धर्म में वापसी और अनिल से विवाह का निर्णय उनका अपना है और इसके लिए किसी ने जोर जबरदस्ती नहीं की। अनिल ने भी व्यस्क होने का प्रमाण पत्र दिया।

दोनों के विवाह के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार हुआ। विधि-विधान से उजमा ने मीरा बनकर हवन किया। दम्पति ने अग्नि के 7 फेरे लिए और हमेशा एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहने का संकल्प लिया। इस अवसर पर हिन्दू मोर्चा के पदाधिकारियों के अतिरिक्त अनिल वाल्मीकि के परिजन भी उपस्थित थे। उन्होंने वर-वधू को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं।

( वर्तमान में शुद्धि ही आपकी आने वाली पुश्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं। याद रखें आपके धार्मिक अधिकार तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक आप बहुसंख्यक हैं। इसलिए अपने भविष्य की रक्षा के लिए शुद्धि कार्य को तन, मन, धन से सहयोग कीजिए। )

image_print

स्वाति मोहन: मंगल पर जीत!

भारतीय अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर स्वाति मोहन ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित अपनी भारत यात्रा के दौरान मंगल ग्रह पर जीवन और पर्जिरविरेंस रोवर के बारे में अपने अनुभवों को साझा किया।

अंतरिक्ष खोज के क्षेत्र में अमेरिका-भारत संबंधों की जड़ें राणनीतिक साझेदारी और राजनयिक पहलों से कहीं आगे और ज्यादा गहरी हैं। दोनों देशों के मानवीय संबंध बहुत मजबूत हैं जिसका उदाहरण, अमेरिकी भारतीयों की संख्या है जिन्होंने नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) में कॅरियर बनाने का विकल्प चुना है।

भारतीय-अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर स्वाति मोहन के साथ बातचीत करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, ‘‘भारतीय मूल के अमेरिकी, देश में छा रहे हैं।’’ स्वाति मोहन की टीम ने 2021 में मंगल ग्रह पर पर्जिरविरेंस रोवर को सफलतापूर्वक उतारा था। स्वाति मोहन ने 2024 की शुरुआत में अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित स्टेम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और अंतरिक्ष खोज से संबंधित कार्यक्रमों की एक शृंखला के सिलसिले में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और पुदुच्चेरी का दौरा किया।

उन्होंने पर्जिरविरेंस रोवर गाइडेंस, नेविगेशन और नियंत्रण गतिविधियों का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोहन बताती हैं, ‘‘इस मिशन का मकसद मंगल ग्रह पर पूर्व जीवन के निशानों की तलाश करना है। हमारी टीम का काम मिशन की ‘‘आंखों और कानों’’ को डिजाइन करना था। हमने यह सुनिश्चित किया कि पर्जिरविरेंस यह पता लगा सके कि वह कहां है, उसे कहां जाना है और वहां उसे पहुंचना कैसे है?’’

मोहन का कहना है कि इस परियोजना में लगभग सात महीने लगे और रोवर 48 करोड़ किलोमीटर की यात्रा करने के बाद 18 फरवरी 2021 को सफलतापूर्वक अपने गंतव्य पर उतर गया। उन्होंने बताया, ‘‘लैंडिंग के बाद से पर्जिरविरेंस ने जेजेरो क्रेटर के चारों ओर चक्कर लगाकर नमूने एकत्र किए हैं जो इस सवाल का जवाब तैयार करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं कि क्या मंगल ग्रह पर कभी जीवन हुआ करता था।’’

नासा और ईएसए (यूरोपियन स्पेस एजेंसी) अब इसके विस्तृत अध्ययन के लिए मंगल ग्रह की सामग्री के पहले नमूनों को पृथ्वी पर लाने की योजना बना रहे हैं। मार्स पर्जिरविरेंस रोवर इस अंतरराष्ट्रीय अंतरग्रहीय रिले टीम का पहला चरण था।

पर्जिरविरेंस प्रोजेक्ट के प्रवेश, अवरोहण और लैंडिंग मिशन कमेंटेटर के रूप में मोहन ने तकनीकी जानकारी को रियल टाइम में आम व्यक्ति की भाषा में अनुवाद भी किया। वह बताती हैं, ‘‘सफल लैंडिग को लेकर हर कदम पर मेरा पूरा ध्यान केंद्रित था और मैं बाकी टीम जो कुछ भी कह रही थी, उनके शब्दों को भी ध्यान से सुन रही थी। यह सब हमारी लैंडिंग के बाद ही हुआ, जब हमें मंगल ग्रह के सतह की पहली तस्वीर प्राप्त हुई। इसने इस बात की तस्दीक कर दी कि हमारा काम पूरा हो गया है। हम मंगल ग्रह पर सफलतापूर्व उतर चुके थे!’’

उनके लिए सबसे बड़ा उपहार, इस मिशन को मिली सफलता थी। वह बताती हैं, ‘‘ऑपरेशन लीड होने का सबसे रोमांचक हिस्सा मिशन कंट्रोल में काम करना और स्पेसक्रा़फ्ट को अंतरिक्ष में काम करते देखना था। मैंने अंतरिक्ष यान की योजना, डिज़ाइनिंग और उसके निर्माण में कई साल बिताए। इसे अंतरिक्ष में अपनी उम्मीद के मुताबिक काम करते देखना बहुत ज्यादा संतुष्टिकारक था।’’

मोहन का कहना है कि अंतरिक्ष में उनकी दिलचस्पी तब पैदा हुई जब उन्होंने टेलीविजन शो ‘‘स्टार ट्रैक : द नेक्स्ट जनरेशन का एक एपिसोड देखा।

