Saturday, April 20, 2024
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मुस्लिम महिलाओं की मिलिभगत से महाराष्ट्र और त्रिपुरा में लवजिहाद 

महाराष्ट्र और त्रिपुरा से लव जिहाद की दो घटनाएँ सामने आई हैं। लव जिहाद की दोनों ही घटनाओं में मुस्लिम महिलाओं का हाथ सामने आया है और दो मुस्लिम महिलाओं समेत 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और तीन गिरफ्तार कर लिए गए हैं।

पहली घटना छत्रपति संभाजी नगर की है, जहाँ एक मुस्लिम कॉन्ट्रैक्टर ने अपने परिवार वालों के साथ मिलकर एक हिंदू इंजीनियर लड़की का जबरन धर्म परिवर्तन कराया और निकाह कर लिया। तीनों ने उसके साथ मारपीट भी की। अब पुलिस ने तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है।

दूसरी घटना त्रिपुरा की है, जहाँ एक नाबालिग हिंदू लड़की को मोहम्मद मुस्तफा ने ज्योत्सना खातून के साथ मिलकर एक लड़की को घर छोड़ने के बहाने किडनैप कर लिया और असम लेकर भाग गया। पुलिस ने इस मामले में भी तीन को गिरफ्तार किया है और नाबालिग लड़की को मुक्त कराया है।

दोनों ही घटनाओं में मुस्लिम महिलाओं का हाथ सामने आया है। महाराष्ट्र में ताहेर पठान, तैय्याब शब्बीर पठान और आयेशा बहेर पठान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, तो त्रिपुरा के मामले में मोहम्मद मुस्तफा और उसकी मदद करने वाले पार्था नाग के साथ ही ज्योत्सना खातून को गिरफ्तार किया है।

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में एक मुस्लिम कॉन्ट्रैक्टर ने हिंदू महिला इंजीनियर को जबरन इस्लाम में कन्वर्ट कराया और निकाह कर लिया। इस मामले में पुलिस ने ताहेर पठान, तैय्यब शब्बीर पठान और आयेशा बहेर पठान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। आरोप है कि ताहेर पठान ने अपनी पहचान छिपाकर और खुद को अविवाहित बताकर हिंदू इंजीनियर लड़की को प्रेम जाल में फाँसा और 11 फरवरी 2024 को उसे इस्लाम में कन्वर्ट करा दिया। ये लोग उस पर नमाज पढ़ने, बुर्का पहनने और जबरन निकाह करवाने में शामिल थे।

इस मामले की एफआईआर सिटी चौक पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई है और पुलिस मामले की जाँच कर रही है। इसी इलाके में कुछ दिनों पहले दो नाबालिग लड़कियों का भी जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराने की बात सामने आई थी।

त्रिपुरा के सेपहीजला जिले में स्थित बिशालगढ़ पुलिस थाना इलाके से 15 अप्रैल को एक नाबालिग लड़की का स्कूल से घर लौटते समय अपहरण कर लिया गया। इस मामले में ज्योत्सना खातून नाम की महिला ने नाबालिग को गाड़ी में ये कहकर बिठाया कि वो लोग उसे घर छोड़ देंगे, इसके बाद मोहम्मद मुस्तफा गाड़ी को लेकर असम भाग गया। पुलिस ने उसे ही मास्टरमाइंड बताया है। लड़की की तलाश में लगी पुलिस ने अगले ही दिन असम के सिलचर के एक होटल से उसे बरामद कर लिया और आरोपितों को भी गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में मुस्तफा के साथी पार्था दास को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

साभार- hindi.opindia.com से
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बलराज साहनी जेलर का काम समझने जेल गए मगर फिर जेल में ही बंद कर दिए गए

कहानी साल 1951 में आई फिल्म हलचल की शूटिंग के दौरान की है। बलराज साहनी इस फिल्म में जेलर के किरदार में थे। और दिलीप कुमार के कहने पर हलचल के डायरेक्टर के.आसिफ ने जेलर का रोल में बलराज साहनी जी को कास्ट किया था। बलराज साहनी, जो अपने हर किरदार पर जमकर मेहनत करते थे, वो इस किरदार को भी जीवंत बनाने के लिए सक्रिय हो गए। अपने किरदार को पूरी तरह से तैयार करने के लिए वो आर्थर रोड जेल के जेलर से मिले। और उनसे बात करके तय हुआ कि बलराल साहनी कुछ दिन जेलर साहब के साथ ही रहेंगे।
इसी दौरान कुछ ऐसा हुआ कि वाकई में बलराज साहनी जेल में बंद हो गए। हुआ यूं कि बलराज साहनी एक जुलूस में शामिल हो गए। लेकिन उस जुलूस में हिंसा भड़क गई। नतीजा ये हुआ कि पुलिस ने बलराज साहनी व कुछ अन्य लोगों को भी हिरासत में ले लिया और जेल में बंद कर दिया। यानि अब बलराज साहनी वाकई में जेल में आ गए। लेकिन इस दफा एक कैदी बनकर। तब प्रोड्यूसर के.आसिफ जेल में ही बलराज साहनी से मिलने आए। उन्होंने जेलर साहब के गुज़ारिश की कि वो बलराज साहनी को फिल्म की शूटिंग की इजाज़त दे दें। जेलर साहब ने इजाज़त दे भी दी। और इस तरह लगभग तीन महीने जेल में रहते हुए ही बलराज साहनी जी ने हलचल फिल्म की शूटिंग पूरी की थी।
आज बलराज साहनी जी की पुण्यतिथि है। 13 अप्रैल 1973 को बलराज साहनी जी का निधन हुआ था। अपने दौर के बहुत दमदार अभिनेता थे बलराज साहनी, जो अपने हर किरदार की महीन से महीन खूबियों की भी पूरी तैयारी करते थे। चलिए बलराज साहनी जी से जुड़े कुछ और किस्से भी जानते हैं। इनके करियर की सबसे शानदार फिल्मों में से एक है दो बीघा ज़मीन। बलराज साहनी इस फिल्म का हिस्सा कैसे बने, ये भी एक दिलचस्प कहानी है। बिमल दा इस रोल के लिए एक्टर नज़ीर हुसैन, अशोक कुमार और त्रिलोक कपूर के नाम पर भी गौर कर चुके थे। लेकिन जब उन्होंने बलराज साहनी जी की फिल्म हम लोग देखी तो फैसला कर लिया कि वो बलराज साहब को ही दो बीघा ज़मीन में कास्ट करेंगे।
फिर जब बलराज साहनी बिमल रॉय से मिलने आए तो इन्हें देखकर बिमल दा दंग रह गए। क्योंकि बलराज साहनी आए थे सूट-बूट पहनकर। और उनमें अपने हीरो की छवि बिमल दा को ज़रा भी नहीं दिखी। उन्हें लगा कि बलराज साहनी एक रिक्शेवाले के रोल में सही नहीं लगेंगे। उन्होंने बलराज जी से कहा भी कि मिस्टर साहनी मेरी फिल्म का कैरेक्टर तो एक ग़रीब रिक्शा वाला है। आप तो इस कैरेक्टर में फिट नहीं बैठते हो। तब बलराज साहनी जी ने बिमल दा से गुज़ारिश की कि आप एक दफा मेरी फिल्म धरती के लाल देखिए।
बलराज साहनी साहब के कहने पर बिमल दा ने धरती के लाल देखी। और उन्हें यकीन हो गया कि बलराज साहनी इस रोल को बहुत अच्छी तरह से निभाएंगे। उन्होंने दो बीघा ज़मीन के शंभू महतो का कैरेक्टर निभाने के लिए बलराज साहनी को साइन कर लिया। बस फिर क्या था। बलराज साहनी जुट गए उर कैरेक्टर की तैयारियों में। उस ज़माने में बंबई की सड़कों पर वो घंटों तक रिक्शा खींचा करते थे।
बात अगर बलराज साहनी जी की के निजी जीवन की करें तो 1 मई 1913 को बलराज साहनी का जन्म रावलपिंडी के भेरा में हुआ था। अब ये इलाका पाकिस्तान में है। बलराज साहनी जी को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बड़ा शौक था। इन्होंने इंग्लिश लिटरेचर में एमए किया था। गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में बलराज जी ने बतौर लेक्चरर कुछ वक्त तक नौकरी भी की थी। साल 1938 में बलराज साहनी महात्मा गांधी के संपर्क में आए। और फिर उन्हीं की सलाह पर साल 1939 में लंदन स्थित बीबीसी रेडियो में बतौर अनाउंसर नौकरी करने पहुंच गए।
इस वक्त तक बलराज साहनी गुड़िया फिल्म की अपनी हीरोइन दमयंती से शादी कर चुके थे। दमयंती जी से इनकी शादी साल 1936 में ही हो गई थी। दमयंती जी से इन्हें एक बेटा हुआ जिनका नाम परीक्षित साहनी है। परीक्षित साहनी भी एक एक्टर हैं और आपने इन्हें भी ढेरों फिल्मों में देखा होगा। साल 1943 में बलराज साहनी भारत वापस लौट आए और इंडियन पीपल्स थिएटर असोसिएशन यानि इप्टा से जुड़ गए। लेकिन भारत लौटने के बाद साल 1947 में इनकी पत्नी दमयंति का निधन हो गया। इन्होंने दूसरी शादी की साल 1951 में लेखिका संतोष चंढोक से।
बलराज साहनी की पहली फिल्म थी साल 1946 में आई ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म धरती के लाल। हालांकि 1951 में आई फिल्म हम लोग से इन्हें देशव्यापी पहचान मिली। और फिर दो बीघा ज़मीन ने तो इन्हें उस दौर के दमदार अभिनेताओं की कतार में ला खड़ा किया। दो बीघा ज़मीन बलराज साहनी जी के फिल्मी करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई थी। सिनेमा के अलावा बलराज साहनी सामाजिक कार्यों में ी खूब दिलचस्पी लेते थे। बलराज साहनी कम्यूनिस्ट विचारधारा के समर्थक थे और ग़रीब व मेहनतकश लोगों की हमेशा हिमायत करते थे। किस्सा टीवी बलराज साहनी साहब को ससम्मान याद करते हुए उन्हें नमन करता है। #BalrajSahni
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वाइस एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी अगले नौसेना प्रमुख होंगे

