Thursday, March 28, 2024
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उजमा इस्लाम छोड़कर हिंदू बनी, मीरा बनकर दलित युवक संग रचाया विवाह

दिल्ली में मार्च को एक मुस्लिम लड़की ने सनातन वैदिक धर्म में वापसी की । उजमा, जो अब मीरा नाम से जानी जाएगी। मंगलवार (26 मार्च 2024) को विधि-विधान से आर्य समाज में अनिल नाम के युवक से विवाह भी किया। अनिल दलित समुदाय से आते हैं। इस कार्य में हिन्दू मोर्चा ने सहयोग किया और नव विवाहित दम्पति को सम्मान और सुरक्षा देने का भी संकल्प लिया।

उजमा के अब्बा का नाम अहमद खान है। वहीं, उनके पति अनिल दिल्ली के टैगोर गार्डन इलाके के निवासी हैं। उजमा ने स्वयं को व्यस्क बताया और कहा कि सनातन वैदिक धर्म में वापसी और अनिल से विवाह का निर्णय उनका अपना है और इसके लिए किसी ने जोर जबरदस्ती नहीं की। अनिल ने भी व्यस्क होने का प्रमाण पत्र दिया।

दोनों के विवाह के दौरान वैदिक मंत्रोच्चार हुआ। विधि-विधान से उजमा ने मीरा बनकर हवन किया। दम्पति ने अग्नि के 7 फेरे लिए और हमेशा एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहने का संकल्प लिया। इस अवसर पर हिन्दू मोर्चा के पदाधिकारियों के अतिरिक्त अनिल वाल्मीकि के परिजन भी उपस्थित थे। उन्होंने वर-वधू को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं।

( वर्तमान में शुद्धि ही आपकी आने वाली पुश्तों की रक्षा करने में सक्षम हैं। याद रखें आपके धार्मिक अधिकार तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक आप बहुसंख्यक हैं। इसलिए अपने भविष्य की रक्षा के लिए शुद्धि कार्य को तन, मन, धन से सहयोग कीजिए। )

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स्वाति मोहन: मंगल पर जीत!

भारतीय अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर स्वाति मोहन ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित अपनी भारत यात्रा के दौरान मंगल ग्रह पर जीवन और पर्जिरविरेंस रोवर के बारे में अपने अनुभवों को साझा किया।

अंतरिक्ष खोज के क्षेत्र में अमेरिका-भारत संबंधों की जड़ें राणनीतिक साझेदारी और राजनयिक पहलों से कहीं आगे और ज्यादा गहरी हैं। दोनों देशों के मानवीय संबंध बहुत मजबूत हैं जिसका उदाहरण, अमेरिकी भारतीयों की संख्या है जिन्होंने नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) में कॅरियर बनाने का विकल्प चुना है।

भारतीय-अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर स्वाति मोहन के साथ बातचीत करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा, ‘‘भारतीय मूल के अमेरिकी, देश में छा रहे हैं।’’ स्वाति मोहन की टीम ने 2021 में मंगल ग्रह पर पर्जिरविरेंस रोवर को सफलतापूर्वक उतारा था। स्वाति मोहन ने 2024 की शुरुआत में अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित स्टेम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और अंतरिक्ष खोज से संबंधित कार्यक्रमों की एक शृंखला के सिलसिले में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और पुदुच्चेरी का दौरा किया।

उन्होंने पर्जिरविरेंस रोवर गाइडेंस, नेविगेशन और नियंत्रण गतिविधियों का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोहन बताती हैं, ‘‘इस मिशन का मकसद मंगल ग्रह पर पूर्व जीवन के निशानों की तलाश करना है। हमारी टीम का काम मिशन की ‘‘आंखों और कानों’’ को डिजाइन करना था। हमने यह सुनिश्चित किया कि पर्जिरविरेंस यह पता लगा सके कि वह कहां है, उसे कहां जाना है और वहां उसे पहुंचना कैसे है?’’

मोहन का कहना है कि इस परियोजना में लगभग सात महीने लगे और रोवर 48 करोड़ किलोमीटर की यात्रा करने के बाद 18 फरवरी 2021 को सफलतापूर्वक अपने गंतव्य पर उतर गया। उन्होंने बताया, ‘‘लैंडिंग के बाद से पर्जिरविरेंस ने जेजेरो क्रेटर के चारों ओर चक्कर लगाकर नमूने एकत्र किए हैं जो इस सवाल का जवाब तैयार करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं कि क्या मंगल ग्रह पर कभी जीवन हुआ करता था।’’

नासा और ईएसए (यूरोपियन स्पेस एजेंसी) अब इसके विस्तृत अध्ययन के लिए मंगल ग्रह की सामग्री के पहले नमूनों को पृथ्वी पर लाने की योजना बना रहे हैं। मार्स पर्जिरविरेंस रोवर इस अंतरराष्ट्रीय अंतरग्रहीय रिले टीम का पहला चरण था।

पर्जिरविरेंस प्रोजेक्ट के प्रवेश, अवरोहण और लैंडिंग मिशन कमेंटेटर के रूप में मोहन ने तकनीकी जानकारी को रियल टाइम में आम व्यक्ति की भाषा में अनुवाद भी किया। वह बताती हैं, ‘‘सफल लैंडिग को लेकर हर कदम पर मेरा पूरा ध्यान केंद्रित था और मैं बाकी टीम जो कुछ भी कह रही थी, उनके शब्दों को भी ध्यान से सुन रही थी। यह सब हमारी लैंडिंग के बाद ही हुआ, जब हमें मंगल ग्रह के सतह की पहली तस्वीर प्राप्त हुई। इसने इस बात की तस्दीक कर दी कि हमारा काम पूरा हो गया है। हम मंगल ग्रह पर सफलतापूर्व उतर चुके थे!’’

उनके लिए सबसे बड़ा उपहार, इस मिशन को मिली सफलता थी। वह बताती हैं, ‘‘ऑपरेशन लीड होने का सबसे रोमांचक हिस्सा मिशन कंट्रोल में काम करना और स्पेसक्रा़फ्ट को अंतरिक्ष में काम करते देखना था। मैंने अंतरिक्ष यान की योजना, डिज़ाइनिंग और उसके निर्माण में कई साल बिताए। इसे अंतरिक्ष में अपनी उम्मीद के मुताबिक काम करते देखना बहुत ज्यादा संतुष्टिकारक था।’’

मोहन का कहना है कि अंतरिक्ष में उनकी दिलचस्पी तब पैदा हुई जब उन्होंने टेलीविजन शो ‘‘स्टार ट्रैक : द नेक्स्ट जनरेशन का एक एपिसोड देखा।

इस मशहूर अमेरिकी साइंस फिक्शन शो से रूबरू होने से लेकर पर्जिरविरेंस रोवर प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने तक की उनकी यात्रा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कॅरियर बनाने की योजना बना रही युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है। बचपन में ही मोहन ने ग्रहों, तारों के बनने और बिग बैंग सिद्धांत के बारे में विस्तार से पढ़ा। 11वीं कक्षा में वह स्पेस कैंप में दूसरे अंतरिक्ष उत्साही लोगों से मिलीं और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अवसरों के बारे में जानकारी हासिल की और तभी से उन्होंने नासा में कॅरियर के बारे में सोचना शुरू कर दिया। वह कहती हैं, ‘‘मैंने विभिन्न इंटर्नशिप के माध्यम से नासा के विभिन्न क्षेत्रों का पता लगाया लेकिन अंत में जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) के इंटरप्लेनेटरी एक्सप्लोरेशन सेक्शन के साथ मुझे सहजता महसूस हुई। जेपीएल ने अंतरिक्ष के प्रति मेरी दिलचस्पी को उस अन्वेषण पहलू के साथ जोड़ दिया जिसकी ओर मैं पहली बार तब आकर्षित हुई थी जब मैंने एक बच्ची के रूप में ‘‘स्टार ट्रैक’’ देखा था। जेपीएल में शामिल होने के बाद से, मुझे चंद्रमा, मंगल, शनि और छोटे ग्रहों की खोज करने वाले मिशनों पर काम करने का सौभाग्य मिला।’’

मोहन के अनुसार, पर्जिरविरेंस रोवर ने मंगल ग्रह पर भविष्य की संभावनाओं को प्रदर्शित किया है। ‘‘इसके दो विशिष्ट उदाहरण मोक्सी और इंजेन्युटी है।’’ वह कहती हैं, ‘‘मोक्सी एक उपकरण है जो मंगल ग्रह के वातावरण से ऑक्सीजन बनाता है। यह मंगल ग्रह पर मानव मिशन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। इंजेन्युटी एक हेलीकॉप्टर है जो पृथ्वी से बाहर उड़ान भरने वाला पहला हेलीकॉप्टर है। मंगल ग्रह पर हेलीकॉप्टर के प्रदर्शन ने ग्रहों की खोज का एक बिल्कुल नया तरीका सामने रखा है जो वैज्ञानिक मिशनों के एक पूरे नए समूह को सक्षम कर सकता है।’’

मोहन मार्स सैंपल रिटर्न प्रोग्राम पर भी काम कर रही हैं जो मंगल ग्रह की सतह से नमूनों को पृथ्वी पर लाने का एक प्रस्तावित मिशन है। वह बताती हैं, ‘‘पर्जिरविरेंस मंगल ग्रह से नमूना रिटर्न रिले का पहला चरण है, अब हम अगले चरण की योजना बना रहे हैं। अगला कदम मंगल की सतह से नमूने लॉच करने में सक्षम रॉकेट को वहां लैंड कराने का है। मैं मार्स लांच सिस्टम पर भी काम कर रही हूं जो उम्मीद है कि किसी अन्य ग्रह की सतह से लॉंच होने वाला पहला रॉकेट होगा जो अपने साथ पर्जिरविरेंस द्वारा एकत्र किए गए नमूने लेकर जाएगा।’’॒

