Thursday, April 18, 2024
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“आर्य” हिन्दू राजाओं का चारित्रिक आदर्श

भारत देश की महान वैदिक सभ्यता में नारी को पूजनीय होने के साथ साथ “माता” के पवित्र उद्बोधन से संबोधित किया गया हैं।

मुस्लिम काल में भी आर्य हिन्दू राजाओं द्वारा प्रत्येक नारी को उसी प्रकार से सम्मान दिया जाता था जैसे कोई भी व्यक्ति अपनी माँ का सम्मान करता हैं।

यह गौरव और मर्यादा उस कोटि के हैं ,जो की संसार के केवल सभ्य और विकसित जातियों में ही मिलते हैं।
महाराणा प्रताप के मुगलों के संघर्ष के समय स्वयं राणा के पुत्र अमर सिंह ने विरोधी अब्दुरहीम खानखाना के परिवार की औरतों को बंदी बना कर राणा के समक्ष पेश किया तो राणा ने क्रोध में आकर अपने बेटे को हुकम दिया की तुरंत उन माताओं और बहनों को पूरे सम्मान के साथ अब्दुरहीम खानखाना के शिविर में छोड़ कर आये एवं भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की प्रतिज्ञा करे।

ध्यान रहे महाराणा ने यह आदर्श उस काल में स्थापित किया था जब मुग़ल अबोध राजपूत राजकुमारियों के डोले के डोले से अपने हरम भरते जाते थे। बड़े बड़े राजपूत घरानों की बेटियाँ मुगलिया हरम के सात पर्दों के भीतर जीवन भर के लिए कैद कर दी जाती थी। महाराणा चाहते तो उनके साथ भी ऐसा ही कर सकते थे पर नहीं उनका स्वाभिमान ऐसी इजाजत कभी नहीं देता था।

औरंगजेब के राज में हिन्दुओं पर अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। हिन्दू या काफ़िर होना तो पाप ही हो गया था। धर्मान्ध औरंगजेब के अत्याचार से स्वयं उसके बाप और भाई तक न बच सके , साधारण हिन्दू जनता की स्वयं पाठक कल्पना कर सकते हैं। औरंगजेब की स्वयं अपने बेटे अकबर से अनबन हो गयी थी। इसी कारण उसका बेटा आगरे के किले को छोड़कर औरंगजेब के प्रखर विरोधी राजपूतों से जा मिला था जिनका नेतृत्व वीर दुर्गादास राठोड़ कर रहे थे।

कहाँ राजसी ठाठ-बाठ में किलो की शीतल छाया में पला बढ़ा अकबर , कहाँ राजस्थान की भस्म करने वाली तपती हुई धुल भरी गर्मियाँ। शीघ्र सफलता न मिलते देख संघर्ष न करने के आदि अकबर एक बार राजपूतों का शिविर छोड़ कर भाग निकला। पीछे से अपने बच्चों अर्थात औरंगजेब के पोता-पोतियों को राजपूतों के शिविर में ही छोड़ गया। जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसे अपने पोते पोतियों की चिन्ता हुई क्योंकि वह जैसा व्यवहार औरों के बच्चों के साथ करता था कहीं वैसा ही व्यवहार उसके बच्चों के साथ न हो जाये। परन्तु वीर दुर्गा दास राठोड़ एवं औरंगजेब में भारी अंतर था। दुर्गादास की रगो में आर्य जाति का लहू बहता था। दुर्गादास ने प्राचीन आर्य मर्यादा का पालन करते हुए ससम्मान औरंगजेब के पोता पोती को वापिस औरंगजेब के पास भेज दिया जिन्हें पाकर औरंगजेब अत्यंत प्रसन्न हुआ। वीर दुर्गादास राठोड़ ने इतिहास में अपना नाम अपने आर्य व्यवहार से स्वर्णिम शब्दों में लिखवा लिया।

वीर शिवाजी महाराज का सम्पूर्ण जीवन आर्य जाति की सेवा, रक्षा, मंदिरों के उद्धार, गौ माता के कल्याण एवं एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के रूप में गुजरा जिन्हें पढ़कर प्राचीन आर्य राजाओं के महान आदर्शों का पुन: स्मरण हो जाता हैं। जीवन भर उनका संघर्ष कभी बीजापुर से, कभी मुगलों से चलता रहा। किसी भी युद्ध को जितने के बाद शिवाजी के सरदार उन्हें नजराने के रूप में उपहार पेश करते थे। एक बार उनके एक सरदार ने कल्याण के मुस्लिम सुबेदार की अति सुन्दर बीवी शिवाजी के सम्मुख पेश की। उसको देखते ही शिवाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हो गए और उस सरदार को तत्काल यह हुक्म दिया की उस महिला को ससम्मान वापिस अपने घर छोड़ आये। अत्यंत विनम्र भाव से शिवाजी उस महिला से बोले ” माता आप कितनी सुन्दर हैं , मैं भी आपका पुत्र होता तो इतना ही सुन्दर होता। अपने सैनिक द्वारा की गई गलती के लिए मैं आपसे माफी मांगता हूँ”। यह कहकर शिवाजी ने तत्काल आदेश दिया की जो भी सैनिक या सरदार जो किसी भी ऊँचे पद पर होगा अगर शत्रु की स्त्री को हाथ लगायेगा तो उसका अंग छेदन कर दिया जायेगा।

कहाँ औरंगजेब की सेना के सिपाही जिनके हाथ अगर कोई हिन्दू लड़की लग जाती या तो उसे या तो अपने हरम में गुलाम बना कर रख लेते थे अथवा उसे खुले आम गुलाम बाज़ार में बेच देते थे और कहाँ वीर शिवाजी का यह पवित्र आर्य आदर्श। नीचे दिए चित्र मैं मुहम्मद कासिम के सिंध के दरबार का चित्र व् शिवाजी महाराज का चित्र देखें
इतिहास में शिवाजी की यह नैतिकता स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई हैं।

इन ऐतिहासिक प्रसंगों को पढ़ कर पाठक स्वयं यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं की महानता और आर्य मर्यादा व्यक्ति के विचार और व्यवहार से होती हैं। धर्म की असली परिभाषा उच्च कोटि का पवित्र और श्रेष्ठ आचरण हैं। धर्म के नाम पर अत्याचार करना तो केवल अज्ञानता और मूर्खता हैं।

(लेखक ऐतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)

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गीतों की चांदनी में एक माहेश्वर तिवारी का होना

गीतों की चांदनी में एक माहेश्वर तिवारी का होना दूब से भी कोमल मन का होना है। गीतों की चांदनी में चंदन सी खुशबू का होना है। मह-मह महकती धरती और चम-चम चमकते आकाश का होना है। माहेश्वर तिवारी के गीतों की नदी में बहना जैसे अपने मन के साथ बहना है। इस नदी में प्रेम की पुरवाई की पुरकशिश लहरें हैं तो चुभते हुए हिलकोरे भी। भीतर के सन्नाटे भी और इन सन्नाटों में भी अकेलेपन की महागाथा का त्रास और उस की फांस भी। माहेश्वर के गीतों में जो सांघातिक तनाव रह-रह कर उपस्थित होता रहता है। निर्मल वर्मा के गद्य सा तनाव रोपते माहेश्वर के गीतों में नालंदा जलता रहता है। खरगोश सा सपना उछल कर भागता रहता है। घास का घराना कुचलता रहता है। बाहर का दर्द भीतर से छूता रहता है, कोयलों के बोल/ पपीहे की रटन/ पिता की खांसी/ थकी मां के भजन बहने लगते हैं। भाषा का छल, नदी का अकेलापन खुलने लगता है। और इन्हीं सारी मुश्किलों और झंझावातों में किलकारी का एक दोना भी दिन के संसार में उपस्थित हो मन को थाम लेता है।

क्या बादल भी कभी कांपता है? यक़ीन न हो तो माहेश्वर तिवारी के गीत में यह बादल का कांपना आप देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। बादल ही नहीं, जंगल और झील भी कांप-कांप जाते हैं। और इतनी मासूमियत से कि मन सिहर-सिहर जाता है। वास्तव में माहेश्वर तिवारी के गीतों में प्रेम और प्रकृति की उछाह, उस की विवशता, उस की मादकता का रंग अपनी पूरी गमक के साथ अपनी पूरी उहापोह के साथ उपस्थित मिलता है कि मन उमग-उमग जाता है। माहेश्वर तिवारी की गीत यात्रा के इतने मधुर, इतने मादक, इतने मनोहर मोड़ प्रेम, प्रकृति और मनुष्यता की सुगंध में इस तरह लिपटे मिलते हैं कि जैसे मन की समूची धरती झूम-झूम जाती है। माहेश्वर के गीतों में प्रेम इस धैर्य और इस उदात्तता के साथ उपस्थित मिलता है गोया वह किसी उपन्यास का धीरोदात्त नायक हो। माहेश्वर के गीतों के रूप विधान और विलक्षण बिंब अपनी पूरी व्यंजना में प्रेम के आलोक में गुंजायमान तो होते ही हैं प्रेम का एक अलौकिक संसार भी रचते हैं। इतने देशज और मिट्टी में सने बिंब माहेश्वर तिवारी के यहां अनायास मिलते हैं, जो औचक सौंदर्य रचते हुए ठिठक कर प्रेम का एक नया वितान भी उपस्थित कर देते हैं तो यहीं माहेश्वर के गीत हिंदी गीत में ही नहीं वरन विश्व कविता में भी एक नया प्रतिमान बन जाते हैं। उन के गीतों में ही प्रेम का रूपक, बिंब और व्यंजना का अविकल पाठ अपने पूरे विस्तार के साथ प्रेम के वेग का रेशा- रेशा मन में एक तसवीर की तरह पैबस्त हो जाता है। अब सोचिए कि, लौट रही गायों के/ संग-संग/ याद तुम्हारी आती/ और धूल के/ संग-संग/ मेरे माथे को छू जाती! गायों के संग लौटती माथे को छूती धूल में सन कर जब प्रिय की याद घुलती हो तो प्रेम का यह रूप कितना उदात्त और कितना मोहक मोड़ उपस्थित कर मन में किस रुपहली तसवीर का तसव्वुर मन में दर्ज होता है। फिर एक अकेली किरण का पर्वत पार करने की जिजीविषा के भी क्या कहने! और तो और इस चिड़िया हो जाने के मन का भी क्या करें। माहेश्वर के गीतों में प्रेम की कोंपलें फूटती है तो यातना के अनगिन स्वर भी। यह स्वर कभी थरथरा कर तो कभी भरभरा कर गिरते उठते है और मन को उद्वेलित करते हैं, मथते हैं। पानी में पड़े बताशे सा गलाते यह स्वर गुमसुम-गुमसुम, हकलाते संवाद की तरह उपस्थित होते हैं। चांदनी की झुर्रियां गिनते माहेश्वर के गीतों में बिना आहट संबंधों के टूटने का महीन व्यौरा भी है और झील के जल में डूबने गए कई भिनसारे भी। ऐसे जैसे कड़ाही के गरम तेल में पानी की कोई बूंद अचानक पड़ कर छन्न से बोल जाए, ऐसे ही माहेश्वर के गीत बोलते हैं। माहेश्वर तिवारी अपने गीतों में चाबुक मारते हुए घुटन के अनगिन सांकल ऐसे ही खोलते हैं। और इन खुलती संकलन को जब माहेश्वर तिवारी का मधुर कंठ भी नसीब हो जाता है तो जैसे घुटन और दुःख की नदी की विपदा पार हो जाती है। वह लिखते ही हैं, धूप में जब भी जले हैं पांव/ घर की याद आई। हिंदी गीतों की चांदनी में माहेश्वर तिवारी का यही होना, होना है। माहेश्वर के गीतों का कंचन कलश इतना भरा-भरा है, इतना समृद्ध है कि क्या कहने:
याद तुम्हारी जैसे कोई
कंचन कलश भरे।
जैसे कोई किरन अकेली
पर्वत पार करे।