केंद्र सरकार ने पीवीएसएम, एवीएसएम, एनएम वाइस एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी को नया नौसेना प्रमुख नियुक्त किया है। वे 30 अप्रैल, 2024 को दोपहर बाद अपना कार्यभार संभालेंगे। वर्तमान में वाइस एडमिरल त्रिपाठी नौसेना उप प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं। नौसेना स्टाफ के मौजूदा प्रमुख पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएसएम एडमिरल आर हरि कुमार 30 अप्रैल, 2024 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

वाइस एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी का जन्म 15 मई, 1964 को हुआ था। उन्हें 1 जुलाई, 1985 को भारतीय नौसेना की कार्यकारी शाखा में नियुक्त किया गया था। वे संचार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध विशेषज्ञ हैं। नौसेना में उनकी लगभग 39 वर्षों की लंबी और विशिष्ट सेवा रही है। उन्होंने नौसेना उप प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने से पहले पश्चिमी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के रूप में कार्य किया था।

वाइस एडमिरल डीके त्रिपाठी ने भारतीय नौसेना के पोतों विनाश, किर्च और त्रिशूल की कमान संभाली है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण परिचालन और स्टाफ नियुक्तियों पर भी कार्य किया है। इनमें पश्चिमी बेड़े के परिचालन अधिकारी, नौसेना परिचालन के निदेशक, नेटवर्क केंद्रीय परिचालनों के प्रधान निदेशक और नई दिल्ली में नौसेना योजना के प्रधान निदेशक के पद शामिल हैं।

रियर एडमिरल के रूप में उन्होंने नौसेना स्टाफ के सहायक प्रमुख (नीति और योजना) और पूर्वी बेड़े के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग के रूप में कार्य किया है। उन्होंने वाइस एडमिरल के पद पर एझिमाला स्थित प्रतिष्ठित भारतीय नौसेना अकादमी के कमांडेंट, नौसेना परिचालन महानिदेशक, कार्मिक प्रमुख और पश्चिमी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के रूप में कार्य किया है।

सैनिक स्कूल- रीवा और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी- खड़कवासला के पूर्व छात्र वाइस एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी ने वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, नेवल हायर कमांड- करंज और यूनाइटेड स्टेट्स नेवल वॉर कॉलेज- अमेरिका स्थित नेवल कमांड कॉलेज के विभिन्न पाठ्यक्रमों को पूरा किया है।

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“स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी” पहुंचे फ़िल्म ‘रज़ाकार द साइलेंट जेनोसाइड ऑफ़ हैदराबाद’ के कलाकार

वडोदरा। देश की आज़ादी के समय हैदराबाद में हुए नरसंहार पर आधारित फ़िल्म ‘‘रज़ाकार द साइलेंट जेनोसाइड ऑफ़ हैदराबाद’’ पूरे भारत मे 26 अप्रैल को रिलीज होने जा रही है। फ़िल्म हिंदी के साथ तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम में भी बड़े पर्दे पर प्रदर्शित की जाएगी। फ़िल्म की प्रमुख स्टार कास्ट मकरंद देश पांडेय, तेज सप्रू, राज अर्जुन, अभिनेत्री अनुसृया त्रिपाठी के साथ ही फ़िल्म के निर्माता गुदुर नारायण रेड्डी गुजरात के “स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी” पहुंचे और सरदार वल्लभ भाई पटेल को याद किया और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

उल्लेखनीय है कि लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की गुजरात स्थित प्रतिमा स्टैचू ऑफ यूनिटी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। यह गुजरात के सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से एक बन गया है।

फ़िल्म में सरदार वल्लभ भाई पटेल का किरदार निभा रहे तेज सप्रू ने कहा कि लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को पर्दे पर निभाना बहुत चुनौतीपूर्ण था। आज मैं स्टैचू ऑफ यूनिटी में आया हूँ तो यह मेरे लिए बहुत ही गर्व का क्षण रहा। यहां से सन्देश पूरे देश को जाएगा कि यह फ़िल्म सभी को देखनी चाहिए।”

निर्माता गुदुर नारायण रेड्डी ने कहा कि रज़ाकार को दक्षिण भारत की भाषाओं के साथ अब हिंदी में भी बिग स्क्रीन पर रिलीज किया जा रहा है ताकि यह कहानी देश के कोने कोने तक पहुंचे। हमे लगता है कि स्टैचू ऑफ यूनिटी में इस कार्यक्रम के द्वारा हम लोगों को यह सन्देश दे सकते हैं कि कितने संघर्षों के बाद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को एक किया। उनके इस कारनामे को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।”

फ़िल्म ‘‘रज़ाकार द साइलेंट जेनोसाइड ऑफ़ हैदराबाद’’ एक ऐसी ऐतिहासिक घटना से बारे में बताएगी जिसे देश को पिछले ७५ वर्षों से दूर रखा गया था।

ट्रेलर में औरतों, बच्चों और बुजुर्गों पर अत्याचार के साथ हैदराबाद के निज़ाम का आदेश जारी किया जाता हैं कि ‘ओमकार सुनाई नहीं देना चाहिये और भगवा दिखाई नहीं देना चाहिए’ दूसरी तरफ सरदार पटेल का संदेश निज़ाम तक आता है कि हैदराबाद को हिंदुस्तान में विलय नहीं किया तो हालात बिगड़ जाएँगे। अत्याचार और नरसंहार के बीच आज़ादी के वीर संकल्प लेते है कि युद्ध करना ही पड़ेगा। भारतीय सेना और आज़ादी के वीर एक साथ मिलकर निज़ाम के  रज़ाकार के साथ खूनी लड़ाई शुरू कर देते हैं। सरदार पटेल का संवाद “ना संधि ना समर्पण अब बस युद्ध होगा” जोश भर देता है।

फ़िल्म के निर्माता गुदुर नारायण रेड्डी कहते हैं कि हम चाहते हैं कि दर्शक एक बड़े स्तर पर इस क्रूर नरसंहार की घटना और आज़ादी के वीरों की इस कहानी को फ़िल्म ‘रज़ाकार  द साइलेंट जेनोसाइड ऑफ़ हैदराबाद’ के माध्यम से देखें।

समरवीर क्रिएशन एलएलपी के बैनर तले निर्मित फ़िल्म ‘रज़ाकार द साइलेंट जेनोसाइड ऑफ़ हैदराबाद’ के निर्माता गुदुर नारायण रेड्डी हैं।

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विरासत संरक्षण में हो समुदाय की भागीदारी- श्री सिंघल

कोटा विश्व विरासत दिवस पर राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा एवं संस्कृति, साहित्य और मीडिया फोरम के संयुक्त तत्वाधान में व्याख्यानमाला और प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया गया।

मुख्य वक्ता के रूप में पर्यटन लेखक एवं संस्कृति, साहित्य और मीडिया फोरम के संयोजक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने कहा की धरोहर की सुरक्षा और संरक्षण में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। विरासत संरक्षण के लिए सर्वे कर ब्लू प्रिंट तैयार कर तात्कालिक और दीर्घकालिक योजना बनाने और सुरक्षा के लिए पंचायत और नगरपालिका स्तर पर सुरक्षा समितियां बनाये जाने की आवश्यकता बताई।

आपने अपने व्याख्यान मे हाड़ोती की धरोहर देखने पर बल देते हुए बताया की राज्य के पुरातत्व विभाग द्वारा 55 धरोहरों को संरक्षित किया गया है। विद्यार्थियों को भारत की विश्व धरोहर की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भारत की 40 और इनमे राजस्थान की 9 धरोहरों को शामिल किया गया है।

उन्होंने संरक्षण संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जो बीत गया, जितना क्षरण हो चुका उसकी भरपाई तो संभव नहीं पर जो कुछ बचा है उसी को बचाने और संरक्षित रखने पर आज के दिन विचार हो तो यहीं इस दिवस की सार्थकता हो सकती है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1982 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ माउंटेस एंड साइट (ईकोमार्क) नामक संस्था ने टयूनिशिया में अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया गया था।

इसी सम्मेलन में सर्वसम्मति से निर्णय लेकर विश्व में प्रतिवर्ष ऐसी संरक्षित धरोहर के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए 18 अप्रेल को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत दिवस आयोजित करने की घोषणा की गई।

पूर्व पुस्तकालयाध्यक्ष कमलाकांत शर्मा ने कहा कि देश की आध्यात्मिक धरोहर के संरक्षण की दिशा में भी विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने हाड़ोती के संदर्भ में जर्जर हो रही धरोहर को बचाने की आवश्कता बताई।

हेमा नामा, दिनेश कुमार, गिर्राज कुमार, यशश्वी सोनी और लोकेंद्र गुर्जर ने इस अवसर पर आयोजित प्रश्नोत्तरी में प्रश्नों के सही उत्तर दिए जिनका बड़ी संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। संचालन करते हुए पुस्तकालय के सहायक प्रभारी डॉ. शशि जैन ने सभी का स्वागत करते हुए कहा इस प्रकार के उपयोगी कार्यक्रमों की फोरम की पहल सराहनीय है।

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काल के गाल पर अक्षयलता शर्मा ने खींची शब्दों की रेखाएं