इस मशहूर अमेरिकी साइंस फिक्शन शो से रूबरू होने से लेकर पर्जिरविरेंस रोवर प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने तक की उनकी यात्रा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कॅरियर बनाने की योजना बना रही युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है। बचपन में ही मोहन ने ग्रहों, तारों के बनने और बिग बैंग सिद्धांत के बारे में विस्तार से पढ़ा। 11वीं कक्षा में वह स्पेस कैंप में दूसरे अंतरिक्ष उत्साही लोगों से मिलीं और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अवसरों के बारे में जानकारी हासिल की और तभी से उन्होंने नासा में कॅरियर के बारे में सोचना शुरू कर दिया। वह कहती हैं, ‘‘मैंने विभिन्न इंटर्नशिप के माध्यम से नासा के विभिन्न क्षेत्रों का पता लगाया लेकिन अंत में जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) के इंटरप्लेनेटरी एक्सप्लोरेशन सेक्शन के साथ मुझे सहजता महसूस हुई। जेपीएल ने अंतरिक्ष के प्रति मेरी दिलचस्पी को उस अन्वेषण पहलू के साथ जोड़ दिया जिसकी ओर मैं पहली बार तब आकर्षित हुई थी जब मैंने एक बच्ची के रूप में ‘‘स्टार ट्रैक’’ देखा था। जेपीएल में शामिल होने के बाद से, मुझे चंद्रमा, मंगल, शनि और छोटे ग्रहों की खोज करने वाले मिशनों पर काम करने का सौभाग्य मिला।’’

मोहन के अनुसार, पर्जिरविरेंस रोवर ने मंगल ग्रह पर भविष्य की संभावनाओं को प्रदर्शित किया है। ‘‘इसके दो विशिष्ट उदाहरण मोक्सी और इंजेन्युटी है।’’ वह कहती हैं, ‘‘मोक्सी एक उपकरण है जो मंगल ग्रह के वातावरण से ऑक्सीजन बनाता है। यह मंगल ग्रह पर मानव मिशन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। इंजेन्युटी एक हेलीकॉप्टर है जो पृथ्वी से बाहर उड़ान भरने वाला पहला हेलीकॉप्टर है। मंगल ग्रह पर हेलीकॉप्टर के प्रदर्शन ने ग्रहों की खोज का एक बिल्कुल नया तरीका सामने रखा है जो वैज्ञानिक मिशनों के एक पूरे नए समूह को सक्षम कर सकता है।’’

मोहन मार्स सैंपल रिटर्न प्रोग्राम पर भी काम कर रही हैं जो मंगल ग्रह की सतह से नमूनों को पृथ्वी पर लाने का एक प्रस्तावित मिशन है। वह बताती हैं, ‘‘पर्जिरविरेंस मंगल ग्रह से नमूना रिटर्न रिले का पहला चरण है, अब हम अगले चरण की योजना बना रहे हैं। अगला कदम मंगल की सतह से नमूने लॉच करने में सक्षम रॉकेट को वहां लैंड कराने का है। मैं मार्स लांच सिस्टम पर भी काम कर रही हूं जो उम्मीद है कि किसी अन्य ग्रह की सतह से लॉंच होने वाला पहला रॉकेट होगा जो अपने साथ पर्जिरविरेंस द्वारा एकत्र किए गए नमूने लेकर जाएगा।’’॒

उनकी तरह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के इच्छुक लोगों को उनकी सलाह है कि वे अपना आत्मविश्वास बनाए रखें, अपनी सोच को लेकर मुखर बनें, लोगों को बताएं कि आप क्या चाहते हैं और यह भी साबित करें कि आप उसे हासिल करने में सक्षम हैं। वह कहती हैं, ‘‘सबसे बड़ी बात है कि लगातार प्रयास करते रहें। ऐसे कई रास्ते हैं जो एक ही लक्ष्य तक ले जा सकते हैं। जब तक हम चलते रहेंगे, हमारी वहां पहुंचने की संभावना बनी रहेगी और हम वहां पहुंच सकते हैं।’’

(चित्र परिचयः पर्जिरविरेंस रोवर गाइडेंस, नेविगेशन और नियंत्रण गतिविधियों का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालीं स्वाति मोहन पासाडेना, कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रपल्सन लेब्रोरेटरी में। (फोटोग्राफः बिल इंगाल्स/नासा)

साभार- https://spanmag.com/hi/ से

image_print

जल प्रबंधन में महिलाएं: अनदेखी धाराएं और हाथ से निकले मौक़े!

आज जब भारत टिकाऊ विकास की जटिलताओं से जूझ रहा है, ऐसे में अधिक समतावादी भविष्य के निर्माण के लिए पानी के क्षेत्र में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण धुरी के तौर पर उभरा है।

पानी, बाल्टी में टपकी एक बूंद भर नहीं है। ये लगातार टपकता रहता है। दुनिया भर के लोग पीने, नहाने धोने, खेती और बिजली बनाने के लिए पानी के भरोसे रहते हैं। हालांकि, पानी के संसाधनों का रख-रखाव एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है। अक्सर इससे निपटने के लिए आपसी तालमेल वाली कोशिशों और नए नए समाधानों की ज़रूरत होती है। विश्व जल दिवस 2024 पर यूनेस्को के वर्ल्ड वॉटर एसेसमेंट प्रोग्राम ने वर्ल्ड वॉटर डेवेलपमेंट रिपोर्ट जारी की। इसका शीर्षक, ‘शांति और समृद्धि के लिए पानी का लाभ उठाना’ है। ये रिपोर्ट इस साल के जल दिवस की थीम ‘शांति के लिए जल’ के अनुरूप ही है। पिछले वर्षों की तरह इस साल भी यूनेस्को की इस रिपोर्ट के ज़रिए यूएन-वॉटर ने ऐसे ख़ास सुझावों और सबसे अच्छे व्यवहारों को बताया है, जो पूरी दुनिया में देशों, संगठनों, समुदायों और व्यक्तिगत स्तर पर द्वारा पानी को संघर्ष का स्रोत बनाने के बजाय स्थिरता लाने वाली शक्ति के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकें।