लौट रही गायों के
संग-संग
याद तुम्हारी आती
और धूल के
संग-संग
मेरे माथे को छू जाती
दर्पण में अपनी ही छाया-सी
रह-रह कर उभरे,
जैसे कोई हंस अकेला
आंगन में उतरे।

जब इकला कपोत का जोड़ा
कंगनी पर आ जाए
दूर चिनारों के
वन से
कोई वंशी स्वर आए
सो जाता सूखी टहनी पर
अपने अधर धरे
लगता जैसे रीते घट से
कोई प्यास हरे।

फिर वह जब नदी, झील, झरनों सा बह कर चिड़िया हो जाने की खुशी भी किसी बच्चे की बेसुध ललक की तरह बांचते हैं और मौसम पर छा जाने की बात करते हैं तो मन वृंदावन हो जाता है:
नदी झील
झरनों सा बहना
चाह रहा
कुछ पल यों रहना

चिड़िया हो
जाने का मन है

फिर जब मूंगिया हथेली पर एक और शाम रचते हुए बांहों में याद के सीवान कसने का जो रूपक गढ़ते हैं, जो सांसों को आमों के बौर में गमकाते हैं तो उन का यह चिड़िया हो जाने का मन का मेटाफर मदमस्त हो कर मुदित हो जाता है:
भरी-भरी मूंगिया हथेली पर
लिखने दो एक शाम और।

कांप कर ठहरने दो
भरे हुए ताल
इंद्र धनुष को
बन जाने दो रूमाल
सांसों तक आने दो
आमों के बौर।

झरने दो यह फैली
धूप की थकान
बांहों में कसने दो
याद के सिवान
कस्तूरी-आमंत्रण जड़े
ठौर-ठौर।

और वह अजानी घाटियों में शीतल-हिमानी छांह के छोड़ आने का विलाप भी जब माहेश्वर अपनी पूरी मांसलता में दर्ज करते हैं तो मन के भीतर जैसे अनगिन घंटियां बज जाती हैं। मंदिर की निर्दोष घंटियां। भटका हुआ मन जैसे थिर हो जाता है प्यार की उस हिमानी छांह में। और विदा की वह बांह जैसे थाम-थाम लेती है:
छोड़ आए हम अजानी
घाटियों में
प्यार की शीतल-हिमानी छांह।

हंसी के झरने,
नदी की गति,
वनस्पति का
हरापन
ढूढ़ता है फिर
शहर-दर-शहर
यह भटका हुआ मन
छोड़ आए हम हिमानी
घाटियों में
धार की चंचल, सयानी छांह।

ऋचाओं-सी गूंजती
अंतर्कथाएं
डबडबाई आस्तिक ध्वनियां,
कहां ले जाएं
चिटकते हुए मनके
सर्प के फन में
पड़ी मणियां,
छोड़ आए हम पुरानी घाटियों में
कांपते-से पल, विदा की बांह।

और नंगे पावों में नर्म दूब की जो वह छुअन जाग जाए तो? मन में रंगोली रच जाए तो? तब कोयल बोलती है महेश्वर के गीतों में। स्वर की पंखुरी खुलती है, हंसते-बतियाते:
बहुत दिनों के बाद
आज फिर
कोयल बोली है

बहुत दिनों के बाद
हुआ फिर मन
कुछ गाने का
घंटों बैठ किसी से
हंसने का-बतियाने का

बहुत दिनों के बाद
स्वरों ने
पंखुरी खोली है

शहर हुआ तब्दील
अचानक
कल के गांवों में
नर्म दूब की
छुअन जगी
फिर नंगे पांवों में

मन में कोई
रचा गया
जैसे रंगोली है।

माहेश्वर के यहां तो पेड़ों का रोना भी इस चुप और इस यातना के साथ दर्ज होता है कि पत्ता, टहनी, सपना, शहर, जंगल सब के सब एक लंबी ख़ामोशी के साथ साक्ष्य बन कर उपस्थित हो जाते हैं:
कुहरे में सोये हैं पेड़
पत्ता पत्ता नम है
यह सबूत क्या कम है

लगता है
लिपट कर टहनियों से
बहुत बहुत
रोये हैं पेड़

जंगल का घर छूटा
कुछ कुछ भीतर टूटा
शहरों में
बेघर होकर जीते
सपनों में खोये हैं पेड़

वह एक गहरी उदासी में खींच ले जाते है आहिस्ता-आहिस्ता और कच्ची अमियों वाली उदासी शाम पर इस तरह तारी हो जाती है गोया; भीतर एक अलाव जला कर/ गुमसुम बैठे रहना/ कितना/ भला-भला लगता है अपने से कुछ कहना, हो जाता है। अब घरों से खपरैल भले विदा हो गए हैं, खेतों से बैल और रात से ढिबरी भी अपने अवसान की राह पर हैं लेकिन माहेश्वर के गीतों में इन का धूसर और मोहक बिंब अपने पूरे कसैलेपन, सारी कड़वाहट और पूरी छटपटाहट के साथ एकसार हैं ऐसे जैसे भिनसार का कोई सपना टूट गया हो, अपनेपन की कोई ज़मीन दरक गई हो:
गर्दन पर, कुहनी पर
जमी हुई मैल-सी।
मन की सारी यादें
टूटे खपरैल-सी।

आलों पर जमे हुए
मकड़ी के जाले,
ढिबरी से निकले
धब्बे काले-काले,
उखड़ी-उखड़ी साँसे हैं
बूढे बैल-सी।

हम हुए अंधेरों से
भरी हुई खानें,
कोयल का दर्द यह
पहाड़ी क्या जाने,
रातें सभी हैं
ठेकेदार की रखैल-सी।

माहेश्वर के गीतों में इतवार भी इस कातरता के साथ बीतता है गोया किसी नन्हे बच्चे का गीत कोई कीड़ा कुतर गया हो:
मुन्ने का तुतलाता गीत-
अनसुना गया बिल्कुल बीत
कई बार करके स्वीकार।
सारे दिन पढ़ते अख़बार।
बीत गया है फिर इतवार।

और थके हारे लोगों का साल भी ऐसे क्यों बीतता है भला, जैसा माहेश्वर बांचते हैं:
बघनखा पहन कर
स्पर्शों में
घेरता रहा हम को
शब्दों का
आक्टोपस-जाल

कहीं पास से/ नया-नया फागुन का/ रथ गुज़रा है जैसे गीतों में उन की बेकली जब इस तरह उच्चारित होती है; जिस तरह ख़ूंख़ार/ आहट से सहम कर/ सरसराहट भरा जंगल कांप जाता है। तो यह सब अनायास नहीं होता है:
मुड़ गए जो रास्ते चुपचाप
जंगल की तरफ़,
ले गए वे एक जीवित भीड़
दलदल की तरफ़।

आहटें होने लगीं सब
चीख़ में तब्दील,
हैं टंगी सारे घरों में
दर्द की कन्दील,

मुड़ गया इतिहास फिर
बीते हुए कल की तरफ़।

नालंदा जलता है तो बर्बरता का कोई नया अर्थ पलता है। तक्षशिला और नालंदा की यातना एक है। एकमेव है। नदी का अकेलापन कैसे तो तोड़ता है माहेश्वर के गीतों में और मन उसे बांचते हुए क्षण-क्षण टूटता है, दरकता है:
सूरज को
गोद में
बिठाये अकुलाना
सौ नए बहनों में
एक सा बहाना

माहेश्वर तिवारी के गीतों में सांघातिक तनाव के इतने सारे तंतु हैं, इतने सारे पड़ाव हैं, इतने सारे विवरण हैं कि वह मन में नदी की तरह बहने लगते हैं। देह में नसों के भीतर चलने और नसों को चटकाने लगते हैं:
लगता जैसे
हरा-भरा चंदन वन
जलता है
कोई पहने बूट
नसों के भीतर
चलता है

मन ही नहीं माहेश्वर घर भर की स्थितियों को बांचने लगते हैं। उन का तापमान दर्ज करने लगते हैं।
सुबह-सुबह
किरनों ने आ कर
जैसे हमें छुआ
सूरज उगते ही
घर भर का माथा गर्म हुआ

माहेश्वर के गीतों में बेचैनी, प्यार और उस की धार और जीवन की अनिवार्य उदासियां इस सहजता से गश्त करती हैं गोया सड़क पर ट्रैफिक चल रही हो, गोया किसी राह में कोई गुजरिया चल रही हो, गोया नदी में नाव चल रही हो, गोया किसी मेड़ पर चढ़ते-उतरते कोई राही अपने पैरों को साध रहा हो और अपनी बेचैनियों को बेवजह बांच रहा हो:
धूप थे, बादल हुए, तिनके हुए
सैकड़ों हिस्से गए दिन के हुए
उदासी की पर्त-सी जमने लगी
रेंगती-सी भीड़ फिर थमने लगी
हम कभी उन के, कभी इन के हुए

माहेश्वर के गीतों में बतकही, उम्मीद और तितलियों के किताबों से निकलने की तस्वीरें और उन की गंध भी हैं। फूल वाले रंग भी हैं और बदहाल वैशाली और आम्रपाली भी। तक्षशिला और नालंदा की यातना भी। डराता हस्तिनापुर भी झांकता ही है। यातना और तनाव के इन व्याकुल पहर में लेकिन उत्सव मनाती दूब भी है अपनी पलकें उठाती, घुटन की सांकलें खोलती और एक गहरी आश्वस्ति देती हुई। और इन सब में भी प्यार और उस की बारीक इबारत बांचती साहस और उम्मीद की वह किरण भी जो अकेली पर्वत पार करती बार-बार मिलती है ऐसे जैसे देवदार के हरे-हरे, लंबे-लंबे वृक्ष मन के पर्वत में उग-उग आते हों। सारी अड़चनें और बाधाएं तोड़-ताड़ कर। माहेश्वर तिवारी के गीतों की यही ताकत है। हम इसी में झूम-झूम जाते हैं। फिर जब इन गीतों को माहेश्वर तिवारी का मीठा कंठ भी मिल जाता है तो हम इन में डूब-डूब जाते हैं। इन गीतों की चांदनी में न्यौछावर हो-हो जाते हैं। माहेश्वर तिवारी हम में और माहेश्वर तिवारी में हम बहने लग जाते हैं। अजानी घाटियों में, प्यार की शीतल-हिमानी छांह में सो जाते हैं। माहेश्वर तिवारी के गीतों की तासीर ही यही है। करें तो क्या करें?