समय कभी रुकता नहीं है चलता रहता है। समय के गाल पर न जाने कब कौन क्या लिख जाए कह नहीं सकते। बचपन में कक्षा पांच की अर्धवार्षिक परीक्षा के समय बीमार पड़ने और बड़े भाई की कविता की डायरी हाथ लग जाने से कविताएं पढ़ी तो समझ आया की बच्चें भी कविता लिख सकते हैं। समय के इस पल से ही मन में कविता लिखने के शोक ने जन्म लिया।
क्या लिखें विषय कोई सूझ नहीं रहा था। इसी कश्मकश के साथ अक्षयलता ने उस समय “करो परीक्षा की तैयारी” प्रथम तुक बंदी कविता लिखी। परिजनों, सहपाठियों और शिक्षकों ने खूब सराहा। उत्साहित कर उस समय ‘सुमन’, “यह स्वर्णमहल” और “चल रही वह लकुटी टेक” जैसी तुक बंदियों की झड़ी लग गई। फिर व्यस्तता के चलते यथा अवसर उद्वेलित करने वाली संवेदनाएं इन्हें झकझोरती हुई इनकी लेखनी को क्रियाशील करती रहीं। समय के साथ-साथ आज साहित्य में इन्होंने जिस प्रकार मुकाम बनाया है उस पर प्रसिद्ध संपादक अशोक बत्रा ने लिखा “जिन कवियों ने छंदों का निपुणता पूर्वक निर्वाह किया है और अपने भाव को विशेष अभिव्यक्ति-प्रवाह में निबद्ध किया है,उनमें से कई साहित्यकारों की तरह अक्षयलता शर्मा प्रभावित करती हैं।”
वर्तमान सामाजिक परिवेश में गिरते हुए जीवन मूल्यों मर्म को लेकर जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना,संरक्षण एवं संवर्धन के उद्देश्य के साथ पद्य विधा में कविताओं के साथ-साथ गीत, प्रहेलिका, चतुष्पदी और गद्य विधा में लेख, कहानी ,कहानी का नाट्य रूपांतरण, समीक्षा का लेखन कर सभी को  जीवन मूल्यों को बचाने के लिए के सतत सजग एवं प्रयत्नशील रहने का संदेश पहुंचा रही हैं।
हिंदी, राजस्थानी, हाड़ौती और संस्कृत भाषा पर आपका समान अधिकार है। व्यंग शैली,प्रश्न शैली, हास्य-व्यंग्य शैली, गीत शैली,समास शैली, चित्र शैली को अपनाते हुए भक्ति रस,शांत रस,वीर रस, हास्य रस, श्रृंगार रस, अद्भुत रस और करुण रस भावों से आप्लावित साहित्य का सृजन करती हैं।
इनकी कहानियों में गिरते पारिवारिक मूल्य, विफल चरित्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण,आवास की समस्या प्रमुख विषय हैं। परिजनों के प्रति तथा मनुष्य को मनुष्य के प्रति सौहार्दपूर्ण व्यवहार  करने, आवास की समस्या हल करने के लिए संवेदना जगाते हुए  पीडितों की यथाशक्ति सहायता करने इनकी कहानियों में मुखर हैं और संदेश है कि पाठक मर्मस्पर्शी घटनाओं से प्रभावित होकर समस्याग्रस्त परिवार व समाज के हित में प्रयास करने को प्रेरित होंगे। इन्हीं विषयों के तानेबाने में बुनी “अंधेरे में”, “कृतघ्न” और “प्रारब्ध” कहानियां आंखों देखी घटनाओं पर आधारित हैं जिन्हें भावपूर्ण गद्य में लिखा गया है।
इनके काव्य सृजन में मानवीकरण, प्रतीकात्मकता, विविध शैलियों का प्रयोग, शब्द शक्तियों के सफल प्रयोग, विषय की गंभीरता, चिन्तन, विश्लेषण, दिशाबोध, प्रभावोत्पादकता, हास्य-विनोद, भावोत्तेजक, विशद शब्दकोश अवसरानुकूल क्लिष्ट शब्दावली व सामासिक शब्दों का प्रयोग, अलंकृत एवं प्रवाह पूर्ण भाषा, मौलिक अभिव्यंजना, माधुर्य, ओज व प्रसाद गुण सम्पन्नता की विशेषताएं हैं।
काव्य रचना “पुरुषार्थ” में हवा और समय का रिश्ता प्रतिपादित करते हुए मानव को पुरुषार्थ के लिए जाग्रत करने के भावपूर्ण संदेश की बानगी देखिए…
चलती हवा की धार में
बह चला –
तिनका कि आदमी?
हवा समय की,
समय  हवा का,
जोर हवा का,
वाह! रिश्ता
हवा समय का
सशक्त!!
मानव तू क्या अपंग अशक्त?
रे! अस्थि ही तेरी,
इन्द्र का वज्र है।
मृत्यु भी मुट्ठी में
रख चुका है तू !
तेरे ही पदाघात से
जलधार बही रे !
है पुरुषार्थ! हे पुरुषार्थ! हे पुरुषार्थ !
लुप्त या सुषुप्त;
उठ, जाग, मानव के जन में।
इस सुंदर संसार में एक ओर चारों तरफ चीख पुकार, अभाव, गरीबी-अमीरी का भेद और विष भरा होने की पीड़ा झलकती हैं तो दूसरी ओर अभिलाषा भी है कि मुझे तेरा खजाना मिल जाए तो दिन हीन गरीबों पर तिनका-तिनका लूटा दूंगी। ईश्वरीय सत्ता को स्मरण कर “विश्व” शीर्षक रचना की इन भावपूर्ण पंक्तियों को देखिए…
 इतना सुंदर विश्व
 विष भरा है क्यों?
 ए सुगढ़ रचनाकर!
 ऐश्वर्य के धनी ईश्वर!
 तेरी ही दुनिया में अभाव क्यों?
चीख-पुकार, दर्द क्यों?
राजा और रंक का भेद क्यों?
ठीक है, ठीक है,
तेरी भेदभाव की नीति
बिलकुल ठीक है
मगर,
सुख सम्पदा का तेरा खजाना
जो मिल गया कहीं,
बिखरा दूंगी तिनका-तिनका,
दीन-हीन,अनाथों पर
 इनके द्वारा रचित दो सुंदर भावपूर्ण “चतुष्पदियों” की बानगी देखिए…
सुनील गगन के नीचे, प्रसून खिलते हैं ।
धन्य हो जाते लघुजन,जब विद्वान मिलते हैं।
भद्रों से जब मिलते भद्र, नजदीकियां ही होतीं। एकता के बंद होते, तरक्कियां ही होतीं।
दुष्कृत्य देते संताप, जो सदा ही खलते।
सत्य है गिरने वाले, आघात ही सहते।
लहर पर लहर चढ़ी आती,डूब डूब कर उतराती,
रत्न राशि की शोभा पाकर, स्वयंप्रभा-सी इठलाती।
राजस्थानी भाषा में लिखी “सपूताँ रखजो लाज” में स्वाभिमान और मातृभूमि प्रेम की रचना के कुछ अंश देखिए…
राणा प्रताप री धरती, आ शूराँ री धरती।
इँ धरती रे खातिर राणा, छोड्या राज निवास।
जंगल-जंगल भटक गया, वे पी गया गाढ़ीप्यास।
त्याग तप री धरती, आ शूराँ री धरती।
सपूताँ रख जो लाज; आ वीराँ री धरती।
इँ धरती रे खातिर राणा, रण में दी नहीं पाछ;
देस धरम दृढ़ता री, राणा ऊँची राखी पाग।
रणवीराँ री धरती, आ शूराँ री धरती।
ऐसी ही काव्य सृजन की इनकी दो कृतियां “जीवनमूल्य प्रथम” और “जीवनमूल्य द्वितीय सुमन” प्रकाशित हुई हैं। प्रथम कृति में तीन शीर्षकों में 105 कविताएं पाठक को अवसाद से आशावाद में ले जाने का प्रयास है। समाज में व्याप्त दोष, दुर्व्यसन, ज्ञान के प्रति ललक का अभाव, भ्रष्टाचार, अशांति, दबी हुई कराह, नैतिकता की पुनः स्थापना तथा बापू के आदर्शों के माध्यम से सुधार व उत्थान का मार्ग प्रशस्त करना कविताओं के विषय हैं।
दूसरी कृति में  चार शिक्षकों में 85 कविताओं का संग्रह में स्त्री पुरुषों के बदलते मानक, पीड़ित चोटिल अभिभावकों की व्यथा, धूमिल होती कर्मठता, कर्मनिष्ठा और मूल्यांकन आदर्श, संकीर्णताजन्य अवसाद और वैमनस्य की पीड़ा, देश की मूलभूत दृढ़ता को खोखला करती दायित्वहीन अधिकारी की रुग्ण अथवा अजगरी मानसिकता, तथाकथित मानवता के विविध चेहरे, महानगरों की समस्याएं, शिक्षा में सुधार की सूझ और प्रबल उत्प्रेरक विषयक रचनाएं हैं।
जीवनमूल्य कृति से उद्धृत “वसंत ऋतु आनंद छायो’’ रचना की पंक्तियों का उल्लेख जितेन्द्र निर्मोही द्वारा लिखित “राजस्थानी काव्य मं सिणगार’’ कृति में भी किया गया है। इनकी “मानस की गूंज” और  तुलसी महात्म्य (निर्माणाधीन) दो कृतियां अप्रकाशित हैं।
(लेखिका की रचनाएं कई पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होती रहती हैं। भारतेंदु समिति द्वारा “साहित्य श्री” अलंकरण के साथ-साथ अन्य संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया गया है।)
संपर्क
अपना बेंगलो, बालाजी विहार,
मोहनपुरा बालाजी, बी-34, सांगानेर,
जयपुर -302029 (राजस्थान)
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रामनवमी पर प्रभु राम के सूर्य तिलक के पश्चात सनातन के सूर्य तिलक का अवसर!