पानी की क़िल्लत या फिर अच्छे जल संसाधनों के असमान वितरण ने कई तरह के संघर्षों को जन्म दिया है। इनमें जल के साझा संसाधनों को लेकर दो देशों के बीच सीमा के आर-पार के संघर्षों से लेकर क्षेत्रीय या फिर समुदाय के स्तर पर ग़लत आवंटन या तालमेल के अभाव को लेकर टकराव शामिल हैं। हालांकि, पानी के प्रशासन से जुड़े सभी स्तरों के प्रमुख भागीदार अक्सर एकजुट होकर इन संघर्षों के समाधान के लिए काम करते रहे हैं। इनसे सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध कराने, आसानी से साफ़-सफ़ाई करने, खाद्य और पोषण की सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में लचीलापन, आपदा के जोखिम में कमी और ऐसे ही कई अन्य लाभ मिले हैं। लेकिन, इस पहेली का एक पहलू ऐसा भी है, जिसे हमेशा ही अनदेखा कर दिया जाता है: ‘शांति के लिए जल’ के इस्तेमाल में महिलाओं का योगदान। जब बात पानी की आती है, तो महिलाएं हमेशा ही गुमनाम नायिकाएं साबित होती आई हैं। वो दिन का अच्छा ख़ासा वक़्त स्थायी विकास के लक्ष्य 6 (SDG 6) यानी 2030 तक सबको पानी और साफ़-सफ़ाई की सुविधा देने के मामले में प्रगति की रफ़्तार तेज़ करने में लगाती रही हैं।

हालांकि उन्हें अपनी इस अपरिहार्य भूमिका निभाने के एवज़ में भारी क़ीमत भी चुकानी पड़ती है, जिसे जानकार ‘वक़्त की ग़रीबी’ कहते हैं। इसका मतलब ऐसा चलन है, जिसकी वजह से महिलाओं को अपने निजी विकास, मनोरंजन या फिर आर्थिक गतिविधियों के लिए या तो बहुत कम या फिर ज़रा भी वक़्त नहीं मिल पाता है। इस लेख में हम जल प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी के उनके आमदनी बढ़ाने पर पड़ने वाले प्रभाव की गहराई से पड़ताल कर रहे हैं, और इस तरह जल प्रबंधन के लिए ऐसे विकल्पों को बढ़ावा देने के आर्थिक तर्क पेश कर रहे हैं, जिससे इनका इकतरफ़ा बोझ महिलाओं पर ही न पड़े।
जल प्रबंधन की परिचर्चाओं के बीच अक्सर महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान की अनदेखी कर दी जाती है।

ऐतिहासिक रूप से महिलाओं ने अपने परिवार और समुदायों के लिए जल संसाधनों की उपलब्धता और उनके स्थायित्व को सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। पानी जुटाने से लेकर सिंचाई व्यवस्था के प्रबंधन तक महिलाएं, पानी से जुड़ी गतिविधियों के अग्रिम मोर्चे पर खड़ी होती रही हैं और वो अपने ज्ञान, कौशल और जन्मजात ख़ूबी का इस्तेमाल अपने परिवारों और समुदायों की पानी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए करती रही हैं। दुनिया के 61 देशों से जुटाए गए आंकड़े बताते हैं कि पानी की क़िल्लत या अभाव वाले 80 प्रतिशत घरों में, परिवार के स्तर पर पानी के प्रबंधन का मुख्य ज़िम्मा ज़्यादातर महिलाएं और लड़कियां उठाती हैं। इन हालात में साफ़ पानी तक पर्याप्त पहुंच के न होने से महिलाओं पर वक़्त की मार पड़ती है। इससे वो शैक्षणिक अवसरों में भाग लेने की क्षमता गंवा देती हैं, जिससे वो आमदनी बढ़ाने की गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाती हैं।

जल प्रबंधन से जुड़ी मेहनत में ये लैंगिक बंटवारा अक्सर मौजूदा असमानताओं को और बढ़ा देता है, जिससे संसाधनों तक पहुंच, निर्णय लेने की प्रक्रिया और आर्थिक अवसरों को भुनाने के मामलों में भेदभाव होता है। पानी के रख-रखाव की वजह से वक़्त की जो ग़रीबी पैदा होती है, वो कुछ महिलाओं पर पड़ने वाले ‘दोहरे बोझ’ को भी रेखांकित करती है, क्योंकि उन्हें एक साथ कई ज़िम्मेदारियां निभाने के बीच तालमेल बिठाना पड़ता है। इनमें पानी लाने, घर के दूसरे काम करने, बच्चों की देखभाल और घर की आमदनी बढ़ाने वाली गतिविधियां शामिल हैं। समय की ये कमी न केवल महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी को सीमित करती है, बल्कि ग़रीबी और कमज़ोर तबक़े का हिस्सा बने रहने के दुष्चक्र को भी जारी रखती है।

पानी के रख-रखाव की वजह से वक़्त की जो ग़रीबी पैदा होती है, वो कुछ महिलाओं पर पड़ने वाले ‘दोहरे बोझ’ को भी रेखांकित करती है, क्योंकि उन्हें एक साथ कई ज़िम्मेदारियां निभाने के बीच तालमेल बिठाना पड़ता है।