उनकी तरह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कॅरियर बनाने के इच्छुक लोगों को उनकी सलाह है कि वे अपना आत्मविश्वास बनाए रखें, अपनी सोच को लेकर मुखर बनें, लोगों को बताएं कि आप क्या चाहते हैं और यह भी साबित करें कि आप उसे हासिल करने में सक्षम हैं। वह कहती हैं, ‘‘सबसे बड़ी बात है कि लगातार प्रयास करते रहें। ऐसे कई रास्ते हैं जो एक ही लक्ष्य तक ले जा सकते हैं। जब तक हम चलते रहेंगे, हमारी वहां पहुंचने की संभावना बनी रहेगी और हम वहां पहुंच सकते हैं।’’

(चित्र परिचयः पर्जिरविरेंस रोवर गाइडेंस, नेविगेशन और नियंत्रण गतिविधियों का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालीं स्वाति मोहन पासाडेना, कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रपल्सन लेब्रोरेटरी में। (फोटोग्राफः बिल इंगाल्स/नासा)

साभार- https://spanmag.com/hi/ से

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जल प्रबंधन में महिलाएं: अनदेखी धाराएं और हाथ से निकले मौक़े!

आज जब भारत टिकाऊ विकास की जटिलताओं से जूझ रहा है, ऐसे में अधिक समतावादी भविष्य के निर्माण के लिए पानी के क्षेत्र में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण धुरी के तौर पर उभरा है।

पानी, बाल्टी में टपकी एक बूंद भर नहीं है। ये लगातार टपकता रहता है। दुनिया भर के लोग पीने, नहाने धोने, खेती और बिजली बनाने के लिए पानी के भरोसे रहते हैं। हालांकि, पानी के संसाधनों का रख-रखाव एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है। अक्सर इससे निपटने के लिए आपसी तालमेल वाली कोशिशों और नए नए समाधानों की ज़रूरत होती है। विश्व जल दिवस 2024 पर यूनेस्को के वर्ल्ड वॉटर एसेसमेंट प्रोग्राम ने वर्ल्ड वॉटर डेवेलपमेंट रिपोर्ट जारी की। इसका शीर्षक, ‘शांति और समृद्धि के लिए पानी का लाभ उठाना’ है। ये रिपोर्ट इस साल के जल दिवस की थीम ‘शांति के लिए जल’ के अनुरूप ही है। पिछले वर्षों की तरह इस साल भी यूनेस्को की इस रिपोर्ट के ज़रिए यूएन-वॉटर ने ऐसे ख़ास सुझावों और सबसे अच्छे व्यवहारों को बताया है, जो पूरी दुनिया में देशों, संगठनों, समुदायों और व्यक्तिगत स्तर पर द्वारा पानी को संघर्ष का स्रोत बनाने के बजाय स्थिरता लाने वाली शक्ति के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकें।

पानी की क़िल्लत या फिर अच्छे जल संसाधनों के असमान वितरण ने कई तरह के संघर्षों को जन्म दिया है। इनमें जल के साझा संसाधनों को लेकर दो देशों के बीच सीमा के आर-पार के संघर्षों से लेकर क्षेत्रीय या फिर समुदाय के स्तर पर ग़लत आवंटन या तालमेल के अभाव को लेकर टकराव शामिल हैं। हालांकि, पानी के प्रशासन से जुड़े सभी स्तरों के प्रमुख भागीदार अक्सर एकजुट होकर इन संघर्षों के समाधान के लिए काम करते रहे हैं। इनसे सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध कराने, आसानी से साफ़-सफ़ाई करने, खाद्य और पोषण की सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में लचीलापन, आपदा के जोखिम में कमी और ऐसे ही कई अन्य लाभ मिले हैं। लेकिन, इस पहेली का एक पहलू ऐसा भी है, जिसे हमेशा ही अनदेखा कर दिया जाता है: ‘शांति के लिए जल’ के इस्तेमाल में महिलाओं का योगदान। जब बात पानी की आती है, तो महिलाएं हमेशा ही गुमनाम नायिकाएं साबित होती आई हैं। वो दिन का अच्छा ख़ासा वक़्त स्थायी विकास के लक्ष्य 6 (SDG 6) यानी 2030 तक सबको पानी और साफ़-सफ़ाई की सुविधा देने के मामले में प्रगति की रफ़्तार तेज़ करने में लगाती रही हैं।

हालांकि उन्हें अपनी इस अपरिहार्य भूमिका निभाने के एवज़ में भारी क़ीमत भी चुकानी पड़ती है, जिसे जानकार ‘वक़्त की ग़रीबी’ कहते हैं। इसका मतलब ऐसा चलन है, जिसकी वजह से महिलाओं को अपने निजी विकास, मनोरंजन या फिर आर्थिक गतिविधियों के लिए या तो बहुत कम या फिर ज़रा भी वक़्त नहीं मिल पाता है। इस लेख में हम जल प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी के उनके आमदनी बढ़ाने पर पड़ने वाले प्रभाव की गहराई से पड़ताल कर रहे हैं, और इस तरह जल प्रबंधन के लिए ऐसे विकल्पों को बढ़ावा देने के आर्थिक तर्क पेश कर रहे हैं, जिससे इनका इकतरफ़ा बोझ महिलाओं पर ही न पड़े।
जल प्रबंधन की परिचर्चाओं के बीच अक्सर महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान की अनदेखी कर दी जाती है।

ऐतिहासिक रूप से महिलाओं ने अपने परिवार और समुदायों के लिए जल संसाधनों की उपलब्धता और उनके स्थायित्व को सुनिश्चित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। पानी जुटाने से लेकर सिंचाई व्यवस्था के प्रबंधन तक महिलाएं, पानी से जुड़ी गतिविधियों के अग्रिम मोर्चे पर खड़ी होती रही हैं और वो अपने ज्ञान, कौशल और जन्मजात ख़ूबी का इस्तेमाल अपने परिवारों और समुदायों की पानी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए करती रही हैं। दुनिया के 61 देशों से जुटाए गए आंकड़े बताते हैं कि पानी की क़िल्लत या अभाव वाले 80 प्रतिशत घरों में, परिवार के स्तर पर पानी के प्रबंधन का मुख्य ज़िम्मा ज़्यादातर महिलाएं और लड़कियां उठाती हैं। इन हालात में साफ़ पानी तक पर्याप्त पहुंच के न होने से महिलाओं पर वक़्त की मार पड़ती है। इससे वो शैक्षणिक अवसरों में भाग लेने की क्षमता गंवा देती हैं, जिससे वो आमदनी बढ़ाने की गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाती हैं।

जल प्रबंधन से जुड़ी मेहनत में ये लैंगिक बंटवारा अक्सर मौजूदा असमानताओं को और बढ़ा देता है, जिससे संसाधनों तक पहुंच, निर्णय लेने की प्रक्रिया और आर्थिक अवसरों को भुनाने के मामलों में भेदभाव होता है। पानी के रख-रखाव की वजह से वक़्त की जो ग़रीबी पैदा होती है, वो कुछ महिलाओं पर पड़ने वाले ‘दोहरे बोझ’ को भी रेखांकित करती है, क्योंकि उन्हें एक साथ कई ज़िम्मेदारियां निभाने के बीच तालमेल बिठाना पड़ता है। इनमें पानी लाने, घर के दूसरे काम करने, बच्चों की देखभाल और घर की आमदनी बढ़ाने वाली गतिविधियां शामिल हैं। समय की ये कमी न केवल महिलाओं की आर्थिक गतिविधियों में भागीदारी को सीमित करती है, बल्कि ग़रीबी और कमज़ोर तबक़े का हिस्सा बने रहने के दुष्चक्र को भी जारी रखती है।

पानी के रख-रखाव की वजह से वक़्त की जो ग़रीबी पैदा होती है, वो कुछ महिलाओं पर पड़ने वाले ‘दोहरे बोझ’ को भी रेखांकित करती है, क्योंकि उन्हें एक साथ कई ज़िम्मेदारियां निभाने के बीच तालमेल बिठाना पड़ता है।

2019 के वक़्त के इस्तेमाल से जुड़े सर्वे के मुताबिक़, पानी के प्रबंधन से जुड़े बिना भुगतान वाले घरेलू सेवाओं में गुज़ारे गए वक़्त के मामले में भारत एक स्पष्ट मिसाल बनकर सामने आया था। इससे संकेत मिलता है कि महिलाएं अपने कामकाज के रोज़ाना के घंटों का काफ़ी बड़ा हिस्सा इन्हीं कामों में ख़र्च करती हैं, और औसतन उन्हें दिन में पांच घंटे ऐसे कामों में बिताने पड़ते हैं, जबकि उनकी तुलना में पुरुषों को केवल डेढ़ घंटे का वक़्त घर के कामों में ख़र्च करना पड़ता है। सच तो ये है कि ग्रामीण और शहरी भारत के जिन घरों के भीतर पानी का स्रोत नहीं है, उनमें से 80 प्रतिशत से ज़्यादा घरों की महिला सदस्य पानी की व्यवस्था करने संबंधी घरेलू गतिविधियों में लगाती हैं, और इसके बदले में उन्हें पैसे भी नहीं मिलते। इसकी तुलना में इन घरों में केवल 20 फ़ीसद मर्द ही इन घरेलू ज़रूरतों में अपना वक़्त ख़र्च करते हैं।