साभार-https://sarokarnama.blogspot.com/2015/07/blog-post_21.html

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वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा 36 प्रतिशत कम हुआ

विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के व्यापार घाटे में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है।

यह विशेष रूप से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में की गई कमी के चलते सम्भव हो सका है। केंद्र सरकार लगातार पिछले 10 वर्षों से यह प्रयास करती रही है कि भारत न केवल विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने बल्कि विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन भी भारत में ही प्रारम्भ हो। अब यह सब होता दिखाई दे रहा है क्योंकि भारत के आयात तेजी से कम हो रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराईल-हम्मास युद्ध, लाल सागर व्यवधान, पनामा रूट पर दिक्कत के साथ ही वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के हिचकोले खाने के बावजूद भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में मामूली बढ़ौतरी दर्ज हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत के व्यापार घाटे में आई 36 प्रतिशत की कमी के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है।

भारत का कुल व्यापार घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 के 12,162 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम होकर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 7,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में वस्तुओं का कुल आयात 67,724 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 71,597 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.41 प्रतिशत कम है। जबकि वस्तुओं के कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मामूली 3.11 प्रतिशत गिरकर 43,706 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं। देश के कुल निर्यात एवं आयात के बीच के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान देश में वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के अंतर का व्यापार घाटा 24,017 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। परंतु, यदि वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़ों में सेवाओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़े भी जोड़ दिए जाएं तो स्थिति बहुत अधिक सुधर जाती है।

भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष के उच्चत्तम रिकार्ड स्तर से भी आगे बढ़कर 77,668 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है, यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में 77,640 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। इसमें वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान किया गया सेवाओं का निर्यात, जो 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 33,962 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, भी शामिल है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, औषधियों एवं इंजीनीयरिंग वस्तुओं का अच्छा प्रदर्शन रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,355 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 2,912 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.64 प्रतिशत अधिक है।

इसी प्रकार, दवाओं एवं औषधियों का निर्यात भी 9.67 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,539 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 2,785 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, इंजीनीयरिंग वस्तुओं का निर्यात भी 2.13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10,932 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। कुल मिलाकर, भारत से वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान निर्यात में वृद्धि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, दवाएं एवं चिकित्सा, इंजीनियरिंग उत्पादों, लौह अयस्क (वृद्धि दर 117.74 प्रतिशत), सूती धागा (यार्न एवं फैब्रिक में वृद्धि दर 6.71 प्रतिशत), फल एवं सब्जी (वृद्धि दर 13.86 प्रतिशत), तम्बाकू (19.46 प्रतिशत), मांस, डेयरी और पौलट्री उत्पाद (12.34 प्रतिशत), अनाज एवं विविध प्रसंस्कृत वस्तुएं (8.96 प्रतिशत), मसाला (12.30 प्रतिशत), तिलहन (7.43 प्रतिशत), आयल मील्स (7.01 प्रतिशत), हथकरघा उत्पाद एवं सेरेमिक उत्पाद तथा कांच के बर्तनों (14.44 प्रतिशत) के निर्यात के चलते सम्भव हो सकी है। साथ ही, यह वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के प्रमुख निर्यात बाजार में अमेरिका, यूनाइटेड अरब अमीरात, यूरोपीयन यूनियन देशों, ब्रिटेन, सिंगापुर, मलेशिया, बांग्लादेश, नीदरलैंड, चीन व जर्मनी जैसे देशों के शामिल होने से भी सम्भव हो सका है।

वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव के चलते भी विशेष रूप से मार्च 2024 माह में तो भारत से वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने उच्चत्तम स्तर 4,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि वस्तुओं के आयात मार्च 2024 माह में 5.98 प्रतिशत की कमी दर्ज करते हुए हुए 5,728 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर नीचे आ गए हैं। इस प्रकार मार्च 2024 माह में वस्तुओं का व्यापार घाटा लगातार कम होकर केवल 1,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रह गया है। इसकी पूर्ति सेवाओं के क्षेत्र से निर्यात में हो रही लगातार बढ़ौतरी से सम्भव हो रही है।

अब तो सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत कुल विदेश व्यापार में आधिक्य की स्थिति भी हासिल कर ले। वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में वृद्धि के साथ एवं वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात में लगातार हो रही कमी के चलते यह सम्भव हो सकता है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कुल व्यापार घाटे (वस्तुओं एवं सेवाओं को मिलाकर) में आई भारी कमी के चलते अब यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि आगे आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की मांग भी बढ़ सकती है और पिछले कई दशकों के दौरान भारतीय रुपए में आ रही लगातार गिरावट को रोककर अब भारतीय रुपया न केवल स्थिर हो जाएगा (वैसे पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान भारतीय रुपया 83 रुपए प्रति डॉलर के आसपास लगभग स्थिर तो हो ही चुका है) बल्कि भारतीय रुपए की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती है। भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के साथ विनिमय दर वर्ष 1982 में 9.46 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर से 31 मार्च 2023 में 82.17 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई थी। परंतु, पिछले एक वर्ष के दौरान यह विनिमय दर लगभग स्थिर ही रही है। दूसरे, अब कई देश भारत के साथ विदेशी व्यापार को रुपए एवं उन देशों की स्वयं की मुद्रा में करने को सहमत हो रहे हैं। जिसके कारण भारत एवं इन देशों के बीच होने वाले विदेशी व्यापार का भुगतान करने हेतु अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम होगी, बल्कि भारतीय रुपए में ही भुगतान सम्भव हो सकेगा। इस प्रकार के व्यवहार यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते हैं तो विश्व में विडालरीकरण की प्रक्रिया को भी गति मिल सकती है। भारतीय रुपए में व्यापार करने हेतु रूस, सिंगापुर, ब्रिटेन, मलेशिया, इंडोनेशिया, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, कतर सहित लगभग 32 देशों ने भारत के साथ समझौता किया है एवं भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना वोस्ट्रो खाता भी खोल लिया है ताकि इन देशों को भारत के साथ किए जाने वाले विदेशी व्यवहारों के निपटान को भारतीय रुपए में करने में आसानी हो सके।

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आखिर लोग मोदीजी के दीवाने क्यों हैं…

प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के प्रशंसक होने और उनकी राजनीतिक शक्ति और इच्छा के अतिरिक्त उनका पक्ष लेने के कई कारण हैं।

1.मोदी कभी भी फटे-पुराने कपड़ों,बिखरे बालों या गन्दी स्थिति में नहीं दिखेंगे!

2.उनकी बॉडी लैंग्वेज बहुत प्रभावशाली है। चाल मर्दानगी भरी है।

3.वो भगवा वस्त्र में एक साधु लगते हैं,सैन्य पोशाक में सैनिक दिखते हैं,साधारण कपड़ों में भी एक दिव्य राजकुमार लगते हैं।

4.देशभक्ति उनकी सांस है और अनुशासन उनका ब्लड ग्रुप है।

5.भले ही वो दुनिया के किसी भी महान हस्ती के साथ खड़े हों,पर उनकी प्रतिभा मोदी के सम्मुख मुट्ठीभर लगती है। अन्य प्रतिभाएँ भी बौनी लगती हैं।

6.हमने अतीत में ऐसा कोई नेता नहीं देखा जिसने चुनाव से पहले इतने असंभव वादों को पूरा किया हो।

7.देश के शीर्ष नेता होते हुए भी वो अपने परिवार पर कोई विशेष उपकार नहीं करते। उनके भाई-बहन उनके आसपास कभी नहीं देखे जाते।

8.वो कभी भी एक छुट्टी तक नहीं लेते।

9.वो कभी रोगग्रस्त ही नहीं होते।

10.वो जानते हैं-कितना कहना है,कब चुप रहना है और कैसे दूसरे व्यक्ति को चुप करना है।

11.सारी व्यस्तता के बीच भी वो कोई वेदी नहीं है,उनका सेंस ऑफ ह्यूमर अद्भुत है।

12.उनका उदबोधन तेज और अद्वितीय होता है। अभिव्यक्ति के लिए भाषा का प्रवाह बहुत अच्छा है। वे एक निष्णात कवि भी हैं।

13.वो विरोधियों के धोखे या चुनौतियों से कभी नहीं डरते।

14.वो विरोधियों या आरोपी की बकवास पर प्रतिक्रिया देने में समय व्यर्थ नहीं करते,बल्कि कूटनीति के साथ अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहते हैं।

15.न सिर्फ सही निर्णय बल्कि उसकी सतर्कता और समर्पण पर भी सर्वाधिक ध्यान देते हैं।

16.उनका व्यक्तित्व हिंदू संस्कृति का एक पवित्र प्रतीक प्रतीत है।

17.उनकी आँखों में चारित्रिक चमक इतनी शक्तिशाली है कि वो किसी को भी सम्मोहित कर सकता है।

18.उनको कोई लोभ,कोई डर नहीं एवं स्वार्थ भी मायने नहीं रखता है।

19.अंतिम रूप से 70 वर्ष साल की आयु में भी वो प्रतिदिन 15 से 20 घंटे काम करते हैं,फिर भी हमने उन्हें कभी जम्हाई लेते नहीं देखा!

मैं बहुत ही कोशिश करता हूं कि मोदी जी की तारीफ ना करूं उनमें कमियां ढूंदू। आप लोग भी मोदी जी में कोई कमी हो तो मुझे जरूर बताएं मोदी जी से कारनामे ही कुछ ऐसे हो जाते हैं कि सूडान के 5000 भारतीय नागरिक भी एक ही रात में मोदी के अंध भक्त बन गए है। सूडान में गृह युद्ध ऑपरेशन कावेरी चल रहा है सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं लेकिन लगभग 5000 भारतीय लोग सूडान से सुरक्षित जब तक भारत नहीं पहुंच जाते तब तक के लिए 72 घंटे तक यह गृह युद्ध भी रोक दिया गया है इसी तरह हमने रूस और यूक्रेन का युद्ध भी 72 घंटे रुका हुआ देखा था। यह विदेशी ताकतवर मूर्ख लोग भी मोदी के अंध भक्त क्यों बन रहे हैं।

मोदी है तो सब कुछ मुमकिन क्यों है आप ही बताइए।

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श्रीराम नवमी – एक युगारंभ..!

आज दोपहर
अभिजीत मुहूर्त पर, अयोध्या मे,
जब प्रभु श्रीराम जी के
पुनर्निर्मित भव्य मंदिर मे
पहला श्रीरामनवमी उत्सव
संपन्न हो रहा होगा,
तब
नियति अपने देश, भारत, के भाल पर
सुवर्णाक्षरों से
इस नए युग का
सुनहरा भविष्य लिख रही होगी!
आज का दिन
सभी अर्थों में
एक ऐतिहासिक दिवस हैं.
सैकड़ों वर्षों के बाद,
इस देश के
स्वाभिमान की, आत्मगौरव की, आत्मसम्मान की
धधकती अभिव्यक्ति
प्रकट होती दिख रही हैं।
मात्र अपना भारत देश ही नहीं,
अपितु
विश्व के कोने कोने मे,
जहां भी हिन्दू बसे हैं,
वे सारे, आज अपने अपने स्थान पर
आनंदोत्सव मना रहे हैं।
उनका रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, विजयादशमी, दीवाली….
सब कुछ आज ही हैं…!