वर्ष 2024 में 500 वर्षों के पश्चात प्रभु राम के जन्मदिन का उत्सव उनकी जन्मस्थली पर मनाया गया। इस अवसर पर सूर्यवंशी रामलला के भाल पर स्वयं सूर्यदेव ने अपनी किरणों से तिलक किया ये अद्भुत–अलौकिक क्षण हिन्दुओं के निरंतर संघर्ष और बलिदान के प्रसाद का क्षण था, जिसे देखकर संपूर्ण विश्व का हिंदू जनमानस भाव विभोर हुआ। सूर्य तिलक का ये क्षण हमारी संस्कृति के पुनर्जागरण का प्रतीक क्षण है। अयोध्या के दिव्य, भव्य व नव्य राम मंदिर में प्रभु श्रीराम का सूर्य तिलक संपूर्ण सनातन हिंदू समाज के कल्याणकारी होने जा रहा है।

रामनवमी का पर्व अत्यंत भव्यता और उल्लास के साथ मनाया गया। सूर्य तिलक के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के नलबाड़ी में अपनी चुनावी जनसभा के बाद हेलीकाप्टर में ही अपने टैब पर सूर्य तिलक का सीधा प्रसारण देखा। श्रद्धा भाव में तल्लीन प्रधानमंत्री ने टैब पर प्रभु राम का दर्शन करते समय भी अपने जूते उतार कर रख दिए थे, इस बात पर सभी का ध्यान गया। इस अवसर पर उन्होंने अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर पोस्ट किया कि, “मुझे अयोध्या में रामलला के सूर्य तिलक के अद्भुत और अप्रतिम क्षण को देखने का सौभाग्य मिला। श्रीराम जन्मभूमि का ये बहुप्रतीक्षित क्षण हर किसी के लिए परमानंद का क्षण है । ये सूर्य तिलक विकसित भारत के हर संकल्प को अपनी दिव्य ऊर्जा से इसी तरह प्रकाशित करेगा।

इसके पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने नलबाड़ी की जनसभा में जयश्रीराम, जय सियाराम और राम लक्ष्मण जानकी – जय बोलो हनुमान की, का उद्घोष करवा कर राम लहर को पुनः जीवंत कर दिया। सूर्य की किरणों से जब प्रभु श्रीराम का महामस्तकाभिषेक हो रहा था उस समय अयोध्या ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत का हिंदू समाज उल्लास में डूबा हुआ था। दूर दूर से आ रहे लाखों श्रद्धालु जिनमें धनी- निर्धन, स्त्री- पुरुष,आबाल वृद्ध व समाज के सभी वर्गो के लोग थे, अत्यंत धैर्य, संयम व अनुशासन के साथ अपने प्रभु श्रीराम का दर्शन करने के लिए आतुर थे।लाखों की भीड़ आने के बावजूद किसी भी प्रकार की कोई अव्यवस्था नहीं हुई । ऐसा लग रहा था कि प्रभु राम के भक्त भी प्रभु श्रीराम की तरह मर्यादित हैं।

भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की इस महान घटना के दिन को भी, मुस्लिम तुष्टिकरण की विकृत राजनीति से गले तक भरे हुए राजनैतिक दलों ने अपनी सियासत चमकाने व प्रभु श्रीराम सहित संपूर्ण हिंदू सनातन समाज की आस्था का उपहास करने का अवसर बना लिया। अयोध्या में कारसेवकों का नरसंहार करने वाली समाजवादी पार्टी के नेता महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा, ”रामनवमी को कुछ लोगों ने पेटेंट करा लिया है।ये उनकी बपौती नहीं है। देश में एक नहीं हजारों राम मंदिर हैं। वे यहीं पर नहीं रुके उन्होंने पूजा -पाठ आदि को पाखंड भी कहते हुए पूजा पाठ करने वाले हिन्दुओं को पाखंडी बता दिया।

रामगोपाल यादव ने कहा कि अयोध्या में सब अशुभ हो रहा है आधे-अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई अब बीजेपी के नेता ढोल पीट रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि वह कभी मंदिर नहीं गए, मंदिर में पाखंडी जाते हैं। उधर शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत व राजद नेता मनोज झा सहित सभी मुस्लिम परस्त नेता अपने घरों से निकल आए और हिंदू समाज व राष्ट्र नायकों को उपदेश देने लगे।

स्पष्ट है घमंडिया इंडी गठबंधन के लोगों को राम मंदिर से परेशानी हो रही है। श्रीराम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद से ही घमंडिया गठबंधन किसी न किसी प्रकार से हिंदू सनातन समाज व आस्था के केंद्र का अपमान करता आ रहा है।

समाजवादी नेता अखिलेश यादव और राहुल गांधी रामनवमी के दिन गाजियावाबद में प्रेस वार्ता कर रहे थे और उन्होंने केवल एक पंक्ति में रामनवमी की शुभकामना दी और भाजपा की निंदा में लग गये। गाजियाबाद में रहते हुए भी उन्होंने नहीं बताया कि वह अयोध्या में राम मंदिर का दर्शन करने कब जाएंगे।

अयोध्या में आ रही लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ राहुल गांधी के उन सभी सवालों का जवाब दे रही है जो वह अपनी न्याय यात्रा में जनता से पूछते रहते थे। राहुल गांधी हैं अपनी न्याय यात्रा में आरोप लगाते रहे कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में बड़े- बड़े उद्योगपति व स्टार ही दिखलाई पड़े, वहां पर न तो कोई गरीब था न ही किसान किंतु आज उन्हें हर प्रश्न का उत्तर मिल रहा है। अयोध्या में जो लाखों श्रद्धालु भगवान राम का दर्शन करने आ रहे हैं उनमें गरीब, किसान, मजदूर, बेरोजगार, महिलाएं, दलित, पिछड़े- अतिपिछड़े कौन नहीं हैं? यहाँ तक कि मुस्लिम समाज के लोग भी दर्शन करने लिए पहुंच रहे हैं। अयोध्या आ रही सभी ट्रेनें पूरी तरह से भरी हुई हैं।

कांग्रेस, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी और दक्षिण के द्रमुक सभी दलों ने मंदिर निर्माण के समय तरह तरह के आरोप लगाए। जब मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान चलाया जा रहा था तब भाजपा व संघ को चंदा जीव कहा गया। जब घर-घर अक्षत अभियान चलाया गया तब उस पर विकृत बयानबाजी की। कोर्ट में जाकर मंदिर निर्माण रोकने का प्रयास किया । आज यही सनातन विरोधी तत्व राम मंदिर बन जाने से आहत हैं क्योंकि ये इस विवाद की आड़ में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को चमकाये रखना चाहते थे।

कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में प्रभु श्री राम को काल्पनिक बताया, जय श्री राम को साम्प्रदायिक नारा बताया, पहले राम मंदिर पर निर्णय टालने और फिर भूमि पूजन समारोह को रोकने का प्रयास किया किन्तु आज यह इतने मजबूर हो गये हैं कि कहने लगे हैं कि प्रभु श्री राम तो सबके हैं किंतु उसमें भी उनके विचारों में विकृति उभर आती है।

रामनवमी के अवसर पर सबसे अधिक असहज बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिखाई पड़ीं । बंगाल सरकार ने दंगों का बहाना बनाकर हिन्दुओं को रामनवमी की शोभायात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी जिससे हिंदू संगठनों को अदालत की शरण में जाना पड़ा जिसने उन्हें अनुमति दे दी। भड़की ममता ने रामनवमी के पवित्र अवसर पर अंग्रेजी में एक पंक्ति का एक्स (ट्वीट) पोस्ट किया और लिखा, ”मेन्टेन पीस।” आजकल ममता बनर्जी के मुंह से केवल एक ही शब्द निकलता है दंगा, दंगा और दंगा। नितांत आपत्तिजनक भाषण देते हुए ममता ने कहा कि वे लोग (हिन्दू) आयेंगे किंतु आप सभी (मुस्लिम) को बिल्कुल कूल- कूल रहना है।

अपने भाषणों से ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पार कर रही हैं। ममता बनर्जी की बोई नफरत का ही परिणाम था कि मुर्शिदाबाद जिले के शक्तिपुर में रामनवमी पर बम फेंके गये जिसमें 20 लोग घायल हो गये।

सनातन विरोधी दल एक झूठा नैरेटिव और भी चला रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करवा दी है उसका उन्हे दंड मिलेगा किंतु अब समय बदल चुका है इन दलों ने जिस प्रकार अयोध्या में दिव्य मंदिर का उपहास उड़ाया अब उसका सूद सहित बदला लेने का समय सनातन समाज के पास आ चुका है।

मतदान का समय आ गया है, समस्त हिंदू समाज को ठान लेना चाहिए कि अबकी बार उन्हीं को लाना है जो प्रभु श्रीराम को लेकर आए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संपूर्ण विश्व में सनातन का डंका बज रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सांस्कृतिक उत्थान की लहर चल रही है। अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्रगति पर है।

वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम सहित समस्त वाराणसी का अभूतपूर्व विकास हो रहा है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक का विकास हुआ है। सभी तीर्थस्थलों को रेलवे व हवाई सेवाओ के साथ लगातार जोड़ा जा रहा है। जहां कोई सपने में भी मंदिर बनवाने की बात नहीं सोच सकता था ऐसे अबूधाबी में मोदी जी एक हिंदू मंदिर का उद्घाटन करके आये हैं। अयोध्या में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व प्रधानमंत्री मोदी ने 11 दिनों का अनुष्ठान किया और रामायणकाल से जुड़े सभी मंदिरों की यात्रा की। सनातन संस्कृति के गौरव को बढ़ाने वाले अनेक संकल्प भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में रखे हैं।