‘वक़्त की ग़रीबी’ की ये लैंगिक असमानता के आर्थिक दुष्परिणामों को रेखांकित करते हुए हाल ही में किया गया एक अध्ययन संकेत करता है कि भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पानी के प्रबंधन से जुड़े बिना मेहनताने वाले कामों में महिलाओं के लग जाने से उनके श्रमिक वर्ग की भागीदारी में 17 प्रतिशत तक की गिरावट आती है। इसलिए, रोज़गार की दर में लैंगिक समानता और पुरुषों की तुलना में महिलाओं के कामगार तबक़े में भागीदारी की निचली दर के बावजूद स्त्रियों की आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, ये ज़रूरी हो जाता है कि श्रम के बाज़ारों में महिलाओं के दाख़िले को प्रोत्साहन देने के लिए पुरुषों की तुलना में ज़्यादा मजदूरी दी जानी चाहिए। हालांकि, ज़मीनी हक़ीक़त इससे बिल्कुल उलट है।

जल प्रबंधन में लैंगिक भूमिकाओं और महिलाओं की आर्थिक भागीदारी की आपस में जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक नज़रिए की ज़रूरत है, जिसमें पानी के क्षेत्र में महिलाओं के बिना मेहनताने वाले योगदान के बहुआयामी असर को स्वीकार करके इसके प्रभाव को कम करने का प्रयास किया जाए। पानी के प्रशासन और प्रबंधन में महिलाओं को सशक्त बनाना सामाजिक न्याय का भी एक काम है और ये पानी की परियोजनाओं की कुशलता बढ़ाने और परिवारों की अतिरिक्त आमदनी में इज़ाफ़ा करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की एक सामरिक ज़रूरत भी है। भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आकलन ये बताते हैं कि अगर पानी के क्षेत्र में महिलाओं की वक़्त की ग़रीबी में 10 से 50 प्रतिशत तक की भी कमी की जाए, तो इससे आमदनी की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी होगी और काफ़ी आर्थिक लाभ भी हो सकते हैं। (नीचे Figure 1 देखें)

इन संभावित आर्थिक फ़ायदों को हासिल करने के लिए नीति निर्माताओं, सामुदायिक नेताओं और पानी के सेक्टर के तमाम भागीदारों के द्वारा सघन प्रायास करने की ज़रूरत होगी, ताकि महिलाओं को सशक्त बनाने वाली रणनीतियां लागू हो सकें, उनकी वक़्त की ग़रीबी कम हो सके और इस तरह अर्थव्यवस्था में उनकी मज़बूत भागीदारी को बढ़ावा मिल सके। ज़िम्मेदारियों का फिर से वितरण करने वाली रणनीतियां अपनाकर और पानी के अच्छे संसाधनों तक सबकी पहुंच को बढ़ावा देकर हम महिलाओं पर पड़ने वाले भारी बोझ को कम कर सकते हैं और पानी के रख-रखाव के अधिक टिकाऊ और समावेशी तरीक़ों को बढ़ावा दे सकते हैं।

पानी के प्रबंधन से जुड़े मामलों में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना ज़रूरी है, तभी उनकी आवाज़ और नज़रियों को सुना जाएगा और फिर उन्हें नीतियों और कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया जा सकेगा। एक अहम रणनीति तो ऐसे मूलभूत ढांचे और तकनीकों में निवेश की हो सकती है, जो पानी से जुड़े कामों और विशेष रूप से पानी इकट्ठा करने और उसके भंडारण में लगने वाली मेहनत और वक़्त को कम कर सकें।

यही नहीं, पानी के प्रबंधन से जुड़े मामलों में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना ज़रूरी है, तभी उनकी आवाज़ और नज़रियों को सुना जाएगा और फिर उन्हें नीतियों और कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया जा सकेगा। पानी के टिकाऊ प्रबंधन वाले तौर-तरीक़ों के मामले में महिलाओं के ज्ञान और उनके हुनर को बढ़ावा देने वाली पहलों के क्षमता निर्माण से भी महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है, ताकि वो वक़्त की कोई भारी क़ीमत चुकाए बग़ैर जल प्रबंधन में अपनी सक्रिय भूमिकाएं निभाना जारी रख सकें।

जल प्रबंधन में लैंगिक समानता लाने वाले इन वैकल्पिक तरीक़ों को अपनाकर हम अधिक समतावादी और टिकाऊ जल व्यवस्थाएं बना सकते हैं, जो महिलाओं, पुरुषों और समुदायों के लिए लाभप्रद हों। आज जब भारत टिकाऊ विकास की जटिलताओं से जूझ रहा है, तो अधिक समतावादी और समृद्ध भविष्य के निर्माण के लिए पानी के मामले में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना एक प्रमुख तत्व के रूप में उभरता है।
साभार -https://www.orfonline.org/hindi/ से

 

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बचपन बचाओ आंदोलन ने बर्बरता की शिकार नाबालिग घरेलू सहायिका को मुक्त कराया

एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन जिसे बचपन बचाओ आंदोलन के नाम से जाना जाता है, ने होली के दिन बर्बरता की शिकार एक नाबालिग घरेलू सहायिका को मुक्त कराया। बच्ची की शिकायत पर नियोक्ता के खिलाफ गाजियाबाद के इंदिरापुरम थाने में मामला दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जा रही है। मामला दर्ज करने के बाद पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की रहने वाली इस बच्ची को चिकित्सा जांच के लिए ले जाया गया जहां उसकी गंभीर हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया।

देश जब होली के रंगों की खुशियां मना रहा था, उसी समय बचपन बचाओ आंदोलन को किसी ने फोन कर सूचित किया कि गाजियाबाद के वसुंधरा इलाके में एक घरेलू सहायिका के साथ बर्बरता की गई है और उसकी स्थिति गंभीर है। सूचना के बाद बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे और बच्ची को मुक्त कराया। कार्यकर्ताओं ने पाया कि बच्ची के दोनों हाथ सूजे हुए थे और उसके कान एवं चेहरे सहित जिस्म का हर हिस्सा जख्मी था। उसकी पीठ पर बेलन से मारा गया था जिसकी वजह से वो बोल नहीं पा रही थी । गर्दन पर जले एवं कटे के निशान भी थे। दाएं पैर पर खौलता हुआ पानी डाला गया था जिसकी वजह बच्ची के पैर जल गए थे। बाए पैर में जख्म था जो पिटाई की वजह से फट गया था और एक जगह टांग में हड्डियों से खून रिस रहा था।

बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता उसे लेकर इंदिरापुरम थाने पहुंचे और उसकी नियोक्ता रीना शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। बच्ची पिछले एक साल से यहां काम कर रही थी। बच्ची ने बताया कि होली की रात रीना शर्मा ने उसे बेरहमी से पीटा और मदद के लिए पुकार लगाने पर वह उसके सीने पर बैठ गई। सुबक रही बच्ची ने दरवाजा थोड़ा सा खुला देखा तो वहां से भाग निकली और रात को सीढ़ियों पर छिपी रही। सुबह किसी ने उसे देखा और बचपन बचाओ आंदोलन को सूचना दी।

बच्ची ने बताया कि नियोक्ता रीना शर्मा उसकी डंडे से पिटाई करती थी और उससे सुबह छह बजे से लेकर रात को दो बजे तक काम कराया जाता था। नाबालिग ने अपने जले हुए पांव दिखाते हुए बताया कि एक बार वह कोई काम पूरा नहीं कर पाई तो मालकिन उसके पैर खौलता पानी फेंक दी। होली से एक दिन पहले भी उसकी बेरहमी से पिटाई की गई थी।

बच्ची की मां सिलीगुड़ी के एक चाय बागान में काम करती हैं जबकि पांव की चोट के कारण पिता घर पर ही रहते हैं। बच्ची ने बताया कि उसे पखवाड़े में एक बार अपने घर फोन करने की इजाजत दी जाती थी और इस बीच अगर उसने इशारों में भी यहां के बदतर हालात के बारे में कुछ बताने की कोशिश की तो उसे बेरहमी से पीटा जाता था। बच्ची ने बताया कि तनख्वाह के नाम पर उसके हाथ में कभी एक पैसा भी नहीं मिला और उससे कहा जाता था कि हर महीने 4,000 रुपए उसके घर वालों को भेजे जाते हैं। बच्ची को एक प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए यहां भेजा गया था। बताया जा रहा है कि रीना ने इससे पहले भी एक घरेलू सहायिका को बुरी तरह पीटा था।

देश में घरेलू सहायकों के काम करने के हालात और उनकी स्थिति पर चिंता जताते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, “शहरी भारतीयों के बढ़ते लालच को पूरा करने के लिए देश के दूरदराज के इलाकों के गरीब व लाचार परिवारों की लड़कियों को ट्रैफिकिंग के माध्यम से लाया जा रहा है। जैसे एक मासूम से उसका बचपन और घर छीन लेना ही काफी नहीं है, इन बच्चों को यातनाएं दी जाती हैं, उन पर अत्याचार किए जाते हैं और उन्हें वीभत्स स्थितियों में रहने को मजबूर किया जाता है। अगर हम अपने बच्चों को शोषण और उत्पीड़न से बचाना चाहते हैं तो हमें और कड़े कानूनों व प्लेसमेंट एजेंसियों की निगरानी की आवश्यकता है। लेकिन जिस तरह से किसी ने बच्ची के बारे में सूचना दी और आस पड़ोस के लोगों ने जिस तरह बच्ची को मुक्त कराने में सहयोग दिया, वह ऐसी तमाम बच्चियों के लिए आशा की किरण जगाने वाला है। अगर देश की सभी रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) इसी तरह से सक्रिय भूमिका निभाएं जैसा कि इस मामले में देखने को मिला है तो हम बाल मजदूरी और बच्चों की ट्रैफिकिंग पर लगाम कसने में कामयाब हो सकते हैं। जाहिर है कि जब तक यह सबका दायित्व नहीं बन जाता तब तक यह किसी का कर्तव्य नहीं बन पाएगा।”