__ __ ___

अपने ही देश मे,
अपने ही आराध्य के, अपने ही राष्ट्रपुरुष के
स्मारक के लिए, मंदिर बनाने के लिए,
दसियों करोड़ो देशवासियों को
सैकड़ों वर्षों से संघर्ष करना पड़ा हों…
ये भारत में ही संभव हैं।
किसी जमाने में
पुरुषपुर (पेशावर) से पापुआ न्यू गिनी तक
जिन श्रीराम की गाथाएं
रोज गायी जाती थी,
रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त
आदि जिनकी दिनचर्या का हिस्सा था,
आज भी
विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम राष्ट्र
इंडोनेशिया मे,
जिन श्रीराम की कथाओं पर
रोज खेल खेले जाते हैं, उनकी लीलाएं होती हैं,
उनके गीत गाएं जाते हैं,
जिस थाईलैण्ड के राजवंश के नाम
प्रभु श्रीराम के नाम पर दिये जाते हैं,
मलेशिया, मॉरीशस, त्रिनिनाद, फ़िजी, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार…
आदि अनेक देशों के लोकजीवन में
जो राम
रच – बस गए हैं…
उन प्रभु श्रीराम के
अस्तित्व को ही भारत में नकारा जा रहा था…
मुस्लिम आक्रांताओं का तो
उद्देश्य साफ था…
उन्हे काफिरों के श्रध्दास्थानों कों नष्ट करना था।
उन्होने किया।
पर १९४७ मे,
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात तो,
अपने गौरवशाली इतिहास की पुनर्स्थापना
आवश्यक थी।
अनेक देशों ने ऐसा किया भी।
किसी जमाने मे,
स्पेन के एक बड़े हिस्से पर,
मुस्लिम आक्रांताओं ने
कब्जा कर लिया था।
ताकतवर ग्रेनाडा नामक मुस्लिम साम्राज्य ने
स्पेन के ५०० से ज्यादा
प्रमुख चर्चेस को तोड़कर, उन्ही स्थानों पर
मस्जिदे बनवाई।
किन्तु,
जिस वर्ष,
कोलंबस अमेरिका पहुंचा था,
उसी वर्ष, अर्थात २ जनवरी १४९२ को,
स्पेनिश शासकों ने
मुस्लिम आक्रांताओं को भगाकर,
स्पेन को पुनः इस्लाम मुक्त किया।
और उन ५०० से ज्यादा
मस्जिदों को तोड़कर,
वहां पुनः चर्चेस बनाएं गए!
यही तो,
इस विश्व का नियम हैं।
हम इस नियम को भूल गए।
इसलिए,
पहले इस्लामी शासकों से
प्रभु श्रीराम के
जन्मभूमि स्थान को मुक्त करने के लिए,
हमने अनेकों बार संघर्ष किए।
लाखों लोगों ने अपने प्राण त्यागे –
मीर बाकी और जलाल शाह से भिड़ने वाले
बाबा श्यामननंद जी,
मंदिर को बचाने के लिए
बाबर की चतुरंग सेना से लड़ते लड़ते
बलिदान देने वाले
भिटी के राजा महताब सिंह और
उनके चौहत्तर हजार वीर सैनिक…
मीर बाकी की सेना से
नब्बे हजार रामभक्तों के साथ लोहा लेकर
वीरगति प्राप्त करने वाले
पंडित देवीदीन पांडे,
हंसवर के राजा रणविजय सिंह,
उनके वीरमरण प्राप्त
चौबीस हजार सैनिक,
बीस हजार नारी शक्ति के साथ
छापामार युध्द करते हुए, मृत्यु को वरण करने वाली
राणा रणविजय सिंह की पत्नी,
जयराजकुमारी…
महेश्वरानंद, बलरामचारी, सरदार गजराज सिंह,
राजा जगदंबा सिंह, कुंवर गोपाल सिंह,
बाबा वैष्णवदास जी और उनकी
चिमटा वाली सेना….
उनकी मदत करने वाले सीख गुरु,
अमेठी के राजा गुरुदत्त, पीपरपुर के राजा राजकुमार,
बाबा रामचरण दास,
राम कोठारी, शरद कोठारी…..
कितने नाम गिनाएं…?
प्रभु श्रीराम के लिए
अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले
इन कारसेवकों के रक्त से,
सरयू नदी पवित्र हुई हैं।
अयोध्या के कण कण मे,
इन बलिदानी राम भक्तों की अनगिनत गाथाएं
लिखी गई हैं….
आज इन सभी पुण्यात्माओं की आत्माएं,
स्वर्ग से, कृतार्थ भाव से,
नीचे अयोध्या को निहार रही हैं…!
इन सब का आशीर्वाद
हमारे देश को मिल रहा हैं!

__ __ __

प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने,
त्रेता युग में
इस भरतवर्ष में फैला हुआ
आतंक का जबरदस्त नेटवर्क,
आतंक के सरगना रावण को मारकर
समाप्त किया था।
वह एक नए युग की शुरुआत थी.
इस युग में स्थापित रामराज्य यह
स्वाभिमान का, समता, समानता का,
समरसता का,
समृध्दी का, निर्भयता का,
न्याय का राज्य था !
आज भी वैसी ही परिस्थिति बन रही हैं.
हमारी कमजोरियों ने
हमे पांच सौ वर्ष,
हमारे ही आराध्य का मंदिर बनाने,
हमे संघर्ष करने विवश किया।
किन्तु अब नहीं…
अब संक्रमण काल समाप्त हुआ हैं।
आत्मग्लानि का कोहरा छट रहा हैं।
परावलंबिता के, हीन भावना के, उपनिवेशिक मानसिकता के,
बादल हट रहे हैं…..
आत्मगौरव का सूरज चमक रहा हैं…
जी, हां !
जन्मभूमि पर पुनर्निर्मित भव्य
श्रीराम मंदिर मे
पहली बार
श्रीराम नवमी उत्सव
संपन्न हो रहा हैं…!
एक नए युग का आरंभ हो रहा हैं…!!
जय श्रीराम

(प्रशांत पोळ ऐतिहासिक विषयों पपरशोधपूर्ण लेख लिखते हैं, उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।)

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मोदी के तीसरे कार्यकाल की आर्थिक चुनौतियाँ

पिछले कुछ समय से तमाम अंतरराष्ट्रीय आर्थिक पंडितों को धता बताते हुए भारत, वैश्विक अपेक्षाओं से भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है। इसी के फलस्वरुप पूरी दुनिया अब भारत को निर्विवाद रूप से सबसे तेजी से प्रगति करने वाली अर्थव्यवस्था मान चुकी है। इसी क्रम में भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के बाद तेजी से चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। परंतु इसी के साथ अपने प्रतिस्पर्धी एवं पड़ोसी देश चीन के साथ अपनी तुलना करने पर हमें कुछ कठोर यथार्थ का भी सामना करना पड़ता है। आज नहीं तो कल वैश्विक मंच पर चीन को पछाड़ने के लिए हमें ऐसे कठोर यथार्थ को स्वीकार करते हुए उन सभी मुद्दों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जहां हम चीन से पीछे रह गए हैं।

एक और जहां चीन का प्रति कैपिटा इनकम 12000 अमेरिकी डॉलर से अधिक है वहीं दूसरी ओर भारत का प्रति कैपिटा इनकम मात्र 2200 अमेरिकी डॉलर है। एक तरफ चीन ने अपने देश से गरीबी का उन्मूलन कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर भारत में गरीबी एक यक्ष प्रश्न है। देश की आजादी के समय भारत की स्थिति चीन से काफी बेहतर थी, परंतु भारत के अर्थव्यवस्था के विकास में हुई कुछ भारी गलतियों के कारण हम चीन से विकास की रफ्तार में बहुत पीछे छूट गए थे जिसे पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में सरकार के अथक प्रयासों के बलपर बदतर होने से रोकते हुए सुधारों की प्रक्रिया प्रारम्भ हो पाई है और दुनिया उसके प्रारंभिक रुझान कुछ समय से देख रही है। परन्तु मोदी-3 के लिए भी आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियाँ कम नहीं हैं। बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में मोदी -3 सरकार को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का लक्ष्य साधने के क्रम में देश की कुछ कठिन चुनौतियों के स्थायी और ठोस समाधान की कर आगे बढ़ना होगा। आज इन्हीं चुनौतियों और समाधानों की चर्चा इस लेख में की जा रही है।

करंट अकाउंट डेफिसिट यानी चालू खाते का घाटा
अंतरराष्ट्रीय बाजार में हर देश अपने आयात एवं निर्यात का एक खाता रखता है। यह वैसा ही है जैसे हमारा बचत खाता सभी निकासी एवं जमा पैसों का अलग अलग हिसाब रखता है। सभी आयात एवं निर्यात संबंधी गणना को बैलेंस आफ पेमेंट के नाम से जाना जाता है। इसमें दो तरह के खाता होते हैं पहले कैपिटल अकाउंट और दूसरा करंट अकाउंट के नाम से जाना जाता है। कैपिटल अकाउंट में वह सभी ट्रांजैक्शन दर्ज होते हैं जिससे किसी दीर्घकालिक एसेट या लायबिलिटी से संबंध रखते हैं। उदाहरण स्वरूप कोई कर्ज लेना एक लायबिलिटी है तो कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एसेट का निर्माण करता है। इसके इतर करंट अकाउंट वह खाता है जहां दर्ज किए गए ट्रांजैक्शन किसी एसेट अथवा लायबिलिटी से संबंध नहीं रखते। यह करंट अकाउंट पुनः दो भागों में विभाजित हो जाता है। पहला ट्रेड अकाउंट जिसमें सभी वस्तुएं जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, पेट्रोलियम, कृषि संबंधित उत्पाद आदि तथा दूसरे इनविजिबल अकाउंट में सेवाएं, लाभांश, दान, उपहार, ब्याज आदि को दर्ज किया जाता है। यदि करंट अकाउंट के इन्हीं ट्रेड एवं इनविजिबल खातों का कुल योग ऋणात्मक होता है तो इसे करंट अकाउंट डेफिसिट बोला जाता है।

यही करंट अकाउंट डेफिसिट भारत की लगभग एक स्थाई समस्या बन चुकी है। आसान शब्दों में भारत लंबे समय से निर्यात कम करता है और आयात अधिक करता है। हम विश्व मंच पर एक आयात प्रधान देश बन कर रह गए हैं। यद्यपि केंद्र की मोदी सरकार इस बात के लिए प्रशंसा की पात्र है कि इस क्षेत्र को गंभीरता से लेते हुए अपने दूरगामी लक्ष्य पर जिस प्रकार से कार्य कर रही है उसी का परिणाम है कि हमारा करंट अकाउंट डिफिसिट कम होने की और अग्रसर है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के हिसाब से भारत का चालू खाता घाटा अप्रैल-सितंबर 2022 के 48.8 बिलियन डॉलर के मुकाबले आधे से अधिक घटकर वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में 17.5 बिलियन डॉलर का हो गया। परंतु इस घाटे से उबर कर सरप्लस अकॉउंट बनने में अभी समय लगेगा।