2019 के वक़्त के इस्तेमाल से जुड़े सर्वे के मुताबिक़, पानी के प्रबंधन से जुड़े बिना भुगतान वाले घरेलू सेवाओं में गुज़ारे गए वक़्त के मामले में भारत एक स्पष्ट मिसाल बनकर सामने आया था। इससे संकेत मिलता है कि महिलाएं अपने कामकाज के रोज़ाना के घंटों का काफ़ी बड़ा हिस्सा इन्हीं कामों में ख़र्च करती हैं, और औसतन उन्हें दिन में पांच घंटे ऐसे कामों में बिताने पड़ते हैं, जबकि उनकी तुलना में पुरुषों को केवल डेढ़ घंटे का वक़्त घर के कामों में ख़र्च करना पड़ता है। सच तो ये है कि ग्रामीण और शहरी भारत के जिन घरों के भीतर पानी का स्रोत नहीं है, उनमें से 80 प्रतिशत से ज़्यादा घरों की महिला सदस्य पानी की व्यवस्था करने संबंधी घरेलू गतिविधियों में लगाती हैं, और इसके बदले में उन्हें पैसे भी नहीं मिलते। इसकी तुलना में इन घरों में केवल 20 फ़ीसद मर्द ही इन घरेलू ज़रूरतों में अपना वक़्त ख़र्च करते हैं।

‘वक़्त की ग़रीबी’ की ये लैंगिक असमानता के आर्थिक दुष्परिणामों को रेखांकित करते हुए हाल ही में किया गया एक अध्ययन संकेत करता है कि भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पानी के प्रबंधन से जुड़े बिना मेहनताने वाले कामों में महिलाओं के लग जाने से उनके श्रमिक वर्ग की भागीदारी में 17 प्रतिशत तक की गिरावट आती है। इसलिए, रोज़गार की दर में लैंगिक समानता और पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कामगार तबक़े में भागीदारी की निचली दर के बावजूद स्त्रियों की आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, ये ज़रूरी हो जाता है कि श्रम के बाज़ारों में महिलाओं के दाख़िले को प्रोत्साहन देने के लिए पुरुषों की तुलना में ज़्यादा मजदूरी दी जानी चाहिए। हालांकि, ज़मीनी हक़ीक़त इससे बिल्कुल उलट है।

जल प्रबंधन में लैंगिक भूमिकाओं और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी की आपस में जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक नज़रिए की ज़रूरत है, जिसमें पानी के क्षेत्र में महिलाओं के बिना मेहनताने वाले योगदान के बहुआयामी असर को स्वीकार करके इसके प्रभाव को कम करने का प्रयास किया जाए। पानी के प्रशासन और प्रबंधन में महिलाओं को सशक्त बनाना सामाजिक न्याय का भी एक काम है और ये पानी की परियोजनाओं की कुशलता बढ़ाने और परिवारों की अतिरिक्त आमदनी में इज़ाफ़ा करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की एक सामरिक ज़रूरत भी है। भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आकलन ये बताते हैं कि अगर पानी के क्षेत्र में महिलाओं की वक़्त की ग़रीबी में 10 से 50 प्रतिशत तक की भी कमी की जाए, तो इससे आमदनी की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी होगी और काफ़ी आर्थिक लाभ भी हो सकते हैं। (नीचे Figure 1 देखें)

इन संभावित आर्थिक फ़ायदों को हासिल करने के लिए नीति निर्माताओं, सामुदायिक नेताओं और पानी के सेक्टर के तमाम भागीदारों के द्वारा सघन प्रायास करने की ज़रूरत होगी, ताकि महिलाओं को सशक्त बनाने वाली रणनीतियां लागू हो सकें, उनकी वक़्त की ग़रीबी कम हो सके और इस तरह अर्थव्यवस्था में उनकी मज़बूत भागीदारी को बढ़ावा मिल सके। ज़िम्मेदारियों का फिर से वितरण करने वाली रणनीतियां अपनाकर और पानी के अच्छे संसाधनों तक सबकी पहुंच को बढ़ावा देकर हम महिलाओं पर पड़ने वाले भारी बोझ को कम कर सकते हैं और पानी के रख-रखाव के अधिक टिकाऊ और समावेशी तरीक़ों को बढ़ावा दे सकते हैं।

पानी के प्रबंधन से जुड़े मामलों में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना ज़रूरी है, तभी उनकी आवाज़ और नज़रियों को सुना जाएगा और फिर उन्हें नीतियों और कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया जा सकेगा। एक अहम रणनीति तो ऐसे मूलभूत ढांचे और तकनीकों में निवेश की हो सकती है, जो पानी से जुड़े कामों और विशेष रूप से पानी इकट्ठा करने और उसके भंडारण में लगने वाली मेहनत और वक़्त को कम कर सकें।

यही नहीं, पानी के प्रबंधन से जुड़े मामलों में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना ज़रूरी है, तभी उनकी आवाज़ और नज़रियों को सुना जाएगा और फिर उन्हें नीतियों और कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया जा सकेगा। पानी के टिकाऊ प्रबंधन वाले तौर-तरीक़ों के मामले में महिलाओं के ज्ञान और उनके हुनर को बढ़ावा देने वाली पहलों के क्षमता निर्माण से भी महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है, ताकि वो वक़्त की कोई भारी क़ीमत चुकाए बग़ैर जल प्रबंधन में अपनी सक्रिय भूमिकाएं निभाना जारी रख सकें।

जल प्रबंधन में लैंगिक समानता लाने वाले इन वैकल्पिक तरीक़ों को अपनाकर हम अधिक समतावादी और टिकाऊ जल व्यवस्थाएं बना सकते हैं, जो महिलाओं, पुरुषों और समुदायों के लिए लाभप्रद हों। आज जब भारत टिकाऊ विकास की जटिलताओं से जूझ रहा है, तो अधिक समतावादी और समृद्ध भविष्य के निर्माण के लिए पानी के मामले में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना एक प्रमुख तत्व के रूप में उभरता है।
साभार -https://www.orfonline.org/hindi/ से

 

image_print

बचपन बचाओ आंदोलन ने बर्बरता की शिकार नाबालिग घरेलू सहायिका को मुक्त कराया

एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन जिसे बचपन बचाओ आंदोलन के नाम से जाना जाता है, ने होली के दिन बर्बरता की शिकार एक नाबालिग घरेलू सहायिका को मुक्त कराया। बच्ची की शिकायत पर नियोक्ता के खिलाफ गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने में मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जा रही है। मामला दर्ज करने के बाद पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की रहने वाली इस बच्ची को चिकित्सा जांच के लिए ले जाया गया जहां उसकी गंभीर हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया।