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राजस्थान दिवस पर डॉ. सिंघल, चौथमल और जोधराज होंगे सम्मानित

कोटा। हिंदी साहित्य समिति कोटा द्वारा राजस्थान दिवस शनिवार 30 मार्च शनिवार को दोपहर 2.00 बजे सम्मान समारोह एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन वेस्ट सेंट्रल रेलवे एम्पलाइज यूनियन कार्यालय में किया जाएगा। हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ. रघुराज सिंह कर्मयोगी ने बताया कि कार्यक्रम हिंदी भाषा के प्रकांड विद्वान एवं प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. रमेश चंद्र गुप्ता की स्मृति में उनके पुत्र श्री मनोज कुमार गुप्ता, मुख्य कार्यालय अधीक्षक मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय द्वारा आयोज्य है।

उन्होंने बताया कि इस अवसर पर राजस्थान के लेखक और पूर्व संयुक्त निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग राजस्थान सरकार, कोटा के डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को हाड़ोती क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए उनकी पुस्तक “जियो तो ऐसे जियो” के लिए सम्मानित किया जाएगा। पुस्तक में हाड़ोती में साहित्य, शिक्षा और संस्कृति की 99 विभूतियों पर गहन अध्ययन और विश्लेषण कर लिखा गया है। हिंदी के क्षेत्र में “काव्य सृजन” त्रैमासिक पत्रिका का सुंदर और निरंतर प्रकाशन के लिए साहित्यकार जोधराज परिहार ‘मधुकर’ को एवं हाड़ोती भाषा का शब्दकोश तैयार करने के लिए चौथमल प्रजापति को सम्मानित किया जाएगा।

 

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ग्रामीण विकास मंत्रालय की J-PAL दक्षिण एशिया के साथ साझेदारी

नई दिल्ली। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने IFMR में अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (J-PAL) दक्षिण एशिया को ‘समावेशी आजीविका’ कार्यक्रम हेतु एक नोलेज पार्टनर के रूप भागीदार बनाया है। यह कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भरता के मार्ग पर लाने के लिए डिज़ाइन किया गया एक व्यापक आजीविका कार्यक्रम है।

एमओआरडी – एमओयू
‘समावेशी आजीविका’ कार्यक्रम BRAC के ग्रेजुएशन एप्रोच के अनुकूल काम करेगा, जो एक व्यापक आजीविका कार्यक्रम है। यह J-PAL और इनोवेशन फॉर पॉवर्टी एक्शन से संबंद्धित शोधकर्ताओं द्वारा यादृच्छिक मूल्यांकन को सबसे गरीब परिवारों को अत्याधिक गरीबी से बाहर निकालने में प्रभावी पाया गया है। इस साझेदारी के हिस्से के रूप में, J-PAL दक्षिण एशिया भारत में समावेशी आजीविका का विस्तार करने के लिए निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य और डेटा का उपयोग करने में MoRD का समर्थन करेगा।

‘समावेशी आजीविका में व्यवसाय प्रशिक्षण, जीवन-कौशल कोचिंग और अल्पकालिक वित्तीय सहायता शामिल होगी और इसे MoRD के प्रमुख आजीविका कार्यक्रम दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के माध्यम से पूरे भारत में ग्रामीण महिलाओं को प्रशासित किया जाएगा।

समझौता ज्ञापन पर चरणजीत सिंह, अतिरिक्त सचिव, ग्रामीण आजीविका, ग्रामीण विकास मंत्रालय, स्मृति शरण, संयुक्त सचिव, ग्रामीण आजीविका, ग्रामीण विकास मंत्रालय, निवेदिता प्रसाद, उप सचिव, ग्रामीण विकास विभाग, रमन वाधवा, निदेशक, डीएवाई-एनआरएलएम, और उषा रानी, आईबीसीबी एसआईएसडी और एचआर, एनआरएलएम, शोभिनी मुखर्जी, कार्यकारी निदेशक, जे-पाल दक्षिण एशिया एवं शरण्या चंद्रन, निदेशक, नीति और संचार, जे-पाल दक्षिण एशिया की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।

इस साझेदारी का प्रमुख उद्देश्य एक ऐसे ईको सिस्टम का निर्माण करना है जो विस्तृत साक्ष्य साझा करने, ज्ञान अंतराल को पाटने और राष्ट्रव्यापी विभिन्न राज्यों और संदर्भों में ग्रेजुएशन अपरोच को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए आत्मविश्वास पैदा करने की दिशा में काम कर सके। चरणजीत सिंह, अतिरिक्त सचिव, ग्रामीण आजीविका, ग्रामीण विकास मंत्रालय, ने कहा कि किसी भी कार्यक्रम को वास्तविक समय में फीडबेक प्राप्त होना महत्वपूर्ण है और यह समझौता ज्ञापन इस प्रक्रिया में मदद करेगा। J-PAL दक्षिण एशिया महिलाओं पर केन्द्रित विकास पर काम करने के लिए NRLPS-DAY-NRLM के भीतर नए शोध करने और डेटा उपयोग को संस्थागत बनाने हेतु MoRD के साथ मिलकर एक जेंडर इम्पैक्ट लैब भी स्थापित करेगा।

MoRD के साथ J-PAL दक्षिण एशिया की साझेदारी ASPIRE द्वारा समर्थित है जो कि बड़े पैमाने पर प्रभावशाली बदलाव लाने के लिए J-PAL दक्षिण एशिया और वेदीस फाउंडेशन की एक संयुक्त पहल है। भारत सरकार का डीएवाई-एनआरएलएम विश्व के सबसे बड़े सामुदायिक जुड़ाव प्रयासों में से एक है, जिसने 90.4 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों और 4 लाख से अधिक प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के गठनों में 9.99 करोड़ से अधिक महिलाओं को संगठित किया है। यह कार्यक्रम स्थायी आजीविका को बढ़ावा देता है और महिलाओं को अपनी बचत करने में मदद करता है। लेकिन इन सबसे ऊपर, यह उन्हें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है।

नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक प्रगति रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत ने पिछले एक दशक में अत्यधिक वनरेबिलिटी को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन लगभग 19.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में रहना जारी रखते हैं। पहली बार 2002 में बांग्लादेश में लागू किए गए ग्रेजुएशन अपरोच को J-PAL और इनोवेशन फॉर पॉवर्टी एक्शन से संबद्ध शोधकर्ताओं द्वारा सात देशों में गहनता से परीक्षण किया गया है। उनके निष्कर्षों से पता चलता है कि समर्थन का पूरा पैकेज प्राप्त करने वाले परिवारों में अधिक खर्च करने की क्षमता आई, वे नियमित रूप से खाते हैं, और उनकी उच्च आय और बचत हुई।

भारत में पश्चिम-बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में J-PAL के सह-संस्थापकों और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो के नेतृत्व में एक मूल्यांकन में पाया गया कि कार्यक्रम का प्रभाव एक दशक बाद भी बना रहा। 2015 और 2019 के बीच, J-PAL दक्षिण एशिया और NGO बंधन-कोननगर ने झारखंड, ओडिशा, राजस्थान और बिहार में ग्रेजुएशन अप्रोच मॉडल को प्रायोगिक आधार पर शुरु किया।

आज ग्रेजुएशन अप्रोच जैसे साक्ष्य आधारित कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता है । इनके व्यापक प्रभाव व लाभ पाने के लिए कई क्षेत्रों में लागू करने की ज़रूरत है। J-PAL दक्षिण एशिया की कार्यकारी निदेशक शोभिनी मुखर्जी ने कहा, “ग्रेजुएशन अपरोच महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के लिए भारत सरकार के विज़न के लिए एक बड़ा बढ़ावा है। MoRD ने अपने निर्णय लेने में वैज्ञानिक साक्ष्य और डेटा को अपनाने में अभूतपूर्व नेतृत्व दिखाया है। समावेशी आजीविका एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और नागरिक समाज संगठनों का एक मजबूत ईको सिस्टम बड़े पैमाने पर प्रभाव डालने के लिए महत्वपूर्ण हैं।”

J-PAL दक्षिण एशिया बंधन-कोननगर के साथ मिलकर सतत जीविकोपरजन योजना (SJY) के विस्तार का समर्थन करने के लिए 2018 से बिहार सरकार के JEEViKA के साथ काम कर रहा है। अनुमान है कि यह दुनिया में ग्रेजुएशन अपरोच का सबसे बड़ा सरकार के नेतृत्व वाला स्केल-अप है। SJY पूरे बिहार में 2024 तक 200,000 महिला-प्रधान परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य रखता है। J-PAL साउथ एशिया SJY के कार्यान्वयन से अपने निष्कर्ष और अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए राज्य सरकारों और नागरिक समाज संगठनों को मिलाकर MoRD के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ भी सहयोग करेगा।