वित्त वर्ष 2021-22 के आंकड़ों पर ध्यान दें तो भारत का ट्रेड अकाउंट 189.45 बिलियन के घाटे के साथ बंद हुआ जबकि इनविजिबल अकाउंट में 150.7 बिलियन डॉलर का सरप्लस मौजूद था। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि भारत सेवाओं के क्षेत्र में तो मजबूत स्थिति में है परंतु वस्तुओं के निर्यात में स्थिति चिंताजनक है। अब प्रश्न यह जाता है कि आखिर चालू खाता घाटा देश के विकास के लिए इतना खतरनाक क्यों है?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश को व्यापार करने के लिए विदेशी या अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता की मुद्रा की आवश्यकता होती है। यदि चालू खाता सदैव घाटे में रहेगा तो अपना व्यापार बनाए रखने के लिए उसे देश को हर साल अपने फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व का उपयोग करना पड़ेगा और इस तरह से उसे देश का यह रिजर्व बेहद कमजोर हो जाएगा। और अंततः ऐसे देश दिवालिया घोषित हो जाते हैं। भारत के साथ अच्छी बात यह है कि साल दर साल हमारे चालू खाते का घाटा देश के कैपिटल अकाउंट के सरप्लस से बैलेंस हो जाता है और इस तरह से भारत का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व लगातार मजबूत होता रहता है। परंतु कैपिटल अकाउंट को मजबूती विदेशी निवेश तथा कर्ज से मिलती है और इसलिए बहुत हद तक इस पर वैश्विक एवं घरेलू आर्थिक स्थितियों का नियंत्रण होता है। मंदी की चपेट में आते ही किसी देश का कैपिटल अकाउंट सरप्लस खत्म हो सकता है। ऐसी स्थिति में भारत के लिए अत्यंत आवश्यक खनिज तेल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तथा प्राकृतिक गैस के आयात पर संकट उत्पन्न हो सकता है और इन पर संकट का अर्थ है देश में गंभीर स्थितियां पैदा होना। साथ ही कैपिटल अकाउंट का मूल्यवर्धन होने का अर्थ लाभ, ब्याज एवं डिविडेंड के रूप में पैसा बाहर जाना भी होता है। इसलिए कैपिटल अकाउंट के बढ़ने से विदेशी मुद्रा कोष बढ़ रहा है तो यह है तो इसे पूर्णतया स्वस्थ दृष्टिकोण नहीं माना जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने वाला यह उपकरण भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।

करंट अकाउंट डिफिसिट को कम करने के तरीके
भारत का बड़ा ऊर्जा आयातक होना इस घाटे में बड़ा रोल अदा करता है। आज भारत अपने पूर्ण ऊर्जा आवश्यकताओं का 80% विदेश से आयात करता है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की डाटा के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 में खनिज तेलों का आयात 4.59 लाख करोड़ का था। वहीं वित्त वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा 8.99 लाख करोड़ पर पहुंच गया। इस दबाव को कम करने के लिए जरूरी है कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ तेजी से कदम बढ़ाए। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए मोदी सरकार ने साल 2030 तक भारत की समस्त ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय माध्यमों से पूरा करने का लक्ष्य रखा है। मोदी सरकार देश में विद्युत चलित गाड़ियों को बढ़ावा दे रही है, सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा आधारित अवसंरचनाओं पर बड़ा निवेश किया जा रहा है। साथ ही तात्कालिक परिणाम के लिए खनिज तेलों में एथेनॉल मिश्रण को भी सरकार आगे बढ़ा रही है। इसी क्रम में सरकार द्वारा 10% एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को समय से पहले पूर्ण कर लिया गया है। सरकार का लक्ष्य है कि साल 2025 तक 20% एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को पूरा कर लिया जाए।

इसके अलावा स्वर्ण के आयात से भी भारत को आर्थिक हानि होती है परंतु भारतीय समाज के परंपराओं में स्वर्ण के महत्व को देखते हुए भारत सरकार आयात के लिए मजबूर होती है। सरकार द्वारा स्वर्ण के आयात पर निर्भरता खत्म करने के लिए सावरेन गोल्ड बांड जैसी योजनाओं को लाया गया है। खाद्य तेलों का आयात भी हमारे लिए आर्थिक घाटे का कारण है और यह भारत के खराब कृषि नीति एवं बाजार के समन्वय में कुप्रबंधन का एक उदाहरण है। भारत सरसों, कपास, चावल, पाम और सोयाबीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर करने में सक्षम है जिनसे खाद्य तेल बनाए जाते हैं। परंतु न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं सरकारी खरीद का फोकस सदैव चावल एवं गेहूं तक ही सीमित रहता था। केंद्र की मोदी सरकार इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर होने की ओर कदम बढ़ा रही है। इसी क्रम में सरसों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करते हुए उसके सरकारी खरीद का आश्वासन किसानों को दिया गया है।

हमारे आयात को बढ़ाने में इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेंट्स का भी बड़ा योगदान है। इस क्रम में अपनी आत्मनिर्भरता को तेजी से बढ़ते हुए मोदी सरकार ने उत्पादन आधारित इंसेंटिव योजनाएं लाकर घरेलू बाजारों में निर्माण को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रही है। इन्हीं प्रयासों के फल स्वरुप विश्व प्रसिद्ध मोबाइल कंपनी एप्पल, चीन को छोड़कर भारत में अपने निर्माण इकाइयां स्थापित कर रही है। आर्थिक मोर्चे पर रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने डॉलर पर अपनी निर्भरता को खत्म कर सीधे रुपए में ट्रेड को सुगम बनाने के लिए विशेष vastro खातों की व्यवस्था को प्रारंभ किया है।

असमानता, बेरोजगारी, रोज़गार एवम् कौशल गुणवत्ता की समस्या
वैश्विक परिप्रेक्ष्य के बाद अब हम घरेलू अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर दृष्टि डालें तो सबसे बड़ी समस्या असमानता है। ऑक्सफैम इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को अत्यधिक आसमान देशों की लिस्ट में रखा गया है। भारत के शीर्ष 10% लोग, देश के 57 प्रतिशत संपदाओं के मालिक हैं। 50% आबादी के पास मात्र 13 प्रतिशत संपदा है। लेकिन इस असमानता की स्थिति की गहराई में जाएं तो इसके कई मूल कारण दिखाई देंगे जैसे बेरोजगारी, रोजगार की गुणवत्ता में कमी तथा कौशल विकास एवं नवाचारों में कमी।

इन विषयों को गहराई से समझने के लिए हमें भारतीय आर्थिक विकास नीति को गहराई से समझाना पड़ेगा। भारत ने देश के आजाद होने के बाद एक ऐसे मिले-जुले आर्थिक ढांचे को स्वीकार किया जिसमें सरकार अग्रणी की भूमिका में रही एवं निजी क्षेत्र को बेहद सीमित अधिकार दिए गए। सोशलिज्म के सिद्धांतों पर चलते हुए भारत सरकार आर्थिक योजनाओं के निर्माण के लिए उत्तरदाई थी एवं पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से निर्णय लिया जाता था कि देश के मानव संसाधन को किस क्षेत्र में लगाया जाएगा।

देश की आजादी के समय भारत एक कृषि आधारित देश था एवं देश की अधिकतर जनसंख्या खेती-बाड़ी के कामों में लगी रहती थी। तत्कालीन नेहरू सरकार ने विनिर्माण एवं भारी उद्योगों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। इस निर्णय के पीछे पंडित नेहरू का विचार था कि देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए भारी उद्योगों का विकास आवश्यक है। और इस तरह से इस विकास का लाभ ऊपर से नीचे की ओर स्वयं जाएगा। विकास की जी अधोमुखी अवधारणा पर नेहरू जी ने भारत के आर्थिक विकास का स्वप्न देखा उसे वास्तव में सरकार के अधिकारी नियंत्रित कर रहे थे। अंततोगत्वा भ्रष्टाचार एवं लाल फिताशाही के चलते योजना के अनुरूप लाभ कभी अंतिम व्यक्ति तक पहुंच ही नहीं सका। इसी के साथ भारी उद्योग के निर्माण में देश ने इतनी अत्यधिक पूंजी लगाई की शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्र में निवेश के लिए संसाधन बहुत कम बचे।

भारत में कौशल विकास
आजादी के बाद बनी विकास की योजनाओं में इस बात को भुला दिया गया कि एक कृषि आधारित समाज को शिक्षा के द्वारा ही भारी उद्योग आधारित कल कारखानों में नौकरियां मिलेंगी। साथ ही कृषि जिस पर देश की अधिकतर जनता का जीवन निर्भर करता था उसे क्षेत्र को पूरी तरह से इग्नोर कर दिया गया। इसके फल स्वरुप देश के पढ़े लिखे समाज ने उद्योगों में तेजी से नौकरियां तो हथिया लिया परंतु कृषि पर जीवन ज्ञापन करने वाले लोग शिक्षा के अभाव में गरीब के गरीब बने रहे। 1980 90 के दशक में अंत सरकारों को इस भारी गलती का एहसास हुआ और कृषि को अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु बनाने का निर्णय लिया गया। परंतु इस फैसले को क्रियान्वित करने के क्रम में देश लगभग 40 वर्ष पीछे चला गया। साथ ही कृषि पर जीवन यापन करने वाली एक बहुत बड़ी जनता द्वारा सरकार की योजनाओं एवं सुधारो पर से विश्वास भी उठ गया।

भारत में कौशल विकास की स्थिति एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में स्थापित है। मोदी सरकार के लगातार प्रयासों से आज भारत में एक स्टार्टअप इकोसिस्टम खड़ा हुआ है परंतु यदि फिनटेक एवं फार्मास्यूटिकल को छोड़ दिया जाए तो भारतीय नवाचारों के द्वारा कोई ऐसा क्रांतिकारी बदलाव घरेलू मार्केट में नहीं आया है जिससे इंटेल, एप्पल या गूगल जैसी क्रांति खड़ी की जा सके। भारत को नवाचारों की दिशा में अभी बहुत अधिक कार्य करने की जरूरत है। कुल मिलाकर नवाचारों की कमी कौशल विकास की कमी तथा बेरोजगारी एक दूसरे से अंतर संबंधित विषय हैं जिनका स्थाई समाधान शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में बड़े निवेश के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। मोदी सरकार के आगामी कार्यकाल में इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव की अपेक्षा है।

अनुसंधान एवं विकास कार्यों पर खर्च
विश्व बैंक के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अपनी जीडीपी का 0.66% अपने अनुसंधान एवं विकास कार्यों पर खर्च करता है जो विश्व औसत 2.63 प्रतिशत से चिंताजनक रूप से बहुत कम है। इजरायल अपने जीडीपी का 5.5% तथा अमेरिका 3.5% अनुसंधान एवं विकास कार्यों पर खर्च करता है। इन सभी समस्याओं को हल करने का रास्ता औद्योगिक विकास से होकर गुजरता है और इसलिए भारत सरकार चैतन्य होकर इस दिशा में कार्य कर रही है। इसी प्रयासों के क्रम में विश्व के सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों जैसे एप्पल, लोकहिड मार्टिन, सैमसंग, एअरबस आदि भारत में अपने विनिर्माण इकाई बना रहे हैं। इन सभी के द्वारा भारत में अनुसंधान एवं विकास को गति मिलेगी। साथ ही भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम भी अपनी शैशव अवस्था से है जो आगामी 10 वर्षों में एक बड़े क्रांति के रूप में विश्व मंच पर दिखाई देगा। वर्तमान में ड्रोन विनिर्माण तथा अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित स्टार्टअप्स को सरकार द्वारा विशेष रूप से प्रमोट किया जा रहा है। परंतु सकारात्मक क्रांति के लिए भारत को अनुसंधान एवं विकास पर अपने जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य बनाना चाहिए। कौशल विकास के माध्यम से जिन नई तकनीकियों पर युवाओं को कुशल बनाने की आवश्यकता है उसमें अभी भी संयोजन की समस्याएं आ रही हैं जैसे ट्रेनिंग संस्थाओं एवं उद्योगों के बीच समन्वय न होने के कारण युवाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