देश जब होली के रंगों की खुशियां मना रहा था, उसी समय बचपन बचाओ आंदोलन को किसी ने फोन कर सूचित किया कि गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में एक घरेलू सहायिका के साथ बर्बरता की गई है और उसकी स्थिति गंभीर है। सूचना के बाद बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और बच्ची को मुक्त कराया। कार्यकर्ताओं ने पाया कि बच्ची के दोनों हाथ सूजे हुए थे और उसके कान एवं चेहरे सहित जिस्म का हर हिस्सा जख्मी था। उसकी पीठ पर बेलन से मारा गया था जिसकी वजह से वो बोल नहीं पा रही थी । गर्दन पर जले एवं कटे के निशान भी थे। दाएं पैर पर खौलता हुआ पानी डाला गया था जिसकी वजह बच्ची के पैर जल गए थे। बाए पैर में जख्म था जो पिटाई की वजह से फट गया था और एक जगह टांग में हड्डियों से खून रिस रहा था।

बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता उसे लेकर इंदिरापुरम थाने पहुंचे और उसकी नियोक्ता रीना शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। बच्ची पिछले एक साल से यहां काम कर रही थी। बच्ची ने बताया कि होली की रात रीना शर्मा ने उसे बेरहमी से पीटा और मदद के लिए पुकार लगाने पर वह उसके सीने पर बैठ गई। सुबक रही बच्ची ने दरवाजा थोड़ा सा खुला देखा तो वहां से भाग निकली और रात को सीढ़ियों पर छिपी रही। सुबह किसी ने उसे देखा और बचपन बचाओ आंदोलन को सूचना दी।

बच्ची ने बताया कि नियोक्ता रीना शर्मा उसकी डंडे से पिटाई करती थी और उससे सुबह छह बजे से लेकर रात को दो बजे तक काम कराया जाता था। नाबालिग ने अपने जले हुए पांव दिखाते हुए बताया कि एक बार वह कोई काम पूरा नहीं कर पाई तो मालकिन उसके पैर खौलता पानी फेंक दी। होली से एक दिन पहले भी उसकी बेरहमी से पिटाई की गई थी।

बच्ची की मां सिलीगुड़ी के एक चाय बागान में काम करती हैं जबकि पांव की चोट के कारण पिता घर पर ही रहते हैं। बच्ची ने बताया कि उसे पखवाड़े में एक बार अपने घर फोन करने की इजाजत दी जाती थी और इस बीच अगर उसने इशारों में भी यहां के बदतर हालात के बारे में कुछ बताने की कोशिश की तो उसे बेरहमी से पीटा जाता था। बच्ची ने बताया कि तनख्वाह के नाम पर उसके हाथ में कभी एक पैसा भी नहीं मिला और उससे कहा जाता था कि हर महीने 4,000 रुपए उसके घर वालों को भेजे जाते हैं। बच्ची को एक प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए यहां भेजा गया था। बताया जा रहा है कि रीना ने इससे पहले भी एक घरेलू सहायिका को बुरी तरह पीटा था।

देश में घरेलू सहायकों के काम करने के हालात और उनकी स्थिति पर चिंता जताते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, “शहरी भारतीयों के बढ़ते लालच को पूरा करने के लिए देश के दूरदराज के इलाकों के गरीब व लाचार परिवारों की लड़कियों को ट्रैफिकिंग के माध्यम से लाया जा रहा है। जैसे एक मासूम से उसका बचपन और घर छीन लेना ही काफी नहीं है, इन बच्चों को यातनाएं दी जाती हैं, उन पर अत्याचार किए जाते हैं और उन्हें वीभत्स स्थितियों में रहने को मजबूर किया जाता है। अगर हम अपने बच्चों को शोषण और उत्पीड़न से बचाना चाहते हैं तो हमें और कड़े कानूनों व प्लेसमेंट एजेंसियों की निगरानी की आवश्यकता है। लेकिन जिस तरह से किसी ने बच्ची के बारे में सूचना दी और आस पड़ोस के लोगों ने जिस तरह बच्ची को मुक्त कराने में सहयोग दिया, वह ऐसी तमाम बच्चियों के लिए आशा की किरण जगाने वाला है। अगर देश की सभी रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) इसी तरह से सक्रिय भूमिका निभाएं जैसा कि इस मामले में देखने को मिला है तो हम बाल मजदूरी और बच्चों की ट्रैफिकिंग पर लगाम कसने में कामयाब हो सकते हैं। जाहिर है कि जब तक यह सबका दायित्व नहीं बन जाता तब तक यह किसी का कर्तव्य नहीं बन पाएगा।”

image_print

राजस्थान दिवस पर डॉ. सिंघल, चौथमल और जोधराज होंगे सम्मानित

कोटा। हिंदी साहित्य समिति कोटा द्वारा राजस्थान दिवस शनिवार 30 मार्च शनिवार को दोपहर 2.00 बजे सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन वेस्ट सेंट्रल रेलवे एम्पलाइज यूनियन कार्यालय में किया जाएगा। हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ. रघुराज सिंह कर्मयोगी ने बताया कि कार्यक्रम हिंदी भाषा के प्रकांड विद्वान एवं प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. रमेश चंद्र गुप्ता की स्मृति में उनके पुत्र श्री मनोज कुमार गुप्ता, मुख्य कार्यालय अधीक्षक मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय द्वारा आयोज्य है।