जे-पाल दक्षिण एशिया के बारे में
अब्दुल लतीफ़ जमील पोवर्टी एकशन लेब(जे-पाल)अमेरिका स्थित एक विश्व्यापी शोध संस्था है है जो की शोध द्वारा गरीबी उन्मूलन से जुड़े साक्ष्य और प्रमाणों को सरकारों तथा संस्थाओं से साझा करती हैं जिससे की गरीबी उन्मूलन से जुड़े प्रयास को कारगर और सदृढ़ बनाया जा सके! विश्व भर के अग्रणी विश्वविद्यालयों से जुड़े करीब 870 प्राध्यापक और शोधकर्ता इस मुहीम का हिस्सा हैं जो अपने रेण्डमाइज़्ड कण्ट्रोल ट्रायल पर आधारित अनुसंधान के उपयोग से गरीबी उन्मूलन की दिशा में जटिल सवालों के उत्तर तलाश रहे हैं।

अब्दुल जमील पाँवर्टी एक्शन लैब (जे-पाल) की स्थापना 2003 मे मेसेच्युसेट्स इंस्टीटयूट आफ़ टेक्नोलोजी अमेरिका में की गई थी। जे-पाल के दुनिया भर में सात क्षेत्रीय कार्यालय हैं, ज-पाल दक्षिण एशिया का कार्यालय चेन्नई में Institute for Financial Management and Research (IFMR) में स्थित है। भारत में जे-पाल कई सरकारी संगठनों और विभागों के साथ 20 से ज्यादा राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में मिल के शोध के नए विषयों और सवालों साक्ष्य आधारित नीति निर्माण की दिशा में साझदारी तथा प्रक्षिशण के विभिन्न आयामों और अवसरों पर मिल के काम कर रहा है।

वेदीस फाउंडेशन के बारे में
वेदीस फाउंडेशन प्रौद्योगिकी पर और बड़े पैमाने पर स्थायी प्रभाव पैदा करने की नीति काम करने वाले संगठनों का समर्थन करता है। गहरे और अपरिवर्तनीय सामाजिक परिवर्तन बनाने के मिशन के साथ फाउंडेशन प्रभावी सार्वजनिक सेवा वितरण पर सरकारों के साथ सीधे काम करता है। फाउंडेशन इस प्रकार के काम करने वाले संस्थानों का समर्थन करने के लिए एक साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाता है। यह औसत दर्जे का बाहरी प्रभाव प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ निवेशों के लिए विश्लेषणात्मक कठोरता और एक सहयोगी भावना लाने की उम्मीद करता है।

एक सफल तकनीकी उद्यमी और आईआईटी दिल्ली और आईआईएम कलकत्ता के पूर्व छात्र विक्रांत भार्गव द्वारा स्थापित, वेदीस फाउंडेशन ने कई राज्य सरकारों के साथ प्रत्यक्ष (और अप्रत्यक्ष रूप से) काम किया है और 100 से अधिक संगठनों का समर्थन किया है। इस में LetzChange.org का गठन भी किया गया है जो अब एक तकनीकी प्लेटफॉर्म है जो गिवइंडिया के रिटेल फंडरेसिंग प्लेटफार्म को मजबूत बनाता है।

ज्यादा जानकारी के लिये विज़िट करें www.povertyactionlab.org/south-asia

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श्री अयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को जाग्रत कर दिया

22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।

सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया गया है। इस भव्य मंदिर को त्रिभुवन का मंदिर भी कहा जा रहा है। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी, जो कला के जानकार हैं, का तो यह भी कहना है कि इस प्रकार की नक्काशी से सज्जित मंदिर शायद पिछले 1000 वर्षों में तो बनता हुआ नहीं दिखाई दिया है। इस मंदिर में प्रभु श्रीराम के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के समय लगभग समस्त समाज के लोग पूजा सम्पन्न कराने के उद्देश्य से बिठाए गए थे। पूजा सम्पन्न कराने के लिए माननीय पंडितों को देश के लगभग समस्त राज्यों से लाया गया था। देश में लगभग 150 संत महात्माओं की परम्पराएं हैं जैसे गुरु परम्परा, दार्शनिक परम्परा आदि। ऐसी समस्त परम्पराओं के संत महात्माओं की भागीदारी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में रही। साथ ही, सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों के प्रमुख नागरिकों की भी इस समारोह में भागीदारी रही, जैसे खेल, साहित्य, लेख, कला, मीडिया, प्रशासन, आदि।

कुल 18 श्रेणियों के नागरिकों को इस समारोह में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था। जिन लगभग 4000 श्रमिकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था उनमें से 600 श्रमिकों, इंजीनीयरों एवं सुपर्वायजर आदि की भी इस कार्यक्रम में भागीदारी करवाई गई। 22 जनवरी 2024 के पवित्र दिन श्रीअयोध्या धाम के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 60 चार्टर हवाई जहाज आए थे। कुल मिलाकर व्यवस्थाएं इतनी अच्छी थीं कि किसी भी नागरिक को श्री अयोध्या धाम में प्रवेश करने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हुई थी। मंदिर परिसर में भी समस्त नागरिकों को अपनत्व लगा था। ऐसा लगा कि स्वर्ग में पहुंच गए हैं एवं मंदिर परिसर में दैवीय अनुभूति हुई। आज भारत एवं अन्य देशों से लगभग 2 लाख श्रद्धालु प्रभु श्रीरामलला के दर्शन हेतु श्री अयोध्या धाम प्रतिदिन पहुंच रहे हैं।

दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को नागपुर में सम्पन्न हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्रभु श्रीराम मंदिर के निर्माण पर एक प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि भारत में सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने “स्व” को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। अब जब प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है अतः अब भारत के समस्त नागरिकों के संदर्भ में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचरित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, इससे राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा।

प्रभु श्रीराम के जीवन में परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही प्रभु श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी। इसी दृष्टि से, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त भारतीयों का आह्वान करती है कि बंधुत्व भाव से युक्त, कर्तव्य निष्ठ, मूल्य आधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करने वाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्व कल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा। यदि भारतीय समाज एक होगा तो भारत को पुनः एक बार विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में आसानी होगी।

श्री अयोध्या धाम में नव निर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने न केवल भारतीय समाज को एक किया है बल्कि इससे भारत की आर्थिक प्रगति में चार चांद लग रहे हैं। देश में धार्मिक पर्यटन की जैसे बाढ़ ही आ गई है। न केवल भारतीय नागरिक बल्कि अन्य देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी प्रभु श्री राम के दर्शन करने हेतु श्री अयोध्या धाम पहुंच रहे हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के लाखों नए अवसर विकसित हो रहे हैं। भारतीय समाज में एकरसता आने से भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों को भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है जिससे आपस में भाईचारा बढ़ता दिखाई दे रहा है। यदि मां भारती को विश्व गुरु बनाना है तो भारत में निवास कर रहे समस्त नागरिकों में एकजुटता स्थापित करनी ही होगी। भारत में मजबूत राजनैतिक स्थिति, मजबूत लोकतंत्र, मजबूत सामाजिक स्थिति, मजबूत सांस्कृतिक धरोहर होने के चलते विश्व के अन्य देशों का भारतीय सनातन संस्कृति पर विश्वास बढ़ रहा है जिसे भारत के वैश्विक स्तर पर पुनरुत्थान के रूप में देखा जा सकता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी भी अपने एक उदबोधन में कहते हैं कि राम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है, उसी का आचरण आज हमें करना चाहिए क्योंकि हम भी इस गौरवमय भारतवर्ष की संताने हैं। आज हमें राम राज्य के समय नागरिकों द्वारा किए जाने वाले आचरण को अपनाने हेतु तप करना पड़ेगा, हमको समस्त प्रकार के कलह को विदाई देनी पड़ेगी। समाज में आपस में अलग अलग मत हो सकते हैं, छोटे छोटे विवाद हो सकते हैं, इन्हें लेकर आपस में लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी पड़ेगी। राम राज्य के समय नागरिकों में अहंकार नहीं हुआ करता था वे बगैर अहंकार के आपस में मिलजुलकर काम करते थे। श्रीमद् भागवत में बताया गया है कि जिन चार मूल्यों की चौखट पर धर्म का निवास रहता है, वे चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, सुचिता और तपस। राम राज्य में इन मूल्यों का अनुपालन नागरिकों द्वारा किया जाता था।

श्री भागवत जी आगे कहते हैं कि आज की परिस्थितियों के बीच नागरिकों द्वारा आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना यह धर्म का ही प्रथम पायदान है। दूसरा कदम माना जाता है धर्म का आचरण अर्थात सेवा और परोपकार करना। केंद्र सरकार एवं अन्य कई राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही है। आज इस संदर्भ में सब कुछ हो रहा है लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है। इस समाज में जहां दुःख दिखाई दे, पीड़ा दिखाई दे, वहां हम दौड़ कर सेवा करने पहुंचे, यह सभी हमारे अपने बंधू ही तो हैं। हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि दोनों हाथों से कमाएं जरूर, परंतु अपने लिए न्यूनतम आवश्यक राशि रखकर शेष सारा पैसा सेवा और परोपकार के माध्यम से समाज को वापिस कर दें। सुचेता पर चलना यानी पवित्रता होनी चाहिए और पवित्रता के लिए संयम होना चाहिए। लोभ नहीं करना, संयम में रहना और शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना, अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब को अनुशासन में रखना, अपने समाज में अनुशासन में रहना तथा सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना आदि कुछ ऐसे नियम हैं जिनके अनुपालन से भारत को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई जा सकती है।

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प्रयागराज के द्वादश माधव मन्दिर 