हिन्दू समाज को एकजुट होकर प्रभु राम का सूर्य तिलक संभव करने वाले मोदी जी को अपने मत का तिलक लगाना चाहिए क्योंकि मोदी जी को लगाया गया हिन्दू मतों का तिलक सनातन संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व में पुनः सूर्य के समान स्थापित करेगा।

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देश की सबसे कठिन परीक्षा में संघर्ष और परिश्रम की स्याही से सफलता की कहानी लिखने वाले

सिविल सेवा परीक्षा में देशभर में शीर्ष रहे लखनऊ के आदित्य श्रीवास्तव ने 40 लाख का पैकेज छोड़ा। पहली बार विफल रहे। दूसरी बार आईपीएस बने, तीसरी कोशिश में आईएएस। यूपीएससी में यह उनका तीसरा प्रयास था। पहले प्रयास में वे प्रारंभिक परीक्षा में फेल हो गए थे। हालांकि, दूसरे प्रयास में 236वीं रैंक के साथ आईपीएस बने। आदित्य फिलहाल हैदराबाद में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के प्रशिक्षु अधिकारी हैं। आदित्य के पिता अजय श्रीवास्तव सेंट्रल ऑडिट डिपार्टमेंट में सहायक लेखाकार हैं। आदित्य की मां के मामा विनोद कुमार मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी (लबासना) के निदेशक रहे। वे ही आदित्य के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

आदित्य कहते हैं कि उन्होंने कभी कोचिंग से तैयारी नहीं की। खुद पढ़ाई पर जोर दिया। प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद वैकल्पिक विषय के रूप में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का चयन किया। तैयारी के दौरान थोड़ी देर गाने सुनते और फिर पढ़ाई में जुट जाते थे। सिर्फ खाना खाने के लिए वह कमरे से निकलते थे। आदित्य ने बताया कि उन्होंने पिछले साल में आए सवालों का जमकर अभ्यास किया। टेस्ट सीरिज हल करने से आत्मविश्वास बढ़ा। इसके साथ ही सिलेबस को देखकर उसे कवर करने की रणनीति बनाई। जो भी पढ़ा उसे बिलकुल स्पष्ट तौर पर तैयार किया। इससे परीक्षा में लिखना काफी आसान हो गया। आदित्य का कहना है कि सिविल सेवा की तैयारी काफी समय लेती है, इसलिए धैर्य न खोएं।

Ruhani

आईपीएस अधिकारी रुहानी का यह दूसरा प्रयास था। रुहानी ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया है। तीन वर्ष तक भारतीय आर्थिक सेवा की अधिकारी भी रह चुकी हैं। दो वर्ष तक उन्होंने नीति आयोग के लिए काम किया है। फिलहाल, वे प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी हैं। रुहानी कहती हैं कि दुनिया में कुछ भी हासिल करने के संकल्प और मेहनत लगती है।

बिना कोचिंग के UPSC परीक्षा में हासिल की ऑल इंडिया 5वीं रैंक। बनीं IAS अफसर ममता यादव ने भारत की सबसे कठिन यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा दो बार क्रैक की है। उन्होंने इस परीक्षा में ऑल इंडिया 5वीं रैंक हासिल की थी और वह अपने गांव की पहली आईएएस अफसर हैं।

Katyayani

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की एक छात्रा और एक छात्र ने जिले का नाम रोशन करने का कार्य किया है। मंगलवार को जारी हुए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के परीक्षा परिणाम में शहर निवासी कात्यायनी सिंह और रजत यादव ने सफलता हासिल की है। कात्यायनी सिंह ने परीक्षा में 592वीं रैंक हासिल की है तो वहीं रजत यादव ने 799वीं रैंक। शहर के मोहल्ला पुरोहिताना निवासी ऋषिराम कठेरिया की पुत्री कात्यायनी सिंह ने यूपीएससी परीक्षा में 592वीं रैंक हासिल कर जनपद व समाज का नाम रोशन किया है। कात्यायनी का कहना था कि यदि लगन और मेहनत से परीक्षा दी जाए तो सफलता अवश्य मिलती है।

कात्यायनी के पिता ऋषिराम सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर हैं। वहीं मां मंजू देवी गंगानगर में बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षिका हैं। परिवार वर्तमान में मेरठ में रह रहा है। वहीं कात्यायनी ने परीक्षा की तैयारी की। कात्यायनी दो बहनें और एक भाई हैं। बेटी की सफलता पर शहर के मोहल्ला पुरोहिताना में घर पर मौजूद ताऊ रामनरेश कठेरिया और रामशंकर कठेरिया को लोग बधाई देने के लिए पहुंच रहे हैं।

Swati Sharma

पूर्व थल सैनिक (सीएमपी) संजय शर्मा की पुत्री स्वाति शर्मा ने यूपीएससी की परीक्षा में जमशेदपुर का झंडा लहरा दिया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में स्वाति शर्मा ने ऑल इंडिया रैंकिंग में 17वां स्थान हासिल किया है। मंगलवार को जब परीक्षा का परिणाम निकला, तो स्वाति समेत पूरा परिवार रैंकिंग खोजने में जुट गया। जब स्वाति की रैंक17वीं दिखी तो खुद उसे भरोसा नहीं हुआ। स्वाति ने कहा कि सोचा जरूर था कि यूपीएससी क्रैक करुंगी, लेकिन यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि इतना बेहतर प्रदर्शन कर पाऊंगी। हर सफलता के पीछे माता-पिता का हाथ होता है। इसमें मेरे भाई टाटा स्टील में कार्यरत संजीव शर्मा ने भी काफी मदद की। पूर्व सैनिक सेवा परिषद के सुशील कुमार सिंह, राजीव रंजन सिंह और पूरी टीम ने उनके घर पर जाकर उन्हें बधाई दी।

यूपीएससी की परीक्षा में ऑल इंडिया 17वां रैंक लानेवाली स्वाति शर्मा ने बताया कि पिता सेना में थे, इसलिए आरंभिक पढ़ाई देश के कई हिस्सों में हुई। स्वाति ने मैट्रिक की परीक्षा आर्मी सैकेंडरी स्कूल कोलकाता से पास की। इसके बाद 12वीं की पढ़ाई उन्होंने साकची स्थित टैगोर एकेडमी से पूरी की। इसके बाद 2019 में उन्होंने बिष्टुपुर स्थित जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज से पॉलेटिकल साइंस में एमए किया। टैगोर एकेडमी में उनके एक शिक्षक जाकिर अख्तर ने उन्हें यूपीएससी एग्जाम के लिए मोटिवेट किया था। उनकी बातों से प्रभावित होकर माता-पिता से इस बात की जानकारी शेयर की, उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए सभी मार्ग प्रशस्त कर दिये। यह उनका तीसरा प्रयास था। पहले दो प्रयास में उन्होंने जमशेदपुर में ही रहकर पढ़ाई की, परीक्षा दी, लेकिन उनका सलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने तय किया अंतिम प्रयास करना है, लेकिन इसके लिए दिल्ली जाने का फैसला किया गया। नंवंबर 2022 में दिल्ली में जाकर पढ़ाई शुरू की। 2023 जून में परीक्षा हुई, अगस्त में परिणाम आया। जनवरी 20024 में उनका इंटरव्यू हुआ, जिसका परिणाम टॉप 17वां रहा।

यूपीएससी की परीक्षा में ऑल इंडिया 17वां रैंक लानेवाली स्वाति शर्मा ने बताया कि उन्होंने जो स्थान हासिल किया है, उसके पीछे एक मूलमंत्र रहा पुरानी गलतियों को दोबारा दोहराना नहीं है। आगे कैसे पढ़ना है, इसके बारे में सोचना है। टॉपर रहे छात्रों ने किस तरह सवालों का हल किया, उनकी पढ़ाई का पैटर्न क्या रहा, किस तरह खुद को बिना दवाब के पढ़ाई में व्यस्त रखना है, यह सीखा और इस पर काम किया, जिंदगी खुद बेहतर बनती गयी। पढ़ाई कभी भी बोझ या उबाऊ नहीं लगी। हर चीज अपने अनुरुप लगने लगी। उस दौरान यह समझ आने लग गया था कि अब पीछे मुंड़ कर देखने का समय खत्म हो गया, आगे बढ़ना है। यूपीएससी के परिणाम ने आपार खुशियां प्रदान की है, लगातार फोन आ रहे हैं। माता-पिता, भाई, रिश्तेदार सब काफी खुश हैं।

Uday Krishna Reddy

उदय कृष्ण रेड्डी आंध्र प्रदेश पुलिस में कॉन्सटेबल थे। सब ठीक चल रहा था, लेकिन एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उदय ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। नौकरी छोड़ने के बाद उदय ने 5 साल जमकर मेहनत की और 16 अप्रैल को जब देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी का रिजल्ट घोषित हुआ, तो मेरिट लिस्ट में उनका नाम था। आखिर साल 2018 में ऐसा क्या हुआ था कि उदय ने कॉन्सटेबल की नौकरी छोड़कर सीधे यूपीएससी करने का फैसला ले लिया? बात साल 2018 की है। उदय कृष्ण रेड्डी को पुलिस फोर्स ज्वॉइन किए पांच साल हो चुके थे। एक दिन उनके सर्किल इंस्पेक्टर ने किसी निजी विवाद को लेकर करीब 60 पुलिसकर्मियों के सामने उन्हें ऐसी अपमानजनक बातें कहीं, जो उदय के दिल को लग गईं।