विश्वीकरण के नकारात्मक पहलू
वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के कई सकारात्मक पहलू हैं जिनसे 1991 के बाद देश की आर्थिक प्रगति के साथ देशवासी रूबरू हुए। परंतु इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं जिनसे हमें समय-समय पर दो-चार होना पड़ता है। ग्लोबलाइजेशन ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा उछाल तो दिया परंतु इसी वैश्वीकरण के कारण विश्व भर की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे से जुड़ गई है तथा दुनिया के दूसरे गोलार्ध में भी कोई नकारात्मक आर्थिक गतिविधि दुनिया के सभी देशों को कमोबेश प्रभावित करता है। वर्तमान में जब विश्व के कई देश मंदी की ओर जाते दिखाई दे रहे हैं तो ऐसे भंगुर वैश्विक आर्थिक स्थितियों में यह स्थिरता भारत की आर्थिक गतिविधि के लिए एक शक्तिशाली संकट बन सकता है। वैश्विक स्तर पर एक लंबे समय के बाद आर्थिक मंदी की वापसी हुई है। भारत जैसे विकासशील देशों में सामान्य से उच्च मुद्रा स्फीति एक सामान्य घटना बनी रहती है जिसके अपने नफे नुकसान भी हैं।

चिंताजनक बात यह है कि आज अमेरिका एवं यूनाइटेड किंगडम सहित यूरोप के सभी बड़े देशों में मुद्रास्फीति की स्थिति भारत जैसे विकासशील देशों से भी विकराल हो गई है। मुद्रास्फीति महंगाई को आमंत्रित करता है जिससे एक सामान्य व्यक्ति सबसे अधिक प्रभावित होता है। विश्व विकसित देशों की मुद्रा स्थिति के कारण भारत के निर्यात में एक गिरावट दर्ज की गई साथ ही आयत में बढ़ोतरी हो गई है जो चिंताजनक है। इसका सीधा सा अर्थ है कि वैश्वीकरण के इस दौर में भारत के “विश्व का कल्याण हो” की प्रार्थना की प्रासंगिकता कितनी महत्वपूर्ण है। कैसे संपूर्ण विश्व वैश्वीकरण के दौर में एक गांव बन गया है जहां सभी एक दूसरे से प्रभावित हो रहे हैं इसलिए सभी को एक दूसरे के कल्याण की बात सोचनी पड़ेगी। इसी विश्व के कल्याण के अंतर्गत रूस एवं यूक्रेन के युद्ध ने पूरे विश्व की आर्थिक मंदी के दौर में कोढ़ में खाज का काम किया है।

अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम ने आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाया है जिसका प्रभाव भारत में आने वाले विदेशी निवेश पर नकारात्मक रूप से पड़ा है। साथ ही इसका दुष्प्रभाव मौद्रिक विनिमय पर भी पड़ता है और रुपया कमजोर होने लगता है। अभी हाल ही में एक्स एवं फेसबुक जैसी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भारत में कर्मचारियों की छटनी किया है साथ ही स्टार्टअप इकोसिस्टम को भी विदेशी निवेश कम प्राप्त हो रहा है।

इन सभी जटिल परिस्थितियों में मोदी सरकार के द्वारा बहुत सूझबूझ से कदम रखते हुए “आपदा में अवसर” तथा “वोकल फॉर लोकल” का नारा दिया गया है। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्थितियां से संगरोध करने के लिए अपने घरेलू बाजारों की ओर मुड़ना होगा। वैश्विक बाजारों से आत्मनिर्भरता को कम करना होगा। निवेश के लिए आम जनता के पैसों को बैंक खातों से निकाल कर स्टॉक मार्केट तक लाना होगा जिससे विदेशी निवेशकों पर निर्भरता को निर्णायक रूप से कम किया जा सके। इसी के साथ भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के स्थान पर नई रणनीतिक व्यवस्थाएं स्थापित करनी होगी। 21वीं शताब्दी को एशिया की शताब्दी कहा गया है तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि इस एशिया की शताब्दी का नेतृत्व भारत के हाथों में रहे। 75 वर्षों के अंतराल में हमने अपने कॉलोनाइजर को पीछे छोड़ विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर एक नज़ीर कायम किया है। अब हमें तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की तैयारी करना है।

(लेखक तकनीकी प्रबंध सलाहकार हैं।)

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मेरी माँ मेरा गाँव : मर्म-स्पर्शी ओड़िशी डाक्यूमेंटरी

मुझे चन्द दिन पहले एक ओड़िशी डाक्यूमेंटरी “मो बोऊ मो गान “देखने का अवसर मिला। यक़ीन मानिए यह इतनी गहरे तक असर करने वाली और उद्वेलित करने वाली थी कि इसने तीन चार रात ठीक से सोने नहीं दिया। इसकी परिकल्पना और निर्माण सुबाश साहू ने किया है और इसका कथाक्रम उनकी माँ और उनके पुश्तैनी गाँव के इर्द गिर्द ही घूमता है।
आप जानना चाहेंगे कि सुबाश साहू कौन हैं? सुबाश साहू फ़िल्म एवं टेलीविज़न संस्थान पुणे के स्नातक रह चुके हैं, फ़िल्म उद्योग में उन्हें साउंड रिकार्डिंग और साउंड डिजाइनिंग के एक महारथी के रूप में जाना जाता है। उन्हें अपनी इस विधा में “कमीने” (2009), “NH10”(2015), “नीरजा” (2016), “तुम्हारी सल्लू” (2017 ) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए मिल चुका है, इसके साथ ही अभी हाल ही में उनकी फ़िल्म “शैतान“ भी रिलीज़ हुई है।

लेकिन इस समय हम सुबाश साहू के एक अलग अभिगोपित से पक्ष के बारे में बात करने जा रहे हैं। उन्हें अपने साउंड डिजाइनिंग के व्यवसाय के साथ ही साथ डॉक्युमेंटरी बनाने का शौक़ भी रहा है। अतीत में उन्होंने सरकार द्वारा कमीशंड कई डॉक्युमेंटरी बनायी हैं। लेकिन उनके अनुसार सरकार के लिए बनाने में रचनात्मकता को वो खुलापन और विस्तार नहीं मिल पाता जिसकी उन्हें तलाश थी। इसलिए उन्होंने अपनी साउंड रिकॉर्डिंग से होने वाली सीमित आमदनी से अपने मिज़ाज की डॉक्युमेंटरी बनाने का निर्णय लिया। इसकी शुरुआत उन्होंने “The Sound Man Mangesh Desai” से की जो फीचर फ़िल्म की लंबाई की थी। निर्माण 2010 में प्रारंभ हुआ और काम 2017 पूरा हुआ, यह फ़िल्म हिन्दी फ़िल्मों के साउंड रिकार्डिंग के पितामह मंगेश देसाई के जीवन के जाने अनजाने पक्षों की बड़े रोचक तरीक़े से पड़ताल करती है।

इस फ़िल्म से सुबाश साहू को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली, यह फ़िल्म MAMI के साथ ही न्यूयार्क, माल्टा,, लॉस एंजलिस जैसे चालीस प्रतिष्ठित फ़िल्म समारोहों में प्रदर्शित हुई और सराही गई। अभी तक यह फ़िल्म भारत में व्यावसायिक रूप से सिनेमा हाल के दर्शन नहीं कर पायी है क्योंकि इसमें प्रयुक्त कई क्लिप के इस्तेमाल की आधिकारिक अनुमति मिलनी बाक़ी है। इसके बाद साहू ने एक सच्चे आख्यान पर क्राइम थ्रिलर “Knock Knock” बनाई जिसकी शूटिंग मंत्री सीरीन बिल्डिंग में की और इसके कलाकार भी इसी बिल्डिंग के है। यह लघु फ़िल्म IFFI, MIFF के प्रतियोगी श्रेणी में दिखाई गई। इसके बाद उनकी ओडिशी डाक्यूमेंट्री “तीन अध्याय- उत्पत्ति, विपत्ति, चक्र” आई यह फ़िल्म भी कई फ़िल्म समारोह में दिखाई गई।

लेकिन यहाँ हम “मेरी माँ मेरा गाँव” पर चर्चा करेंगे। यह फ़िल्म सुबाश साहू ने अपनी माँ और उनके गाँव बलूरिया को फ़ोकस करके बनाई है। ख़ास बात यह है कि इस के फ़िल्मांकन करने में उन्हें पूरे अट्ठारह वर्ष लगे हैं। उनकी माँ सेबा बोऊ अपने गाँव के लिए एक चलती फिरती संस्था थीं, उन्हें वैष्णव आध्यात्मिक परंपरा के साथ ही सदियों से विरासत में मिली परंपरागत कढ़ाई, बुनाई, हस्तशिल्प, रीति रिवाजों का ज्ञान तो था ही इसे वे बड़े कारण से लगातार कई पीढ़ियों की युवतियों को सिखाती रहीं, एक तरह से देखा जाय तो वे अपने गाँव की युवतियों के लिए फ़िनिशिंग स्कूल भी थीं। माँ के बहाने इस डाक्यूमेंट्री में उड़ीसा के आंचलिक जीवन का भी बेहतरीन चित्रण हुआ है, बलूरिया गाँव एक नदी के किनारे पर बसा है यह नदी न सिर्फ़ इस गाँव को शहर से जोड़ती है साथ ही यह बलूरिया गाँव के सामाजिक जीवन का केंद्र बिंदु है, यहाँ गाँव वासी तैराकी, स्नान से लेकर पूजा पाठ, संस्कार, गीत राग सभी कुछ करते हैं। गाँव में होने वाली किसी भी शादी ब्याह के अवसर पर पूरा गाँव एक हो जाता है, लड़की के शादी-साक्षात्कार से लेकर, भारतीयों की आवभगत, दूल्हे की मनुहार, विदाई तक पूरा गाँव एक जुट हो जाता है।

बेहतर काम के अवसरों के लिए गाँव के कई सारे परिवारों के अधिकांश सदस्य शहर में बस गये हैं। ऐसा ही एक परिवार सुबाश साहू का भी है। शहर में बसे परिवार के सदस्य माँ की उम्र को देखते हुए शहर ले जाते हैं, माँ का शरीर बेशक शहर में आ गया है लेकिन आत्मा गाँव में बसी हुई है, नब्बे पार होने पर उसका मन शहर में निस्तेज है, फिर बेटे तय करते हैं कि अगर माँ वापस गाँव जाए तो वह शायद बेहतर हो जाए, सचमुच गाँव पहुँचते ही अपने मूल परिवेश से जुड़ कर अंतिम दिनों में जीवंत हो जाती है। बाद में माँ अपने अंतिम क्षणों में गाँव की आत्मा से एकाकार हो जाती है। माँ की अंतिम विदाई, दाह क्रिया, राख के नदी में विसर्जन के दृश्य बेहद मार्मिक बन पड़े हैं।