आध्यात्मिक पृष्ठभूमि
भगवान श्रीकृष्ण, हिंदू धर्म के प्रमुख भगवानों में से एक हैं. वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं. कन्हैया, श्याम, माधव, गोपाल, केशव, द्वारकाधीश, वासुदेव कई नामों से उनको जाना जाता है. भगवान कृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था. महर्षि वेदव्यास की रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है. देश भर में भगवान कृष्‍ण के कई मंदिर हैं। उत्‍तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कृष्‍णजी के खूबसूरत और विशाल मंदिर स्‍थापित हैं। द्वारकाधीश मंदिर, मथुरा, बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन, द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात,जगन्‍नाथ पुरी, उड़ीसा , श्रीकृष्ण मठ मंदिर, उडुपी और श्रीकृष्ण निर्वाण स्थल, गुजरात आदि प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इसके साथ ही साथ तीर्थ राज प्रयाग भी श्री कृष्ण के पुण्य स्थलों में माना जाता है।

त्रिवेणी संगम प्रयाग राज
त्रिवेणी संगम प्रयाग में मुख्य स्थानों का उल्लेख नीचे दिए गए श्लोक में किया गया है :
त्रिवेणिं माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकिम्।
वन्देऽक्षयवतं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम् ॥

उपरोक्त श्लोक के अनुसार प्रयाग राज में मुख्य स्थान है:
1. त्रिवेणी (या त्रिवेणी संगम)
2. माधव (प्रयाग में द्वादश माधव हैं)
3. सोम (या सोमेश्वर महादेव)
4. भारद्वाज (या भारद्वाज आश्रम)
5. वासुकी (या नाग वासुकी)
6. अक्षय वट (या अक्षय वट)
7. शेष (या बलदेव या बलदाऊ)

द्वादश माधव प्रयाग ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर का शाश्वत निवास स्थान रहा है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु बेनी माधव के रूप में प्रयाग में रहते हैं। इतना ही नहीं प्रयाग द्वादश (बारह) माधवों का भी निवास स्थान है। यहाँ पर भगवान श्रीहरि विष्णु स्वयं अधिष्ठाता के रूप मे विराजमान हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री ब्रम्हा जी ने जब गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर सृष्टि का प्रथम यज्ञ किया था तब उस यज्ञ की रक्षा का भार भगवान श्री विष्णु ने ग्रहण किया था और अपने बारह स्वरूपों-त्रिवेणी माधव, शँख माधव, सँकष्टहर माधव, वेणी माधव, असि माधव, मनोहर माधव, अनंत माधव, बिंदु माधव, पद्म माधव, गदा माधव, आदि माधव, चक्र माधव के द्वारा पूरे सौ वर्षों तक पावन यज्ञ की पवित्रता एवं सुरक्षा को अक्षुण्य रखा है।

स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्माचारी जी के अनुसार सृष्टि रचना को ब्रह्माजी ने यज्ञ के लिए त्रिकोणात्मक वेदी बनाई थी। उसे अंतर्वेदी, मध्य वेदी, बर्हिवेदी के रूप में जाना जाता है। बहिर्वेदी में झूंसी, अंतर्वेदी में अरैल व मध्यवेदी दारागंज का क्षेत्र है। हर क्षेत्र में चार-चार माधव स्थित किये गये हैं। श्रीकृष्ण को माधव भी कहा जाता है। मान्यता है कि प्रयागराज में संगम की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने 12 रूप धारण किए थे और उन्हीं रूपों में वहां विराजमान किया गया है। उन रूपों की याद में सभी 12 स्थानों पर मंदिर बने थे, जो कुछ ठीक हालत में और कुछ अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं।

एक धार्मिक कथा के अनुसार गजकर्ण नाम के राक्षस को एक्जिमा हो गया था। नारद जी ने उसे संगम स्नान करने का परामर्श दिया। संगम स्नान करने से गजकर्ण का एक्जिमा ठीक हो गया। इसके बाद उसे लगा कि ये तीनों नदियां तो बहुत उपयोगी हैं।  वह तीनों नदियों का जल पी गया। उस राक्षस से नदियों को मुक्त कराने के लिए भगवान माधव मंगलवार के दिन प्रयाग आए। दो दिन तक युद्ध चला और गुरुवार को गजकर्ण मारा गया। मगर इस दौरान गंगा और यमुना को ही छुड़ाया जा सका।

सरस्वती नदी को गजकर्ण पूरी तरह पी चुका था। उसके बाद माधव भगवान 12 रूपों में प्रयाग की रक्षा के लिए यहां पर विराजमान हुए। इन्हीं रूपों की स्मृति में प्रयाग और उसके आसपास 12 मंदिर बने हुए थे, जिन्हें माधव मंदिर कहा जाता है। समय बीतने के साथ-साथ ये मंदिर जीर्ण-शीर्ण होते गए। अब इन मंदिरों के बारे में कोई बता भी नहीं पाता। इनमें से कई तो लुप्तप्राय हैं। चूंकि ग्रंथों में इन मंदिरों का उल्लेख है, इसलिए देशभर से प्रयाग आने वाले जिज्ञासु श्रद्धालु इनके वस्तुस्थिति के बारे में जानकारी खोजते रहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा ने द्वादश (12) माधव की स्थापना प्रयागराज में की थी। कहा जाता है कि कल्पवास का आशीर्वाद और प्रयागराज के संगम में पवित्र स्नान का लाभ 12 माधव मंदिरों की परिक्रमा करने के बाद ही मिलता है।

त्रेतायुग में महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में 12 माधव की परिक्रमा की जाती थी , लेकिन यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त हो गई। मुगल और ब्रिटिश प्रशासन के दौरान, द्वादश माधव के मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। जिससे परिक्रमा की परंपरा भी कई बार रूकी और कई बार पुनः शुरू हुई। देश आजाद होने के बाद संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने विलुप्त हुए द्वादश माधव की खोज की। शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ ने धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के साथ 1961 में माघ मास में द्वादश माधव की परिक्रमा पुनः आरंभ कराई। संतों व भक्तों ने मिलकर तीन दिन पदयात्रा करते हुए परिक्रमा पूरी की। परिक्रमा 1987 तक चलकर फिर बंद हो गई।

फिर तीन साल के अंतराल के बाद 1991 में टीकर माफ़ी पीठ (झूंसी) के स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने परिक्रमा शुरू कराई। लेकिन अन्य धार्मिक संगठनों और प्रशासन की अज्ञानता के कारण कुछ वर्षों के बाद इसे रोक दिया गया। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महासचिव महंत हरि गिरि के प्रयासों से 6 फरवरी को कुंभ 2019 में परिक्रमा फिर से शुरू की गई , जो आज भी जारी है। मत्स्य पुराण में लिखा है कि द्वादश माधव की परिक्रमा करने वाले को सारे तीर्थो व देवी-देवताओं के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है।

उत्तर प्रदेश में राम, कृष्ण और बुद्ध सर्किट के बाद अब महाकुंभ 2025 से पहले ‘द्वादश माधव’ सर्किट बनाने की तैयारी है. इसके तहत प्रयाग के ‘द्वादश माधव’ मंदिरों का कायाकल्प होगा. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों संग बैठक में पौराणिक महत्व के ‘द्वादश माधव’ मंदिरों के बारे में प्रेज़ेंटेशन को मंज़ूरी दी है. इसमें ,  प्रयागराज के कई मंदिरों के लिए विस्तृत योजना बनी है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन  को बढ़ावा देने के लिए ‘द्वादश माधव’ मंदिरों को महाकुंभ से पहले निखारा जाएगा. साथ ही 125 किलोमीटर लंबे ‘द्वादश माधव’ सर्किट की योजना पर भी काम शुरू हो चुका है।

वेणी माधव मंदिर के महंत ओंकार देव गिरि बताते हैं, ‘‘भगवान वेणी माधव को ही प्रयागराज कहा जाता है। वेदों में माधव मंदिर का वर्णन है। जब भगवान राम प्रयाग आए थे तब भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुके थे।’’ इन महंत जी के पास ‘बारह माधव’ नाम से एक पुस्तिका है। जिसके लेखक आनन्द नारायण शुक्ल जी हैं जो हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रयाग राज द्वारा 2012 से प्रकाशित हुई है।इसमें सभी 12 मंदिरों की जानकारी दी गई है। उपलब्ध विवरण के आधार पर इन बारहों माधव स्वरूपों का परिचय आगे की पंक्तियों में किया जा रहा है –

1. आदि वेणी माधव मन्दिर
इन 12 मंदिरों में सबसे प्रमुख है श्री आदि वेणी माधव मंदिर है। इनको मूल माधव वट माधव अक्षय माधव और आदि वेणी माधव मन्दिर नामों से भी जाना जाता है। संगम त्रिवेणी तट और अक्षय वट सहित 20 धनुष के क्षेत्र में इनकी उपस्थिति मानी जाती है। वे यहां लक्ष्मी सहित जल रूप में निवास करते हैं। यह मंदिर प्रयाग के निराला मार्ग दारागंज मुहल्ले में अरैल घाट पर वेणी (त्रिवेणी) तट पर वेणी माधव के नाम से विद्यमान है, जो प्रयागराज के मुख्य नगर देवता हैं। श्री वेणी माधव ने तीर्थयात्रियों को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए विभिन्न दिशाओं में बारह रूपों में स्थान लिया है। पुराणों के अनुसार, वेणी माधव (वेणी माधव) तीर्थयात्रियों से कुछ भी अपेक्षा नहीं करते हैं। वह माघ के शुभ महीने के दौरान प्रयागराज में उनके प्रवास से प्रसन्न होते हैं।