उदय दिन भर अपने इस अपमान के बारे में सोचते रहे और आखिरकार शाम होते-होते एक बड़ा फैसला ले लिया। उन्होंने पुलिस फोर्स की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उदय ने तय कर लिया कि वो अब यूपीएससी की परीक्षा पास कर आईएएस अधिकारी बनेंगे। उदय कृष्ण रेड्डी ने पांच साल तक तैयारी की और 2023 में यूपीएससी की परीक्षा में बैठे। रिजल्ट आया तो उन्हें 780वीं रैंक मिली। रैंक के आधार पर उन्हें आईआरएस अधिकारी के तौर पर सेलेक्ट किया जा सकता है। हालांकि, उदय का मकसद आईएएस अधिकारी बनना ही है। उनका कहना है कि जब तक वो आईएएस अधिकारी नहीं बन जाते, अपनी पढ़ाई जारी रखेंगे। आपको बता दें कि 16 अप्रैल को घोषित हुए यूपीएससी के नतीजों में लखनऊ के आदित्य श्रीवास्तव ने पहली रैंक हासिल की है।

Shivansh

हरियाणा के झज्जर जिले के खरहर गांव के बेटे शिवांश ने एक बार फिर से कमाल कर दिया। दूसरे प्रयास में एसडीएम (SDM) बनने वाले शिवांश ने इस बार ऑल इंडिया में 63 वां रैंक हासिल कर आईएएस बनने का अपना सपना पूरा कर लिया। शिवांश बहादुरगढ़ के सेक्टर 6 में अपने माता-पिता और बहन के साथ रहता है। शिवांश ने 9 साल की उम्र से ही आईएएस (IAS Officer) बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। वह हर रोज 10 घंटे तक पढ़ाई करता था। पढ़ाई से जब थक जाता था तो व्यायाम के साथ शिव तांडव स्त्रोतम का पाठ किया करता। शिवांश ने बताया कि शिव तांडव स्त्रोतम के पाठ से उसे ऊर्जा मिलती थी। शिवांश का कहना है कि सही दिशा में लग्न से मेहनत करने से हर लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। शिवांश का कहना है कि आईएएस बनकर वो विकसित भारत के सपने को पूरा करने में अपना योगदान देना चाहता है।

शिवांश के पिता रविन्द्र राठी भी सिविल सर्विस में जाना चाहते थे। हरियाणा सिविल सर्विस की परीक्षा भी पास कर ली थी, लेकिन राजनीतिक चक्करों के चलते वो भर्ती पूरी नही हो पाई। शिवांश की माता डॉ. सुदेश राजकीय कन्या महाविद्यालय में प्रौफेसर हैं। माता-पिता अपने बेटे की उपलब्धि पर बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि जब भी शिवांश मायूस होता था तो वो उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे। उन्होंने कहा कि शिवांश ने अपने बचपन का सपना पूरा किया है और उन्हे यकीन है कि देश के विकास में शिवांश का अहम योगदान रहेगा। शिवांश भक्तिभाव से परिर्पूण रहता है। यूपीएससी का परिणाम आने से पहले भी वो मंदिर में बैठकर पूजा कर रहा था। शिवांश सेक्टर 6 के जिस घर में रहता है, उसका नाम शिवालय है और छोटी बहन का नाम शिवांगी है। शिवांश की छोटी बहन भी यूपीएससी की तैयारी कर रही है। शिवांश ने यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं से कहा है कि उन्हे नियमित तौर पर लग्न लगाकर पढ़ाई करने की जरूरत है।

Akanksha Singh

बनारस के बड़ालालपुर चांदमारी स्थित वीडीए कॉलोनी निवासी आकांक्षा सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 44वीं रैंक हासिल कर काशी का मान बढ़ा दिया। अपनी मेहनत से उन्होंने सफलता की वो इबारत लिखी जिसे हर किसी ने सलाम किया। आकांक्षा के पिता चंद्रकुमार सिंह मूल रूप से आजमगढ़ के बूढ़नपुर के रहने वाले हैं। उनके पिता झारखंड कैडर के पूर्व पीसीएस अधिकारी हैं। आकांक्षा शुरू से ही पढ़ाई में आगे रहीं।

जमशेदपुर से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने मिरांडा हाउस दिल्ली से यूजी किया। इसके बाद जेएनयू से भूगोल विषय में पीजी किया। इस समय वह रांची विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उनका भाई भी इंजीनियरिंग करने के बाद सिविल की तैयारी कर रहा है। आकांक्षा के पिता चंद्रकुमार ने कहा कि रामनवमी के मौके पर परिवार को जो खुशी मिली है, वह प्रभु की देन है। कहा कि आकांक्षा शुरू से ही धुन की पक्की थी।

Shashvat Agrawal

बनारस के सूटकेस व्यवसायी राजेश और दिव्या अग्रवाल के दूसरे बेटे शाश्वत अग्रवाल ने अपने दम पर तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की। दिल्ली यूनिवर्सिटी के महाराजा अग्रसेन कॉलेज से स्नातक और जेएनयू से परास्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह तैयारी में लगे रहे और तीसरे प्रयास में सफल हो गए।

उनकी मां दिव्या अग्रवाल ने बताया कि उसे कोचिंग की मदद लेने के लिए कहा गया तो उसने सीधे मना कर दिया। कहा कि मम्मी मैं खुद से तैयारी करना चाहता हूं और निरंतर लगा रहा। शाश्वत पढ़ाई में शुरू से ही मेधावी रहे। स्कूल से लेकर कॉलेज तक वह बेहतर प्रदर्शन करते रहे। पहले प्रयास में प्रीलिम्स भी नहीं निकला तो थोड़ी निराशा हुई। दूसरे प्रयास में प्रीलिम्स निकला और तीसरे प्रयास में 121वीं रैंक। उन्होंने कहा कि वह आगे भी बेहतर करने का प्रयास करते रहेंगे। बड़े भाई बिजनेस करते हैं और बहन सीए हैं।

Niti Agrawal

ऋषिकेश की नीति अग्रवाल ने यूपीएससी परीक्षा में आल इंडिया 383वीं रैंक हासिल की, नीति का यह छठवां व अंतिम अटैम्प्ट था। वर्ष 2021 में नीति अग्रवाल अंतिम चरण इंटरव्यू तक पहुंची थी, सिर्फ एक अंक से रहने के कारण वह फाइनल चयन से चूक गई। परीक्षा में तीर्थनगरी ऋषिकेश की बेटी नीति अग्रवाल ने पूरे देश में 383वीं रैंक हासिल करके उत्तराखंड का नाम रोशन कर दिया है। उन्होंने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को दिया है और इस सफलता से पूरे परिवार में खुशी की का माहौल बना हुआ है। नीति अग्रवाल ने युवाओं को सफलता के लिए हार्डवर्क का मंत्र दिया है। नीति अग्रवाल हरिद्वार रोड़ पर स्थित जयराम आश्रम के अपार्टमेंट में निवास करने वाले व्यापारी संजय अग्रवाल की बिटिया हैं। यूपीएससी परीक्षा की सफलता के मौके पर परिवार के सदस्य काफी उत्साहित हैं। रिजल्ट घोषणा के बाद उनके घर में रिश्तेदारों और पड़ोसियों की भीड़ जुटी है। सभी लोग नीति को बधाई देने उनके घर आ रहे हैं और घर में ढोल बाजे के साथ जश्न मनाया जा रहा है।

नीति अग्रवाल के पिता संजय अग्रवाल घाट रोड के प्रतिष्ठित चाय व्यापारी हैं और उनकी मां ऋतु अग्रवाल एक गृहिणी हैं, नीति की छोटी बहन इंजीनियर हैं। नीति ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा मॉडर्न स्कूल, ऋषिकेश से उत्तीर्ण की हैं। नीति ने कहा कि वह दो बहनें हैं। उनके माता-पिता ने हमेशा दोनों बेटियों को बेटा मानते हुए प्रोत्साहित किया है। नीति ने इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और गुरुजनों को दिया है, उन्होंने बताया कि पढ़ाई के साथ-साथ मेंटली रूप से प्रिपेयर करने के लिए परिजनों ने उन्हें बहुत सपोर्ट किया और उनका साथ दिया। नीति समय-समय कोचिंग लेकर इस मुकाम तक पहुंची है। उन्होंने कहा कि यूपीएससी एग्जाम को पास करने के लिए युवा को हार्डवर्क करते रहना चाहिए और जो गलतियां हो रही हैं उन्हें पहचानकर दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। नीति ने अपनी स्ट्रैटेजी साझा करते हुए बताया कि वह रोजाना दस घंटे पढ़ाई करती थी और उन्होंने मनोरंजन के साधनों को पूरी तरह से छोड़ दिया था। उन्हें तैयारी में इंटरनेट से काफी मदद मिली, उनका यह छठवां व अंतिम अटैम्प्ट था। वर्ष 2021 में नीति अग्रवाल अंतिम चरण इंटरव्यू तक पहुंची थी, सिर्फ एक अंक से रहने के कारण उनका फाइनल में चयन नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि इस आखिरी अटैम्प्ट में उन्होंने पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए व गलतियां सुधारते हुए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का प्रयास किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें सफलता मिली। नीति ने कहा कि लक्ष्य कोई भी बड़ा नहीं, जीता वही जो डरा नहीं। आपका लक्ष्य स्पष्ट है तो आप एक ने एक दिन अपनी मंजिल तक पहुंच जाओगे।

Dr Prem Kumar

पिता की साधारण हैसियत। माता गृहणी। परिवार भी कोई बड़ा और पैसे वाला नहीं। मन के अंदर मेहनत करने का जज्बा और जुनून ने एक शख्स को उस कुर्सी तक पहुंचा दिया, जहां पहुंचने का सपना उसके पिता ने देखा था। औरंगाबाद के दाउदनगर के जम्महारा निवासी डॉक्टर प्रेम कुमार अब कलेक्टर बन गए हैं। डॉक्टर साहब को अब लोग कलेक्टर साहब बुलाने लगे हैं। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में 130 वां रैंक लाया है। उनकी इस सफलता पर पूरा जिला गौरवान्वित है।