अठारह वर्षों के विभिन्न फॉर्मेट के फ़िल्मांकन को एक जगह गूँथना और उसे साठ मिनट की एक चुस्त स्क्रिप्ट का रूप देना बेहद चुनौती पूर्ण काम था जिसे सुबाश साहू के एफटीआईआई के पुराने साथी सुबीर नाथ और उनकी टीम ने चुनौती के रूप में लिया। इस फ़िल्म की दो और विशेषताएँ हैं, पहली बात तो यह कि पिछले दशक में आंचलिक ओडिशा की समृद्ध परंपरा में शहरी प्रभाव की दखल ने वहाँ के सामाजिक ताने बाने को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, मसलन अब गाँव की लड़कियों बड़ों और बुजुर्गों की इच्छा नहीं अपनी मर्ज़ी से वर चुनने लगी हैं जिसके कारण गाँव में कई बार मनमुटाव और दोफाड़ भी हो जाता है, यह तथ्य भी सहज रूप में इस डाक्यूमेंट्री में अभिलिखित हो गया है। दूसरा, ओडिशा के गाँव गाँव घूमते हुए एकतारा वादक ग्रामीण परिवेश, वहाँ के सोच, मान्यताओं को अपनी गायकी में समाहित करते रहे हैं, ऐसे ही एक वादक की खोज फ़िल्म की टीम ने की और उसके एक परंपरागत गान को जो वस्तुतः इस डॉक्युमेंटरी का निचोड़ है उसे टाइटिल सॉंग के रूप में शामिल किया है। यह डॉक्युमेंटरी देखा जाये तो मानवीय मूल्यों की पड़ताल करने के साथ ही उड़ीसा के ग्रामीण अंचल का एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक दस्तावेज भी बन गई है।

(लेखक फिल्म व संगीत समीक्षक हैं)

 

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राष्ट्रप्रथम की भावना के साथ विकसित भारत बनाने की स्पष्ट रूपरेखा है भाजपा का संकल्प पत्र

भारतीय जनता पार्टी ने 2024 लोकसभा चुनावों के लिए 78 पृष्ठों का संकल्प पत्र जारी कर दिया। प्रथम दृष्टया यह संकल्प पत्र विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत और सशक्त भारत की रूपरेखा है। संकल्प पत्र में भाजपा ने अपनी सरकार के पिछले दस वर्षो की महत्वपूर्ण उपलब्धियों की चर्चा करने के साथ ही आगामी पांच वर्षों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी की 24 गारंटियों पर विहंगम दृष्टिकोण प्रस्तुत कर दिया है। संकल्प प्रस्तुत करते समय भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि, ”जो हम कहते हैं वह हम करते हैं।” भाजपा का संकल्प पत्र  गहन शोध तथा संकल्पों पर अमल करने के व्यापक चिंतन तथा जन सामान्य और कार्यकर्ताओं से प्राप्त 15 लाख सुझावों को ध्यान में  रखते हुए विकसित किया गया है।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद भाजपा अपने महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक संकल्पों को एक के बाद एक पूरा कर रही है। अयोध्या में दिव्य भव्य एवं नव्य राम मंदिर का निर्माण और उसमें भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। अयोध्या विश्व के धार्मिक पर्यटन मानचित्र पर तीव्रता के साथ उभर रहा है और  सनातन का वैश्विक उभार हो रहा है। यही नहीं विगत दस वर्षों में सनातन हिंदू आस्था के सभी केंद्रों का तीर्थाटन के दृष्टिकोण से विकास हो रहा है जिसे आगामी कार्यकाल में और तीव्र किये जाने पर बल दिया गया है। जनसंघ के समय से किया गया भाजपा का जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का वादा भी पूरा हो चुका है और वहां विकास की नयी गाथा लिखी जा रही है। महिलाओं के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित हो चुका है। पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में सताए गए अल्पसंख्यक शरणार्थियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन,पारसी व ईसाइओं को नागरिकता प्रदान करके वाला सीएए भी लागू कर दिया है।

संकल्प पत्र में नीतिगत रूप से “विरासत भी और विकास भी” को ध्यान में रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिन चार जातियों युवा, गरीब, किसान और नारी शक्ति की बात करते हैं यह संकल्प पत्र उन्हीं चार जातियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। संकल्प पत्र से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इन चार जातियों के लिए जो योजनाएं चलायी जा रही थीं उन सभी योजनाओं का विस्तार किया जाएगा। बुजुर्गों के प्रति भी यह संकल्प पत्र संवेदनशील है । भाजपा के संकल्प पत्र-2024 में सभी के लिए अवसरों की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाने पर बल दिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में कह रहे हैं कि, “विगत दस वर्षां में हमने जो कार्य किये हैं वह तो मात्र एक ट्रेलर है पूरी पिक्चर तो अभी बाकी है” संकल्प पत्र इसकी बानगी है।

भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में भगवान राम के भव्य दिव्य मंदिर का उल्लेख करने के साथ ही विश्व भर में रामायण उत्सव मनाने तथा भगवान राम की मूर्त और अमूर्त विरासत को बढ़ावा देने वाले विश्व के सभी देशों को सहयोग देने का संकल्प किया है। विश्व भर के लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन अयोध्या आ रहे हैं। अतः भाजपा सत्ता में वापस आने पर अयोध्या के वृहद विकास के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा ने भारतीय पांडुलिपियों व पुरालेखों का डिजिटलीकरण मिशन मोड मे जारी रखने का भी संकल्प लिया है।संकल्प पत्र में वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुविधापूर्ण तीर्थयात्रा का वादा कर समझाने का प्रयास किया गया है कि आस्था का सम्मान किया जाएगा।स्वाभाविक है कि तीर्थस्थलों के विस्तार की बात हो या नागरिकों को तीर्थ सम्बन्धी सुविधा मिलने अथवा तीर्थस्थलों पर रोजगार के नये अवसर मिलने इसका  लाभ जन सामान्य को ही होगा।

भाजपा के संकल्प पत्र -2024 में जिन बातों की गारंटी ली गई है उसमें अगले पांच वर्षो में सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण प्रमुख हैं। पांच वर्षों तक सभी राशन कार्ड धारकों को नि:शुल्क राशन तथा पानी के साथ ही अब पाइप लाइन के सहारे बेहद सस्ती व गुणवत्ता से युक्त रसोई गैस देने का भी संकल्प लिया गया है।संकल्प पत्र मे गारंटी दी गई है कि मध्यम वर्ग परिवारों  के लिए पक्के घर दिए जाएंगे व पीएम आवास योजना का विस्तार किया जाएगा जिसमें दिव्यांगजनों को प्राथमिकता दी जाएगी।

संकल्प पत्र में युवाओं के लिए नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने की बात कही गयी है। 2014 से जब से प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आयी है तभी से खेलों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई गयी हैं जिनका व्यापक प्रभाव राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर एशियाई खेलों, ओलम्पिक तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा मंचों पर दिखाई दिया है, इस दिशा में आगे बढ़ते हुए संकल्प पत्र में कहा गया ह्रै कि अब हम 2036 में ओलम्पिक खेलों की मेजबानी करने की तैयारी कर रहे हैं। युवाओं के लिए इंफ्रास्टक्चर, निवेश, मैन्युफैक्चरिंग, हाई वैल्यू सर्विसेज, स्टार्टअप, पर्यटन और खेलों के माध्यम से रोजगार के लाखों अवसर बढ़ाने पर बल दिया गया है।

तीव्र गति की इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिए के लिए 5 जी और 6 जी तकनीक पर लगातार काम किया जा रहा है। सरकारी योजनाओं के व्यापक पैमाने पर डिजिटलीकरण पर बल दिया गया हैं। नारी सशक्तिकरण के अंतर्गत भी केंद्र सरकार ने विभिन्न कार्य किए हैं जिसके कारण नारी शक्ति कई क्षेत्रो में देश और समाज का नेतृत्व कर रही है।भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में “नारी तू नारायणी” के अंतर्गत 3 करोड़ लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा है। यह लखपति दीदी कृषि क्षेत्र के लिए विशेष उपयोगी साबित होंगी। भाजपा “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” को तय सीमा के अंतर्गत लागू करने के लिए संकल्पबद्ध है। वहीं महिलाओं के सर्वाइकल कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और ऑस्टियोपोरोसिस पर विशेष ध्यान देने की बात  है।

समान नागरिक संहिता-भारतीय जनता पार्टी ने संकल्प पत्र में देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने तथा एक देश एक चुनाव पर आगे बढ़ने के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहराई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए मोदी सरकार कुछ कदम उठा भी चुकी हैं जिसके अंतर्गत चार केंद्रीय मंत्रियों की एक टीम का गठन किया गया है जो  विधि आयोग के साथ विचार विमर्श भी कर चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई अवसरों समान नागरिक संहिता पर अपने विचार स्पष्ट कर चुके हैं। मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता की बहस और लागू करने के संकल्प का लाभ भाजपा को विधानसभा चुनावों में मिल चुका है।अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का संकल्प लिया गया है।

एक देश एक चुनाव व्यवस्था–संकल्प पत्र में “एक देश एक चुनाव” की व्यवस्था पर आगे बढ़ने की बात कही गई है। इस विषय पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष पहुंच गई है। एक देश, एक चुनाव की व्यवस्था लागू करने के लिए ही अबकी बार 400 पार का नारा जोरदार ढंग से दिया जा रहा है। भाजपा के संकल्प पत्र पर पार्टी का कहना है कि यह संकल्प पत्र विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने वाला है। भाजपा का संकल्प पत्र राजनैतिक शुचिता को स्थापित करने वाला है। भाजपा का संकल्प पत्र पंथ, जाति, क्षेत्र किसी भी आधार पर किसी का भी तुष्टिकण नहीं कर रहा है अपितु यह जन जन को संतुष्टि प्रदान करने वाला है।

यह संकल्प पत्र गरीबों की सेवा करने की गारंटी वाला संकल्प पत्र है । विगत दस वर्षों  में गरीब कल्याण के लिए, बुजुर्गो के कल्याण के लिए, दिव्यांगजन के कल्याण के लिए, श्रमिक कल्याण के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये गए जिनका अब विस्तार किया जाएगा।  संकल्प पत्र की सबसे बड़ी गारंटी यह है कि 2024 में तीसरी बार वापस आने के बाद  भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही जारी रहेगी।

संकल्प पत्र में भाजपा ने पीएम सूर्य घर योजना को विस्तार देकर बिजली का बिल शून्य करने की बात कही है और राशन तथा स्वास्थ्य को छोड़कर कहीं भी मुफ्त की रेवड़ी की बात नहीं की है। भाजपा ने संकल्प पत्र में योग और आयुर्वेद का दुनियाभर में व्यापक विस्तार करने के साथ ही भारत से चोरी चली गई भारतीय कलाकृतियां को वापस लाने सहित सभी भारतीय भाषाओं के अध्ययन की व्यवस्था करने का संकल्प लिया गया है। विगत दस वर्षो में भारत सरकार कई मूर्तियों व कलाकृतियां का वापस लाने में सफल भी हो चुकी है। तिरुवल्लुवर केन्द्रों की बात करके भाजपा ने उत्तर दक्षिण विवाद को समाप्त करने का प्रयास किया है।

कुल मिलाकर यह संकल्प पत्र जन जन की आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाला, भारत को विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति बनाने का रोड मैप देने वाला, भारत की सांस्कृतिक परंपरा को आगे बढ़ने वाला और राष्ट्र प्रथम की भावना से ओतप्रोत है।

(लेखक विभिन्न विषयों पर लिखते रहते हैं।)