वेणी माधव चार पुरुषार्थों का एक अक्षय खजाना है जिसे देवता प्रसन्न होने पर भक्तों और तीर्थयात्रियों को प्रदान करते हैं। राधा कृष्ण स्वरूप में स्थित भगवान विष्णु इंद्र और अन्य देवताओं के साथ मिलकर प्रयागराज की रक्षा करते हैं। बाल रूप में विष्णु भगवान शिव द्वारा संरक्षित अक्षयवट के पत्तों पर शयन करते हैं। वेणी माधव बिल्कुल संगम पर अपने चतुर्भुज रूप में ‘शंख’ (शंख), ‘चक्र’ (पहिया), ‘गदा’ (गदा) और कमल (कमल) धारण किए हुए हैं। इनकी आराधना सकाम भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। बामन पुरान 22वें अध्याय के अनुसार भक्त प्रहलाद ने निर्मल तीर्थ में स्नान करने के बाद यमुना तीर्थ में योगदायी वेणी माधव का दर्शन किया था। इनकी आज्ञा से ऋषि भारद्वाज की गणना सप्त ऋषियों में हुई। प्रथम तीर्थ आदि वट त्रिवेणी माधव को संगम में स्थित माना जाता है। इनका साइनेज बड़े हनुमान मंदिर के पास उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाया जाना है।

 2. चक्र माधव मंदिर
वेणी माधव मंदिर के बाद चक्र माधव मंदिर का स्थान है। प्रयाग के अग्नि कोण में अरैल में भगवान सोमेश्वर के मंदिर से यह लगा हुआ इनका पावन स्थल है। पहले यहां अग्नि देव का आश्रम था ।  माना जाता है कि चक्र माधव जी अपने  चक्र के द्वारा भक्तों की रक्षा करते हैं। यह 14 महाविद्याओं से परिपूर्ण है।  इनके दर्शन-पूजन से 14 विद्याएं प्राप्त होती हैं। भगवान माधव की यह दूसरी पीठ है।

3. गदा माधव मंदिर
यमुना पार के क्षेत्र में गदा माधव का प्राचीन मंदिर है। गदा माधव के रूप में विष्णु जी प्रयाग के छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप नैनी में विराजमान हैं। मान्यता है कि वैशाख मास में इनका पूजन करने से काल का भय नहीं रह जाता। भाद्र शुक्ल की पंचमी को पूजन से कलाओं में वृद्धि होती है। इस दिन यहां विशाल मेला लगता है। इस समय यह स्थान रिक्त है। इसलिए श्रद्धालु यहां पर शयन माता के मंदिर में पूजा करते हैं। कहते हैं कि वन गमन के समय भगवान राम ने एक रात  यहां पर विश्राम किया था। उसी जगह पर शयन माता का मंदिर है। यह भगवान माधव  की तीसरी पीठ है।

4. पद्म माधव मंदिर
शहर से 25 किमी दूर यमुनापार के घूरपुर से आगे भीटा मार्ग पर बिकार कंपनी के पास छिपकली वीकर देवरिया ग्राम में भूतल से 60 फिट ऊपर ये अत्यंत प्राचीन सुजावन देव मंदिर है। बीते समय में जब यमुना जी की जलधारा परिवर्तित हुई तब यह मंदिर यमुना के बीच में आ गया। मंदिर भारतीय पुरातत्‍व विभाग से संरक्षित है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यही मंदिर प्राचीन काल का पद्म माधव मंदिर है। यहां माधव जी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान रहते थे । इनका दर्शन पूजन से पुत्र पौत्र आदि की प्राप्ति होती हैं। यहां चैत और कार्तिक मास में मेला लगता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से योगियों को सिद्धि और गृहस्थों को पुत्र एवं धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

शाहजहां के सेनापति शाइस्ता खां ने इसे तोड़वा कर अष्टपहलू बैठका बनवा लिया था। बाद में हिन्दुओं ने इसे शिव मन्दिर में परिवर्तित कर लिया था।  किवंदती है कि यहां यम द्वितीया पर यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। उस समय उन्होंने बहन का हाथ पकड़कर यमुना में डुबकी लगाई थी। उस समय अपने आतिथ्य सत्कार से खुश होकर यमराज ने यमुना से वरदान मंगाने के लिए कहा था। यमुना ने वर मांगा कि भैया दूज के दिन जो भक्त यमुना स्नान करेंगे उन्हें मृत्यु का भय न रहे और देव लोक में स्थान मिले। यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा। इसी वजह से सुजावन देव मंदिर और यमुना तट पर मेला लगता है। लोग स्नान करके दीपदान करते हैं। यह माधव भगवान की चौथी पीठ है।

5. अनंत माधव का मंदिर
प्रयाग के पश्चिमी क्षेत्र दारागंज मुहल्ले में ऑर्डिनेंस पाइपलाइन और मामा-भांजा के तालाब के पास अनंत माधव का मंदिर स्थित है। दारागंज के वरुण खात देव शिखा के समीप इनका स्थान है। पहले यहां वरुण का आश्रम था। इनका दर्शन पूजन  सभी कामनाओं पूर्ण करने वाला है। भगवान सूर्य और सप्तर्षि मंडल का वास भी यहां माना जाता है। मुगलकाल के पहले यदुवंशी राजा रामचंद्रदेव के पुत्र राजा श्रीकृष्णदेव के समय यह क्षेत्र उनकी राजधानी देवगिरवा के नाम से जाना जाता था। यवनों के आक्रमण से बचाने के लिए इस  मंदिर के पुजारी स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ल ने अनंत माधव भगवान की मूर्ति को अपने निजी निवास दारागंज में स्थापित कर दिया था। यह स्थान बेनी माधव की बगल वाली गली में स्थित है। यहां अनंत माधव मां लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं। मुरलीधर शुक्ल के वंशज श्री नीरज  लक्ष्मी जी की मूर्ति को काली जी की मूर्ति बताते है। यह माधव भगवान का पांचवां रूप है।

6. बिंदु माधव मन्दिर
शहर के वायव्य कोण में द्रौपदी घाट के पास सरस्वती विहार कालोनी में बिंदु माधव का निवास है। इनके पूजन से मन शांत होता है। शरीर के दोनो भौहों के मध्य आज्ञा चक्र पर स्थित होता है बिन्दु। बिंदु माधव की पूजा-अर्चना देवताओं और महर्षि भारद्वाज द्वारा भी की गई है। यह वह स्थान है जहां सप्त ऋषिगण विराजते हैं। कहा जाता है कि बिंदु माधव जी का मंदिर वहां पर था जहां पर इन दिनों लेटे हुए हनुमान जी का पौराणिक मंदिर है। यह माधव भगवान का छठा रूप है।

7. मनोहर माधव मन्दिर
शहर के उत्तरी भाग में मा लक्ष्मी सहित मनोहर माधव का मनोहारी विग्रह जनसेन गंज चौक में सूर्य कुण्ड अथवा सूर्य तीर्थ के निकट स्थित द्रव्येश्वर नाथ जी के मंदिर में प्रतिष्ठित हैं। मनोहर माधव अपनी पत्नी मां लक्ष्मी के साथ यहां विराजमान हैं। ऐसा कहा जाता कि इसी स्थान पर कुबेर जी महाराज का आश्रम था। किन्नर गंधर्व और अप्सराएं नृत्य गान किया करती थीं। आज भी ऐसा दृश्य परिलक्षित होता है। मनोहर मांधव जी के दर्शन से मानव धन धान्य से सम्पन्न हो जाता है। यह माधव की सातवीं पीठ है।

8. असि माधव मन्दिर
नगर के उत्तर पूर्व में असि माधव मंदिर प्राचीन काल मे हुआ करता था। शहर के ईशान कोण में स्थित नागवासुकी मंदिर के दक्षिण पूर्वी कोने पर असि माधव विराजते हैं।  मान्यता है कि असि माधव के पूजन एवं दर्शन से समस्त उपद्रवियों का नाश होता है।  ये दुष्ट दानवों से तीर्थो की रक्षा करते हैं। यह माधव का आठवां रूप है।

9. संकट हर माधव मन्दिर
पुरानी झूंसी के पोस्ट आफिस के पास में गंगा तट पर के हंस तीर्थ के स्थित वटवृक्ष में संकट हरन माधव का वास है। यहां पर दर्शन करने से भक्तों के संकट और पाप का हरण हो जाता है। इस पीठ की पुर्नस्थापना प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1931 में की थी। पुराना वट वृक्ष आज भी मौजूद है। यह उनका नौवां रूप है।आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक” इस प्रकार कविता में कहते हैं –
प्राचीन नाम प्रतिष्ठान पुरी, वर्तमान में झूंसी कहलाता है।
गंगा जी के पूर्वी तट पर, संध्या वट भी लहराता है।
इस संध्या वट के नीचे ही, पावन स्थल संकष्ठहर का।
कब्जा कर लिया गया,आधिपत्य हो गया दबंगों का।

10.आदि विष्णु माधव का मंदिर
आदि विष्णु माधव का मंदिर नैनी के अरैल क्षेत्र में यमुना तट पर है। इनके दर्शन पूजन से तत्काल कामना सिद्धि होती है। यह उनका 10वां रूप है।

11. आदि वट माधव मन्दिर
त्रिवेणी संगम मध्य में गंगा-यमुना नदी के बारे में बताया गया है। आदि वट माधव दो नदियों के संगम पर पानी के आकार में हैं। विष्णु माधव की पहचान संगम नगरी के रूप में की जाती है। यहां पर गंगा, यमुना और सरस्वती के मध्य में विष्णु जी जल रूप में विराजते हैं। यह उनका 11वां रूप है।