प्रेम के पिता रविन्द्र कुमार चौधरी एक किसान हैं जबकि उनकी माता रीता देवी एक गृहणी हैं। बड़ी ही लगन और मेहनत के साथ इन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया और डॉक्टर बनाया। मगर प्रेम का जुनून कुछ और ही था। उसे भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बनना था। उसने एम्स में बतौर चिकित्सक की नौकरी से इस्तीफा देकर इसकी तैयारी करनी शुरू की। हालांकि, पिछले तीन प्रयासों में प्रेम को असफलता हाथ लगी। लेकिन चौथे प्रयास में प्रेम ने सफलता अर्जित कर ली। अब ये कलेक्टर रहते हुए भी डॉक्टर की योग्यता का प्रयोग लोगों की सेवा के लिए करेंगे।

Shaurya Arora

हरियाणा के बहादुरगढ़ के ही रहने वाले शौर्य अरोड़ा ने यूपीएससी परीक्षा में अपने दूसरे प्रयास में 14 वां रैंक हासिल किया है। शौर्य अरोड़ा की बात करें तो उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से मैकिनीकल इंजीनियरिंग की हुई है। आईआईटी में भी शौर्य ने 432वीं रैंक आई थी। पढ़ाई में शुरू से ही प्रतिभाशाली रहे शौर्य ने बचपन से ही आईएएस बनने का सपना देखा था। शौर्य के पिता भूषण अरोड़ा भी यूपीएससी की परीक्षा दे चुके हैं लेकिन सफलता नहीं मिली तो बेटे में अपना सपना जीने लगे थे। शौर्य का कहना है कि सही मार्गदर्शन में बिना कोचिंग के भी सफलता मिलती है।

शौर्य हर रोज करीबन 7 घंटे पढ़ाई किया करता था। पेपर के दिनों में 10 घंटे तक भी पढ़ाई की है। शौर्य का कहना है कि उसकी सफलता में उसके पूरे परिवार का सहयोग और भावनात्मक साथ रहा है। शौर्य ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई नॉन-मेडिकल स्ट्रीम से की है। आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई करते हुए ही उसने अपना पहला अटेम्पट दिया था लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन उस पहले अटेम्पट ने उसे सफलता का रास्ता दिखा दिया था। शौर्य का कहना है कि किसी भी लक्ष्य का हासिल करने के लिए जुनून और सही मार्गदर्शन बेहद जरूरी है।

डॉ. प्रेम प्रकाश ने अपना लक्ष्य को हासिल कर लिया है। अपने गांव पहुंचे प्रेम ने बताया कि इस सफलता का श्रेय माता-पिता, गुरुजनों तथा उनके मित्रों को जाता है। उन्होंने हर कदम पर उनका भरपूर साथ दिया और हौसला अफजाई करते रहे। ध्यान रहे कि डॉ. प्रेमप्रकाश ने दाउदनगर के ही विद्या निकेतन से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने यहां वर्ष 2001 से ही पढ़ाई की और लगातार अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए। वर्ष 2013 में भागलपुर से एमबीबीएस करने के बाद एम्स दिल्ली में अपनी सेवा दी। मगर उन्हें ये काम रास नहीं आ रहा था। इसी बीच प्रेम ने एम्स में चिकित्सक पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद घरवाले काफी नाराज भी हुए। उन्होंने लगी लगाई नौकरी छोड़ने को सही नहीं माना। लेकिन अब परिजन गर्व कर रहे हैं।

यूपीएससी की परीक्षा में टॉप 2 रैंक हासिल करने वाले अनिमेष मूल रूप से ओडिशा के रहने वाले हैं। उन्होंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री हासिल की है। उनका संस्थान इंजीनियरिंग कैटेगरी के तहत नवीनतम NIRF 2023 में 16वें स्थान पर है।

अनन्या रेड्डी दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से जियोग्राफी में ग्रेजुएट हैं। उन्होंने यूपीएससी-सीएसई की परीक्षा में टॉप 3 रैंक हासिल की है। एनआईआरएफ रैंकिंग में कॉलेज टॉप स्थान पर रहा। वर्ष 2021 में ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने हैदराबाद में यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी।

केरल के रहने वाले सिद्धार्थ यूपीएससी की परीक्षा में चौथे स्थान पर रहे हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई केरल विश्वविद्यालय से की है। यहां से वह आर्किटेक्ट में ग्रेजुएट हैं। वह हैदराबाद में आईपीएस अकादमी में ट्रेनिंग ले रहे हैं।

यूपीएससी की परीक्षा में टॉप 5 रैंक हासिल करने वाली रुहानी दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट हैं। उन्होंने अपने छठे प्रयास में यूपीएससी एग्जाम क्रैक करने में सफल रहे हैं। रूहानी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की हैं। उन्होंने भारतीय आर्थिक सेवा अधिकारी के रूप में नीति आयोग में दो साल तक काम भी किया है।

दिल्ली की रहने वाली सृष्टि ने पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की हैं। वह वर्तमान में भारतीय रिजर्व बैंक के मुंबई कार्यालय में ह्यूमन रिसोर्स ऑफिसर की रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में भी काम किया है। उनके पिता भी दिल्ली पुलिस में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर थे। उन्होंने पहले प्रयास में ही टॉप 10 में जगह बनाई है।

जम्मू-कश्मीर की रहने वाली अनमोल ने गुजरात की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट की हैं। उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की हैं किश्तवाड़ की लड़की ने पिछले साल जेकेएएस परीक्षा में भी टॉप किया था। वह जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) के तहत JKAS ऑफिसर के तौर पर ट्रेनिंग ले रही हैं।

आशीष कुमार ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (IIT Kharagpur) से डुअल डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने अपने पांचवें प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा को पास करने में सफल रहे हैं। वह खाना पकाने को अपनी ताकत में से एक मानते हैं।

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साइकिल

दूर सुदूर गाँव
गाँव की पगडंडी
पर सड़क है पक्की
सीमेंट की डामर की
रौंदती सड़क को
बेख़ौफ़ मोटरें
और बाईं ओर चल रहीं है
तीन साइकिलें
बेफिक्र बेपरवाहकुछ गज की दूरी पर
ठीक उनके पीछे
तीन और साइकिलें
बेफिक्र बेपरवाह
दौड़ता है एक ट्रक
रंभाते हुए
चिल्लाते हुए
डराते हुए

सड़क के बीचोंबीच
बेख़ौफ़ है साइकिलें
न मुड़ती है पीछे
न देखती पलटकर
निडर सी बढ़ रही है
आगे और आगे
कंधे उसके सम्भाले हैं
एक भारी बस्ता
जिसमें सुग़बुगा रही है
सभ्यता
कुलबुला रही है
संस्कृतिदबी रही है वह
झुकी रही है
जिस बोझ से
सदियों से
पर रुकी नहीं है
चलती रही है
डगमगाती हुई
लड़खड़ाती हुई
गाँव की पगडंडी पर
सदियों सेपर अब नहीं
निकल चुकी है वह
डर के आगे के
जीत की ओर
नहीं रुकेगी
न पलटेगी पीछे
न देखेगी मुड़कर
न फँसेगी जाल में
उन रंभाते ट्रकों के
सरसराती मोटरों के
जो रोके उसे
फँसाए फिर से
और ले जाये सदियों पूर्व

उसी खंडहर में
जहां से निकल भागी है वह
इस साइकिल पर
सड़क के बीचोंबीच
दूर सुदूर गाँव में
(डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ साहित्यिक पत्रिका ‘पुष्पक साहित्यिकी’ की संपादक है।)
संपर्क : शांडिल्य सार्त्रम, E-54, मधुरा नगर, हैदराबाद – 5000038
फोन : 9908855400
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विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल 2024ः धरोहर – तथ्य और कथ्य

आज जब की विश्व विरासत दिवस मना रहे है ऐसे में इस दिवस की सार्थकता के लिए जरूरी है समुदाय और सरकार सदियों से उपेक्षित धरोहरों को संभालने, संवारने और जीवित रखने पर भी विचार करें। यही नहीं यूनेस्को ने जिन स्थलों को विरासत स्थल घोषित किया है उनमें भी अधिकांश की स्थिति अच्छी नहीं हैं। हमारे देश भारत में अभी तक 40 विश्व धरोहर घोषित की गई हैं। इनके अलावा भी हजारों विरासत स्थल है जो उपेक्षा की वजह से अस्तित्व का संघर्ष कर रही हैं। कई तो धूल धूसरित हो अपना अस्तिव्व खो चुकी है।

देश को छोड़ हम राजस्थान की ही चर्चा करें तो अनेक धरोहरों की हालत के बारे में समय – समय पर लेखकों और मीडिया द्वारा समाचार पत्रों की सुर्खियों में देखने को मिलता है। अकेले हाड़ोती में ही राज्य पुरात्व विभाग के अधीन करीब 55 संरक्षित स्मारक है और इससे कहीं अधिक असंरक्षित हैं। जो संरक्षित हैं उनमें से नमूने के तौर पर विश्व विरासत में शामिल झालवाड़ के गागरोन दुर्ग की हालत देख कर आने वालों की जुबानी सुनी जा सकती है या जा कर देखी जा सकती है। अटरु का गडगच मंदिर पत्थरों का ढेर बन गया है अन्य मंदिर खंडहर बन रहे हैं। दरा घाटी में गुप्तकालीन शिव मंदिर के चार स्तंभ मंदिर होने का अहसास कराते हैं। संरक्षित स्मारकों के हालात ऐसे हैं तो इस सूची के बाहर अन्य स्मारकों का तो क्या कहें। ऐसे स्मारकों को खोजबीन कर लेखक प्रकाश में लाते रहते हैं। आजादी के 75 सालों में और 42 वें विश्व धरोहर दिवस के संदर्भ में देश में सबसे ज्यादा हास विरासत का हुआ और आज भी उपेक्षित ही बनी हुई है।