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जनसाधारण को समर्पित है भाजपा का संकल्प पत्र

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने व्यक्तित्व एवं कृत्तिव से भारतीय राजनीति में अपनी एक ऐसी पहचान स्थापित की है जिसका कोई अन्य उदाहरण दिखाई नहीं दे रहा है। उन्होंने भाजपा को निरंतर दस वर्ष केंद्र की सत्ता में बनाए रखा। भाजपा की प्राय: सभी पुरानी घोषणाओं विशेषकर अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, नागरिक संशोधन अधिनियम, तीन तलाक, लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर आरक्षण देने आदि को पूर्ण करके यह सिद्ध कर दिया है कि भाजपा की कथनी एवं करनी में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के घोषणा पत्र को ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ नाम से जारी किया है। इस संकल्प पत्र की एक विशेष बात यह भी है कि इसमें भाजपा ने जनता से कोई लुभावना वादा नहीं किया है। भाजपा का संपूर्ण ध्यान जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने एवं विकास पर है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं विकास पर विशेष बल दिया गया है। वास्तव में यह संकल्प पत्र युवाओं, महिलाओं, किसानों एवं निर्धन वर्ग पर केंद्रित है।

भाजपा द्वारा इस संकल्प पत्र में जनता को मोदी की गारंटी दी गई है। गरीब परिवारों की सेवा- मोदी की गारंटी, मध्यम-वर्ग परिवारों का विश्वास, नारी शक्ति का सशक्तिकरण, युवाओं को अवसर, वरिष्ठ नागरिकों को वरीयता, किसानों का सम्मान, मत्स्य पालक परिवारजनों की समृद्धि, श्रमिकों का सम्मान, एमएसएमई, छोटे व्यापारियों और विश्वकर्माओं का सशक्तिकरण, सबका साथ सबका विकास, विश्व बंधु भारत, सुरक्षित भारत, समृद्ध भारत, ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा भारत, विश्वस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर, ईज ऑफ लिविंग, विरासत भी विकास भी, सुशासन, स्वस्थ भारत, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, खेल के विकास, सभी क्षेत्रों के समग्र विकास, तकनीक एवं नवाचार तथा पर्यावरण अनुकूल भारत- मोदी की गारंटी सम्मिलित है।

इसमें दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र ने भाजपा की वे पुरानी घोषणाओं को पूर्ण किया, जिन्हें पूर्व की सरकारों ने विवादास्पद बना रखा था। वे सरकारें इन विषयों को स्पर्श भी नहीं कर पा रही थीं। उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनका ‘वोट बैंक’ उनसे छिन जाएगा। शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस पीड़ित वृद्ध महिला का साथ देने की बजाय उसके पति के साथ खड़ी हो गई। यद्यपि उसने अपनी वृद्ध पत्नी पर अत्याचार करते हुए उसे तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था। कट्टरपंथियों के दबाव में कांग्रेस झुक गई। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में विधेयक पास करवाकर शाहबानो जैसी महिलाओं के लिए समस्याएं खड़ी कर थीं। किन्तु यह श्री नरेंद्र मोदी का दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से छुटकारा दिलाने के लिए कानून बनाया। उन्होंने ऐसे अनेक कड़े निर्णय लिए। वे किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि श्री नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत प्रधनामंत्री ही देश को आगे लेकर जा सकता है।

अभी देश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने का प्रकरण लंबित है। इस संकल्प पत्र के सुशासन की मोदी की गारंटी के द्वितीय बिंदु में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के रूप में दर्ज की गई है। भाजपा का मानना है कि जब तक भारत में समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिल सकता। भाजपा सर्वश्रेष्ठ परंपराओं से प्रेरित समान नागरिक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें उन परंपराओं को आधुनिक समय की जरूरतों के मुताबिक ढाला जाए।

इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि यदि भाजपा को तृतीय बार केंद्र में सत्ता में आने का अवसर मिल जाता है तो वह अपने इन वादों को भी पूर्ण करेगी। भाजपा ने कहा है कि हमारा सुशासन का मूल मंत्र है। हमने पिछले दशक में अपनी नीतियों, तकनीकी के उपयोग और सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से देश में सुशासन के नए आयाम कायम किए हैं। हम नागरिक और सरकार के बीच संबंध को निरंतर बेहतर बनाने के लिए संस्थागत सुधार करते रहेंगे और तकनीकी के सही उपयोग से सभी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। इस संकल्प पत्र में मोदी के दस वर्ष के शासनकाल में हुए कार्यों का आंकड़ों के साथ उल्लेख किया गया है। यद्यपि कोई भी सरकार अपनी पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल की उपलब्धियों का उल्लेख करती है, परंतु भाजपा ने दस वर्षों के कार्यों का उल्लेख किया है। भाजपा अपने चुनाव प्रचार में दस वर्ष की उपलब्धियों के आधार पर ही जनता से समर्थन मांग रही है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पिछले दस साल में हमने समय के हर पल को जनकल्याण के लिए समर्पित करने का प्रयास किया है। पिछले एक दशक में देश आमूलचूल बदलावों का साक्षी बना है। एक तरफ देश तेजी से प्रगति के पथ पर बढ़ा है तो वहीं देशवासियों के मन में भी एक सकारात्मक बदलाव हुआ है। बड़े लक्ष्य तय करके उसे हासिल करने की धारणा मजबूत हुई है। उन्होंने दावा किया कि पिछले दस साल में हम ‘फ्रेजाइल-5’ अर्थव्यवस्था से ‘टॉप-5 अर्थव्यवस्था’ बन चुके हैं। देश के अर्थतंत्र में हुए इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ उन देशवासियों को मिला है, जो वाकई जरूरतमंद हैं। इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ समाज के गरीब, वंचित और मध्यम वर्ग को मिला है। सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास केवल हमारा नारा ही नहीं, बल्कि हमारी प्रतिबद्धता है।

उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। दशकों से बुनियादी जरूरतों की पूर्ति से वंचित रहे इन 25 करोड़ लोगों का जीवन स्तर बहुत बेहतर हुआ है। यह गरीबों के खिलाफ हमारी लड़ाई की जीत है। आज ऐसे लोगों तक न सिर्फ आवास, गैस कनेक्शन, शौचालय की सुविधाएं पहुंच रही हैं, बल्कि उससे कहीं आगे नए दौर के ऑप्टिक फाइबर कनेक्शन, डिजिटल समाधान और ड्रोन तकनीक इत्यादि भी इनके अपने हाथों में है।

देश में पिछले 10 साल में हुए सामाजिक-आर्थिक बदलावों का लाभ हमारी महिला, किसान, मछुआरा समाज, रेहड़ी-पटरी वेंडर्स, छोटे कारोबारियों तथा एससी, एसटी और ओबीसी को मिला है। तकनीक के माध्यम से ये वर्ग लाभान्वित भी हो रहे हैं और सशक्त भी। जनधन-आधार-मोबाईल ट्रिनिटी के कारण इनका लाभांश सीधे इन्हें बिना किसी बिचौलिए के मिलना संभव हुआ है। उन्होंने युवाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि देश के विकास में हमारी युवाशक्ति की भूमिका बहुत बड़ी है। भारत के युवा ने न सिर्फ बड़े सपने देखने की हिम्मत की है, बल्कि अन्तरिक्ष, खेल और स्टार्ट-अप जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बड़े सपने साकार करने के लिए भी उत्कृष्ट कार्य किया है। पिछले दस वर्षों में चाहे शिक्षा हो, रोजगार हो या उद्यमिता हो, हमारे युवाओं के लिए करोड़ों नए अवसर पैदा हुए हैं।

वर्ष 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी थी, उसी समय भाजपा ने 2047 को अपना लक्ष्य बना लिया था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 2014 में हमें आपका आशीर्वाद और मिला समर्थन मिला तो हम इन बड़े बदलावों को कर पाए। 2019 में पहली बार से बड़ा जनादेश मिला तो विकास की गति और तेजी से आगे बढ़ी। बड़े-बड़े निर्णय लिए गये। आपका आशीर्वाद लेकर अगले पांच साल हम 24 घंटे 2047 के लिए संघर्ष करेंगे, ये मोदी की गारंटी है। वास्तव में भाजपा का यह संकल्प पत्र जन साधारण से जुड़ा हुआ है. इसलिए इसमें कही गई बातें लोगों को प्रभावित अवश्य करेंगी।

(लेखक- लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

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जैन धर्म की संस्कृति पर आधारित ‘द लिगेसी ऑफ जिनेश्वर’ 19 अप्रैल को प्रदर्शित होगी

‘द लिगेसी ऑफ जिनेश्वर’ (The Legacy of Jineshwar) का बहुप्रतीक्षित ट्रेलर लॉन्च हो गया है। यह कार्यक्रम सिनेपोलिस मुंबई में निर्माता अभिषेक मालू, प्रोजेक्ट हेड विवेक कुलश्रेष्ठ, अभिनेता सुरेंद्र पाल और कई अन्य लोगों की उपस्थिति में हुआ। इस दौरान दावा किया गया कि यह फिल्म जैन धर्म की संस्कृति और अनछुए पहलुओं को सबके सामने मजबूती से रखेगी। 19 अप्रैल 2024 को महावीर जयंती पर यह फिल्म रिलीज होगी।

इस बारे में जारी विज्ञप्ति के अनुसार, कई बाधाओं को पार करने के बाद आखिरकार फिल्म का ट्रेलर लॉन्च हो गया। अब यह फिल्म सिल्वर स्क्रीन पर धूम मचाने के लिए तैयार है। वर्तमान खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर के आशीर्वाद से और खरतरगाचा सहस्त्राब्दी महोत्सव समिति के सहयोग से निर्माता अभिषेक मालू ने दर्शकों से अच्छे सिनेमा के अनुभव का वादा किया है।

विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि ‘द लिगेसी ऑफ जिनेश्वर’ जैन परंपरा की अनकही कहानी को उजागर करने का वादा करती है, जो भगवान महावीर की महत्वपूर्ण शिक्षाओं और तीर्थंकर की आध्यात्मिक विरासत पर प्रकाश डालती है। दर्शक राजा ऋषभ देव से भगवान महावीर तक की यात्रा के साथ-साथ खतरगच्छ (जैन धर्म में एक संप्रदाय) की स्थापना को एक दिलचस्प कथा प्रारूप में प्रस्तुत करते हुए देखेंगे।

परियोजना निदेशक विवेक सुधींद्र कुलश्रेष्ठ के दूरदर्शी मार्गदर्शन और निर्देशक प्रदीप पी. जाधव और विवेक अय्यर द्वारा निर्देशित यह फिल्म जैन धर्म के सार को प्रामाणिकता और श्रद्धा के साथ जीवंत करती है। प्रसिद्ध लेखक और गीतकार प्रशांत बेबर ने संगीतकार विवियन रिचर्ड और विपिन पटवा के साथ, फिल्म को भावपूर्ण संगीत दिया है, जो न केवल मनोरंजन करता है बल्कि प्रेरित भी करता है।

पद्मश्री कैलाश खेर, जावेद अली और दिव्य कुमार द्वारा मधुर रचनाओं को अपनी आवाज देने से दर्शक फिल्म के शक्तिशाली साउंडट्रैक से मंत्रमुग्ध होने की उम्मीद कर सकते हैं।

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