उन्होंने बताया कि इस अवसर पर राजस्थान के लेखक और पूर्व संयुक्त निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग राजस्थान सरकार, कोटा के डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को हाड़ोती क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए उनकी पुस्तक “जियो तो ऐसे जियो” के लिए सम्मानित किया जाएगा। पुस्तक में हाड़ोती में साहित्य, शिक्षा और संस्कृति की 99 विभूतियों पर गहन अध्ययन और विश्लेषण कर लिखा गया है। हिंदी के क्षेत्र में “काव्य सृजन” त्रैमासिक पत्रिका का सुंदर और निरंतर प्रकाशन के लिए साहित्यकार जोधराज परिहार ‘मधुकर’ को एवं हाड़ोती भाषा का शब्दकोश तैयार करने के लिए चौथमल प्रजापति को सम्मानित किया जाएगा।

 

image_print

ग्रामीण विकास मंत्रालय की J-PAL दक्षिण एशिया के साथ साझेदारी

नई दिल्ली। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने IFMR में अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (J-PAL) दक्षिण एशिया को ‘समावेशी आजीविका’ कार्यक्रम हेतु एक नोलेज पार्टनर के रूप भागीदार बनाया है। यह कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भरता के मार्ग पर लाने के लिए डिज़ाइन किया गया एक व्यापक आजीविका कार्यक्रम है।

एमओआरडी – एमओयू
‘समावेशी आजीविका’ कार्यक्रम BRAC के ग्रेजुएशन एप्रोच के अनुकूल काम करेगा, जो एक व्यापक आजीविका कार्यक्रम है। यह J-PAL और इनोवेशन फॉर पॉवर्टी एक्शन से संबंद्धित शोधकर्ताओं द्वारा यादृच्छिक मूल्यांकन को सबसे गरीब परिवारों को अत्याधिक गरीबी से बाहर निकालने में प्रभावी पाया गया है। इस साझेदारी के हिस्से के रूप में, J-PAL दक्षिण एशिया भारत में समावेशी आजीविका का विस्तार करने के लिए निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य और डेटा का उपयोग करने में MoRD का समर्थन करेगा।

‘समावेशी आजीविका में व्यवसाय प्रशिक्षण, जीवन-कौशल कोचिंग और अल्पकालिक वित्तीय सहायता शामिल होगी और इसे MoRD के प्रमुख आजीविका कार्यक्रम दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के माध्यम से पूरे भारत में ग्रामीण महिलाओं को प्रशासित किया जाएगा।

समझौता ज्ञापन पर चरणजीत सिंह, अतिरिक्त सचिव, ग्रामीण आजीविका, ग्रामीण विकास मंत्रालय, स्मृति शरण, संयुक्त सचिव, ग्रामीण आजीविका, ग्रामीण विकास मंत्रालय, निवेदिता प्रसाद, उप सचिव, ग्रामीण विकास विभाग, रमन वाधवा, निदेशक, डीएवाई-एनआरएलएम, और उषा रानी, आईबीसीबी एसआईएसडी और एचआर, एनआरएलएम, शोभिनी मुखर्जी, कार्यकारी निदेशक, जे-पाल दक्षिण एशिया एवं शरण्या चंद्रन, निदेशक, नीति और संचार, जे-पाल दक्षिण एशिया की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।

इस साझेदारी का प्रमुख उद्देश्य एक ऐसे ईको सिस्टम का निर्माण करना है जो विस्तृत साक्ष्य साझा करने, ज्ञान अंतराल को पाटने और राष्ट्रव्यापी विभिन्न राज्यों और संदर्भों में ग्रेजुएशन अपरोच को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए आत्मविश्वास पैदा करने की दिशा में काम कर सके। चरणजीत सिंह, अतिरिक्त सचिव, ग्रामीण आजीविका, ग्रामीण विकास मंत्रालय, ने कहा कि किसी भी कार्यक्रम को वास्तविक समय में फीडबेक प्राप्त होना महत्वपूर्ण है और यह समझौता ज्ञापन इस प्रक्रिया में मदद करेगा। J-PAL दक्षिण एशिया महिलाओं पर केन्द्रित विकास पर काम करने के लिए NRLPS-DAY-NRLM के भीतर नए शोध करने और डेटा उपयोग को संस्थागत बनाने हेतु MoRD के साथ मिलकर एक जेंडर इम्पैक्ट लैब भी स्थापित करेगा।

MoRD के साथ J-PAL दक्षिण एशिया की साझेदारी ASPIRE द्वारा समर्थित है जो कि बड़े पैमाने पर प्रभावशाली बदलाव लाने के लिए J-PAL दक्षिण एशिया और वेदीस फाउंडेशन की एक संयुक्त पहल है। भारत सरकार का डीएवाई-एनआरएलएम विश्व के सबसे बड़े सामुदायिक जुड़ाव प्रयासों में से एक है, जिसने 90.4 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों और 4 लाख से अधिक प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के गठनों में 9.99 करोड़ से अधिक महिलाओं को संगठित किया है। यह कार्यक्रम स्थायी आजीविका को बढ़ावा देता है और महिलाओं को अपनी बचत करने में मदद करता है। लेकिन इन सबसे ऊपर, यह उन्हें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है।

नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक प्रगति रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत ने पिछले एक दशक में अत्यधिक वनरेबिलिटी को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन लगभग 19.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में रहना जारी रखते हैं। पहली बार 2002 में बांग्लादेश में लागू किए गए ग्रेजुएशन अपरोच को J-PAL और इनोवेशन फॉर पॉवर्टी एक्शन से संबद्ध शोधकर्ताओं द्वारा सात देशों में गहनता से परीक्षण किया गया है। उनके निष्कर्षों से पता चलता है कि समर्थन का पूरा पैकेज प्राप्त करने वाले परिवारों में अधिक खर्च करने की क्षमता आई, वे नियमित रूप से खाते हैं, और उनकी उच्च आय और बचत हुई।