सवाल उठता है कि आखिर हमारी गौरवशाली धरोहर का संरक्षण, रखरखाव और जीर्णोधार कैसे हो? एक कदम यह हो सकता है की पुरातत्व विभाग के स्मारकों के बारे में एक कील भी नहीं लगेगी जैसे नियमों का सरलीकरण किया जाना चाहिए। स्मारकों के जीर्णोधार और रख रखाव में जनभागीदारी को व्यापक रूप से जोड़ा जाने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में बेस कीमती मूर्तियां चोरी चली जाती हैं। सुरक्षा की दृष्टि से स्थानीय स्तर पर समुदाय और संस्थाओं जेसे पंचायत, नगरपालिका आदि का सहयोग लिया जा सकता है।

जरूरी है की संरक्षण और जीर्णोधार के लिए दो स्तर पर कार्ययोजना बनाई जाए , एक लघु अवधि की तात्कालिक योजना और दूसरी लंबी अवधि की दीर्घकालिक योजना। व्यापक सर्वेक्षण किया जा कर धरोहरों की सूची बने और उसके आधार पर स्थिति का आंकलन करते हुए एक ब्लू प्रिंट तैयार हो और कार्यकारी योजना बनाई जाए। जो बीत गया,जितना क्षरण हो चुका उसकी भरपाई तो संभव नहीं पर जो कुछ बचा है उसी को बचाने और संरक्षित रखने पर आज के दिन विचार हो तो यहीं इस दिवस की सार्थकता हो सकती है।

विश्व धरोहर दिवस के संदर्भ में चर्चा करें तो सांस्कृतिक धरोहर स्थलों में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, शिलालेख, गुफा आवास, विश्व महत्व वाले स्थान, इमारतों का समूह, मूर्तिकारी-चित्रकारी-स्थापत्य की झलक वाले स्थल, ऐतिहासिक, सौन्दर्य एवं मानव विज्ञान तथा विश्व दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को शामिल किया जाता है। प्राकृतिक धरोहर स्थल में वन क्षेत्र, जीव, प्राकृतिक स्थल, भौगोलिक महत्व के ऐसे स्थान जो नष्ट होने के करीब हैं, वैज्ञानिक महत्व की जगह आदि को शामिल किया जाता है। जो स्थल सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, उन्हें मिश्रित धरोहर में शामिल किया जाता है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को देखें तो संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को संस्था की पहल पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि की गई, जो विश्व के सांस्कृतिक, प्राकृतिक स्थलों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। वर्ष 1982 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ माउंटेस एंड साईट (ईकोमार्क) नामक संस्था ने टयूनिशिया में अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस का आयोजन किया गया तथा इसी सम्मेलन में सर्वसम्मति से निर्णय लेकर विश्व में प्रतिवर्ष ऐसी संरक्षित धरोहर के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए 18 अप्रेल को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत दिवस आयोजित करने की घोषणा की गई।

किसी भी स्थान विशेष की धरोहर को संरक्षित करने के लिए ’अन्तर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिसर’ तथा ’विश्व संरक्षण संघ’ द्वारा आंकलन कर विश्व धरोहर समिति से सिफारिश की जाती है। समिति की बैठक वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है।

करीब 142 राष्ट्रीय पार्टियों में स्थित समस्त विश्व धरोहरों का वर्गीकरण पांच भूगोलिय भूमंडलों में किया गया है। भूगोलिय भूमंडलों में अफ्रीका, अरब राज्य जिनमें आस्ट्रेलिया और ओशनिया भी शामिल हैं, यूरोप और उत्तरी अमेरिका विशेषतः संयुक्त राज्य और कनाडा तथा दक्षिणी अमेरिका एवं कैरीबियन आते हैं। रूस एवं काॅकेशस राष्ट्र यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका भूमंडल में शामिल किए गए हैं। यूनेस्को द्वारा अब तक विश्व में 1157 धरोहर स्थलों का चिन्हिकरण कर उन्हें विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। इनमें ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक संपदा से भरपूर हमारे अपने भारत देश में 40 स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।

विश्व धरोहर में शामिल होने का सिलसिला वर्ष 1983 से अनवरत चल रहा है। भारतीय सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से भारत में वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश में आगरा का ताजमहल एवं किला, महाराष्ट्र में अजंता एवं एलोरा की गुफाएं, वर्ष 1984 में उडीसा राज्य का कोणार्क मंदिर व तमिलनाडु के महाबलीपुरम के स्मारक, वर्ष 1985 में असम का कांजीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य तथा असम का मानस राष्ट्रीय अभ्यारण्य, वर्ष 1986 में गोवा का पुराना चर्च, कनार्टक में हम्पी के स्मारक, मध्यप्रदेश में खजुराहो के मंदिर एवं स्मारक व उत्तर प्रदेश में फतेहपुर सीकरी, वर्ष 1987 में महाराष्ट्र में एलीफैंटा की गुफाएं, तमिलनाडु का चोल मंदिर, कर्नाटक में पट्टाइक्कल के स्मारक, पश्चिम बंगाल का सुंदरवन राष्ट्रीय अभ्यारण्य को विश्व धरोहर में शामिल किया गया।

ऐसे ही वर्ष 1989 में मध्यप्रदेश स्थित सांची के बौद्ध स्तूप, वर्ष 1993 में दिल्ली का हुमायूं का मकबरा एवं कुतुबमीनार तथा मध्यप्रदेश में भीमवेटका, वर्ष 2002 में बिहार में महाबोधि मंदिर बौधगया, वर्ष 1999 में पश्चिम बंगाल में भारतीय पर्वतीय रेल दार्जिलिंग, वर्ष 2004 में गुजरात में चंपानेर पावागढ़ का पुरातत्व पार्क तथा महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, वर्ष 2005 में उत्तराखंड में फूलों की घाटी एवं तमिलनाडु में भारतीय पर्वतीय रेल नीलगिरी, वर्ष 2007 में दिल्ली का लाल किला, वर्ष 2008 में हिमाचल प्रदेश में भारतीय पर्वतीय रेल कालका-शिमला, वर्ष 2012 में पश्चिमी घाट कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, वर्ष 2014 में गुजरात में रानी की वाव पाटन तथा हिमाचल प्रदेश में ग्रेट हिमालियन राष्ट्रीय उद्यान कुल्लू एवं वर्ष 2016 में चंडीगढ़ केपिटल काॅम्पलेक्स, कंचनजंगा नेशनल पार्क सिक्किम,नालंदा, बिहार, 2017 में अहमदबाद का ऐतिहासिक शहर,गुजरात, 2018 में विक्टोरिया गोथिक एंड आर्ट मुंबई महाराष्ट्र, 2021 में कालेश्वर मंदिर तेलंगाना और 2022 में हड़प्पा सभ्यता, धोलावीरा, गुजरात को विश्व विरासत घोषित किया गया।

राजस्थान में वर्ष 1985 में भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय अभ्यारण्य प्रथम बार विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया। इसके उपरांत वर्ष 2010 में जयपुर के जंतर-मंतर तथा वर्ष 2013 में पहाड़ी किलों में आमेर का किला, झालावाड़ में गागरोन का किला, चित्तौड़गढ़ किला, राजसमंद का कुंभलगढ़, सवाई माधोपुर का रणथंभौर दुर्ग तथा जैसलमेर का सोनार किला तथा 2000 में जयपुर की चारदीवारी को विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।

पुरातत्व और संग्रहालय विभाग राजस्थान वर्ष 1950 में स्थापित, कला और वास्तुकला के विभिन्न रूपों में सन्निहित सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित, संरक्षित, प्रदर्शित और व्याख्या करता है। इसके नियंत्रण 17 संग्रहालय और 322 संरक्षित स्मारक हैं,जिनमें उत्कृष्ट मंदिर, विशाल मस्जिद, बड़े किले, कलात्मक स्मारक, नक्काशीदार और चित्रित हवेलियाँ आदि शामिल हैं।

विश्व विरासत दिवस पर संरक्षित धरोहरों का स्मरण अच्छा है और प्रत्येक का प्रयास होना चाहिए कि वह इस दिवस को आवश्यक रूप से मनाए। इसके लिए आप अपने शहर या शहर के नजदीक स्थल को देखने जा सकते हैं, अपने बच्चों को दिखा सकते हैं तथा आपके यहां आने वाले मेहमानों को भी इन स्थलों की सैर करा सकते हैं। विद्यालय प्रबंधक भी ऐसे स्थलों या उपलब्ध संग्रहालय का अवलोकन बच्चों का सामूहिक रूप से करा सकते हैं। राजस्थान में सरकार द्वारा संचालित संग्रहालयों को देखने के लिए इस दिन किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। इसका उद्देश्य यही है कि बच्चे और वहां के नागरिक अधिकाधिक संग्रहालयों में जाएं तथा वहां संजोई गई अपनी समृद्ध विरासत को देखें और समझें। ऐसे स्थलों को देखकर हमें हमारी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं भौगोलिक संपदा पर गर्व होगा और हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हम जिस देश-प्रदेश के निवासी हैं, वह कितनी समृद्ध विरासत अपने में संजोए है। साथ ही विरासत को बचाने, संवारने, जीर्णोधार और सुरक्षा की भी चिंता और चिंतन कर उपायों को कारगर बनाए।

(लेखक मान्यताप्राप्त वरिष्ठ पत्रकार हैं कोटा में रहते हैं और ऐतिहासिक साहित्यिक, सासंस्कृतिक व पर्यटन से जुड़े विषयों पर नियमित लेखन करते हैं। )

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