12. शंख माधव मन्दिर
प्रयाग के झूंसी के छतनाग सदाफल आश्रम मुंशी के बगीचे में शंख माधव की स्थली माना जाता है । पहले यहां चन्द्र की वाटिका थी। माघ अथवा वैसाख मास में इनका दर्शन पूजन करने से मोह माया से मुक्ति मिलती है और सभी उपद्रव शान्त होते हैं।शंख माधव की पूजा करने से आठों सिद्धियां प्राप्त होती हैं।  यहां माधव 12वें रूप में विराजमान हैं।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं । लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।) 
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भारतीय भाषा में अंग्रेजी अनुवाद के बिना ही सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार की

बदलते समय के साथ-साथ भारतीय नागरिकों की मांग एवं उनकी आवश्यकताओं को देखते हुए भारत के माननीय राष्ट्रपति, माननीय मुख्य न्यायाधीश, पीठासीन न्यायाधीशों, पूर्व न्यायाधीशों, माननीय प्रधानमंत्री तथा भारत के प्रबुद्ध नागरिकों के प्रयास से न्याय प्रणाली को उत्कृष्ट बनाने के लिए भारत के अनेकों न्यायालयों, उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय में विधि व्यवस्था का भारतीयकरण धीरे-धीरे देखने को मिल रहा है।

ऐसा ही एक उदाहरण विगत सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय में देखने को मिला जहां कपिल साव बनाम बिहार राज्य एवं अन्य की अपराधिक अपील में माननीय पटना उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतिम आदेश के विरुद्ध एस एल पी (क्रिमिनल) याची के विशेष अनुरोध पर केन्द्रीय कारागार अधीक्षक महोदय की अनुमति से प्राधिकृत शोधकर्ता नान ए ओ आर अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद द्वारा तैयार करा कर याची द्वारा इन पर्सन याचिका सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत करने की अनुमति मिली।

दिनांक 21 मार्च 2024 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भारतीय भाषा में प्रस्तुत उपरोक्त याचिका को आरंभ में निबंधक कार्यालय द्वारा स्वीकार करने में असमर्थता व्यक्त करने पर पूर्व में भारतीय भाषाओं में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत याचिकाओं का विवरण देने व भारतीय भाषा अभियान की दिल्ली प्रांत की सर्वोच्च न्यायालय इकाई के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट आन रिकार्ड एसोसिएशन व सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के विशेष अनुरोध पर विद्वान रजिस्ट्रार महोदय ने भारतीय भाषा में कपिल साव बनाम बिहार राज्य एवं अन्य की एस एल पी (क्रिमिनल) आवेदन, याचिका, संलग्नकों के अंग्रेजी अनुवाद के बिना याचिका स्वीकार किया।

यहां बताना परिहार्य है कि वर्ष 2016 से लगातार सर्वोच्च न्यायालय भारत के न्यायिक कार्यवाहियों में भारतीय भाषाओं में आवेदन दाखिल हो रहा है, जिसमें से कुछ आवेदनों का अंग्रेज़ी अनुवाद सर्वोच्च न्यायालय के अनुवादक विभाग द्वारा तैयार कराया गया तथा कुछ आवेदनों का अंग्रेज़ी अनुवाद लीगल सर्विस कमेटी द्वारा और कुछ भारतीय भाषाओं के आवेदन डिफेक्ट सहित माननीय न्याय खंड पीठ के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश पारित हुआ है।

भारतीय भाषा अभियान, सर्वोच्च न्यायालय इकाई सर्वोच्च न्यायालय रजिस्ट्री के विद्वान रजिस्ट्रार महोदय द्वारा भारतीय भाषा में याचिका स्वीकार करने, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट आन रिकार्ड एसोसिएशन व सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों द्वारा विशेष सहयोग करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करती है और आशा करती है कि भविष्य में भी याचिकाकर्ताओं को अपनी भारतीय भाषाओं में याचिका प्रस्तुत करने में कोई अड़चन नहीं आएगी और उन्हें भारतीय भाषा में शीघ्र निर्णय प्रदान किया जाएगा।

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साठ साल तक फिल्मी परदे पर राज करने वाली लीला मिश्रा

एक ऐसी अभिनेत्री जिन्होंने अपने दौर में सबसे अधिक फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड जीते – लीला मिश्रा: सिल्वर स्क्रीन की मशहूर चरित्र अभिनेत्री – लीला मिश्रा का नाम बॉलीवुड के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। वह एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने अपने शानदार अभिनय और बहुमुखी प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीत लिया। फिल्मों में उन्होंने 60 से भी अधिक वर्षों तक अपना जलवा बिखेरा और अनगिनत यादगार किरदार निभाए। उनकी जीवनी का हर पन्ना उनके अद्वितीय कौशल और समर्पण की कहानी कहता है।

लीला का जन्म 1 जनवरी 1908 में आगरा की जमींदार फैमिली में हुआ। लीला की पढ़ाई लिखाई नहीं हुई इसलिए उनके मां-बाप ने जल्द ही उनकी शादी मात्र 12 साल की उम्र में ही कर दी थी। उनके पति का नाम रामप्रसाद मिश्र था और 18 साल की आयु में वह दो बच्चों की मां भी बन चुकी थी। लीला भले ही रूढ़ीवादी फैमिली से संबंध रखती थी, लेकिन उनके पति रामप्रसाद आजाद ख्यालों वाले व्यक्ति थे। उनका अक्सर मुंबई में आना जाना होता रहता था। वह सिनेमा को काफी पसंद करते थे, इसलिए उन्हें जब भी मौका मिलता वह कई फिल्मों में साइलेंट रोल्स किया करते थे। ऑर्थोडोक्स फैमिली से नाता रखने वाली लीला शुरू से ही काफी धार्मिक ख्यालों वाली रही है। एक बार की बात है जब रामप्रसाद के एक मित्र मामा सिंदे उनके घर गए तब उन्होंने लीला को पहली बार देखते ही कह दिया कि इन्हें फिल्मों में काम करना चाहिए लेकिन लीला ने उनकी इस बात को साफ मानने से इंकार कर दिया। ऐसे में जब उनके पति ने उनको फिल्मों में काम करने के लिए समझाया तब वह फिल्मों में काम करने के लिए राजी हुई।

यह स्पष्ट है कि उनका बचपन और युवावस्था किसी न किसी तरह फिल्मी दुनिया से जुड़ने की लालसा से भरी रही होगी। 1930 के दशक की शुरुआत में उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा, जहाँ उन्हें छोटे-मोटे रोल मिलने लगे।

शुरुआती दौर में लीला मिश्रा को बतौर सहायक कलाकार या पृष्ठभूमि कलाकार ही फिल्में मिलती थीं। यह वह दौर था जहाँ उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखा और अपने अभिनय को निखारा। पर्दे पर भले ही उनकी छोटी सी भूमिका होती थी, लेकिन वह उसे बखूबी निभाती थीं। उनकी निष्ठा और लगन किसी से छिपी नहीं रह सकी। धीरे-धीरे फिल्म निर्देशकों को उनकी प्रतिभा का एहसास हुआ और उन्हें मां, पड़ोसी, बुआ जैसी सहायक भूमिकाएं मिलने लगीं। 1940 के दशक तक आते-आते वह एक जानी-मानी चरित्र अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो चुकी थीं।

1950 और 1960 का दशक लीला मिश्रा के लिए सुनहरा दौर साबित हुआ। उन्हें हिंदी सिनेमा के बड़े पर्दे पर खूब सराहनीय भूमिकाएं मिलीं। उन्होंने हर तरह के किरदार को बड़ी सहजता से निभाया, फिर चाहे वह एक सख्त माँ का किरदार हो या फिर एक प्यारी दादी का। उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी जो दर्शकों को अपने से जोड़ लेती थी।

1936 में आई एक फिल्म ‘सति सिलोचना’ में दोनों (लीला और उनके पति रामप्रसाद) ने एक साथ काम किया। इस फिल्म के लिए रामप्रसाद को एक महीने के 150 रुपए मिलते थे, जबकि लीला को इस फिल्म में एक महिने के पूरे 500 रुपए मिलते थे। लीला को रामप्रसाद से दोगुने रुपया इसलिए मिलता करता था, क्योंकि उन दिनों फिल्मों में फीमेल कलाकार कम होती थीं। उन्होंने ‘चित्रलेखा’, ‘रामबाण’, ‘शीशमहल’, ‘अवारा’, ‘दाग’, ‘प्यासा’, ‘लावंती’, ‘लीडर’, ‘बहु बेगम’ और ‘अमर प्रेम’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया।

लीला मिश्रा के शानदार अभिनय को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें दो फिल्मफेयर पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेत्री मिले। 1972 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 2001 में, भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया, जो कला के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए दिया जाने वाला चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

लीला मिश्रा ने बॉलीवुड में 60 से अधिक वर्षों तक अपनी अमिट छाप छोड़ी। वह एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने हर तरह के किरदार को बखूबी निभाया। उनकी जीवनी आने वाली पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

लीला मिश्रा को अपनी शानदार कॉमिक टाइमिंग के लिए जाना जाता था। वह एक कुशल गायिका भी थीं और उन्होंने कुछ फिल्मों में गाने भी गाए थे। वह अपने निजी जीवन में भी बहुत सरल और सहज स्वभाव की महिला थीं। 80 साल की उम्र में हॉर्टअटैक की वजह से उनका निधन हो गया। अपनी बेहतरीन अदाकारी से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगी।

लीला मिश्रा भारतीय सिनेमा की एक महान अभिनेत्री थीं। उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया और उन्हें प्रेरित किया। उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।

(लेखक फिल्मी दुनिया के जाने अनजाने किस्से लिखते हैं।)

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