भारत में पश्चिम-बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में J-PAL के सह-संस्थापकों और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो के नेतृत्व में एक मूल्यांकन में पाया गया कि कार्यक्रम का प्रभाव एक दशक बाद भी बना रहा। 2015 और 2019 के बीच, J-PAL दक्षिण एशिया और NGO बंधन-कोननगर ने झारखंड, ओडिशा, राजस्थान और बिहार में ग्रेजुएशन अप्रोच मॉडल को प्रायोगिक आधार पर शुरु किया।

आज ग्रेजुएशन अप्रोच जैसे साक्ष्य आधारित कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता है । इनके व्यापक प्रभाव व लाभ पाने के लिए कई क्षेत्रों में लागू करने की ज़रूरत है। J-PAL दक्षिण एशिया की कार्यकारी निदेशक शोभिनी मुखर्जी ने कहा, “ग्रेजुएशन अपरोच महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के लिए भारत सरकार के विज़न के लिए एक बड़ा बढ़ावा है। MoRD ने अपने निर्णय लेने में वैज्ञानिक साक्ष्य और डेटा को अपनाने में अभूतपूर्व नेतृत्व दिखाया है। समावेशी आजीविका एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और नागरिक समाज संगठनों का एक मजबूत ईको सिस्टम बड़े पैमाने पर प्रभाव डालने के लिए महत्वपूर्ण हैं।”

J-PAL दक्षिण एशिया बंधन-कोननगर के साथ मिलकर सतत जीविकोपरजन योजना (SJY) के विस्तार का समर्थन करने के लिए 2018 से बिहार सरकार के JEEViKA के साथ काम कर रहा है। अनुमान है कि यह दुनिया में ग्रेजुएशन अपरोच का सबसे बड़ा सरकार के नेतृत्व वाला स्केल-अप है। SJY पूरे बिहार में 2024 तक 200,000 महिला-प्रधान परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखता है। J-PAL साउथ एशिया SJY के कार्यान्वयन से अपने निष्कर्ष और अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए राज्य सरकारों और नागरिक समाज संगठनों को मिलाकर MoRD के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ भी सहयोग करेगा।

जे-पाल दक्षिण एशिया के बारे में
अब्दुल लतीफ़ जमील पोवर्टी एकशन लेब(जे-पाल)अमेरिका स्थित एक विश्व्यापी शोध संस्था है है जो की शोध द्वारा गरीबी उन्मूलन से जुड़े साक्ष्य और प्रमाणों को सरकारों तथा संस्थाओं से साझा करती हैं जिससे की गरीबी उन्मूलन से जुड़े प्रयास को कारगर और सदृढ़ बनाया जा सके! विश्व भर के अग्रणी विश्वविद्यालयों से जुड़े करीब 870 प्राध्यापक और शोधकर्ता इस मुहीम का हिस्सा हैं जो अपने रेण्डमाइज़्ड कण्ट्रोल ट्रायल पर आधारित अनुसंधान के उपयोग से गरीबी उन्मूलन की दिशा में जटिल सवालों के उत्तर तलाश रहे हैं।

अब्दुल जमील पाँवर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) की स्थापना 2003 मे मेसेच्युसेट्स इंस्टीटयूट आफ़ टेक्नोलोजी अमेरिका में की गई थी। जे-पाल के दुनिया भर में सात क्षेत्रीय कार्यालय हैं, ज-पाल दक्षिण एशिया का कार्यालय चेन्नई में Institute for Financial Management and Research (IFMR) में स्थित है। भारत में जे-पाल कई सरकारी संगठनों और विभागों के साथ 20 से ज्यादा राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में मिल के शोध के नए विषयों और सवालों साक्ष्य आधारित नीति निर्माण की दिशा में साझदारी तथा प्रक्षिशण के विभिन्न आयामों और अवसरों पर मिल के काम कर रहा है।

वेदीस फाउंडेशन के बारे में
वेदीस फाउंडेशन प्रौद्योगिकी पर और बड़े पैमाने पर स्थायी प्रभाव पैदा करने की नीति काम करने वाले संगठनों का समर्थन करता है। गहरे और अपरिवर्तनीय सामाजिक परिवर्तन बनाने के मिशन के साथ फाउंडेशन प्रभावी सार्वजनिक सेवा वितरण पर सरकारों के साथ सीधे काम करता है। फाउंडेशन इस प्रकार के काम करने वाले संस्थानों का समर्थन करने के लिए एक साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाता है। यह औसत दर्जे का बाहरी प्रभाव प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ निवेशों के लिए विश्लेषणात्मक कठोरता और एक सहयोगी भावना लाने की उम्मीद करता है।

एक सफल तकनीकी उद्यमी और आईआईटी दिल्ली और आईआईएम कलकत्ता के पूर्व छात्र विक्रांत भार्गव द्वारा स्थापित, वेदीस फाउंडेशन ने कई राज्य सरकारों के साथ प्रत्यक्ष (और अप्रत्यक्ष रूप से) काम किया है और 100 से अधिक संगठनों का समर्थन किया है। इस में LetzChange.org का गठन भी किया गया है जो अब एक तकनीकी प्लेटफॉर्म है जो गिवइंडिया के रिटेल फंडरेसिंग प्लेटफार्म को मजबूत बनाता है।

ज्यादा जानकारी के लिये विज़िट करें www.povertyactionlab.org/south-asia

image_print

श्री अयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को जाग्रत कर दिया

22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।

सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया गया है। इस भव्य मंदिर को त्रिभुवन का मंदिर भी कहा जा रहा है। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी, जो कला के जानकार हैं, का तो यह भी कहना है कि इस प्रकार की नक्काशी से सज्जित मंदिर शायद पिछले 1000 वर्षों में तो बनता हुआ नहीं दिखाई दिया है। इस मंदिर में प्रभु श्रीराम के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के समय लगभग समस्त समाज के लोग पूजा सम्पन्न कराने के उद्देश्य से बिठाए गए थे। पूजा सम्पन्न कराने के लिए माननीय पंडितों को देश के लगभग समस्त राज्यों से लाया गया था। देश में लगभग 150 संत महात्माओं की परम्पराएं हैं जैसे गुरु परम्परा, दार्शनिक परम्परा आदि। ऐसी समस्त परम्पराओं के संत महात्माओं की भागीदारी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में रही। साथ ही, सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों के प्रमुख नागरिकों की भी इस समारोह में भागीदारी रही, जैसे खेल, साहित्य, लेख, कला, मीडिया, प्रशासन, आदि।

कुल 18 श्रेणियों के नागरिकों को इस समारोह में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था। जिन लगभग 4000 श्रमिकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था उनमें से 600 श्रमिकों, इंजीनीयरों एवं सुपर्वायजर आदि की भी इस कार्यक्रम में भागीदारी करवाई गई। 22 जनवरी 2024 के पवित्र दिन श्रीअयोध्या धाम के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 60 चार्टर हवाई जहाज आए थे। कुल मिलाकर व्यवस्थाएं इतनी अच्छी थीं कि किसी भी नागरिक को श्री अयोध्या धाम में प्रवेश करने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हुई थी। मंदिर परिसर में भी समस्त नागरिकों को अपनत्व लगा था। ऐसा लगा कि स्वर्ग में पहुंच गए हैं एवं मंदिर परिसर में दैवीय अनुभूति हुई। आज भारत एवं अन्य देशों से लगभग 2 लाख श्रद्धालु प्रभु श्रीरामलला के दर्शन हेतु श्री अयोध्या धाम प्रतिदिन पहुंच रहे हैं।

दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को नागपुर में सम्पन्न हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्रभु श्रीराम मंदिर के निर्माण पर एक प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि भारत में सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने “स्व” को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। अब जब प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है अतः अब भारत के समस्त नागरिकों के संदर्भ में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचरित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, इससे राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा।

प्रभु श्रीराम के जीवन में परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही प्रभु श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी। इसी दृष्टि से, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त भारतीयों का आह्वान करती है कि बंधुत्व भाव से युक्त, कर्तव्य निष्ठ, मूल्य आधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करने वाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्व कल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा। यदि भारतीय समाज एक होगा तो भारत को पुनः एक बार विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में आसानी होगी।

श्री अयोध्या धाम में नव निर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने न केवल भारतीय समाज को एक किया है बल्कि इससे भारत की आर्थिक प्रगति में चार चांद लग रहे हैं। देश में धार्मिक पर्यटन की जैसे बाढ़ ही आ गई है। न केवल भारतीय नागरिक बल्कि अन्य देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी प्रभु श्री राम के दर्शन करने हेतु श्री अयोध्या धाम पहुंच रहे हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के लाखों नए अवसर विकसित हो रहे हैं। भारतीय समाज में एकरसता आने से भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों को भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है जिससे आपस में भाईचारा बढ़ता दिखाई दे रहा है। यदि मां भारती को विश्व गुरु बनाना है तो भारत में निवास कर रहे समस्त नागरिकों में एकजुटता स्थापित करनी ही होगी। भारत में मजबूत राजनैतिक स्थिति, मजबूत लोकतंत्र, मजबूत सामाजिक स्थिति, मजबूत सांस्कृतिक धरोहर होने के चलते विश्व के अन्य देशों का भारतीय सनातन संस्कृति पर विश्वास बढ़ रहा है जिसे भारत के वैश्विक स्तर पर पुनरुत्थान के रूप में देखा जा सकता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी भी अपने एक उदबोधन में कहते हैं कि राम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है, उसी का आचरण आज हमें करना चाहिए क्योंकि हम भी इस गौरवमय भारतवर्ष की संताने हैं। आज हमें राम राज्य के समय नागरिकों द्वारा किए जाने वाले आचरण को अपनाने हेतु तप करना पड़ेगा, हमको समस्त प्रकार के कलह को विदाई देनी पड़ेगी। समाज में आपस में अलग अलग मत हो सकते हैं, छोटे छोटे विवाद हो सकते हैं, इन्हें लेकर आपस में लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी पड़ेगी। राम राज्य के समय नागरिकों में अहंकार नहीं हुआ करता था वे बगैर अहंकार के आपस में मिलजुलकर काम करते थे। श्रीमद् भागवत में बताया गया है कि जिन चार मूल्यों की चौखट पर धर्म का निवास रहता है, वे चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, सुचिता और तपस। राम राज्य में इन मूल्यों का अनुपालन नागरिकों द्वारा किया जाता था।

श्री भागवत जी आगे कहते हैं कि आज की परिस्थितियों के बीच नागरिकों द्वारा आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना यह धर्म का ही प्रथम पायदान है। दूसरा कदम माना जाता है धर्म का आचरण अर्थात सेवा और परोपकार करना। केंद्र सरकार एवं अन्य कई राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही है। आज इस संदर्भ में सब कुछ हो रहा है लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है। इस समाज में जहां दुःख दिखाई दे, पीड़ा दिखाई दे, वहां हम दौड़ कर सेवा करने पहुंचे, यह सभी हमारे अपने बंधू ही तो हैं। हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि दोनों हाथों से कमाएं जरूर, परंतु अपने लिए न्यूनतम आवश्यक राशि रखकर शेष सारा पैसा सेवा और परोपकार के माध्यम से समाज को वापिस कर दें। सुचेता पर चलना यानी पवित्रता होनी चाहिए और पवित्रता के लिए संयम होना चाहिए। लोभ नहीं करना, संयम में रहना और शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना, अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब को अनुशासन में रखना, अपने समाज में अनुशासन में रहना तथा सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना आदि कुछ ऐसे नियम हैं जिनके अनुपालन से भारत को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई जा सकती है।

image_print
image_print